Saturday, 20 December 2025

वर्ष 1947 से 2014 के मध्य सम्पूर्ण उत्तर भारत में राजनीति के माध्यम से सबसे अधिक लाभ जिन दो समुदायों को प्राप्त हुआ, वे जाट और ब्राह्मण थे।

 वर्ष 1947 से 2014 के मध्य सम्पूर्ण उत्तर भारत में राजनीति के माध्यम से सबसे अधिक लाभ जिन दो समुदायों को प्राप्त हुआ, वे जाट और ब्राह्मण थे। ब्राह्मणों को राजनीति से किस प्रकार और किस प्रक्रिया के माध्यम से लाभ मिला—इस विषय पर चर्चा किसी अन्य अवसर पर की जाएगी। प्रस्तुत लेख को जाट समुदाय तक ही सीमित रखा जा रहा है।

विभाजन ने एक ही आघात में राजपूत और मुस्लिम ज़मींदारों को परस्पर विभक्त कर दिया। बहुसंख्यक मुस्लिम ज़मींदार पाकिस्तान चले गए, जबकि राजपूत भारत में ही रह गए। सल्तनत काल से लेकर ब्रिटिश शासन के अन्त तक राजपूत और मुस्लिम ज़मींदार वस्तुतः एक साझा शासक वर्ग थे, जिनके सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हित परस्पर जुड़े हुए थे। विभाजन ने इस गठित वर्ग की शक्ति को पूर्णतः विघटित कर दिया और यह वर्ग आगामी संरचनात्मक परिवर्तनों का प्रतिरोध करने की क्षमता खो बैठा।
विभाजन के पश्चात् भारत में चार ऐसे मौलिक परिवर्तन घटित हुए, जिन्होंने जाट समुदाय को असाधारण रूप से सशक्त किया। ये परिवर्तन थे—नेहरू का समाजवाद, भूमिसुधार, पंचायती राज व्यवस्था और हरित क्रान्ति।
1. नेहरू का समाजवाद और सामन्ती वर्ग का विध्वंस:
जवाहरलाल नेहरू के समाजवादी दृष्टिकोण का मूल उद्देश्य औपनिवेशिक–सामन्ती संरचना का उन्मूलन करना था। यह समाजवाद यूरोप की श्रमिक-क्रान्तियों जैसा नहीं था, बल्कि भारतीय परिस्थितियों में ज़मींदार वर्ग को राजनीतिक और नैतिक रूप से अवैध ठहराने का एक वैचारिक उपकरण था।
यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि इस समाजवाद का वास्तविक प्रहार पारम्परिक ज़मींदार गठजोड़ पर हुआ, न कि मध्यम अथवा ऊँचे किसान वर्ग पर। जाट स्वयं ज़मींदार नहीं थे, बल्कि बड़े काश्तकार थे। परिणामस्वरूप, जब ‘ज़मींदार’ को सामाजिक खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया, तब जाट समुदाय नैतिक रूप से उस श्रेणी से बाहर खड़ा पाया गया। सामन्ती सत्ता का विघटन हुआ, परन्तु ग्रामीण शक्ति क्रमशः जाटों के हाथों में सघन होती चली गई।
इसके अतिरिक्त, निःशुल्क शिक्षा, निःशुल्क चिकित्सा तथा सब्सिडी पर शक्कर, केरोसिन आदि की उपलब्धता से ग्रामीण समाज को व्यापक लाभ प्राप्त हुआ, जिसमें जाट समुदाय भी प्रमुख रूप से सम्मिलित था।
2. भूमिसुधार: भूमि का पुनर्वितरण नहीं, सत्ता का पुनर्संरचन:
भूमिसुधार को प्रायः निर्धन-किसान हितैषी नीति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, परन्तु उत्तर भारत में इसका वास्तविक प्रभाव भिन्न था। भूमि ज़मींदारों के हाथों से अवश्य निकली, पर वह भूमिहीनों तक नहीं पहुँची। वह उन्हीं समुदायों के पास केन्द्रित हुई, जिनके पास पहले से कृषि-क्षमता, पशुधन, श्रम-नियंत्रण और स्थानीय प्रभुत्व विद्यमान था—और इनमें जाट अग्रणी थे।
इस प्रकार राजपूत और मुस्लिम ज़मींदारों के पतन से उत्पन्न सत्ता-रिक्तता को जाटों ने भर दिया। वे अब केवल कृषक नहीं रहे, बल्कि भू-स्वामी, स्थानीय प्रभु और निर्णायक सामाजिक वर्ग बन गए। इसके अतिरिक्त कृषि भूमि पर सभी प्रकार के कर समाप्त कर दिए गए और कृषि आय को आयकर के दायरे से बाहर रखा गया, जिससे जाट समुदाय को विशेष लाभ प्राप्त हुआ।
3. पंचायती राज: लोकतन्त्र का ग्रामीण सैन्यीकरण:
भीमराव आंबेडकर के प्रबल विरोध के पश्चात् भी नेहरू ने पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया और इसके माध्यम से सत्ता को पहली बार प्रत्यक्ष रूप से ग्राम-स्तर तक पहुँचाया। यद्यपि यह विकेन्द्रीकरण सैद्धान्तिक रूप से समानतावादी प्रतीत होता था, व्यवहार में यह पूर्णतः शक्ति-संतुलन पर आधारित सिद्ध हुआ।
जिसके पास भूमि थी, वही मतों को नियंत्रित करता था; और जिसके पास मतों का नियन्त्रण था, वही ग्राम सरपंच, पंचायत प्रधान और ज़िला प्रमुख बना। उत्तर भारत के ग्राम्य समाज में इस चक्र को सर्वाधिक प्रभावी ढंग से जाट समुदाय ने साधा। पंचायतें, सहकारी समितियाँ, कृषि मंडियाँ तथा स्थानीय पुलिस-प्रशासन—इन सभी पर उनका प्रभुत्व सुदृढ़ होता चला गया। इस प्रकार जाट पहली बार औपचारिक राज्य-सत्ता के प्रत्यक्ष सहभागी बने।
4. हरित क्रान्ति: कृषि से पूँजी में रूपान्तरण:
हरित क्रान्ति ने जाटों को केवल सशक्त ही नहीं, बल्कि समृद्ध भी बना दिया। हरियाणा, दोआब और उत्तरी राजस्थान में नहरों का विस्तृत जाल विकसित किया गया। सब्सिडी पर ट्यूबवेल, ट्रैक्टर, उच्च-उपज बीज और रासायनिक उर्वरक उन्हीं किसानों को उपलब्ध हुए, जिनके पास पहले से भूमि और जोखिम उठाने की क्षमता थी।
जाट किसान अब पारम्परिक कृषक नहीं रहे; वे कृषि-उद्यमी में रूपान्तरित हो गए। इस कृषि-पूँजी ने शिक्षा, शहरी सम्पर्क, नौकरशाही में प्रवेश और आगे चलकर सक्रिय राजनीति के द्वार खोल दिए।
इसी प्रक्रिया के परिणामस्वरूप ही जाट युवाओं के मानस में क) समाजवाद, ख) ग्रामीणवाद और ग) किसानवाद के प्रति एक गहरी और स्थायी वैचारिक छाप निर्मित हुई। - Shivatva Beniwal



No comments: