Saturday, 18 October 2025

राजनीति का अपना आर्थिक दर्शन भी होना चाहिए।

गांधी का ग्राम स्वराज, नेहरू का औद्योगीकरण, मनमोहन का "ईज आफ बिजनेस" माडल वही आर्थिक दर्शन है।

दर्शन पूरा होने मे वक्त लगता है, एक्शन मे नही ...कोई महज सात साल की सत्ता मे पूरी कौम की आर्थिकी बदल दे, ये चमत्कार बस रामवृक्ष पाल के बस मे था।
जिन्हे कोई रहबरे आजम कहता, कोई दीन बंधु ...
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अंग्रेज उन्हे सर छोटूराम कहते।
9 जनवरी 1945 को रोहतक रेल्वे स्टेशन पर उनकी देह उतारी गई। 4 किलोमीटर उनका जनाजा चला। हजारो किसान बिलखते, क्या हिंदू, क्या मुसलमान, क्या सिख ...
सब उन्हे सलाम देने आए थे। किसान टोकनियों मे भरकर घी लाए थे। पंजाब के सदर खिज्र हयात खान भी कंधा दे रहे थे।
पंजाब तब सचमुच पंचनद प्रदेश था। इसमे भारतीय पंजाब, पाकिस्तानी पंजाब, हिमाचल प्रदेष और हरियाणा शामिल थे। देश का सबसे बड़ा सूबा, जमीन सोना उगलती..
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पर किसानों के लिए नहीं।
छोटूराम के पिता भी किसान थे। थोड़े पैसों के पास महाजन के पास गए, जिसने उन्हे बेइज्जत किया। छोटे पुत्र, छोटू ने वो मंजर देखा, और जेहन मे जज्ब कर लिया।
झज्झर मे पैदा हुए छोटूराम, रोहतक मे पढे, फिर दिल्ली सेंट स्टीफेंस काॅलेज मे। इस महंगे कालेज मे उनका खर्च, जाटो के भामाशाह- सेठ छज्जूराम ने उठाया।
आगे वकालत पढ़ी। प्रेक्टिस भी करते, स्कूल मे पढाते। तब पंजाब उथल पुथल मे था, देश की चेतना जाग रही थी। छोटूराम कांग्रेस के जिला प्रेसीडेट रहे। किसानों के भले के मुद्दे उठाते, अखबार निकालते।
असहयोग आंदोलन मे भाग लिया, पर जब गांधी ने आंदोलन रोक दिया, वे निराश हो गये।
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वे किसानी, ऋणग्रस्तता पर काम करते रहे। फिर 1923 मे सिंकंदर हयात खान के साथ मिलकर जमीदारां लीग बनाई जो किसान हित मे लडती।
यह लीग ही, यूनियनिस्ट पार्टी बनी। इसका आधार जाट थे - जो हिंदू थे, मुसलमान भी, और सिख भी। पंजाब कांग्रेस मे लाला लाजपतराय के अलावे बड़ा नाम नही था।
कांग्रेस ने इलेक्शन लड़ा नही, छोटूराम और कई साथी चुनकर असेम्बली मे आए। उन्हें कई महत्वपूर्ण कानून बनवाने का श्रेय दिया जाता है।
इनमें से एक पंजाब रिलीफ इंडेब्टनेस 1934 और दूसरा द पंजाब डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट 1936 था। इन कानूनों में कर्ज का निपटारा किए जाने, उसके ब्याज और किसानों के मूलभूत अधिकारों से जुड़े हुए प्रावधान थे।
कर्जा माफी अधिनियम. 1934 कानून को भी पारित करवाया। उन्हे अंग्रेेज भी सम्मान देते। 1936 मे उन्हे नाइटहुड मिली।
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जब 1937 मे चुनाव हुए, यूनियनिस्ट पार्टी जीत गई। सिंकदर हयात मुख्यमंत्री बने, छोटूराम रेवेन्यू मंत्री।
1938 में साहूकार रजिस्ट्रेशन एक्ट, गिरवी जमीनों की मुफ्त वापसी एक्ट 1938, कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम. 1938, व्यवसाय श्रमिक अधिनियम- 1940 आए।
ये दशा बदलने वाले कानून थे।
किसानों की गिरवी रखी जमीनें लौटाई गई। ऐसे कर्ज जिसका दोगुना मूल्य वसूला जा चुका हो, खत्म कराये।
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मशहूर किस्सा है, कि एक किसान लाहौर हाइकोर्ट गया। वो कर्ज चुकाने मे अक्षम था। कुर्की होनी थी।
अर्जी लिखी कि कम से कम मेरे बैल और झोपड़ी को नीलाम न किया जाए। जज शादीलाल ने उपहास किया, कहा कानून मे ऐसा नही है। हां, एक छोटूराम नाम का आदमी है, वही ऐसे उल-जलूल कानून बनवाता है। उसके पास जाओ।
किसान सर छोटूराम के पास आया। छोटूराम ने डेब्टर्स प्रोटेक्शन एक्ट बनाया, कि जीवन के न्यूनतम साधनो को कर्ज वसूली के लिए नीलाम करना बैन हो गया।
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दूसरा किस्सा जिन्ना से भिड़ने का है।
एक समय मे यूनियनिस्ट और जिन्ना मे अच्छे रिश्ते थे। बल्कि लीग को पैर रखने की जगह, जिन्ना-सिंकदर पैक्ट से मिली। पर 44-45 मे जिन्ना जहर उगलने लगे, पंजाब को अपने भावी पाकिस्तान का अभिन्न हिस्सा बताने लगे।
मुस्लिमों से सीधे अपील करने लगे। सर छोटूराम ने जिन्ना को हड़का दिया। कहा- 24 घण्टे मे पंजाब छोड़ दे, नही तो गिरफ्तार कर लूंगा। जिन्ना सर पर पांव रखकर भागे, और छोटूराम के देहावसान के बाद ही पंजाब जाने की हिम्मत जुटा सके।
भारत का दुर्भाग्य है, अगर छोटूराम कुछ बरस जी जाते, तो शायद पंजाब की शक्ल कुछ और होती।
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आज जो किसानों का दम है, गुरूर है, जो ट्रेक्टर और रेंज रोवर है, जिससे आप जलते है, वो छोटूराम की देन है।
पंजाब का मंड़ी स्ट्रक्चर देश भर मे पहला है, यूनिक है। हरित क्रांति ने उपज और भी प्रदेश मे बढाई, फसल का दाम तो पंजाब की मंड़ी देती है। वह कर्ज भी देती है, सड़के भी बनवाती है।
सच है कि कुछ दशको मे वहां भी समस्याऐं पनपी, जो माॅडल छोटूराम का था, कारगर है, जनोन्मुख है, ताकतवर है।
जहां 10 साल से बैठे लोग, कुछ करने सीखने के लिए 2047 तक वक्त मांग रहे है, वहा छोटूराम महज 7 साल मंत्री रहकर इतिहास बना गए।
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राजनीति का अपना आर्थिक दर्शन होना चाहिए। मौजूदा सरकार का भी है, जिसे वह,अपने खास साथियों के हक मे उतारने को बेताब है।
लेकिन सर छोटूराम का माॅडल रोड़ा बना हुआ है।
देश ने उनके जैसा दूरदर्शी नेतृत्व कम देखा। उस दौर मे हर राज्य मे एक छोटूराम होता, तो आज देश भर के किसान के गले मे आवाज होती। रहबरे आजम छोटूराम आज जीवित होते ...
तो लोहे की कीलो पर चलकर इस तानाशाही को ललकार रहे होते।

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