Sunday, 24 August 2025

कुम्हारों का चाक लगान, जुलाहों का बुनकर लगान, नाइयों का करतन लगान; किसने हटवाए?

 कुम्हारों पर लगता था चाक लगान

जुलाहों पर लगता था बुनकर लगान

नाइयों पर लगता था करतन लगान


सवाल: किसने हटवाए? 

जवाब: दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने


हमारा दोष है कि हम उतनी बडी दृष्टि ही नहीं रख पाते हैं जितने महापुरुष रखते हैं। आजकल तो मूर्खों में फैशन हो गया है कि महापुरुषों पर अंगुली उठाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने का लेकिन सच ये है कि बडे लोगों के दिल भी बडे होते हैं और वो जाति धर्म संप्रदाय के आधार पर किसी से भेद नहीं करते बल्कि खुले दिल से सबकी मदद करते हैं और चौधरी छोटूराम भी ऐसे ही महापुरुष थे। अब आइए उनके उन कामों पर चर्चा करते हैं जो वक्त की धूल में भुला दिए गए। 


चाक लगान समाप्ति 


राजपूताना के राजाओं तथा ठिकानेदारों के द्वारा कुम्हारों के घड़े और मिट्टी के बर्तन बनाकर बेचने पर 5 रुपये वार्षिक 'चाक लगान' लगा रखा था। राजाओं का कहना था कि जिस मिट्टी से कुम्हार घड़े और बर्तन बनाते हैं, वह मिट्टी राजाओं की जमीन की है। अतः यह लगान देना ही पड़ेगा।


चौधरी छोटूराम ने 5 जुलाई, 1941 को बीकानेर में कुम्हारों को एकत्र किया और महाराजा गंगा सिंह से बातचीत करके इस 'चाक लगान' को हटवाया। इससे खुश होकर कुम्हारों ने सर छोटूराम को एक सुंदर सुराही भेंट करके सम्मानित किया। यह ऐसी सुराही थी, जिसमें पानी बेहद ठंडा रहता था। इस सुराही को चौधरी साहब ने मृत्यु पर्यन्त अपने पास रखा।


बुनकर लगान से दिलाई मुक्ति 


राजस्थान के शेखावाटी और मारवाड़ क्षेत्र में तथा विशेष तौर पर जयपुर, पाली और बालोतरा में मेघवाल समाज के जुलाहे, रजाई, खेस, चादर और मोटा सूती कपड़ा बुनकर बेचते थे। इसके लिए गृहणियां सूत कातकर दे देती थीं।


ठिकानेदारों ने इन जुलाहों पर बुनकर लगान लागू कर रखा था। सर छोटूराम ने सन् 1937 से 1941 तक लगातार इस लगान का अपनी अगुवायी में विरोध करके इस लगान से मुक्ति दिलवाई।


9 जुलाई, 1941 को बालोतरा में ठिकानेदारों ने जुलाहों के घरों को लगान न देने के कारण आग लगा दी, जिससे काफी नुकसान हुआ। सर छोटूराम वहां गए और 8 दिन तक भूख हड़ताल की। तब जोधपुर के राजा का संदेश आया कि यह लगान समाप्त कर दी गई है।


सर छोटूराम 28 जुलाहा परिवारों को आग से हुए नुकसान के लिए 1500 रुपये प्रत्येक परिवार को राजा से दिलवाने के लिए अड़ गए। अतः तीन दिन बाद राजा ने हर परिवार को 1500 रुपए देने की घोषणा की। दलितों और पिछड़ों की भलाई के लिए किए गए ऐसे संघर्षों को देखकर दीनबंधु छोटूराम आज भी प्रासंगिक हैं और रहेंगे।


कतरन लगान हटवाना 


नायक, बाबरिया आदि जातियां भेड़-बकरियों के बालों से ऊन बनाकर बेचती थी। ठिकानेदारों ने ऊन बनाने और बाल काटने पर 'कतरन लगान' लगा रखा था। इसी प्रकार से, नाइयों के द्वारा बाल काटने का धंधा करने पर 'कतरन लगान' का भुगतान करना पड़ता था।


इस 'कतरन कर' से मुक्ति दिलवाने के लिए सर छोटूराम लाहौर से मारवाड़ के गांव पहाड़सर और रतनकुड़िया में जाकर 26 जुलाई, 1941 को वहां के भेड़-बकरी पालकों और उस क्षेत्र के नाइयों को एकत्र करके 'कतरन लगान' के खिलाफ जोरदार आन्दोलन किया और इस 'कतरन लगान' को हटवाकर दम लिया।


जागीरदारी प्रथा का उन्मूलन 


रियासती काल में लगान वसूल करने और बेगार लेने के ठिकाने जागीरदारों के अधीन थे। जागीरदार की मर्जी ही कानून था। ये जागीदार बड़े ही निरंकुश और मनमानी करने वाले थे। यदि किसान से लगान वसूली नहीं होती, तो किसान को पकड़कर ठिकाने के गढ़ या हवेली में लाया जाता था और उसके साथ बर्बरता की जाती थी, जैसे-भूखा रखना, काठ में डाल देना आदि।


इन सजाओं की कोई सीमा नहीं थी, कोई कानून नहीं था, कोई व्यवस्था नहीं थी। अभद्र गाली देना, खड़ी फसल कटवा लेना, पशु खुलवा लेना, वर्तन कपड़े आदि उठवा लेना, किसान की मुश्कें कसवा देना, जमीन से बेदखल कर देना, पंखा खिंचवाना आदि साधारण बात थी। चौधरी छोटूराम ने इस क्रूर प्रथा के खिलाफ आवाज उठाकर इसे समाप्त करवाया।


चौधरी साहब ने कहा कि किसान की कोई जाति नहीं, उसकी जाति जमींदार पार्टी है। किसान चाहे दलित हो, सवर्ण हो या पिछड़ा हो, वह 'जमींदार' कहा जाएगा। धर्म का भी इसमें कोई बंधन नहीं है, कोई भेदभाव नहीं होगा। जमींदार पार्टी सदस्य वो है जो अपने पसीने से अपनी रोटी कमाता है। 


साभार: दीनबंधु छोटूराम की जीवनी, लेखक: पदमश्री डॉ संतराम देशवाल

दीनबंधु चौधरी छोटूराम ने दलितों के लिए क्या किया?

आइडेंटी पॉलिटिक्स के तगाजे और अपनी संकुचित सोच के चलते हमने महापुरुषों को एक जाति से बांधने का गुनाह करते हैं, हमने दीनबंधु चौधरी छोटूराम के साथ भी यही किया लेकिन अगर आप बहुत गहराई से अध्ययन करेंगे तो चौधरी छोटूराम असल में तमाम कमेरे वर्ग के प्रतिनिधि थे और अपना जीवन उन्हीं के नाम आहुत कर दिया। जब कुछ मूर्खों को चौधरी छोटूराम पर ही सवाल उठाते देखता हूं तो ये लाइन याद आ जाती है। 


जुगनूओं ने शराब पी ली है अब ये सूरज को गालियाँ देंगे । 


आइए आज चौधरी छोटूराम के अनुसूचित समाज के लिए किए गए कामों पर ही बात करते हैं। 13 अप्रैल, 1938 को पंजाब के कृषि मंत्री के रूप में चौधरी छोटूराम ने पंजाब के मुल्तान जिले की खाली पड़ी 4 लाख 54 हजार 625 एकड़ सरकारी कृषि-भूमि दलितों को 3 रुपये प्रति एकड़, जो 12 वर्षों में बिना ब्याज चार आने प्रति वर्ष किस्तों पर चुकाने की शर्त पर आवंटित की और भूमिहीन दलितों को भू-स्वामी बनाया। आज ये जमीन यहां के दलित किसानों के जीवन का आधार बनी हुई है।


चौधरी छोटूराम ने यह भी कहा कि 'दलित' शब्द को समाप्त करना जरुरी है, नहीं तो शोषित वर्ग समाज में बराबरी नहीं कर सकता। इसीलिए, 1 जुलाई, 1940 को चौधरी साहब ने 'छुआछात बुराई कानून' बनाकर इसे शक्ति से लागू करवाया।


छुआछूत-उन्मूलन के लिए चौधरी साहब ने एक कानून-पत्र जारी किया, जिसके अनुसार सभी सार्वजनिक कुएं सारी जातियों के लिए खोल दिए गए। इससे दलितों को वह कानूनी अधिकार मिल गया, जिससे वे सदियों से वंचित थे।


जाति-पाति के दुष्टचक्र को समाप्त करने के लिए बनाए गए इस ऐतिहासिक कानून के बाद भी कई गांवों में अज्ञानी और जातीय दंभ में लोगों ने दलितों को अपने कुओं पर चढ़ने से रोका, तो स्वयं चौधरी छोटूराम वहां गए और अपना हाथ पकडाकर दलितों को कुओं पर चढ़ाया तथा घड़ों में पानी भरवाकर खुद पानी से भरे घड़ों को उठवाया। इन घड़ों को खुद दलित महिलाओं के सिरों पर रखवा कर उनका मान-सम्मान बढ़ाया।


