Saturday, 9 August 2025

इतिहास का सच्चा परिप्रेक्ष्य: 'मराठा-पेशवा-मुग़ल गठजोड़' और 'जाट प्रतिरोध'!

1. पेशवा कौन थे?

पेशवा ब्राह्मण (बामन) थे, मराठा नहीं।
बालाजी बाजीराव (सदाशिव राव भाऊ के चाचा) और फिर स्वयं सदाशिव राव भाऊ ने सत्ता संभाली।
सत्ता मराठा सैनिकों के हाथ में थी लेकिन नियंत्रण ब्राह्मण पेशवाओं के पास।
2. पेशवा और मुग़लों का गुप्त संबंध
इतिहास में प्रमाण मिलते हैं कि पेशवाओं ने दिल्ली जीतकर वहाँ "मुग़लों को फिर से सिंहासन पर बैठाने का मन बनाया था" — ताकि मराठा ‘सरकार चलाएं’ और मुग़ल नाम रहे।
यह वही सोच थी जो बाद में अंग्रेज़ों ने अपनाई — प्रभुत्व हमारा, चेहरा मुग़ल का।
इतिहासकार G.S. Sardesai और Persian chronicles जैसे 'Tarikh-i-Muzaffari' और 'Tarikh-i-Ahmad Shah Abdali' में संकेत मिलते हैं कि सदाशिव राव भाऊ मुग़ल बादशाह शाह आलम को फिर से गद्दी पर लाने को तैयार था — लेकिन नियंत्रण अपने हाथ में रखकर।
3. महाराजा सूरजमल की रणनीति
महाराजा सूरजमल ने चेतावनी दी थी:
"पहले दिल्ली पर अधिकार करो, फिर लड़ो। नहीं तो लड़ाई जीतकर भी सब व्यर्थ होगा।"
सदाशिव ने इस चेतावनी को घमंड और ब्राह्मणवादी दृष्टिकोण के कारण ठुकरा दिया — क्योंकि वो “जाट राजा को दिल्ली का किलेदार” नहीं बनाना चाहता था।
4. अगर महाराजा सूरजमल ना होता...?
अगर सूरजमल ने सहयोग ना हटाया होता और पानिपत की लड़ाई से पहले अलग ना होता —
दिल्ली पेशवाओं के हाथ में आ जाती।
पेशवा मुग़लों को nominal power देकर practical rule खुद चलाते।
35 बिरादरी की सोच — "Jat को मुख्यमंत्री नहीं बनने देंगे" — तब भी प्रभावी थी।
और तब की मुग़ल+पेशवा जोड़ी, आज की मुग़ल+राजपूत की जोड़ी से भी ज़्यादा ख़तरनाक हो सकती थी।
5. इतिहास की पुनरावृत्ति
जो आज बीजेपी के ब्राह्मणवादी नेतृत्व और जाट उत्पीड़न में दिखता है — वही मानसिकता तब भी थी:
"Jat को नहीं आने देंगे ऊपर, भले दिल्ली दुश्मन के पास चली जाए।"
पेशवा कौन ब्राह्मण, न कि मूल मराठा
मुग़ल संबंध पेशवाओं की योजना थी मुग़लों को चेहरा बना सत्ता चलाना| सूरजमल रणनीतिक रूप से सही, लेकिन ब्राह्मण अहंकार ने उनकी सलाह ठुकराई| जातिवादी मानसिकता तब भी जाट को शीर्ष पद से रोकने की मानसिकता थी|
पानिपत की त्रासदी जाट-मराठा एकता टूटने का नतीजा
एक पंक्ति में:
"एक जाट राजा ने ना सिर्फ़ मराठों की दिल्ली कब्ज़ा नीति रोकी, बल्कि उत्तरी भारत को पेशवा-मुग़ल गठजोड़ के गुप्त एजेंडे से भी बचाया।"
पृष्ठभूमि: मराठा और अब्दाली – दोनों लुटेरे?
हाँ, ये कहना गलत नहीं है कि:
अहमद शाह अब्दाली उत्तर भारत में लूटमार करने ही आता था। वह भारत को अपना "माल-ए-ग़नीमत" मानता था। हर बार दिल्ली और पंजाब को लूटकर अफ़ग़ानिस्तान वापस चला जाता था।
वहीं मराठा भी दक्षिण से आकर उत्तर भारत में भारी कर वसूली (चौथ, सरदेशमुखी) के नाम पर सैन्य दमन करते थे। बंगाल, बिहार, और बुंदेलखंड तक में इन्होंने लूटमार की।
पानिपत युद्ध से पहले की मराठा नीति
पेशवा बाजीराव-I की मृत्यु के बाद मराठों की नीति विस्तारवादी हो गई थी।
पेशवा बालाजी बाजीराव (नाना साहेब) और सदाशिवराव भाऊ दिल्ली, पंजाब और पूरे उत्तर भारत को मराठा नियंत्रण में लाना चाहते थे।
रणनीति:
दिल्ली पर कब्ज़ा करके उसे मराठा राज्य की राजधानी जैसा बनाना।
मुघलों को कठपुतली बनाकर सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखना।
लेकिन, दिल्ली पर कब और कैसे कब्जा होगा? इसमें मराठा और जाटों की रणनीति टकरा गई।
MAHARAJA सूरजमल और मराठों के बीच टकराव
सूरजमल की भूमिका:
भरतपुर के जाट राजा सूरजमल उस समय उत्तर भारत के सबसे ताकतवर स्वतंत्र शासकों में एक थे।
उन्होंने अब्दाली के खिलाफ मराठों को सैन्य सहायता, घोड़े, रसद और राजनीतिक मार्गदर्शन देने की पेशकश की थी — लेकिन एक शर्त पर।
महाराजा सूरजमल की शर्त:
पहले दिल्ली पर अधिकार का फैसला हो, पानीपत के युद्ध के बाद किसका कब्ज़ा होगा। अगर यह स्पष्ट नहीं हुआ, तो मैं युद्ध में भाग नहीं लूंगा।
सदाशिवराव भाऊ का रवैया:
भाऊ को लगा कि सूरजमल उनकी शर्तों को नहीं माने तो भी वे अब्दाली को हरा देंगे।
भाऊ ने सूरजमल की सलाह, रणनीति और रसद की मांग को नकारात्मक रूप से ठुकरा दिया।
नतीजा: सूरजमल ने अपनी सेनाएं हटा लीं और मराठा सेना अकेली पड़ गई।
मराठों की हार और उत्तर भारत की तबाही
सूरजमल ने कहा था कि इस युद्ध को उत्तर भारत की जलवायु, संस्कृति, रणनीति को ध्यान में रखकर लड़ा जाए। लेकिन भाऊ ने दक्षिण की घेराबंदी शैली को ही लागू किया।
मराठा सेना पूरी तरह थक गई, भूख से परेशान हो गई, और रसद पूरी तरह टूट गई थी।
अब्दाली ने इस मौके का फायदा उठाया और 14 जनवरी 1761 को पानीपत में मराठों का समूल नाश कर दिया।
🔍 निष्कर्ष:
ऐतिहासिक सच्चाई है कि:
1. मराठा और अब्दाली — दोनों ही उत्तर भारत को लूटने आए थे, फर्क बस इतना था कि अब्दाली खुलकर हमलावर था, और मराठे ‘मुग़लों को बचाने’ के नाम पर सत्ता छीनने का प्रयास कर रहे थे।
2. सदाशिवराव भाऊ और पेशवा नाना साहेब ने पहले से मुघलों से सैटिंग कर ली थी — कि अगर अब्दाली को हराया गया तो दिल्ली मुघलों को सौंप दी जाएगी, लेकिन असल नियंत्रण मराठों के पास होगा।
3. Aaज मराठा हारते नहीं, क्योंकि उनके पास स्थानीय समर्थन, रसद, और वास्तविकता की समझ थी।

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