























अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
जिसनैं देखो ओहे पाछै पड़ रह्या सै!
जब वेस्टर्न वर्ल्ड वाले कान खींचते हैं तो कुछ इस अंदाज में खींचते हैं कि उधर बीबीसी ने गोधरा काण्ड पर मोदी के रोल बारे इंग्लैंड में डॉक्यूमेंटरी का फर्स्ट पार्ट जारी किया और इधर मोदी ने खुद आगे आ कर, भक्तों से "पठान" फिल्म का विरोध नहीं करने की ही कह डाली| लगता है पूंछ पर पैर जोर से धरा गया| यही ऐसे ही कनेक्शंस हमारी किनशिप को बचाने हेतु, मैं हमेशा कहता भी हूँ व् इसी कोशिश में लगा भी हूँ कि हमारी कौम में इतने NRI हैं, बस एक-दो यहाँ से मजबूत कनेक्शन निकाल लो जैसे सर छोटूराम ने निकाल रखे थे; यह फंडी और इनकी तथाकथित 1 बनाम 35 सी टाइप की नौसिखियाँ तो खिंडी-खिंडी हॉन्डेंगी| यह क्या कभी "जाति-विशेष" और "जाट बनाम नॉन-जाट" किये फिरते हैं आज के दिन; यह तो वापिस इनके पुरखों की भांति जाटों की स्तुति में "जाट-जी" व् "जाट-देवता" लिख-लिख ग्रंथ पाथते हाँडेन्गे|
मैंने तो आज के दिन तमाम धरातलीय कोशिशों के साथ-साथ यहाँ ख़ास ध्यान धर रखा है; खासतौर से फरवरी 2016 के बाद से| चीजें इतनी बिगड़ चुकी हैं हमारी अपनी आंतरिक खामियों के चलते कि शायद सर छोटूरामी टाइप के नेटवर्क खड़े करते-करते ही ज्यादातर वक्त ना गुजर जाए| परन्तु शुकून व् तसल्ली इस बात की है कि भक्त बने मेरी ही बिरादरी के लोगों की भांति मुझ जैसों में भटकन नहीं है; सही राह पर हैं इसकी तसल्ली शत-प्रतिशत% है| और इसीलिए फरवरी 2016 के बाद से उन जमानों वाली पोस्टें लिखने पे ध्यान कम है जिनपे 300-400 लाइक्स व् 50इयों शेयर्स औसतन आते थे; फरवरी 2016 से समझे हुए हैं कि यह शेयर्स व् लाइक्स वाली पोस्टें तो कभी भी लिख लेंगे परन्तु "कल्चर-किनशिप" के नाम पर होमवर्क करने का जो बैकलॉग का ढेर लग चुका है पहले वह निबटवाया जाए; अपनी व्यक्तिगत व् प्रोफेशनल लाइफ चलाने के साथ-साथ|
जय यौधेय! - फूल मलिक
धन्यवाद है तुम सब नौसखियों का तुम हमें यहूदियों की तरह तुम्हारी हमारे प्रति नफरत की धोंकनी में झोंक के इतना पका रहे हो कि उस विश्वयुद्ध के बाद यहूदियों ने कैसे सबको काबू किया; उसके आज तक सब मुरीद हैं| मत भूलो," हम पिछोके से किसान हैं, बोने से बेहतर काटना जानते हैं"! किन्हीं जमानों में, किन्हीं जमानों से याचकों को अपने यहाँ शरण दे-दे हमने ही बसाया है, हमें तुम्हारे पॉजिटिव व् नेगेटिव सब पता हैं; बस सूचियां बन रही हैं कि किधर से किसको मरोड़ना है| हमें भले ही आरएसएस की भांति 5 पीढ़ियां नहीं लगेंगी; 1-2 पीढ़ी में ही सुधार लेंगे; हमारी अति-उदारवादिता को|
बृजभूषण शरण द्वारा पहलवानों को "जाति-विशेष" का कहना इस आदमी की उस हताशा व् हीनता को दिखाता है जिसके तहत जब से (पिछले 11 साल से) यह रेसलिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (WFI) का अध्यक्ष चला आ रहा है तब से ले के आज तक; इसकी तमाम कोशिशों के बावजूद भी यह जाट-पहलवानों (इसके अनुसार "जाति-विशेष) के विल्कप नहीं ढूंढ पाया; ना तो इसके इलाके से और ना लगभग पूरे इंडिया से ही| इसकी इस हीन-भावना से पता चलता है कि इस आदमी ने कितनी कोशिशें नहीं की होंगी, "जाति-विशेष पहलवानों" जैसे ओलिंपिक मटेरियल ढूंढने की; व् शर्तिया बात है यह कि अगर इसको विकल्प मिल जाते तो पक्का; इसने जाति-विशेष पहलवान साइड करके, वह आगे बढ़ाने-ही-बढ़ाने थे| जो एक-दो आगे बढ़ भी पाए तो वह उसी हरयाणा देस (वर्तमान हरयाणा, वेस्टर्न यूपी के "सर्वखाप मिलिट्री कल्चर") के तहत गाम-गेल चलने वालों अखाड़ों से आते हैं जहाँ से तमाम जाति-विशेष के पहलवान निकलते हैं; अन्य जाति पहलवानों में उदाहरणार्थ योगेश्वर दत्त व् दिव्या काकराण|
सवाली: मिस्टर फूल मलिक, तुम नौसिखिया हो चुके हो, जो रोज-रोज खामखा के ऐसे त्यौहार घड़ ले आते हो जो पहले कभी थे ही नहीं! चाहते क्या हो तुम? ऐसे तो जिनको तुम फंडी बोलते हो उनमें व् तुम में क्या फर्क? आज ही देख लो, आज के दिन तुमने यह "सर्वखाप अनुकम्पा दिन" ला खड़ा किया? क्या औचित्य है इसका? हमें बाकी समाजों के साथ रहने दोगे या नहीं?
(आप इसको अनुकम्पा की जगह दयालुता, उदारता, मानवता या जो भी शब्द ज्यादा जचे वह बोल-लिख सकते हो)
जीते हुए पक्ष की परवाह ना करते हुए युद्ध में घायल हारी हुई सेना की मरहमपट्टी करने व् उनको आसरा देने का विश्व का सबसे बड़ा उदाहरण है यह| शायद ही अन्यत्र कोई इतना बड़ा उदाहरण विश्व में देखने को मिलता है|
तारीख थी 14 जनवरी 1761, लड़ाई का मैदान था पानीपत, लड़ने वाले दो पक्ष थे पेशवा व् अब्दाली; लगभग दोपहर 2 बजे तक युद्ध का फैसला हो गया था; हारने वाला पक्ष था पेशवा, जीतने वाला पक्ष था अब्दाली; अब्दाली के भय से कोई विरला ही घायल-बदहवास माह-पोह की ठंड में ठिठुरते-भागते-पनाह ढूंढते सैनिकों को, मैदान में घायल पड़े सैनिकों को मदद देने की हिम्मत जुटा पा रहा था|
ऐसे में सब अटकलों को विराम देते हुए, सामने आई तो उदारवादी जमींदारों की विश्व की सबसे प्राचीनतम सामाजिक संस्थाएं यानि खापें व् इन्हीं जमींदारों की सबसे मजबूत रियासत यानि लोहागढ़ जाट रियासत|
कहते हैं महाराजा सूरजमल ने अकेले राज-खजाने से उस जमाने में 10 लाख रूपये इन घायल पेशवाओं की फर्स्ट-ऐड पर खर्च कर दिए थे; आज के दिन उस वक्त के 10 लाख रूपये कितने अरब-खरब बैठेंगे; किसी CA से पूछ लीजिये| इसके अतिरिक्त मुज़फ्फरनगर से ले कर धुर लोहागढ़ तक फैली खाप व् पालों ने गाम-गेल कितनी मदद की थी उसकी गिनती तो शायद कोई विरला ही कर सकता है|
कुल मिलाकर इतनी ज्यादा कि शायद ही विश्व में आज तक ऐसी मदद हुई हो और वह भी तब जब जीतने वाला अब्दाली वहीँ सर पर बैठा था यानि दिल्ली में था| परन्तु पेशवाओं को हराने वाले की उसकी हिम्मत न पड़ी कि जाटों व् खापों को हारी हुई सेना की मदद करने से रोक देता| यह दिखाता है क्या रूतबा-रूआब रहा उदारवादी जमींदारों के सिस्टम का|
यह तो पेशवाओं ने अपने अहम् में आ के मदद को आये महाराजा सूरजमल को ही बदनीयती दिखाई व् बंदी तक बनाने की हिमाकत की परन्तु महाराजा सूरजमल बच निकले उनके षड्यंत्र से; इसीलिए इतिहासकारों द्वारा एशिया के ओडीसूस व् प्लेटो कहलाये, लिखे गए|
खैर, अपनी पीढ़ियों को यह गर्व का पन्ना जरूर पास करें; व् कुछ इसी अंदाज में पास करें कि वह अपनी किनशिप-कौम-कल्चर पर विजडम से भर जाएं!