इसके अतिरिक्त, सरकारी आदेश जारी कर दिए कि कोई भी अधिकारी किसी दलित या पिछड़ी जाति के व्यक्ति से किसी प्रकार की बेगार नहीं लेगा, सरकारी दौरे पर किसी दलित से अपना सामान नहीं उठवाएगा। इस आदेश में यह भी हिदायत दी गई कि बेगार लेना कानूनी जुर्म है। इंसान की बेकद्री है।


दलितोद्धार के इन कानूनों के बाद दलित वर्ग के लोगों ने ही चौधरी छोटूराम को 'दीनबंधु' की उपाधि दी और उनका 'दीनबंधु' नामकरण करके दलितों ने उन्हें हाथी पर बैठाकर ढोल-नगाड़ों से जुलूस निकाला। इस जुलूस के बाद भारी जलसा किया गया। इस प्रकार, चौधरी छोटूराम का नाम 'दीनबंधु छोटूराम' हुआ।


कल आपके साथ चौधरी छोटूराम के OBC वर्ग पर उत्थान के लिए कामों पर चर्चा करेंगे। 


साभार: दीनबंधु छोटूराम की जीवन, लेखक: पदमश्री डॉ संतराम देशवाल

Thursday, 21 August 2025

करमू की गिरफ्तारी के संदेश!

हालाँकि करमु-धरमु का किसान बिरादरी के बारे कंफ्यूज करने वाला ही स्टैंड देखने को मिला है; किसान में भी जाट बारे खासतौर से| फिर भी एक हरयाणवी के तौर पर सोचा जाए तो इनकी गिरफ्तारी की कुछ वजहें यह भी हैं:

1 - आरएसएस की मनोहरलाल खट्टर लॉबी यानि 80% खुद को पंजाबी कहने वाला समुदाय हरयाणवी ब्राह्मणों के खिलाफ है; यह खट्टर के सीएम काल में इनके विरुद्ध खट्टर की एक्टीवितियों से हमने देखा भी है; 20% पंजाबी जो संघ में शायद नहीं हैं, सिर्फ वही हरयाणवी ब्राह्मण को पसंद करते हैं| 

2 - आरएसएस का चित्पावनी ब्राह्मण तबका भी हरयाणा के ब्राह्मण से नफरत करता है, इनको हेय मानता है, दलित के बराबर मानता है; इसलिए वह भी नहीं चाहते कि हरयाणवी ब्राह्मण एक लिमिट से ज्यादा ऊपर आवे| 

3 - हरयाणा के तमाम मंदिरों में बैठा पूर्वी-यूपी व् उत्तराखंड साइड का पंडा-पुजारी भी हरयाणवी ब्राह्मणों को पीठ-पीछे गंवार कहता हुआ सुना गया है; इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कहीं मंदिरों की पोस्टों में यह बैठे-बिठाए हिस्सा ना मांगने लग जाए| आज के दिन की ही स्थिति देख लो, 90% पंडे-पुजारी हराना से बाहर के हैं व् इनके हक़ पे कुंडली मार के बैठे हैं| 


इसलिए करमू की गिरफ्तारी की सबसे बड़ी वजह यह भी है कि सारे हरयाणा के ब्राह्मणों को संदेश दिया जाए कि औकात में रहो| 


और पता प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से हरयाणा के ब्राह्मण को भी है इस बात का; परन्तु बोलता नहीं, दबाता है इस दर्द को| क्योंकि खुद को संघ व् चित्पावनियों से जोड़ने की मानसिकता नहीं छोड़ पाता| जबकि इसको यह भी पता है कि तुम्हारा असली भाई जाट ही है, परन्तु नहीं जुड़ेंगे उसके साथ; पोलिटिकल माइलेज के लिए "जाट-ब्राह्मण" टाइप स्लोगन्स जरूर चलाएंगे, परन्तु धरातल पर नहीं आएँगे|  

Tuesday, 19 August 2025

निर्भया कांड से भी ज्यादा दरिंदगी झेलने वाली मासूम मनीषा बहन के मामले में हमारे जाट भाई!

यह पोस्ट बहुत दुःख और बेबसी के साथ लिखनी पड़ रही है पर इसके सिवाय हमारे पास कोई चारा भी नहीं है। 


निर्भया कांड से भी ज्यादा दरिंदगी झेलने वाली मासूम मनीषा बहन के मामले में हमारे जाट भाई कुड़तों (कमीज) में से ज्यादा बाहर न निकलें। मनीषा के न्याययुद्ध में अस्सी फीसदी हिस्सा आपका है, नतीजा यह स्क्रीनशॉट पढ़ लो, ऐसे ऐसे सैंकड़ों स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया में वायरल होने शुरू हो गए हैं। 


हमें आपकी इस भावना से बहुत ख़ुशी है कि बहन बेटी सबकी सांझी होती है वाली बात पर आप चल रहे हैं और इस पर चलना भी जरूर चाहिए। पिछले 10-11 वर्षों में सब और से जाट समाज पर आक्रमण हुआ है, रोजमर्रा की जिंदगी में भी जाट समाज की बहन बेटियों के साथ भी बहुत भेदभाव हो रहा है, उसके बावजूद आप लोग सभी जातियों की बहन बेटियों को अपनी मानकर लड़ते हो, यह इंसानियत के सर्वोत्तम उदाहरणों में से एक है। इसका अच्छा फल परमात्मा और प्रकृति एक दिन हमें जरूर देगी और बुरा करने वालों को अंत में बुरा ही फल मिलेगा। 


लेकिन कटु सत्य से भी हमें अवगत रहना होगा कि उस बेचारी के बलात्कार व हत्याकांड के पीछे संघ भाजपा का कोई इतना बड़ा मगरमच्छ है कि उसने भिवानी जिले का पुलिस अधीक्षक भी रातों रात बदलवा कर मनीषा की ही जाति 'बैरागी जाति' का लगवा दिया है ताकि बात अधिक बढ़ने पर वहां के बैरागी जाति के ठेकेदारों को आसानी से अपने पक्ष में किया जा सके और उनसे मनीषा के परिवार पर दबाव डलवाकर चुप करवाया जा सके। 


जाट समाज के आक्रोश के चलते बात आगे बढ़ गई तो किसी भी ऐरे गेरे को बैरागी समाज का प्रधान बताकर मीडिया में बयान दिलवा दिया जायेगा कि भाजपा  सरकार तो हमारी हरसंभव मदद कर रही थी, जाट समाज ने अपनी राजनीति के चक्कर में आकर, जाट समाज ने जलते हुए कि हमारा मुख्यमंत्री नहीं बना, इसलिए पूरा माहौल बिगाड़ दिया, मुख्यमंत्री नायब सैनी खुद कह देगा मैं ओबीसी लड़की ओबीसी, मैं इंसाफ दिलाऊंगा, जाटों का यहां क्या काम, आदि आदि और फिर सारा दिन चैनलों पर यही बयान चलेगा और हम लोग हमेशा की तरह बिना बात के विलेन बनाये जायेंगे। असली बात तो कहीं की कहीं घूम जाएगी।  


आपके पास संघी भाजपाइयों से लड़ने का जिगरा तो है लेकिन इनके जितना कमीनापन कहां से लाओगे ?




