Sunday, 13 April 2025

पहले अर्थ पीटना था,ताड़ना अब शिक्षा हो गई!

 शब्दों का षड्यंत्र: इतिहास की सबसे बड़ी साजिश?


मनुवादी ग्रंथों की परीक्षा हो गई

पहले अर्थ पीटना था,ताड़ना अब शिक्षा हो गई


गोरखपुर के छापा खाने के पोद्दार की फट गई हैं

अम्बेडकर वादियों के ज्ञान से नाक कट गई है



आजकल रामचरितमानस को लेकर विवाद गर्माया हुआ है—विशेष रूप से एक शब्द: “ताड़ना”।

1953 में गीता प्रेस, गोरखपुर के अनुवादक हनुमान प्रसाद पोद्दार ने “ढोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी” में ‘ताड़ना’ का अर्थ दंड (punishment) बताया था—और यह आप खुद उस संस्करण में देख सकते हैं।


मगर हाल के वर्षों में उसी शब्द का अर्थ बदलकर शिक्षा (discipline/learning) कर दिया गया है।


सोचिए—

* अनुवादक वही

* प्रकाशन वही

* किताब वही


फिर अर्थ क्यों बदला गया?

क्या ये सामान्य गलती है या सुनियोजित षड्यंत्र?


“शब्दों का अर्थ बदल देना इतिहास बदल देने जैसा होता है।”


भारत में सदियों से शूद्रों और स्त्रियों को ग्रंथ पढ़ने का अधिकार नहीं था।

जब पढ़ने का अधिकार नहीं था, तो सवाल उठता है—धार्मिक ग्रंथ किसने लिखे? किसने अर्थ निर्धारित किए?

बिल्कुल—ब्राह्मणों ने। और वही आज इन शब्दों के अर्थों को अपने हिसाब से पलटते हैं।


इतिहास गवाह है—

* सम्राट अशोक के शिलालेखों को भी सदियों तक भीम की गदा बताया गया।

* जब 1837 में जेम्स प्रिंसेप ने उसे पढ़ा, तब असली इतिहास सामने आया कि अशोक बौद्ध सम्राट थे।

* उन्होंने ‘देवानं पिय’ लिखा था, जिसका अर्थ ‘देवों का प्रिय’ बताया गया।

लेकिन जब ब्राह्मणवादियों ने इसे अपनी डिक्शनरी में दर्ज किया—तो अर्थ बदल दिया:

मूर्ख, बकरा, जड़ (Stupid, Dumb, Animal-like)।


क्या कोई राजा खुद को मूर्ख कहेगा?

क्या सम्राट अशोक या समुद्रगुप्त जैसे राजा स्वयं को बकरा कहेंगे?


इसका सीधा मतलब है—

संस्कृत डिक्शनरी बाद में बनी। जब तक सम्राट “देवानं पिय” लिखवा रहे थे, तब तक संस्कृत मुख्यधारा की भाषा नहीं थी।

असल भाषा पाली या प्राकृत थी, न कि संस्कृत।


बाद में इतिहास को तोड़ा-मरोड़ा गया:

* सम्राट अशोक को शिवभक्त बना दिया गया। 

* बौद्ध आचार्य पराशर को ब्राह्मण ऋषि कहकर गोत्र दे दिया गया।

* पाणिनि के 1000 सूत्रों को 4000 करार दे दिया गया।


ये सब क्यों हुआ?

क्योंकि ज्ञान और शब्दों की सत्ता जिनके पास होती है, इतिहास वही तय करते हैं।


अब सवाल आपसे:

* क्या इतिहास के ये फर्जीवाड़े उजागर नहीं होने चाहिए?

* क्या जिन्होंने यह सब किया, उन्हें माफ़ी नहीं मांगनी चाहिए?


जैसे पोप ने माफ़ी मांगी,

क्या भारत के शब्द माफिया कभी माफ़ी मांगेंगे?


और अंत में:

‘ताड़ना’ का मतलब क्या है?

* तुलसीदास ने रामचरितमानस अवधि भाषा में लिखी थी।

* शब्द सागर (सं. हरगोविंद तिवारी, भोला नाथ तिवारी) के अनुसार—

ताड़ना = मारना, दंड देना, घुड़की देना।


संस्कृत डिक्शनरी भी यही कहती है:

“ताड़ना” = पीटना, दंड देना (punishment, beating)


तो फिर, शिक्षा कहां से आ गया?

No comments: