Saturday, 27 December 2025

कलकत्ता में 1850 के दशक में 12,000 वेश्याएँ थीं, जिनमें से 10,000 बंगाली कुलिन परिवारों से थीं।

 1. कलकत्ता में 1850 के दशक में 12,000 वेश्याएँ थीं, जिनमें से 10,000 बंगाली कुलिन परिवारों से थीं।

•  1853 में कलकत्ता के चीफ मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट के अनुसार, शहर में लगभग 12,419 वेश्याएँ थीं। इनमें से अधिकांश (10,000 से ज्यादा) हिंदू थीं, और इनमें कुलिन ब्राह्मणों की कई बेटियाँ या विधवाएँ शामिल थीं।

•  लेकिन कई स्रोतों में इसे “several daughters of Kulin Brahmins” या “including several daughters of Kulin Brahmins” कहा गया है, न कि ठीक 10,000। कुछ किताबों (जैसे Usha Chakraborty की Condition of Bengali Women, 1963; Sumanta Banerjee की Dangerous Outcast, 1998) में “more than 10,000 were Kulin widows or daughters” का उल्लेख है।

•  यह आंकड़ा अनुमानित था (1881 से पहले कोई आधिकारिक जनगणना नहीं हुई), और ब्रिटिश रिपोर्ट्स में अतिशयोक्ति की संभावना है। बाद में 1867 में संख्या 30,000 बताई गई, लेकिन कुलिन ब्राह्मणों का अनुपात कम बताया गया।

•  कारण: 19वीं सदी में बंगाल में कुलिन बहुविवाह प्रथा (Kulin polygamy) प्रचलित थी। कुलिन ब्राह्मण पुरुष दर्जनों लड़कियों से शादी करते थे (कभी-कभी 50-100 से ज्यादा), लेकिन पत्नियाँ अक्सर अकेली रह जाती थीं। सती प्रथा बैन होने के बाद विधवाएँ या परित्यक्ताएँ कलकत्ता आकर वेश्यावृत्ति में पड़ जाती थीं। इश्वरचंद्र विद्यासागर ने इस प्रथा के खिलाफ अभियान चलाया।

2. मुगल और ईस्ट इंडिया कंपनी काल में ऊपरी भारत में अधिकांश वेश्याएँ, नटखट आदि जातियों की लड़कियाँ और तवायफें थीं

•  तवायफें (courtesans) मुगल काल में मुख्य रूप से मुस्लिम या मिश्रित पृष्ठभूमि की होती थीं (उत्तर भारत में लखनऊ, दिल्ली आदि में)। वे उच्च वर्ग की कलाकार थीं – गायन, नृत्य, कविता में निपुण। 

वे वंशानुगत पेशे से आती थीं, और तवायफ संस्कृति में हिंदू-मुस्लिम मिश्रण था।

•  मुगल काल में वेश्यावृत्ति विभिन्न जातियों/समुदायों से थी, उत्तर भारत में तवायफें अक्सर मुस्लिम संरक्षण में थीं।

•  बंगाल (ईस्ट इंडिया कंपनी काल) में कुलिन ब्राह्मण महिलाओं का प्रवेश वेश्यावृत्ति में हुआ, लेकिन यह बंगाल-विशिष्ट था, न कि पूरे उत्तरी भारत का। 

उत्तर भारत (अवध, दिल्ली) में तवायफें अलग परंपरा की थीं।

•  “नटखट लड़कियाँ” (nautch girls) भी विभिन्न पृष्ठभूमि से थीं, मुख्य रूप से निचली जातियों या वंशानुगत कलाकार समुदायों से।

3.19वीं सदी में बंगाल के ब्राह्मण और कायस्थ जातियों ने योजना बद्ध तरीके से अंग्रेजी शिक्षा लेकर शुरुआत में निचली नौकरशाही क्लर्क, बाबू,शिक्षक आदि बन अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति सुधार कर अंग्रेजों के गठजोड़िये बन उच्च सेवाओं में भी प्रवेश किया।

•  लेकिन यह “गठबंधन” कम और अवसरवाद ज्यादा था। कुलिन प्रथा के पतन के बाद कई ब्राह्मण गरीब हो गए थे, इसलिए शिक्षा/नौकरी अपनाई।

•  यह पूरे भारत के ब्राह्मणों पर लागू नहीं,

निष्कर्ष:

•  कथन का कलकत्ता वाला हिस्सा ऐतिहासिक रूप से आधारित है (कुलिन प्रथा के कारण ब्राह्मण महिलाओं का एक बड़ा हिस्सा मात्र बंगाल क्षेत्र में प्रभावित था।

•  मुगल/उत्तर भारत में तवायफें मुख्य रूप से मुस्लिम/मिश्रित परंपरा की थीं।

•  यह कथन अक्सर जातिगत बहस में इस्तेमाल होता है,जबकि वेश्यावृत्ति में विभिन्न जातियाँ/समुदाय शामिल थे, और गरीबी/सामाजिक प्रथाएँ मुख्य कारण।

मुख्य स्रोत:

•  Sumanta Banerjee: Dangerous Outcast: The Prostitute in Nineteenth-Century Bengal (1998)

•  Usha Chakraborty: Condition of Bengali Women (1963)

•  Veena Oldenberg और अन्य इतिहासकारों की किताबें तवायफ संस्कृति पर।

•  ब्रिटिश रिपोर्ट्स (1853 चीफ मजिस्ट्रेट रिपोर्ट)।

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