Wednesday, 3 September 2025

यहाँ के गामों में कोई भिखारी नहीं मिलेगा, कोई भूखा-नंगा सोता नहीं मिलेगा!

यह हद से ज्यादा माइग्रेशन आने के बाद का तो पता नहीं क्या हाल है, परन्तु इससे पहले यानि एक दशक पहले तक की ही ले लो; मिसललैंड+ खापलैंड यानि सप्ताब (पंजाब + दोआब - यमुना-गंगा वाला दोआब) बारे यह कहावत मशहूर रही है कि, "यहाँ के गामों में कोई भिखारी नहीं मिलेगा, कोई भूखा-नंगा सोता नहीं मिलेगा"! यह क्यों रही है इसकी बानगी देखनी है तो अभी पंजाब में आई बाढ़ के चलते, मदद को टूट के पड़े पूरे खापलैंड (उत्तरी राजस्थान से ले धुर लखीमपुर-खीरी से होते हुए पंजाब तक आ जाओ) के एक-एक गाम की बानगी देख लो! पांच एक साल के गैप में दूसरी बार यह झटका देखने को मिल रहा है, किसान आंदोलन में देखा था या अब देख रहे हो!


और इस जज्बे के पीछे जो फिलॉसोफी यानि दर्शनशास्त्र है वह कहाँ से आता है? सिख बाहुल्य इलाकों यानि मिसललैंड में "बाबा नानक की लंगर परम्परा से" व् खापलैंड पर दादा नगर खेड़ों/ दादा नगर भय्यों/ बाबा नगर भूमियों की मूर्तिरहित मर्द-पुजारी-रहित धोक-ज्योत की परम्परा वाले धामों के सिद्धांत में बसते उस सिद्धांत से जो सदियों से इन खेड़ों के पुरखों ने यह कहते हुए स्थापित किया कि, "इतनी न्यूनतम मानवता हर किसी ने पुगानी है कि गाम-नगर-खेड़े/खेड़ी में बसने वाला कोई भी शख्स भूखा-नंगा नहीं सोना चाहिए"!

इन्हीं दो परम्पराओं के चलते सप्ताब बारे यह कहावत चलती आती है कि, "यहाँ के गामों में कोई भिखारी नहीं मिलेगा, कोई भूखा-नंगा सोता नहीं मिलेगा"!

विशेष: दादा नगर खेड़ा वह कांसेप्ट है जिसे खापलैंड की सभी मूल जातियां व् धर्म धोकते हैं!

जय बाबा नानक जी! जय दादे नगर खेड़े/भय्या/भूमिया!

जय यौधेय! - फूल मलिक

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