Friday, 27 March 2015

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा!

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा,
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा,

इश्क करने चली सरूपण-खां तो नाक कटी,
सीता ने लांघी लक्ष्मण रेखा तो गई हरी|
जुआ खेले युधिष्टर, चीर द्रोपदी की फ़टी,
जुआ खेले नल बेचे सौदे में सती दमयंती||
बलात्कार इंद्र करे, अहिल्या को पत्थर का दिया बना|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

आरएसएस कहती खेल अंग्रेजों का, आज भी क्यों ढोवें,
पर गुलामी जाती नहीं, जब तक दिमाग को ना धोवें|
विराट ने जुआ छोड़ क्रिकेट की तरफ तरक्की कर ली,
पर इसमें भी हारे तो राष्ट्रीय पनौती बोल तू धर ली||
ऑस्ट्रेलिया की धरती पे, तेरा बन्दर दिया बना|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

तेरा कोई दोष नहीं, यह भारत है ना कि इंग्लैण्ड,
तेजपाल हो, आशाराम हो या भागवत का बैंड|
दोष इंडिया को ही देंगे, भारत अनटोल्ड स्टैंड,
दामिनी हो, कामिनी हो, तोलें सबको एक ट्रेंड ||
कभी कपड़े कभी मोबाइल, देवें तुझपे जाम बिठा|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

पर बैलेंस तो तुझे भी कहीं ना कहीं धरना पड़ेगा,
विश्वामित्र का तप मेनका ने तोड़ा, कौन ना कहेगा?
क्या कहें जीवन और प्यार की हैं इतनी ही कठिन राही,
'फुल्ले भगत' नहीं समझ पाया, तू कौनसी खेली-खाई||
तुझको पनौती कहने के विरुद्ध, मैं लिखूं कलम उठा|
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

तेरा कोई दोष नहीं, ओ नारी अनुष्का शर्मा,
यह भारत है इसने औरत को सदा ही भरमा|

Author: Phool Malik

संघ में जाट मान-मान्यताओं, सभ्यता-संस्कृति का क्या स्थान?

संघी बने जाटों से मेरे कुछ सवाल!

कृपया इसको अन्यथा ना लेवें, दिल साफ़ है, दिमाग साफ़ है, सिर्फ मेरी उत्सुकता हेतु यह सवाल हैं:

A) जाट धर्म की 19 मान्यताओं {1. दादा खेड़ा (पर्यायवाची - बाबा जठेरा, बाबा भूमिया, दादा बड़ा बीर, दादा नगर खेड़ा, दादा बैया, दादा भैया, ग्राम खेड़ा आदि) को सबसे बड़ा देवता मानना, 2. घंटी की जगह थाली बजाना, 3. देवदासी विरोधी होना, 4. विधवा विवाह समर्थक होना, 5. सती-प्रथा विरोधी होना, 6. तलाक के बाद औरत को पहले पति से जीवन-यापन दिलवाना, 7. खाप सोशल इंजीनियरिंग सिस्टम, 8. जाटों का अपना मोर-ध्वज होना, 9. जाटों द्वारा हवेलियों पर मोरनी चढ़ाने की प्रथा (अब लुप्तप्राय), 10. जाटों में यौद्धा की जगह यौद्धेय होना, 11. अपनी अलग से जाटू (हरियाणवी) भाषा (पंजाबी और हिंदी के साथ-साथ) होना, 12. मूर्ती-पूजा के विरोधी होना, 13. स्व-गोत में विवाह की अनुमति नहीं होना, 14. गाम-गोत-गुहांड वाली संस्कृति होना, 15. मालिक-नौकर की जगह सीरी-साझी की सभ्यता होना, 16. किसी भी प्रकार की पशुबलि-नरबलि विरोधी होना, 17. सैद्धांतिक तौर पर शाकाहारी होना, 18. मठ से संबंधित कहावतें होना, 19. खेड़े के गोत को गाँव में प्राथमिकता होना} का संघियों के यहां क्या बखान और स्थान है?

B) इन 19 शुद्ध जाट मान्यताओं का कितने संघियों को पता है और वो इनको उनके तंत्र में कितना स्थान देते हैं? वह इनके संवर्धन और प्रचार बारे क्या सोचते हैं?

C) जाट महापुरुषों, महावीरांगनाओं, यौद्धेय/यौद्धेयाओं, राजा-महाराजाओं, स्वंत्रता सेनानियों, समाजसेवकों का संघ के साहित्य में क्या और कितना जिक्र आता है? कौनसे-कौनसे मौकों पर इनमें से किसी को भी याद किया जाता है और क्या सम्मान दिया जाता है?

D) जाट संस्कृति को बचाये और बनाये रखने के लिए संघ के पास क्या एजेंडा है?

E) धर्म के नाम पर कुर्बान होने वाले उदाहरणत: मुज़फ्फरनगर के दंगों में फंसे जाटों को छुड़वाने के लिए संघ क्या प्रयास कर रहा है? धर्म के नाम पर बलि देने वालों के पुनर्वास की संघ के पास क्या नीति है?

F) आपकी कितनी और किस स्तर की भागीदारी संघ में है, खैर यह सवाल तो इतना महत्वपूर्ण नहीं परन्तु फिर भी कोई रौशनी डालना चाहे तो इसपे भी डालें|

गैर-जाट संघी भी चाहे तो मेरे इन सवालों के जवाब दे सकता है| देखते हैं कौन संघी इन बातों के आशानुरूप जवाब दे पाता है|

बाकी गैर-संघी यानी मेरे जैसे जाट इस डिबेट में संयम और सौहार्द बनाएं रखें, ताकि एक शांतिपूर्ण और मैत्री माहौल में इन लोगों को हमारे इन बिन्दुओं पर सुना जा सके|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 24 March 2015

टैलेंट बनाम आरक्षण!


जैसे किसान के उत्पाद का दाम निर्धारित करने का आरक्षण व्यापारी जाति के पास है, जैसे किसान की भक्ति को हाईजैक करके लेबलिंग करने का आरक्षण पुजारी जाति के पास है, क्या ठीक वैसे ही व्यापारी के उत्पाद का दाम भी किसान को निर्धारित करने का आरक्षण नहीं होना चाहिए और पुजारी के दान का हिसाब-किताब करने का आरक्षण भी किसान-कमेरे को नहीं होना चाहिए?

अरे इतने सारे जाति पर आधारित आरक्षण पहले से लिए बैठे हो, और एक मात्र नौकरियों के आरक्षण पे रोते हो? नहीं शायद सही कहते हो, ...अब इस जाती आधारित आरक्षण को खत्म कर ही देना चाहिए, तो चलो पहले खत्म करो यह दोनों आरक्षण जो कि बाकी के तमाम आरक्षणों की जड़ हैं|

यह उन महानुभावों के लिए है जो यह कहते हैं कि जिसको जो काम आता है, उसको वही करना चाहिए|

अरे किसान को नहीं चाहिए व्यापारी के उत्पादों का दाम निर्धारित करने का आरक्षण या पुजारी के दान का हिसाब-किताब रखने का आरक्षण, किसान को उसके उत्पाद का दाम निर्धारित करने का आरक्षण दे दो, फिर हो जाने दो नौकरियों का आरक्षण खत्म, कोई परवाह नहीं|

अन्यथा नौकरियों में जातिगत अथवा किसी भी प्रकार का आरक्षण खत्म करने पे बोलने वाले, पहले अपना गिरेबान झांकें|

यह "तुम्हारा टैलेंट, टैलेंट, बाकियों का टैलेंट गोबर" वाली मत करो| जानते हैं नौकरियों में जैसा टैलेंट चलता है, 90% डोनेसन पे डिग्री ले, बाद में सिफारस और भाई-भतीजावाद के जरिये लगे हुए होते हैं|

और फिर आपको नौकरियों में ही आरक्षण खत्म क्यों चाहिए, आप खेतों में हल चलाने के लिए आरक्षण क्यों नहीं मांगते? आप लोग बोलो ना कि हमें भी हल चलाना है, इसलिए हमें हल चलाने का आरक्षण दो| तब पता लगे टैलेंट के दम का तो|

Monday, 23 March 2015

जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म!

हिन्दू होते हुए जो मुस्लिम के लिए बोले, वो तो हो गया 'धार्मिक सेक्युलर'; और सिर्फ हिन्दू और हिन्दुइस्म की बात करने वाला हो गया 'तथाकथित राष्ट्रवादी'|

तो ऐसे ही हिन्दू की जाति या वर्ण का होते हुए जो अपने लिए बोलने से पहले बाकी की 35 कौमों या 4 वर्णों की बात करे वो भी तो 'जातीय या वर्णीय सेक्युलर' होना चाहिए ना; और जो सिर्फ अपनी और अपनी जाति की बात करे वो ही शुद्ध रूप से राष्ट्रवादी होना चाहिए, नहीं?

जैसे 'धार्मिक सेक्युलरलिस्म' है ऐसे ही 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' है; फर्क सिर्फ इतना है कि वो धर्म के लेवल का है और यह जाति और वर्ण के लेवल का| इसलिए आज से अपने लिए बोलने से पहले बाकियों के लिए बोलने वाले 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' को भी अब खत्म कर देना चाहिए| और सिर्फ उन नश्लों से सेकुलरिज्म बढ़ाना चाहिए जो आपको अपना समझती हों और जो आपके लिए कारोबारी तौर पर व् विचारात्मक तौर पर समकक्ष हों| इस अंधे 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' को अब तिलांजलि हो| अब जमाना आ गया है सेकुलरिज्म के नाम पर धर्म के बाद इस 'जातीय और वर्णीय सेकुलरिज्म' के कीड़ों की भी केटेगरी डिफाइन करने का, और इनको तिलांजलि देने का|

जाट-दलित व् अल्पसंख्यकों के एक होने का दौर!


जाट पहले कट्टर बौद्ध थे। सम्राट कनिष्क और सम्राट हर्षवर्धन जाट थे और बहुत ही प्रसिद्ध बौद्ध सम्राट थे। लेकिन, फंडियों ने इन बौद्ध सम्राटों को अलग अलग षड्यंत्र करके नष्ट कर दिया। और इसी विखंडन का जोर था कि हरियाणा में तो आज भी "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" जैसी विनाश की धोतक कहावतें चलती हैं|

फंडियों को पता है कि जाट लोग प्राचीन बौद्ध है और तुम्हारे फंडों में कभी नहीं आएंगे| इसलिए फंडी लोग जाट आरक्षण के कट्टर विरोधी हैं। जाट अपना प्राचीन इतिहास भूले बैठे हैं और धूर्त फंडियों के बहकावे में आकर खुद को उच्चवर्णीय समझने की गफलत में डाले जा रहे हैं, जबकि वास्तविकता यह है कि हम इनकी बनाई किसी भी प्रकार की वर्ण-व्यवस्था और जाति-व्यस्था में आते ही नहीं हैं|

इनके बहकाये हुए जाट अपने काम-काज से ले के दुःख-सुख के साथी दलित भाईयों से द्वेष रखने लगे हैं और कहीं-कहीं तो उन पर अन्याय-अत्याचार कर रहे हैं। इनका फैलाया यह जहर इतना व्यापक है कि दलित भी जाट से द्वेष रखते हुए पाये जाने लगे हैं, जिसको कि तुरंत प्रभाव से खत्म करने के प्रयास होने चाहिए|

अगर हमें अपना विकास करना है तो पहले फंडियों के धार्मिक बंधनों में से बाहर आना पडेगा और दलित व धार्मिक अल्पसंख्याकों ( SC/ST/SBC/other OBC and converted minorities) के साथ एक COMMON FRONT बनाना होगा। ताकि मंडी और फंडी हमारी फूट के चलते हमारे जो अधिकार-साधन-सम्पदा-सम्पत्ति दबाये बैठे हैं, उनको इनसे लिया जा सके|

Sunday, 22 March 2015

जाट आरक्षण रद्द होने के बाद अगला कौन?


जाट आरक्षण रद्द होना, ST/SC व् OBC के लिए जश्न मनाने का नहीं अपितु सचेत हो जाने का संकेत!

क्योंकि काफी पहले से आरक्षण के खिलाफ मंडी-फंडी जो विरोधी शुर अलापते आ रहे थे, अब 'जाट आरक्षण रद्द' होने को बेंचमार्क डिसिशन (benchmark decision) मान कर गुज्जर-यादव व् अन्य OBCs के आरक्षण के साथ-साथ दलितों के आरक्षण को भी ऐसे ही तर्क दिलवा के रद्द करवाने की कोशिश करेगा, ऐसे पूरे आसार बन गए हैं|
इसलिए आप लोग जाटों के आरक्षण रद्द होने की ख़ुशी मनाने से ज्यादा इस पर सोचिये कि मंडी-फंडी के निशाने पे आप में से अगला कौन?

और इस पर आगे बढ़ने से मंडी को रोकना है तो अब आप लोग इनसे आपके (खासकर किसानी जातियां) सदियों से आपकी फसलों व् उत्पादों के विक्रय दाम निर्धारित करने का आरक्षण जो यह लोग लिए बैठे हैं, इसको लेने की आवाज उठाना शुरू कीजिये|

और इस पर आगे बढ़ने से फंडी को रोकना है तो अब आप लोग इनसे मंदिरों में आपकी जाति के प्रतिशत के हिसाब से पुजारी-महंत बनने व् इसी प्रतिशत में मंदिरों की सम्पत्ति पर अपना आरक्षण मांगना शुरू कीजिये|
वरना कहीं ऐसा ना हो कि आप लोग जाटों का आरक्षण रद्द होने की ख़ुशी में डूबे रहो और कल को पता लगे आपमें से भी किसी का रद्द हो गया, और एक दिन पूरा आरक्षण ही खत्म हो गया|

और जिस प्रकार से जाट आरक्षण के रद्द होने की मंडी-फंडी (जिनको कि इससे कोई फायदा ही नहीं होना था) तक ख़ुशी मना रहा है, कहीं यह ख़ुशी आरक्षण को पूर्णत: खत्म करवाने के उनके मंसूबे की पहली चाल के सफल होने के आयोजन में ना हो, कि जाटों का रद्द करवा दिया तो बाकियों का चुटकियों में करवा देंगे, जाटों वाले केस को बेंचमार्क मानते हुए| इसलिए जाटों से बिखरा रहने की बजाय जुड़ने की सोचें|
 

