Wednesday, 23 July 2025

1857 की लड़ाई: जनता के दो दुश्मनों — मुग़ल-राजपूत गठबंधन और अंग्रेजों — के बीच टकराव!

बहुत से लोग 1857 की क्रांति को एक 'भारतीय बनाम अंग्रेज़' संघर्ष मानते हैं, लेकिन असल में यह उतना सरल नहीं था। यह दरअसल दो शोषक शक्तियों के बीच सत्ता संघर्ष था — एक तरफ मुग़ल-राजपूत गठबंधन, जो सदियों से जनता का दमन करता आया था, और दूसरी तरफ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, जो एक नया उपनिवेशवादी शासक बनकर उभरा था।

अब सवाल यह उठता है कि:
"किसके लिए कौन बड़ा दुश्मन था?"
सिखों के लिए सबसे बड़ा दुश्मन — मुग़ल साम्राज्य
सिखों की मुग़लों से दुश्मनी कोई नई बात नहीं थी। मुग़लों ने:
1606 में गुरु अर्जुन देव जी की हत्या की,
1675 में गुरु तेग बहादुर जी को शहीद किया,
गुरु गोबिंद सिंह जी के छोटे साहिबज़ादों को दीवार में चिनवा दिया गया,
और बाद में बंदा सिंह बहादुर जैसे वीरों को बेरहमी से मारा गया।
यह सब कुछ 1857 के ठीक 100 साल पहले की ही तो घटनाएँ थीं। ज़रा सोचिए, क्या कोई भी समझदार सिख, जिसने अभी-अभी अपने पूर्वजों की हत्या का शोक मनाया हो, फिर से उन्हीं हत्यारों (मुग़लों और उनके समर्थकों) का साथ देगा?
पटियाला और अन्य सिख रियासतों ने अंग्रेजों का साथ क्यों दिया?
पटियाला, नाभा और अन्य सिख रियासतों ने अंग्रेजों का साथ इसलिए दिया क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि मुग़ल और राजपूत फिर से सत्ता में लौटें। वे जानते थे कि अगर 1857 की क्रांति सफल हो जाती और बहादुर शाह ज़फर जैसे मुग़ल शासक फिर से सत्ता में आते, तो सिखों की धार्मिक, राजनीतिक और सामाजिक स्वतंत्रता को मिटा दिया जाता।
यह राजनीतिक समझदारी थी, ग़ुलामी स्वीकारना नहीं।
मुग़ल और राजपूत: एक पुराना गठबंधन
राजपूत राजघरानों जैसे आमेर (जयपुर), मारवाड़ (जोधपुर), मेवाड़ आदि ने सदियों तक मुग़लों के साथ सांठगांठ की।
इन्होंने अपनी बेटियों की शादियाँ मुग़ल शहज़ादों से करवाईं, मुग़ली फौज में शामिल हुए, और अपने ही धर्म के लोगों (जैसे सिख, मराठा, जाट) के खिलाफ लड़ाई लड़ी।
1857 में भी, उत्तर भारत के कई राजपूत ज़मींदार और ठिकानेदार मुग़ल पक्ष में शामिल हो गए ताकि अंग्रेजों को हटा कर अपना पुराना ज़मींदारी राज बहाल कर सकें।
आज की राजनीति से तुलना: उदाहरण के लिए सोचिए
कल्पना कीजिए कि आज किसी राजनीतिक पार्टी (जैसे भाजपा) ने 150 गुज्जरों को मरवा दिया हो, तो क्या गुज्जर समाज कभी उस पार्टी को वोट देगा? नहीं ना!
ठीक इसी तरह सिखों ने मुग़ल-राजपूत गुट के खिलाफ अंग्रेजों का साथ दिया। उनके लिए यह कोई राष्ट्रवाद नहीं, बल्कि अपने अस्तित्व की रक्षा का सवाल था।
निष्कर्ष
1857 की क्रांति को "देशभक्ति" या "राष्ट्रीय एकता" के चश्मे से देखना गलत होगा।
सिख रियासतों ने अंग्रेजों का साथ इसलिए दिया क्योंकि उनका असली दुश्मन मुग़ल-राजपूत गठबंधन था, जिसने उनके गुरुओं को शहीद किया, उनके धर्म को मिटाने की कोशिश की और बार-बार उनके ऊपर हमले किए।
अगर उस वक्त पटियाला जैसे लोग भी "अंधभक्ति" में मुग़लों का साथ दे देते, तो आज हम मुग़लों की सल्तनत के ग़ुलाम होते और अंग्रेज शायद हार कर वापस चले जाते। फिर वही मुग़ल-राजपूत राज चल पड़ता — जिसमें आम जनता फिर से पीसी जाती।

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