Sunday, 17 August 2025

चौधरी: उपाधि, राजनीति और असली पहचान

जब चौधरी उपाधि हथियार बनी दिल्ली की ज़मीन हड़पने का

मै यहा जिस बात का ज़िक्र करना चाहता हुँ , वह दिल्ली की ज़मीन, चौधरी की उपाधि और चौ. ब्रह्म प्रकाश सिंह (दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री) से जुड़ी हुई है। मैं इसे क्रमवार और सरल भाषा में समझाने की कौशिश करता हूँ:
1. "चौधरी" उपाधि का अर्थ और प्रयोग
जाट चौधरी बनाम राजनीतिक चौधरी: सच्चाई क्या है?
चौधरी कोई जाति नहीं, बल्कि एक उपाधि (title) है।
ऐतिहासिक रूप से यह शब्द ज़मींदार, प्रधान या गाँव/क्षेत्र का मुखिया होने के लिए प्रयोग होता था।
अलग-अलग जातियाँ—जैसे जाट, गुर्जर, गवाला ,गोप, त्यागी, यहाँ तक कि कुछ दलित और मुस्लिम समुदाय भी—इस उपाधि का इस्तेमाल करते रहे हैं।
लेकिन उत्तरी भारत, ख़ासकर दिल्ली, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, चौधरी का सबसे गहरा संबंध जाटों के साथ माना जाता है। इसी कारण लोगों की आम धारणा बन गई कि “चौधरी = जाट”।
2. दिल्ली में "चौधरी" टाइटल का नया राजनीतिक इस्तेमाल
किसान का चौधरी बनाम सत्ता का चौधरी
1947 के बाद दिल्ली में ज़मीन और किसानों का मुद्दा बहुत बड़ा हो गया था।
दिल्ली के पहले मुख्यमंत्री चौधरी ब्रह्म प्रकाश सिंह (1918–1993) का नाम इसमें महत्वपूर्ण है।
मूल रूप से वे कांग्रेस पार्टी के नेता थे और पंडित नेहरू के क़रीबी माने जाते थे।
उस समय दिल्ली और आसपास के इलाके में जाट किसानों की बहुत ज़मीन थी।
सरकार को “विकास” (DLF, नई कॉलोनियाँ, सरकारी प्रोजेक्ट्स आदि) के लिए वह ज़मीन चाहिए थी।
3. ब्रह्म प्रकाश और "चौधरी" उपाधि
दिल्ली की ज़मीन और चौधरी ब्रह्म प्रकाश की कहानी
कहा जाता है कि ब्रह्म प्रकाश को “चौधरी” की उपाधि इसी राजनीतिक रणनीति के तहत दी गई ताकि वे जाट समाज में लोकप्रिय दिखें।
वह अपने को जाट बतलाते थे और जनता में यही पहचान फैलाई गई, ताकि जाट किसान ज़मीन अधिग्रहण का विरोध न करें।
बुजुर्ग लोग भी उन्हें जाट ही मानते रहे, क्योंकि उनका नाम और “चौधरी” टाइटल उसी दिशा में इशारा करता था।
4. ज़मीन अधिग्रहण और किसान
ब्रह्म प्रकाश के समय में कई क़ानून बदले गए।
पहले तक किसान ज़मीन के मालिक थे, परन्तु नए क़ानूनों से उन्हें कास्तकार (सिर्फ़ खेती करने वाला) बना दिया गया।
असली मालिकाना हक़ सरकार के हाथ में चला गया।
नतीजा यह हुआ कि दिल्ली और आसपास के जाट किसानों की ज़मीन धीरे-धीरे अधिग्रहित होती गई।
बाद में DDA (Delhi Development Authority), DLF और दूसरी कंपनियों ने इन्हीं ज़मीनों पर कॉलोनियाँ, बिल्डिंग्स और प्रोजेक्ट्स खड़े किए।
5. निष्कर्ष
चौधरी नाम के पीछे की राजनीति
चौधरी टाइटल एक उपाधि थी, जिसे दिल्ली में ज़्यादातर जाटों से जोड़ा जाता था।
ब्रह्म प्रकाश को भी यह उपाधि दी गई ताकि उन्हें जाटों का नेता माना जाए और दिल्ली की ज़मीन अधिग्रहण का विरोध न हो।
असल में “चौधरी ब्रह्म प्रकाश” का राजनीतिक रोल यह था कि सरकार के लिए दिल्ली की ज़मीन लेना आसान बने।
इसी वजह से आज भी दिल्ली के बुजुर्ग लोग उन्हें जाट चौधरी मानकर याद करते हैं।
मुख्य निष्कर्ष
असली चौधर: जाट समाज का नेतृत्व या सत्ता की चाल?
1. जाट समाज में "चौधरी" असली सामाजिक/जमीनी नेतृत्व का प्रतीक रहा ।
2. नेहरू युग में चौ. ब्रह्म प्रकाश जैसे नेताओं को "जाट चौधरी" बनाकर पेश किया गया ताकि ज़मीन अधिग्रहण का विरोध न हो।
3. आजकल "चौधरी" उपाधि कई जातियाँ सिर्फ़ प्रतिष्ठा या राजनीतिक कारणों से इस्तेमाल करती हैं।
4. जनता की धारणा फिर भी यही है कि “चौधरी = जाट”, क्योंकि असली जाट चौधरियों ने ही किसानों और जमीन के लिए ऐतिहासिक संघर्ष किए।

 16.8.2025 शनिवार दीन बंधु चौधरी सर छोटू राम संग्रहालय/धाम..... बैठक।

    आज दीनबंधु चौधरी सर छोटू राम संग्रहालय/धाम गढ़ी सांपला में हरियाणा दिल्ली पंजाब उत्तर प्रदेश के विभिन्न खापों/किसान/कैमरा वर्ग/ संगठनों की सरदारी एवं प्रबुद्ध जनों कीबैठक डॉक्टर ओमप्रकाश धनखड़ प्रधान धनखड़ खाप, कोऑर्डिनेटर सर्व खाप पंचायत की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस बैठक में पूर्व पांच राज्यों के गवर्नर रहे श्री सतपाल सिंह मलिक की इस आरएसएस बीजेपी सरकार ने प्रोटोकॉल को भंग करते हुए उनके सम्मान की अनदेखी की। जिसके वो हकदार थे वह सम्मान नहीं दिया गया। जिसके कारण भारतवर्ष की जनता में बड़ा भारी रोष व्यक्त किया जा रहा है, भविष्य के लिए इन 36 बिरादरी के, किसान कमेरे वर्ग के हितैषी महापुरुष को कैसेओर क्या सम्मान दिया या दिलाया जाए, विचार किया गया। तथा निम्न लिखत प्रस्ताव पास किया गया.......

        आदरणीय बलराज सिंह मलिक, सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील जो समय की मांग अनुसार आज अन्याय,अनदेखी व संविधान की बेअदबी के खिलाफ एक बेहिचक, बेधड़क एवं मुखर आवाज,उनको आज दिनांक 16अगस्त,2025को रहबरे आजम सर छोटूराम स्मारक, सांपला में राष्ट्रीय स्वाभिमान सभा का सर्वसम्मति से मुखिया चुना गया जिनकी सरपरस्ती में 

(दिनांक 14 सितंबर,2025) को रामलीला ग्राउंड, दिल्ली में परम श्रद्धेय स्व सत्यपाल मलिक भू पू राज्यपाल एवं अन्य देश के हर उस नागरिक जो वर्तमान भारत सरकार की तानाशाही का शिकार हुये चाहे वो 750-800किसानों की शहादत हो,चाहे मणिपूर में देश की महिलाओं की इज्जत आबरु के साथ दरिंदगी का नंगा नाच हो, चाहे हमारी खिलाड़ी बेटियों के मान मर्यादा का सवाल हो, चाहे संवैधानिक पद पर बैठे उप राष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ को हटाकर इस  पद का निरादर आदि का संज्ञान लेते हुये  फैसला लिया कि भारत सरकार की इस तरह की अमानवीय, अनैतिक व असंवैधानिक चाल चरित्र को सशक्त चुनौती देने के लिए एक विशाल जनसभा का आयोजन किया जायेगा। जिसके लिए आज उन्होंने आम जन मानस से व पूरे देश के सभी सामाजिक संगठन(किसान संगठन,खापें, कर्मचारी संगठन, व्यापारी संगठन, आदि आदि) तथा राजनीतिक पार्टियों से उदार हृदय से,पूरजोर अपील की ,हम सबका मंच राष्ट्रीय स्वाभिमान सभा द्वारा आयोजित इस महायज्ञ में अपना अपना योगदान की आहुति डालने के लिए इसे स्वयं के स्वाभिमान का यज्ञ मान कर इसमें बढ़-चढ़ कर हिस्सा लें,अपने अपने स्तर पर इसकी अगवाही करें और इस अभियान को सफल बना कर मानवता व संविधान को तार तार व शर्मशार होने से बचाने के गवाह बनें।

   इस बैठक में विशिष्ट तौर से भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री गुरनाम सिंह चड़ूनी, सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट श्री बलराज सिंह मलिक, कैप्टन मानसिंह दलाल प्रवक्ता दलाल खाप 84, अनिल रोज, सतवीर सिंह पूनिया प्रवक्ता पूनिया खाप, किसान नेता एवं अध्यक्ष हरियाणा लोक दल (चौधरीचरण सिंह) श्री प्रदीप सिंह हुड्डा, किसान नेत्री हरियाणा प्रदेश अध्यक्ष भारतीय किसान यूनियन Charuni सुमन हुड्डा, ममता का ध्यान, सुदेश कंडेला अध्यक्ष कंडेला खाप, किसान नेत्री सुशीला खासा, मनोज सहरावत ग्राम स्वराज किसान मोर्चा, गुरदास सिंह लक्कड़ वाली बीके यू, महावीर सुहाग मतनहैल किसान नेता एवं समाजसेवी, वीरेंद्र हुड्डा सचिव बीके किस सरकार, अतर सिंह मलिक पूर्व सरपंच खिछड़ना, दो बलवंत सिंह, लक्षण  बिरहभान दिल्ली, ओमप्रकाश प्रधान इस्माईला, रामहेर राठी, जगबीर राठी प्रतिनिधि बिरोड़12 खाप, दलवीर सिंधु गगसिना करनाल, सतवीर सिंह चहल प्रधान जाट सभा विमान संगठन, राजू हुड्डा मकडोली बीके यू, अजय हुड्डा, श्रीपाल प्रधान सतगामा बालंद, मालिक राज मालिक प्रधान ओह लाना, दीपक , सतवीर सिंह दलाल, फौजी गठवाला खाप के अध्यक्ष श्री कुलदीप सिंह मलिक, गठवाला खाप प्रवक्ता अशोक मलिक, देसवाल खाप प्रधान संजय देसवाल, कर्मवीर देशवाल, ढोलू पहलवान, तेजवीर का ध्यान,राज सिंह ढाका, अत्तर सिंह कादियान प्रवक्ता कादियान खाप बेरी,रामभगत कोच प्रवक्ता जाखड़ खाप, इत्यादि ने भाग लियाऔर अपने विचार रखे।









पूर्व पांच राज्यों के राज्यपाल एवं केंद्रीय मंत्री रहे आदरणीय स्व श्री सतपाल सिंह मलिक के निधन पर सरकार द्वारा उनके सम्मान एवं अनदेखी के कारण रोष!