जय हो खाप-खेड़े-खेतों के इस सिस्टम की, जो ऐसे वक्तों में बैरी के भय से डर के दुबकने की बजाये, खापलैंड यानि दर पे पड़े घायलों की मदद को दौड़े| क्यों नहीं इस अध्याय को किताबों में पढ़ाया जाता? क्यों नहीं इस अध्याय पर फ़िल्में बन सकती व् क्यों नहीं इस अध्याय को भारत की संस्कृति की उच्चतम प्राकाष्ठा के उदाहरणों में जगह दी जाती?
🌳🌳शक की रात यानि शकरात💐के पावन पर्व, जो कि 14 जनवरी 1761 को🌲 खापों व भरतपुर रियासत (रोहतक-मेरठ से ले भरतपुर-मैनपुरी तक फैली) के 💐महाराजा सूरजमल जी द्वारा 💐💐पानीपत की तीसरी लड़ाई में अब्दाली से हारे हुए पेशवाओं की घायल सेना की अब्दाली से भी ना डर खाते हुए फर्स्ट-ऐड करने की इंसानियत से शुरू हुआ, व् आज भी उसी नेक भावना के प्रतीक बड़ों को कंबल-शॉल दे के मनाया जाता है; उस वक्त यह कंबल-शाल पेशवाओं की घायल सेना को दिए गए थे खापों व् जाट रियासत भरतपुर द्वारा; जो कि प्रतीकात्मक तौर पर फिर घर-रिश्तेदारी के बड़े बुजुर्गों को दिए जाने लगे इसी दिन के अवसर पर|
💐💐💐आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ
जय यौधेय! - फूल मलिक
सकरात को एक तरफ तो होली व् दिवाली जितना धार्मिक त्यौहार बना के दिखाया जाता है, परन्तु जब इनसे पूछो कि अच्छा ऐसा है तो बताओ फिर यह अंग्रेजी कैलेंडर की तारीख के अनुसार क्यों मनता है; होली-दिवाली की भांति देसी महीनों की तारीखों में क्यों नहीं? तब सभी की नानी मर जाती है|
जवाब इधर है: 14 जनवरी 1761; पुणे-पेशवाओं की पानीपत की तीसरी लड़ाई के मैदान में हार का दिन| वही दिन जिस दिन अब्दाली से हारे घायल-बदहवास पेशवे आसरे-आशियाने तलाश रहे थे, इस जनवरी यानि पोह-माह की ठिठुरती ठंड में| व् अब्दाली और मुग़लों के डर से कोई विरला ही इनको आसरा देने की हिम्मत कर रहा था| इसीलिए सकरात को शक-की-रात भी कहते हैं; क्योंकि कोई भी इनकी मदद करने हेतु आगे आने से डर रहा था, शक-शुबा में था कि इनकी मदद करना यानि मुग़लों से पंगा लेना| तब यह पंगा लिया "हरयाणा देश" (उस वक्त हरयाणा-दिल्ली-वेस्टर्न यूपी एक ही थे व् "हरयाणा देश" कहलाते थे) की खापों व् रोहतक-मेरठ-मैनपुरी-ब्रज-भरतपुर तक फैली लोहागढ़ की जाट रियासत ने अपनी उदारता के दर घायल-थके-ठिठुरते हुए पेशवाओं व् इनकी सेना के लिए खोले थे व् इनको खाना व् ओढ़ने-पहनने को कपड़े-लत्ते और कंबल दिए थे; मरहम-पट्टियां की थी|
वैसे तो "देश हरयाणे" का हर गाम-नगरखेड़ा मानवता के इस मूल-सिद्धांत पर बसा हुआ है कि, "इतनी मानवता गाम का हर बासिन्दा पालेगा कि गाम में कोई भूखा-नंगा ना सोये'; और इसी वजह से यह कहावत चलती आई कि, "खापलैंड के गाम-नगरखेड़ों में आपको कोई भिखारी नहीं मिलेगा" (आशा है कि पिछले दशकों में हुए अंधाधुंध माइग्रेशन के बावजूद भी यह कहावत बरकरार रह पाई हो) परन्तु जब 14 जनवरी को इस मानवता की थ्योरी की अच्छाई बुलंदी पर थी तो इसको हर साल मनाया जाने लगा|
परन्तु एक अनकहा सा कम्पटीशन वह लोग खाप-खेड़े-खेतों की इस डेमोक्रेटिक सोच से रखते हैं कि इसके यहाँ से जब भी कोई ऐसी अच्छाई की बहार बहती है तो हमारे सर छोटूराम की थ्योरी वाले फंडी या तो उसको मिटाने पे लग जाते हैं अन्यथा उसको किसी अन्य शब्द व् कांसेप्ट से ढांप के ओरिजिनल कांसेप्ट डकारने की कोशिश करते हैं| और यह सकरात शब्द इसी तरह की एक कोशिश है जो लोगों यह भुलवाना चाहता है कि किन्हीं वक्तों जाटों व् खापों ने क्या-क्या मानवतायें स्थापित की हुई हैं|
खैर, हमारे लिखने व् बताने से यह अपनी आदत नहीं छोड़ने वाले| ऐसे में हम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपनी पीढ़ियों व् समाजों को इन कॉन्सेप्ट्स की ओरिजिनालिटी से अवगत करवाते चलें| बाकी सकरात भी सुथरा शब्द है इसको भी जारी रखो परन्तु इस दिन "सर्वखाप दयालुता/अनुकम्पा दिन" होता है यह जरूर अपनी पीढ़ियों कन्फर्म से बतावें| वरना फंडी तो लगे ही हुए हैं आपको धूर्त-क्रूर व् अन्यायकारी स्थापित करने पे; अब यह आपकी सक्रियता पर निर्भर है कि आप इनकी हरकतों से अपने असल-नस्ल को कैसे दुरुस्त सुनिश्चित रख सकते हैं|
कोई-कोई इस वास्तविक तथ्य से इस तिथि को मोड़ने हेतु एक तर्क और जोड़ते हैं कि इस दिन सूर्य उत्तरार्ध होता है; बड़ा दिन होता है| बड़ा दिन 25 दिसंबर को मनता है, अंग्रेजी तिथि वाला; और 14 जनवरी अंग्रेजी तिथि ही है| तो अंग्रेजी तिथि में साल में दो बड़े दिन थोड़े ही हो जाएंगे|
Discussion: आज चारों और मकर सक्रांति की धूम मची है। लोग बधाईयाँ दे रहे हैं, नदियों में स्नान कर रहे हैं ,पूजा पाठ और दान पुण्य कर रहे हैं। पर यह सब पाखण्डियों के कहे अनुसार हो रहा है। लोगों को शायद ही पता हो कि सक्रांति का अर्थ क्या है। वास्तव में सक्रांति का अर्थ सूर्य के द्वारा अपनी स्थिति बदलने से है। अर्थात जब सूर्य उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी या दक्षिणी गोलार्ध से उत्तरी गोलार्द्ध की ओर अपनी स्थिति बदलता है तो उसे सक्रांति कहते हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में दो सक्रान्ति होती हैं। गर्मियों में 21 जून के बाद 22को तथा सर्दियों में 22 दिसम्बर के बाद 23 को। ये जो राशियां बनाई गई हैं ये फंडियों द्वारा बनाई गई हैं जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है। फंडियों के अनुसार आज सूर्य मकर राशि में प्रवेश कर गया है। तो सूर्य तो हर महीने नई राशि में प्रवेश करता है फिर आज कौन सी नई बात हो गई। इसके लिए वे तर्क देते हैं कि सूर्य आज उत्तरायण हो गया अर्थात सूर्य दक्षणी गोलार्द्ध से उत्तर की ओर बढ़ गया है। जबकि यह सरासर झूठ है क्योंकि सुर्य तो आज से 23 दिन पहले अर्थात 23 दिसम्बर को उतर्यायन हो चुका है। अतः यह सही बात लगती है कि पेशवाओं की हार पर जो अनुकम्पा महाराज सूरजमल ने मदद करके दिखाई थी उसी को फंडियों ने अपने ढंग से राशियों के चक्कर में उलझा कर लोगों को बेवकूफ बनाया है।
विशेष: हम मानवता के पालक हैं, हम ना किसी समाज से नफरत कर सकते ना हेय चाहे वह पेशवा हों या कोई अन्य, सभी का आदर व् स्थान यथावत रहे; परन्तु अपनी पहचान को भी यूँ किसी के द्वारा कुचलता नहीं देख सकते; इसीलिए बैलेंस की लाइन लेते हुए; इनका भी आदर-रखिये व् अपनी पहचान अगली पीढ़ियों को पास कीजिये!
जय यौधेय! - फूल मलिक
देश विदेश के scientists जाटो पर रिसर्च करते है इनके DNA लाईन देखे तो इनमे मे L1a लगभग 25% है मतलब 25% जाट उनके वंशज हे जिन्होने सिन्धु घाटी मे खेती पशुपालन और व्यापार किया.यह इरानी किसानो के कबिले थै पहले सिन्धी पंजाबी कह सकते हो.
सलंगित वीडियो देखें, ना गुजरात में, ना दिल्ली में, जैनियों को संघ ने जा के छिड़वाया है झारखण्ड में| संघ मोदी को तीसरी बार नहीं चाहता व् इसको रोकने के लिए, मोदी के बैक-अप यानि जैनियों को हिला-डुला के टेस्ट करना शुरू कर दिया गया है|
यह जब 2014 में आये थे, तब से मैंने कहना-लिखना शुरू कर दिया था कि जंग जैनी बनाम सनातनी है; उभर के अब आ रही है| परन्तु आप देखेंगे कि अगर 2024 में बीजेपी सेण्टर में रिपीट हुई तो आएगा तो मोदी ही या फिर किसी और ही पार्टी-अलायन्स ही सरकार होगी| परन्तु बीजेपी जीती तो बनना मोदी ही है व् 2024 जैन धर्म के नए उद्भव का तगड़ा आगाज होगा|
आर्य-समाजियों को वक्त रहते यह बात भांप लेनी चाहिए! सनातनी यानि मूर्तिपूजा करने वाले हिन्दू व् आर्य-समाजी मूर्ती-पूजा विरुद्ध हिन्दू (इस पद्द्ति का उद्गम मूर्ती-पूजा रहित दादा खेड़ों से निकलता है)!
जय यौधेय! - फूल मलिक
वीडियो सोर्स: https://www.youtube.com/watch?v=_-rIuevHCFQ
जाटों का अलग अपना सिस्टम था। जाटों के रिवाज ही उसका कानून और संविधान थे, जिसके तहत उसकी कबीलदारी चलती थी। हमारी खाप इसका उदाहरण हैं, जिन्हें धीरे धीरे समाप्त कर सिर्फ नाम नाम की खाप छोड़ दी। ब्रिटिश हुकूमत ने भी माना कि जाटों की अपनी शासन प्रणाली है, जो उसके रिवाजों के आधार पर है न कि किसी धार्मिक आधार पर। The Punjab Past And Present, Vol-XI, Part I-II, Page no. 257 पर लिखा है कि -
वास्तव में, 'पंजाब लॉ एक्ट, 1872,' 24 और 25 विक्ट..सी. 67, इंपीरियल पार्लियामेंट द्वारा अधिनियमित, महारानी विक्टोरिया के शासनकाल के 24वें और 25वें वर्ष में, इसकी धारा 5 द्वारा, विशेष रूप से मान्यता दी गई है कि पंजाब के जाट अपने विशिष्ट रीति-रिवाजों द्वारा शासित होते हैं - न कि किसी व्यक्तिगत या धार्मिक कानून, जैसे हिंदू कानून द्वारा। पंजाब में बाद के न्यायिक फैसलों ने दोहराया है कि कस्टम (रिवाज) पंजाब में फैसलों का पहला नियम है। मूल रूप से जाट पक्ष होने पर न तो हिंदू कानून और न ही मुस्लिम कानून लागू होता था। इस प्रकार सीथियन (जाट) न केवल अपने मवेशियों और घोड़ों के झुंडों को पंजाब क्षेत्र में लाया, बल्कि वह अपने अजीबोगरीब और प्राचीन रीति-रिवाजों को भी लाया, जिसने दूसरों को सम्मान और मान्यता देने के लिए मजबूर किया।
-राकेश सिंह सांगवान
जब आप अपनी पुरखाई पहचान, वंशानुगत इतिहास फंडियों की कह-सुन के निर्धारित करते हो या फंडियों के सुपुर्द कर देते हो तो आपके साथ यही बनती है जो आजकल कुंवर अनिरुद्ध के साथ बनी हुई है| इनके किले में एक लोह-स्तम्भ है व् अभी पिछले दशक ही पट्टिकाएं लगवाई हैं; जिनमें इनको यदुवंशी बताया गया है| और अभी की कुंवर अनिरुद्ध की एक नई ट्वीट में यह फंडियों के बहकावे में आ के खुद को कोई जादों क्लैन (आदर-सम्मान है इस सम्प्रदाय का भी) से बता रहे हैं| यानि दोनों ही लाइन इनको जाति से बाहर ले जाती हैं|