Wednesday, 3 September 2025

अंग्रेज सर की उपाधि उसी को देते थे जो उनका सरपरस्त होता था? ये गलतफहमी आज दूर हो जाएगी!

अंग्रेज सर की उपाधि उसी को देते थे जो उनका सरपरस्त होता था? ये गलतफहमी आज दूर हो जाएगी:


सन् 1941 में विश्व युद्ध के कारण भारत के बाजारों के हालात काफी खराब हो गए थे। जमाखोरी के कारण सभी वस्तुओं के भाव बढ़ गए थे और मजदूरी कम होने के कारण मजदूरों की हालत काफी खराब हो गई थी। इस स्थिति से निपटने के लिए भारत सरकार ने सभी प्रांतों के प्रतिनिधियों की बैठक बुलाई। इस बैठक में चौधरी साहब ने पंजाब की तरफ से भाग लिया और स्थिति से निपटने के लिए ठोस सुझाव दिए।


खाद्यान्नों की गंभीरता को देखते हुए सन् 1943 में भारत ने 'खाद्यान्न नीति समिति' का गठन किया। पंजाब को छोड़कर अन्य प्रान्तों में अन्न का इतना संकट हो गया था कि भारत सरकार अन्न का नियंत्रण एवं राशनिंग करने पर आमादा थी, लेकिन, चौधरी छोटूराम इसका पुरजोर विरोध कर रहे थे।


चौधरी साहब ने पंजाब के किसानों को प्रेरित करना आरंभ कर दिया कि यदि सरकार गेहूं पर नियंत्रण करती है, तो वे अपना गेहूं मंडियों में न बेचें और अच्छे मूल्य पर बेचने के लिए घरों में रखे रहें।


चौधरी साहब के इस प्रचार को सरकार ने एक प्रकार का विद्रोह माना और सन् 1943 में खाद्यान्न कांफ्रेंस बुलाई, जिसमें उन्हें भी बुलाया गया। इस कांफ्रेंस में चौधरी साहब ने गेहूं के नियंत्रित मूल्य को 6 रुपये मन से बढ़कर 10 रुपये प्रति मन करने पर जोर दिया।


यह सुनकर लॉर्ड वेवल ने कहा कि जब भारत के दूसरे प्रान्तों के मंत्री इस प्रस्ताव से सहमत हैं कि गेहूं का मूल्य 6 रुपये मन हो, तो आपको क्याआपत्ति है? इस पर चौधरी साहब बोले कि इन प्रान्तों के पास गेहूं है कहां? इनमें से कई प्रान्त तो गेहूं लेने वाले हैं। केवल पंजाब ऐसा प्रांत है, जो गेहूं देने वाला है। जब हमारे किसान अन्य चीज महंगे दामों पर खरीद रहे हैं, तो गेहूं को 6 रुपये प्रति मन के हिसाब से नहीं दे सकते। वायसरॉय एक प्रांत के मंत्री से ऐसी विद्रोहात्मक उत्तर की आशा नहीं रखते थे। अतः वे उत्तेजित होकर गुस्से में बोले कि वे किसान की कोई मदद नहीं कर सकते।


वायसरॉय वेवल का ऐसा कटु उत्तर सुनकर चौधरी छोटूराम छाती तानकर बोले- "फिर तो, किसान का गेहूं भी 10 रुपये प्रति मन से कम नहीं बिक सकता।"


वायसराय चौधरी साहब के इस उत्तर से बेहद नाराज हो गए और बैठक समाप्त हो गई। बताते हैं कि चौधरी साहब ने यहां तक कह दिया कि यदि सरकार 6 रुपये प्रति मन गेहूं खरीदने पर अडिग रही, तो वे पंजाब के किसानों को कहकर गेहूं की खड़ी फसल में आग लगवा देंगे, लेकिन, गेहूं को 6 रुपये प्रति मन नहीं बचेंगे।


चौधरी छोटूराम के गेहूं के मूल्य के प्रति कठोर रुख को देखकर भारत सरकार परेशानी में पड़ गई। अंग्रेज अधिकारियों ने खाद्यान्न के मूल्यों के संकट के लिए चौधरी साहब को उत्तरदायी ठहराना शुरु कर दिया।


चौधरी साहब के इस कठोर रवैया की प्रतिक्रिया इंग्लैंड में भी हुई और ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पंजाब मंत्रिमंडल से निकालने पर जोर दिया, चाहे इससे पंजाब में यूनियनिस्ट पार्टी की सरकार का पतन हो जाए और पंजाब में धारा 93 लगानी पड़े।


चौधरी छोटूराम को पंजाब मंत्रिमंडल से निकालने की इस मांग से पंजाब के राज्यपाल ग्लेंसी बहुत चिंतित हुए और उन्होंने चौधरी साहब को मंत्रिमंडल में बने रहने की प्रासंगिकता बताते हुए भारत के वायसरॉय को पत्र लिखकर बताया कि चौधरी छोटूराम का गेहूं के मूल्य के बारे में कठोर रवैया इसलिए है कि अन्य राज्यों में पंजाब की अपेक्षा गेहूं के भाव ज्यादा है। यही नहीं, उत्तर प्रदेश और बंगाल में खाद्यान्नों को महंगें दामों में बेचकर भारी मुनाफा कमाया जा रहा है। यदि ऐसा भेदभाव रहा, तो पंजाब का किसान संकट की स्थिति उत्पन्न कर सकता है और पंजाब मंत्रिमंडल ब्रिटिश सरकार को कठिनाई में डाल सकता है।


राज्यपाल ग्लेंसी का वायसराय को लिखा पत्र समयानुकूल एवं प्रासंगिक था, क्योंकि, द्वितीय विश्व युद्ध में गेहूं के उत्पादक पंजाब के किसान के फौजीबेटे मोर्चे पर युद्ध लड़ रहे थे। अतः इस मौके पर किसानों को नाराज करने से भारत में अंग्रेजी राज्य के लिए संकट पैदा हो सकता था। यह सोचकर सरकार ने चौधरी छोटूराम के द्वारा मांगे गए गेहूं के मूल्य में भी 1 रुपया ज्यादा बढ़ाकर गेहूं का मूल पंजाब में 11 रुपये प्रति मन निश्चित कर दिया और इस प्रकार ब्रिटिश सरकार लाचार होकर धरतीपुत्र चौधरी छोटूराम के सामने झुकने पर मजबूर हो गई।


असल में अंग्रेज सर की उपाधि उसको भी देते थे जिसमें दम होता था और ये दम किसानों ने चौधरी साहब को दिया था - By Dharmendra Kawanri from book of Dr. Santram Deswal ji



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