 सर्वधर्म सर्व किसान कमेरे सर्व समाज की बैठक।........

    13.8.2025 को उपरोक्त समाज की बैठक का आयोजन 12 खंबा टॉलस्टाय रोड़,दिल्ली में किया गया। इस बैठक का आयोजन पूर्व राज्य मंत्री उत्तर प्रदेश श्री ओमवीर तोमर जी ने  पूर्व पांच राज्यों ( जम्मू कश्मीर, गोवा, बिहार, मेघालय, उड़ीसा) के राज्यपाल एवं केंद्रीय मंत्री रहे आदरणीय स्व श्री सतपाल सिंह मलिक के निधन पर सरकार द्वारा उनके सम्मान एवं अनदेखी के कारण रोष स्वरूप भविष्य की रूपरेखा तैयार करने के लिए इस बैठक का आयोजन किया गया। जिसमें उत्तरी भारत के विभिन्न राज्यों के सर्व धर्म सर्व किसान कमेरे  समाज के विभिन्न संगठनों के प्रबुद्ध जनों के विचार जाने गए।

      इस बैठक की अध्यक्षता डॉक्टर ओमप्रकाश धनखड़ प्रधान धनखड़ खाप, कोऑर्डिनेटर सर्व खाप पंचायत ने की तथा इस बैठक के कन्वीनर सीनियर एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट श्री बलराज सिंह मलिक ने विस्तार पूर्वक इस बैठक के आयोजन के बारे में जानकारी दी तथा सभी के विचार जाने। 

   बैठक के पश्चात निर्णय लिया गया कि आरएसएस बीजेपी सरकार चाहे सम्मान दे या ना दे उसकी परवाह न करके सबसे बड़ा सम्मान सर्व धर्म, सर्व समाज भारतवर्ष के किसान कमरे, मजदूर नौकरी पेशा छात्र-छात्राएं मानवता वादी हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई, जो इस बैठक से सहमत है सभी भारतवर्ष की राजनीतिक पार्टियों का एक बहुत बड़ा सम्मेलन दिल्ली के रामलीला ग्राउंड में अक्टूबर, नवंबर के मास में किया जाए ताकि श्री सतपाल सिंह मलिक को श्रद्धांजलि स्वरुप  सबसे बड़े जनता सम्मान से नवाजा जाए।

   और इनके साथ-साथ उस  सम्मेलन में पुलवामा हमले से शहीद हुए सैनिकों, पहलगाम के हमले में 26 व्यक्तियों की शहीदी, किसान आंदोलन के दौरान साढ़े सात सौ किसानों का बलिदान, पहलवान आंदोलन के दौरान महिला पहलवानों के साथ दुर्व्यवहार, मणिपुर कांड तथा इस सरकार के शासनकाल में विभिन्न हादसों में सरकार की अनदेखी के कारण शहीद हुए सभी को श्रद्धांजलि दी जाए। तथा विस्तार पूर्वक चर्चा की जाए।

    और अगर जनता चाहे और जरूरी महसूस हुआ तो उस दिन इस सरकार को जड़ मूल से उखाड़ फेंकने की रूपरेखा बना के इस आरएसएस बीजेपी झूठी जुमलेबाज सरकार को भारतवर्ष से खदेड़ा जाने पर भी विचार किया जा सकता है।

      अक्टूबर नवंबर मास में दिल्ली के रामलीला ग्राउंड में भारतवर्ष का बड़ा आयोजन करने से पहले, भारतवर्ष के विभिन्न राज्यों में विभिन्न संगठनों द्वारा छोटे-छोटे सम्मेलन आयोजन करके जनता को जागृत किया जाए।

      इस बैठक में यह भी निर्णय लिया गया कि आने वाली 16 तारीख day after tomorrow , यानी परसों दीनबंधु चौधरी सर छोटू राम की जन्मस्थली गढ़ी सांपला झज्जर मैं सभी खापों की तथा किसान यूनियन संगठनों की एक बैठक करके सर्व धर्म सर्व समाज किसान और कमेरे वर्ग की बैठक बुलाकर अगली रूपरेखा तैयार की जाए।

   अतः सभी खाप पंचायत के अध्यक्ष व पदाधिकारी तथा किसान संगठनों के व सामाजिक संगठनों के व सर्व समाज के संगठनों के (व राजनीतिक पार्टियों के जो इस बात, विचार से सहमत हो) ज्यादा से ज्यादा गढ़ी सांपला दीनबंधु चौधरी सर छोटू राम की जन्मस्थली पर प्रात 11:00 बजे पहुंच कर अपने विचार रखने का कष्ट करें।

    आज की इस दिल्ली की बैठक में यह भी बात सामने आई कि भारतवर्ष की आज के हालात अनुसार देश की झूठ, ज़ुमलो की सच्चाई उजागर करने वाले सोशल मीडिया पर काफी झूठे बनावटी मुकदमे आरएसएस बीजेपी सरकार की शह से प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा जो झूठे मुकदमे दर्ज करवाए जा रहे हैं उनके लिए भी सचेत करना होगा। ऐसे कुछ केस गोहाना रोहतक, भिवानी इत्यादि क्षेत्रों से सामने आ रहे हैं। 16 तारीख को पत्रकारों युटयुबर्स व अन्य सोशल मीडिया झूठे मुकदमे दर्ज करवाने वालों  पर भी तथा अन्य क्षेत्रों की सभाओं में भी गहन विचार किया जाए। ऐसा लगता है कि अपनी काली करतूतो के सामने आने पर शासन प्रशासन अपने ऊपर आने वाले जलजले के कारण हड़बड़ा गया है। शासन प्रशासन से हमारी प्रार्थना है कि कृपया इस चीज को मध्य नजर रखते हुए ऐसे झूठे मुकदमों को वापस ले तथा भविष्य में ऐसा न किया जाए। तथा मुख्यमंत्री महोदय, सैनी साहब से भी प्रार्थना है कि इस प्रकार के घिनौनी हरकत शासन, 

 प्रशासन तथा राजनीतिक नेताओं के इशारों द्वारा न करनी दी जाए। झूठे मुकदमो  पर लगाम लगाई जाए। 

     इस बैठक में किसान नेता एवं कृषि तथा समाज विश्लेषण, विशेषज्ञ श्री पुष्पेंद्र गाजियाबाद, श्री प्रदीप हुड्डा अध्यक्ष लोक दल ओल्ड,असली (चरण सिंह) श्री सतवीर सिंह चहल राष्ट्रीय अध्यक्ष जाट स्वाभिमान संगठन, गोहाना। श्री नरेंद्र पाल वर्मा किसान नेता, श्री राहुल भाटी राष्ट्रीय किसान कांग्रेश, वीरेंद्र हुड्डा राष्ट्रीय महासचिव BKU, मनोज सहरावत ग्राम स्वराज किसान मोर्चा, किसान नेत्री प्रदेश अध्यक्ष, एवं कोऑर्डिनेटर सर्व खाप पंचायत महिला विंग, हरियाणा, सुमन हुड्डा।

   सैनिक प्रकोष्ठ एवं किसान नेत्री तथा खाप प्रधान सुदेश गोयत, किसान नेत्री एवं खाप प्रधान ताई kandela के नाम से मशहूर सुदेश कंडेला। कैप्टन विनोद कुमार प्रधान दांगड़ खाप उत्तर प्रदेश, मनोज फौजदार राजस्थान, अत्तर सिंह कादियान बेरी प्रवक्ता कादियान खाप JSO, झज्जर, सेवा सिंह आर्य करनाल बीकेयू, हरदीपसिंह गिल हिसार, एस एस नेहरा एडवोकेट सुप्रीम कोर्ट,

 रामप्रकाश राठी बीके यू रोहतक, राज सिंह ढाका पूर्व एसडीओ कृषि विभाग हरियाणा, किसान नेता बीके यू सुंडॉना रोहतक, शमशेर सिंह गोहाना, काला बलमबा प्रवक्ता महम खाप, विक्रम धनखड़, प्रवक्ता धनखड़ खाप, हेडमास्टर मांगे राम हसनपुर झज्जर, Sec Dhankhar खाप, श्री राम भगत कोच प्रवक्ता जाखड़ खाप, लड़ायन झज्जर, RK Rana Delhi, किशन आर्य दिल्ली, किसान नेता रामनिवास कर सिंधु उचाना जिला जींद। राजवीर डांगी रोहतक बीकेयू, प्रियव्रत छिक्कारा किसान नेता रिटायर्ड हेड मास्टर, अनिल रोज प्रवक्ता रोज खाप काहड़ी, झज्झर, ढोलू पहलवान ढाकला, इत्यादि प्रबुद्ध जनों ने अपने विचार रखें तथा भाग लिया। 

प्रधान धनखड़ खाप।











स्व० चौधरी स्त्यपाल मलिक जी के देहवसान पर अंडर बारे सर्वखाप पंचायत का रूख!

 स्व० चौधरी स्त्यपाल मलिक जी यूपी विधानसभा के सदस्य रहे, राज्यसभा के सदस्य रहे, लोकसभा के सदस्य रहे, बिहार के गवर्नर रहे, जम्मू-कश्मीर के गवर्नर रहे, जब जम्मू कश्मीर के गवर्नर थे तब इसी दौरान कुछ महीनों के लिए इनके पास ओड़ीशा के गवर्नर का अड़िश्नल चार्ज भी रहा, गोवा के गवर्नर रहे तथा मेघाल्य के गवर्नर रहे। 5 अगस्त 2025 को मलिक साहब का देहांत हुआ था, पर ये बड़े ही अफसोस की बात है कि इतने अहम पदों पर रहने वाले व्यक्ति को बीजेपी सरकार ने राजकीय सम्मान नहीं दिया। राजकिए सम्मान तो छोड़िए बीजेपी सरकार का कोई मंत्री भी उनकी शोक सभा में शोक प्रकट करने नहीं पहुंचा। ऐसा करके बीजेपी सरकार ने हमारे समाज का अपमान किया है, जोकि एक सोची समझी चाल के तहत किया गया है। वहीं दूसरी ओर पूर्व उपराष्ट्रपति चौधरी जगदीप धनखड़ जी की जिस प्रकार से बेइज्जती की जा रही है, वह भी एक सोची समझी साजिश के तहत ही की जा रही है। इन दोनों घटनाओं के अतिरिक्त अभी एनसीईआरटी के पाठ्यकर्म में भी हमारे महान इतिहास को मिटाने की कोशिश की गई है। ये सभी ही घटनाएँ सरासर दर्शा रही हैं की सरकार हमारे समाज के मुंह में उंगली फेर कर देख रही है! 


जहां तक हमारे समाज के अपमान की बात है, इतिहास गवाह है कि कई बड़े नेताओं के बयान हैं जो हमारे समाज की प्रशंसा कर रहें हैं, चाहे प० नेहरू का बयान हो, डॉ जाकिर हुसैन का बयान हो या प० मदन मोहन मालवीय का बयान हो, सभी ने जाटों की भूरी भूरी प्रशंसा ही की है। पर यह भी गवाह है कि आज़ादी से पहले या आज़ादी के बाद या फिर मुगल काल हो, जिस भी हुकूमत ने हमारे समाज का सरासर अपमान किया उसका हमारे समाज ने मुंह तोड़ जवाब दिया है। मुगलिया दौर की तीन घटनाओं का इतिहास उदाहरण के तौर पर बतला दूँ कि हमारे समाज ने उनका वजूद ही मिटा दिया था; कलानौर के नवाब, असंध-सालवान के नवाब तथा बालू (जोकि हांसी मुगल सरदार की अमलदारी में था) के जगीरदार पर हमारी खापों ने इतना जबर्दस्त आक्रमण किया था कि उनकी जागीरदारी और परिवार का नामों निशान ही मिटा दिया था।  


अब जानबूझकर मोदी सरकार ने हमारे समाज का सरासर अपमान किया है। हमारे समाज की एक खूबी है कि वो अपमान को जल्दी से भूलती नहीं है, परंतु इसकी बड़ी कमी ये भी है कि ये जल्दी बहक भी जाती है। इसलिए समाज को छोटी छोटी संभाएँ करके इस मामले को हमेशा चर्चा का विषय रखा जाना चाहिए के ताकि समय आने पर इन चर्चाओं का नतीजा निकल कर आए, और इस अहंकारी सरकार को लोकतान्त्रिक तरीके से मुंह तोड़ जवाब दिया जा सके।

    जयदीप जी बिल्कुल 100% ठीक कहा हमारे वाले जगदीप धनखड़ संवैधानिक पद पर बैठे हुए हमारे काम को बदनामी की सवाएं कुछ नहीं दे गए। और हो सकता है कि अब नजर बंद भी कर दिए गए हो क्योंकि संजीव कुमार का और इनका फिलहाल कोई स्टेटमेंट कोई अता पता नहीं है कपिल सिब्बल जी बिल्कुल ठीक मांग कर रहे हैं। 

   यह बाहर के विदेशी यूरेशियन नस्ल के शासक जो की आधार कार्ड और वोटर कार्ड को स्वीकार ही नहीं रहे और आइडेंटिटी मांगते हैं तो भला यह सरकार भी फिर इल्लीगल है गैरकानूनी है हमें इस सरकार को भी नहीं मानना चाहिए जब यह आधार कार्ड और वोटर कार्ड को ही नहीं मान रहे। 

   इन विदेशी नस्ल के यूरेशियन नस्ल के कॉर्पोरेट के लोगों को शीघ्र यहां से खदेड़ना होगा। इन्होंने भारतीय समाज से वोट के अधिकार को समाप्त कर दिया है। भला एक- मकान में 267 वोटर है 10 बाई 10 के कमरे  में, अरे उनके बच्चे भी तो होंगे यह तो वोटर है। शर्म नहीं आती वोटर लिस्ट बनाने वालों को भी, लिखने वालों को भी। इन  प्रशासनिक अधिकारियों को और चुनाव अधिकारियों को जेल में ठोकना चाहिए। यह चुनाव रद्द किए जाने चाहिए। हरियाणा दिल्ली उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र उड़ीसा और अब होने वाले बिहार केतथा केंद्रीय सभी चुनाव इलीगल तरीके  से बेइंसाफी से किए गए हैं चुनाव आयोग ने अपनी मनमर्जी से वोट घटा बढ़ा के झूठे रिजल्ट तैयार कर दिए गए। अब बड़े आंदोलन की आवश्यकता है। राहुल गांधी ने ठीक समय पर सही तथ्य भारतवर्ष की जनता के सामने रख दिए कोई माने या ना माने।

प्रधान धनखड़ खाप, कोऑर्डिनेटर सर्व खाप पंचायत।


Thursday, 14 August 2025

भगत फूल सिंह जी का 14 अगस्त 1942 को बलिदान दिवस!

मोठ लुहारी गांव है हांसी के पास। आजादी से पहले यहां राघड बसते थे, कुछ घर जाटों व दूसरी जातियों के भी थे। दबदबा मुस्लिम राजपूतों का ही था। यहां के दलितों को पीने के पानी के लिए कुंआ खोदना था। शामलाती जमीन पर जब ये कुंआ खोदने लगे राघडों ने जूते मारकर भगा दिया। 


बात भगत फूल सिंह मलिक तक पहुंची। कांधे पर चादरा रखकर वो मोठ लुहारी चले आए। मोठ वालों ने सोचा दलित किसी मोडे को मदद के लिए लाए हैं। भगत जी ने समझाया लेकिन रांघड इस बात के लिए तैयार नहीं हुए कि कुंआ खोदने देंगे। भगत जी ने अनशन दे दिया। तीन चार दिन ही हुए थे राघडों के कई छोरे भगत जी को रात को उठा ले गए और मरा हुआ मानकर जंगल में छोड गए।


सुबह एक लाला जी जंगलपाणी के लिए गए तो भगत सिंह को करहाता हुआ पाया। इसके बाद उनको नारनौंद के सरकारी अस्पताल ले जाया गया। बात चौधरी छोटूराम तक पहुंची तो उन्हेांने चौधरी माडू सिंह जी को मौके पर भेजा। सेठ छाजूराम ने भी संदेशा भिजवाया कि पचास कुएं खुदवा दूंगा आप जिद छोड दें वहीं कुएं की। 


भगत जी ने कहा कि बात कुएं की नहीं है सम्मान की है। अब तो कुआं शामलात जमीन पर ही बनेगा और उसका ही पानी पीकर अनशन तोडूंगा। राघड माने तब भी कुंआ खोदने में 23 दिन लगे और चौधरी छोटूराम ने खुद पानी पिलाकर भगत जी का अनशन तुडवाया। महात्मा गांधी ने अपने हरिजन सेवक अखबार में इसका विवरण लिखते हुए कि मेरे राजकोट के अनशन में तपस्या कम रह गई लेकिन भगत सिंह फूल जी के तप मुझसे भी बडे हैं। 


ऐसे महान भगत फूल सिंह जी की 14 अगस्त 1942 को फाैजी वर्दी में घोडों पर आए रांघड बदमाशों ने गोली मारकर हत्या कर दी। आज उनका बलिदान दिवस है। 

Sunday, 10 August 2025

मराठा नहीं, महाराजा सूरजमल और सिख मिसलें थीं उत्तर भारत की ताकत

1. महाराजा सूरजमल का वास्तविक राज्य (1748–1763)

राजस्थान (पूर्वी) – भरतपुर, डीग, करौली, अलवर, शाह पुरा और जयपुर के कुछ इलाके।
हरियाणा – फरीदाबाद से लेकर रोहतक, झज्जर, पानीपत तक विस्तृत नियंत्रण।
दिल्ली – कई बार दिल्ली पर अधिकार किया, 1748 और 1763 के बीच दिल्ली की राजनीति में निर्णायक भूमिका।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश – आगरा, मथुरा, हाथरस, मेरठ , बुलंदशहर, अलीगढ़, एटा, मैनपुरी आदि।
मध्य प्रदेश का उत्तरी हिस्सा – मुरैना, भिंड, ग्वालियर के आसपास के क्षेत्र।
ये स्वतंत्र राज्य था — न तो मुग़ल के अधीन, न ही मराठों के अधीन।
2. 1757 की चौमुहां (फरीदाबाद) की लड़ाई
अब्दाली दिल्ली लूटकर लौट रहा था।
सूरजमल ने रास्ता रोका और उसे खुली लड़ाई में हराकर भारी नुकसान पहुँचाया।
यही अब्दाली, जो सूरजमल से टकराकर मुश्किल से बचा, बाद में 1761 में मराठों को पानीपत में हरा सका।
यह साबित करता है कि सूरजमल की सेना और रणनीति मराठों से कहीं ज़्यादा सक्षम थी।
3. 1761 – तीसरी लड़ाई (मराठों की हार और सूरजमल का न होना)
पानीपत की लड़ाई में मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ ने सूरजमल की सलाह और मदद ठुकरा दी।
नतीजा – मराठों की 3 लाख सेना में से अधिकांश मारे गए, जबकि अब्दाली के पास संख्या में बहुत कम सैनिक थे।
सवाल सही है — अगर इतने “धुरंधर” थे, तो 200 अफ़ग़ानों को भी क्यों न मार पाए मराठे?
असल कारण — रणनीतिक गलतियाँ, उत्तर भारत के भूगोल व लॉजिस्टिक्स की अनदेखी, और स्थानीय राजाओं से दुश्मनी।
4. सिख जाट राज्यों का फैलाव
हरियाणा, पंजाब, हिमाचल, पाकिस्तान के बड़े हिस्से — तत्कालीन समय में कई स्वतंत्र सिख-जाट मिसलों के अधीन।
महाराजा आलम सिंह, महाराजा रंजीत सिंह, नाभा, पटियाला, जिंद, कैथल, सिरसा इत्यादि।
ये क्षेत्र भी न तो मराठों के अधीन थे, न मुग़लों के — बल्कि स्वतंत्र शक्ति केंद्र थे।
5. नक्शों में “मराठा साम्राज्य” का अतिशयोक्ति
कुछ आधुनिक “हिंदुत्व” या RSS-प्रेरित नक्शों में पूरे उत्तर भारत को “मराठा” रंग में दिखाया जाता है।
असलियत — 1761 के पहले और बाद में मराठों का सीधा प्रशासनिक नियंत्रण सिर्फ़ दक्कन, महाराष्ट्र, गुजरात, मालवा और कुछ समय के लिए दिल्ली/आगरा तक था।
भरतपुर, सिख राज्यों, रोहतक–झज्जर–पानीपत बेल्ट, पंजाब, हिमाचल — इन पर कभी मराठों का स्थायी नियंत्रण नहीं रहा।
ऐसे नक्शे राजनीतिक “प्रचार” के लिए बनाए जाते हैं, ताकि यह लगे कि पूरा उत्तर भारत “मराठा अधीन” था — जबकि यह ऐतिहासिक रूप से ग़लत है।
6. असली शक्ति संतुलन (1748–1765)
जाट राज्य (भरतपुर) – महाराजा सूरजमल
सिख मिसलें – पंजाब से हिमाचल और पश्चिमी पाकिस्तान तक
मराठा – अस्थायी गठबंधन के साथ दिल्ली-आगरा तक
अब्दाली – लूटमार के लिए अस्थायी आक्रमण
अवध – नवाब शुजाउद्दौला
मुग़ल – सिर्फ़ नाममात्र के बादशाह
यह रहा 1748–1763 का वास्तविक राजनीतिक नक्शा, जिसमें महाराजा सूरजमल का भरतपुर राज्य, सिख मिसलें, अवध, दिल्ली क्षेत्र और मराठों का अस्थायी प्रभाव अलग-अलग रंगों में दर्शाया गया है। इसमें साफ़ दिखता है कि उत्तर भारत पर मराठों का स्थायी नियंत्रण नहीं था।

By: Sanjay Mann




Saturday, 9 August 2025

इतिहास का सच्चा परिप्रेक्ष्य: 'मराठा-पेशवा-मुग़ल गठजोड़' और 'जाट प्रतिरोध'!

1. पेशवा कौन थे?

पेशवा ब्राह्मण (बामन) थे, मराठा नहीं।
बालाजी बाजीराव (सदाशिव राव भाऊ के चाचा) और फिर स्वयं सदाशिव राव भाऊ ने सत्ता संभाली।
सत्ता मराठा सैनिकों के हाथ में थी लेकिन नियंत्रण ब्राह्मण पेशवाओं के पास।
2. पेशवा और मुग़लों का गुप्त संबंध
इतिहास में प्रमाण मिलते हैं कि पेशवाओं ने दिल्ली जीतकर वहाँ "मुग़लों को फिर से सिंहासन पर बैठाने का मन बनाया था" — ताकि मराठा ‘सरकार चलाएं’ और मुग़ल नाम रहे।
यह वही सोच थी जो बाद में अंग्रेज़ों ने अपनाई — प्रभुत्व हमारा, चेहरा मुग़ल का।
इतिहासकार G.S. Sardesai और Persian chronicles जैसे 'Tarikh-i-Muzaffari' और 'Tarikh-i-Ahmad Shah Abdali' में संकेत मिलते हैं कि सदाशिव राव भाऊ मुग़ल बादशाह शाह आलम को फिर से गद्दी पर लाने को तैयार था — लेकिन नियंत्रण अपने हाथ में रखकर।
3. महाराजा सूरजमल की रणनीति
महाराजा सूरजमल ने चेतावनी दी थी:
"पहले दिल्ली पर अधिकार करो, फिर लड़ो। नहीं तो लड़ाई जीतकर भी सब व्यर्थ होगा।"
सदाशिव ने इस चेतावनी को घमंड और ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण के कारण ठुकरा दिया — क्योंकि वो “जाट राजा को दिल्ली का किलेदार” नहीं बनाना चाहता था।
4. अगर महाराजा सूरजमल ना होता...?
अगर सूरजमल ने सहयोग ना हटाया होता और पानिपत की लड़ाई से पहले अलग ना होता —
दिल्ली पेशवाओं के हाथ में आ जाती।
पेशवा मुग़लों को nominal power देकर practical rule खुद चलाते।
35 बिरादरी की सोच — "Jat को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे" — तब भी प्रभावी थी।
और तब की मुग़ल+पेशवा जोड़ी, आज की मुग़ल+राजपूत की जोड़ी से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो सकती थी।
5. इतिहास की पुनरावृत्ति
जो आज बीजेपी के ब्राह्मणवादी नेतृत्व और जाट उत्पीड़न में दिखता है — वही मानसिकता तब भी थी:
"Jat को नहीं आने देंगे ऊपर, भले दिल्ली दुश्मन के पास चली जाए।"
पेशवा कौन ब्राह्मण, न कि मूल मराठा
मुग़ल संबंध पेशवाओं की योजना थी मुग़लों को चेहरा बना सत्ता चलाना| सूरजमल रणनीतिक रूप से सही, लेकिन ब्राह्मण अहंकार ने उनकी सलाह ठुकराई| जातिवादी मानसिकता तब भी जाट को शीर्ष पद से रोकने की मानसिकता थी|
पानिपत की त्रासदी जाट-मराठा एकता टूटने का नतीजा
एक पंक्ति में:
"एक जाट राजा ने ना सिर्फ़ मराठों की दिल्ली कब्ज़ा नीति रोकी, बल्कि उत्तरी भारत को पेशवा-मुग़ल गठजोड़ के गुप्त एजेंडे से भी बचाया।"
पृष्ठभूमि: मराठा और अब्दाली – दोनों लुटेरे?
हाँ, ये कहना गलत नहीं है कि:
अहमद शाह अब्दाली उत्तर भारत में लूटमार करने ही आता था। वह भारत को अपना "माल-ए-ग़नीमत" मानता था। हर बार दिल्ली और पंजाब को लूटकर अफ़ग़ानिस्तान वापस चला जाता था।
वहीं मराठा भी दक्षिण से आकर उत्तर भारत में भारी कर वसूली (चौथ, सरदेशमुखी) के नाम पर सैन्य दमन करते थे। बंगाल, बिहार, और बुंदेलखंड तक में इन्होंने लूटमार की।
पानिपत युद्ध से पहले की मराठा नीति
पेशवा बाजीराव-I की मृत्यु के बाद मराठों की नीति विस्तारवादी हो गई थी।
पेशवा बालाजी बाजीराव (नाना साहेब) और सदाशिवराव भाऊ दिल्ली, पंजाब और पूरे उत्तर भारत को मराठा नियंत्रण में लाना चाहते थे।
रणनीति:
दिल्ली पर कब्ज़ा करके उसे मराठा राज्य की राजधानी जैसा बनाना।
मुघलों को कठपुतली बनाकर सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखना।
लेकिन, दिल्ली पर कब और कैसे कब्जा होगा? इसमें मराठा और जाटों की रणनीति टकरा गई।
MAHARAJA सूरजमल और मराठों के बीच टकराव
सूरजमल की भूमिका:
भरतपुर के जाट राजा सूरजमल उस समय उत्तर भारत के सबसे ताकतवर स्वतंत्र शासकों में एक थे।
उन्होंने अब्दाली के खिलाफ मराठों को सैन्य सहायता, घोड़े, रसद और राजनीतिक मार्गदर्शन देने की पेशकश की थी — लेकिन एक शर्त पर।
महाराजा सूरजमल की शर्त:
पहले दिल्ली पर अधिकार का फैसला हो, पानीपत के युद्ध के बाद किसका कब्ज़ा होगा। अगर यह स्पष्ट नहीं हुआ, तो मैं युद्ध में भाग नहीं लूंगा।
सदाशिवराव भाऊ का रवैया:
भाऊ को लगा कि सूरजमल उनकी शर्तों को नहीं माने तो भी वे अब्दाली को हरा देंगे।
भाऊ ने सूरजमल की सलाह, रणनीति और रसद की मांग को नकारात्मक रूप से ठुकरा दिया।
नतीजा: सूरजमल ने अपनी सेनाएं हटा लीं और मराठा सेना अकेली पड़ गई।
मराठों की हार और उत्तर भारत की तबाही
सूरजमल ने कहा था कि इस युद्ध को उत्तर भारत की जलवायु, संस्कृति, रणनीति को ध्यान में रखकर लड़ा जाए। लेकिन भाऊ ने दक्षिण की घेराबंदी शैली को ही लागू किया।
मराठा सेना पूरी तरह थक गई, भूख से परेशान हो गई, और रसद पूरी तरह टूट गई थी।
अब्दाली ने इस मौके का फायदा उठाया और 14 जनवरी 1761 को पानीपत में मराठों का समूल नाश कर दिया।
🔍 निष्कर्ष:
ऐतिहासिक सच्चाई है कि:
1. मराठा और अब्दाली — दोनों ही उत्तर भारत को लूटने आए थे, फर्क बस इतना था कि अब्दाली खुलकर हमलावर था, और मराठे ‘मुग़लों को बचाने’ के नाम पर सत्ता छीनने का प्रयास कर रहे थे।
2. सदाशिवराव भाऊ और पेशवा नाना साहेब ने पहले से मुघलों से सैटिंग कर ली थी — कि अगर अब्दाली को हराया गया तो दिल्ली मुघलों को सौंप दी जाएगी, लेकिन असल नियंत्रण मराठों के पास होगा।
3. Aaज मराठा हारते नहीं, क्योंकि उनके पास स्थानीय समर्थन, रसद, और वास्तविकता की समझ थी।

Wednesday, 6 August 2025

हिंदु , हिंदू-शब्द और हिंदू-धर्म - प्रोफेसर हरी नरके

 हिंदु , हिंदू-शब्द और हिंदू-धर्म 

         - प्रोफेसर हरी नरके

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इसवी सन 1030 में मोहम्मद गजनवी के साथ भारत में आये फारसी इतिहासकार अल-बरुनी ने पहली बार हिंदू शब्द का लिखित तौर पर प्रयोग किया।


हिंदू शब्द फारसी भाषा के "गया हूल सौगात" शब्दकोश से आया है। जिसका शाब्दिक अर्थ है - काला, चोर, बदमाश, काफिर, असभ्य, गुलाम। 


1325 में मोहम्मद तुगलक दिल्ली का सुल्तान बना यह सबसे शिक्षित और योग्य व्यक्ति था। यह अरबी एवं फारसी भाषा का विद्वान था तथा यह खगोलशास्त्र, दर्शनशास्त्र, गणित, चिकित्सा विज्ञान एवं तर्कशास्त्र में पारंगत था। यह सुल्तान विद्वानों की कदर करता था। 


इस के दरबार में मोरोको का प्रसिद्ध विद्वान इब्ने बतूता था। इब्ने बतूता के पिता और दादा मोरोक्को मे काजी थे। इब्ने बतूता भी मोरोको का स्कॉलर था मोहम्मद तुगलक ने इसे दिल्ली का काजी याने दिल्ली का मुख्य न्यायाधीश बनाया। 


उस वक्त मुसलमानों के साथ शरीयत के अनुसार और भारतीयों के साथ मनुस्मृति के अनुसार न्याय होता था। 


उसकी अदालत में भारतीय शूद्रो के बहुत मामले आते थे। 


मनुस्मृति के अनुसार ब्राह्मण को ब्राह्मण धर्म, क्षत्रिय को क्षत्रिय धर्म, और वैश्य को वैश्य धर्म के मनुस्मृति में दिये कानून के अनुसार न्याय मिलता था। 


मगर जब भी शुद्रो का मामला आता था, तब शुद्रो में अनेक जातियां होने की वजह से मामला बहुत ज्यादा पेचीदा होता था। तब इस शुद्र समूह की लिगल पहचान कराने के लिए इब्ने बतूता ने इन्हें सरकारी रिकॉर्ड में हिंदू नाम से दर्ज किया, तब से सरकारी रिकॉर्ड में _"शूद्रों को हिंदू" कहने लगे। 


इस बात का जिक्र एक और ग्रंथ से मिलता है, जिसके लेखक गुजरात के ब्राह्मण महर्षि दयानंद सरस्वती है।


 इस ग्रंथ का नाम - सत्यार्थ प्रकाश है। 


सन 1875 मे, इस ग्रंथ में दयानंद सरस्वती लिखते है कि हिंदू शब्द ये संस्कृत का शब्द नहीं है। यह मुसलमान शासकों द्वारा हमें दी हुई गाली है, इसलिए हमें अपने-आप को हिंदू नहीं कहना चाहिए। 


 हम आर्य है और हमारा धर्म भी आर्य है। हमें अपने-आप को आर्य ही कहना चाहिए। 


स्वामी दयानंद सरस्वती जो एक कट्टर ब्राह्मण थे, उन्होंने 

ब्राह्मणो को हिंदू शब्द का इस्तेमाल न करने की अपील

अपनी इस किताब में की है। इसकी सच्चाई परखने के लिए आपको "सत्यार्थ प्रकाश " किताब पढ़नी पड़ेंगी। 


महर्षि दयानंद सरस्वती खुद सत्यार्थ प्रकाश ग्रंथ में यह बात स्वीकार करते हैं कि हिंदू यह मुगलों ने हमें दी हुई गाली है इस वजह से वह _"*हिंदू समाज" की स्थापना न करते हुए "आर्य समाज" की स्थापना करते हैं।* 


दूसरा उदाहरण इतिहास में मिलता है जब भारत में जजिया कर लगाया गया तो ब्राह्मणों ने जजिया कर देने से मना कर दिया और कहा कि हम हिंदू नहीं है इसलिए हम जजिया नहीं देंगे।

 हम भी आपकी तरह बाहर से आए हुए आर्य शासक है। फर्क इतना ही है कि हम पहले भारत में आए हैं और आप बाद में आये हो।


तब इन्होंने इब्ने बतूता के अदालत में हुये मामलों की दलीलें दी।


इस तर्क से संतुष्ट होकर मुगल शासकों ने भारत के ब्राह्मणों को जजिया कर से मुक्त कर दिया था। 


        हिंदू शब्द 


ये हिंदी शब्द नहीं है। 

यह मराठी शब्द भी नहीं है। 

यह संस्कृत शब्द भी नहीं है। 

यह इंग्लिश शब्द भी नहीं है। 

यह मागदी शब्द भी नहीं है। 


 हिंदू यह पर्शियन फारसी शब्द है। 


इसवी सन 12वीं सदी में मुस्लिम जब भारत में आए तब वे धर्म से इस्लामिक थे, मगर उनकी बोली और लिपि परशियन याने फारसी थी। 


भारत में आकर जब उन्होंने भारतीय लोगों को हराया, तब उन्होंने हारे हुए भारतीय लोगों को हिंदू की संज्ञा दी तब से यह हिंदू शब्द प्रचलित हुआ।

तब हिंदु शब्द ये धर्मवाचक न होकर समुहवाचक था। 


12वीं सदी के पहले हिंदू-शब्द किसी भी ग्रंथ में, बोली-भाषा में अथवा लिखित दस्तावेज में नहीं आता, क्योंकि ये शब्द 

रामायण, महाभारत, उपनिषद, भागवत, गीता, ज्ञानेश्वरी, श्रुति, स्मृति, मनुस्मृति, दासबोध, चार वेद, 18 पुराण, 64 शास्त्र और बहुजन संतो के अभंगवानी में, गाथा में, दोहे में, भारुड में, किसी में भी हिंदू धार्मिक ग्रंथों में, यह शब्द नहीं है। 


 ब्राह्मण खुद को कभी हिंदू नहीं समझते और न ही मानते है। वह खुद को ब्राह्मण ही कहते हैं। 


मगर वह शूद्रों को अर्थात एससी, एसटी, ओबीसी और धर्म परिवर्तन करने वालों को हिंदू कहते है और हिंदू मानते है।


कोलकाता मे स्थित सबसे बड़ी नेशनल लाइब्रेरी है। 

वहां आप पर्शियन डिक्शनरी में हिंदू शब्द का अर्थ देख सकते है।


हिंदु शब्द का अर्थ है - गुलाम, चोर, काले मुंह वाला, गंदा, रहजन (मार्ग का लुटेरा), हारे हुए भारतीय लोग। 


 हिंदू यह शब्द, दो शब्दों से बना हुआ शब्द है - 


पहला शब्द हीन और दूसरा शब्द दुन 


हिन का मतलब - तुच्छ, गंदा, नीच 

दुन का मतलब - लोक, प्रजा, जनता 


तुलसीदास ने 16वीं सदी में रामचरितमानस लिखी, उस समय मुगल शासनकाल था।


उन्होंने रामचरितमानस में मुगलों की बुराई पर या कथित हिंदू धर्म की अच्छाई पर एक चौपाई भी नहीं लिखी, 

क्योंकि उस समय हिंदू- मुसलमान का कोई झगड़ा नहीं था, 

ना ही उस समय हिंदू नाम का कोई धर्म था ।  


ब्राह्मण धर्म में शुद्र नीच थे इसलिए तुलसीदास गोस्वामी ने शुद्रो के लिये कविता लिखी - ढोल, गवार, शूद्र, पशु, नारी। सब ताडन के अधिकारी । 

 ब्राह्मण धर्म में नारी शुद्र होती है। 


उस समय ब्राह्मण धर्म था और ब्राह्मण मुगलों के साथ मिल-जुल कर रहते थे और राज करते थे, 

यहां तक कि कहीं-कहीं आपस में रिश्तेदार भी बन गए थे।

उस समय वर्ण व्यवस्था थी तो कोई भारतीय व्यक्ति हिंदू के नाम से नहीं बल्कि जाति के नाम से पहचाना जाता था। 


वर्ण व्यवस्था में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और उसके नीचे शूद्र था।


शुद्र सभी अधिकारों से वंचित था। 

जिसका कार्य सिर्फ उपरी वर्णों की सेवा करना था, मतलब सीधे शब्दों में गुलाम था और उसी को हिंदू कहां गया था। 


प्रथम विश्व-युद्ध जुलाई 1914 को शुरू हुआ और नवंबर 1918 में खत्म हुआ।


यह युद्ध ब्रिटेन, फ्रांस, अमेरिका, रूस और इटली के विरुद्ध ऑस्ट्रिया, हंगरी, जर्मनी, उस्मानिया और बुल्गारिया देश में हुआ था। उस वक्त ब्रिटेन के प्रधानमंत्री लायड जार्ज ने युद्ध के शुरुवाती दौर में ब्रिटेन की जनता से अपील की, कि जनता उन्हें इस युद्ध में पूरा सहयोग दें, अगर ब्रिटन इस युद्ध में जीतता है तो वह जनता को सरकार चुनने के लिए वयस्क मताधिकार देंगे।


ब्रिटेन का भारत पर राज था, इस वजह से इस अपील का असर भारत के नेताओं पर होना ही था। 


भारत में उस वक्त ब्राह्मण नेता बाल गंगाधर तिलक, मदन मोहन मालवीय, विनायक दामोदर सावरकर, केशव बलिराम हेडगेवार और बालकृष्ण शिवराम मुंजे थे जिन्होंने इस पर सोचना शुरू किया।


यदि ब्रिटन जीतता है तो वह ब्रिटिश उसकी जनता को वयस्क मताधिकार देगा और देर सबेर यह कानून भारत में भी लागू होगा और यहां के शुद्र बहुसंख्य होने की वजह से पार्लिमेंट में चुन कर जाएंगे और हम ब्राह्मण अल्पसंख्य होने की वजह से चुनकर नहीं जा सकते। 


इस बात पर तब इन्होंने खूब विचार मंथन किया और एक रास्ता निकाला और 1915 को मदन मोहन मालवीय के नेतृत्व में  "हिंदू महासभा" की स्थापना की जिसके विनायक दामोदर सावरकर अध्यक्ष रहे।

 केशव बलिराम हेडगेवार उपसभापति रहे। 

बालकृष्ण शिवराम मुंजे इस महासभा के सदस्य रहे। 


बाद में पूरे भारतीय को हिंदू-धर्म और हिंदू-राष्ट्र के चपेटे में लेने के लिए सितंबर 1925 में केशव बलिराम हेडगेवार ने अलग से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ निकाली।


नवंबर 1918 को प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ और वादे के अनुसार 1918 में ग्रेट-ब्रिटेन के पार्लियामेंट में वयस्क मताधिकार कानून पास हुआ। इस कानून की वजह से भारत में ब्राह्मण-धर्म खतरे में पड़ गया था।


 उस समय भारत में अंग्रेज का राज था, ग्रेट-ब्रिटेन और आयरलैंड मे वयस्क मताधिकार कानून पास होने से आगे चलकर ये कानून भारत में भी पास होना तय था,

 ब्राह्मणों की संख्या 3.5 परसेंट है, इस वजह से वह अल्प-संख्यक है। तो फिर पार्लियामेंट में चुनकर कैसे जायेगा? यह प्रश्न ब्राह्मण वर्ग के सामने आया। 


ब्राह्मण-धर्म के सभी ग्रंथ तो शुद्रो के हक, अधिकार छीनने के लिए शूद्रों की मानसिकता बदलने के लिए और ब्राह्मण को श्रेष्ठ बताने के लिखे गए हैं। 


वयस्क मताधिकार का मामला अब सामने आया और इंग्लैंड में वयस्क मताधिकार का कानून लागू हुआ और बारी-बारी यह कानून भारत में भी लागू करने की बात चल रही थी। इस पर तिलक बोले ये तेली, तंबोली, कुनभट संसद में जाकर क्या हल चलाएंगे या तेली तेल निकालेंगे,। संसद में जाने का अधिकार तो हम ब्राह्मणों का है। हम जाएंगे संसद में, तब ब्राह्मणों ने खुद को पार्लियामेंट में चुनकर जाने के लिए हिंदू-शब्द को हिंदू-धर्म बनाया


और खुद बहु-संख्यक का हिस्सा बन गये और ब्राह्मणो का पार्लिमेंट में जाने का रास्ता साफ किया। 


 आज का हिंदू-धर्म ही असल मे ब्राह्मण-धर्म है।


 शुद्रो के एक बड़े लड़ाकू तबके को इन्होंने पहले से ही अछूत घोषित करके वर्ण व्यवस्था से बाहर कर दिया और शुद्रो को कमजोर किया। 


जन-जाति के लोगों को तो विदेशी आर्य-ब्राम्हणो ने सिंधुघाटी सभ्यता से संघर्ष के समय से ही जंगलों में जाकर रहने पर मजबूर कर दिया। 


अब ब्राह्मणों ने सोंच समझकर हिंदू-शब्द का इस्तेमाल किया, जिससे सब हिंदू को समानता का एहसास तो हो 


लेकिन, हिंदू का लिडर ब्राह्मण ही बना रहें


इस तरह ब्राह्मणों ने भारतीय समाज व्यवस्था में ब्राह्मण-धर्म को कायम रखा, भले ही नाम हिंदु-धर्म कर दिया।


इसमें जातीयता वैसी ही है जैसे पहले थी।

 यह जातियां ब्राह्मण-धर्म का प्राणतत्व है, जातियों के बिना ब्राह्मण का वर्चस्व खत्म हो जाएगा। 


3.5 पर्सेंट ब्राह्मण- उनकी जनसंख्या के आधार पर ग्राम-पंचायत का सदस्य भी नहीं बन सकता था, इसलिए विचार मंथन करके, अंततः 1915 में हिंदू महासभा का गठन किया था और खुद को हिंदु बताकर प्रचार प्रसार के माध्यम द्वारा बहुसंख्यक बन गया। 


जिसके कारण 1950 से आज तक भारत का यह पिछड़ा समाज उसे हिंदु-हितैषी समझकर वोट !दे रहा है और ब्राह्मण बड़ी संख्या में चुनकर पार्लियामेंट में जा रहा है और आज सत्ताधारी बन गया है.