Thursday, 19 March 2015

"किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने"


(लैंड-बिल 2015 यानी गुलाम किसान)

सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|


इंकलाब और जिंदाबाद का, मिलकेँ लगा रहे नारा,
हे भगवान कौण दिन होगा, जब हो राज-काज म्हारा|
जमीं हो अपणी, आसमान पर चमकै किसानों का तारा,
मेळे लगें चिताओं पै म्हारी, हँसता रहै किसान सारा||
मुर्दाबाद जुल्म हो थारा, यें डह ज्यांगे चौकी-थाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

सर देणे की हमें तमन्ना, देखेंगें महाघोर तेरा,
वक्त आणे दे, गूँज उठैगा, पाप रूप का शोर तेरा|
चेहरे पै काळस पुत री है, खुद है मन म चोर तेरा,
चढ़-चढ़ कैं कितने गिरगे, के सदा रहगा जोर तेरा||
रळै रेत म्ह बोर तेरा, यें शमा पै जळ ज्याँ परवाने|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

वतन की इज्जत ऊंचीं हो हम इसकी आस करणीया हैं,
मंडी-फंडी हुकूमत की जड़ पाडेँ, दाहूँ नाश करणीया हैं|
किसान-कौम की आज़ादी की, हम दरखास करणीया हैं,
जीणे से ज्यादा मरणे का, हम अभ्यास करणीया हैं|
धरती-माँ के लाल हमें हैं, अपने फर्ज पुगाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

झूंम-झूंम कैं गाण लगे अब, नहीं हमें गुलाम करो,
नहीं किसान झुकै कभी भी, चाहे तुम कितणा त्रास करो|
न्यूं ही किसान चलता जावैगा, जुल्म को जालिम ख़ास करो,
'फुल्ले-भगत' टिल्ले म जा कैं, खूब जोर से अभ्यास करो||
फांसी द्यो या जन्म-कैद, लिए पहर केसरी अब बाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

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Tuesday, 17 March 2015

हर जाट का अब "जाट-देवता" बनना जरूरी हो गया है!

("मेरा दान मेरी ताकत, मेरी कंजूमर-पावर मेरा कंट्रोल" का सूत्र अपनावें|)

जाट आरक्षण को रद्द करने के आये फैसले को वापिस करवाने का सबसे अचूल-मूल तरीका और इसकी जरूरत को कानून को समझाने का रास्ता अब यही है कि सारे जाट, पुजारियों-पुरोहितों से निम्न प्रकार का असहयोग शुरू कर देवें|

हालाँकि वैसे तो आप लोग पहले से ही भारत की उन जातियों में आते हो, जो नीचे बताई हुई चीजों को सबसे कम मात्रा में करती है, परन्तु अब वक्त आ गया है उस कम को और कम करके शून्य पे ले आने का या उससे स्वरोजगार योजनाएं शुरू करने का, और वो कैसे, वो ऐसे:

1) किसी भी जगराते वाले को अपनी गाँव-गली-मोहल्ले में मत फटकने दो, जितने जगराते बुक कर रखे हैं सारे कैंसिल कर दो या करवा दो|
2) कोई गाँव में जगराता करवाये तो करवाने वाले और जगराता पार्टी दोनों से गांव में जगराते के लिए मिली सुविधाओं के बदले उन पर टोटल चंदे (इनकी निजीभाषा में कमाई) का 50% सर्विस टैक्स चार्ज करना शुरू कर दो और उसको गाँव के विकास के लिए वहीँ के वहीँ रखवा लिया जावे| क्योंकि अब जाटों को और तो कहीं नौकरी मिलनी मुश्किल होंगी, इसलिए स्वरोजगार योजना के तहत यह काम शुरू किया जावे और अपने गाँव-गली-नगरी के विकास में सहयोगी बना जावे|
3) जब तक जाट आरक्षण वापिस नहीं होता, तब तक कोई भी जाट किसी भी मंदिर-धार्मिक संस्था में दान ना देवे| और अपने-अपने गाँवों में निर्माणाधीन मंदिरों का तुरंत प्रभाव से बहिष्कार करे| उनमें अनिश्चितकाल के लिए खुद भी जाना और अपनी औरतों को भी इनमें ना जाने बारे जागरूक बनावें|
4) टोने-टोटके वालों की दुकानों पे जाना बंद कर देवें|
5) ब्याह-शादी में फेरे सिर्फ जाटू भाषा (यानी हरियाणवी या हिंदी) में करवाने शुरू करवाएं| और अग्नि की जगह गाँव के खेड़े के सात फेरे लेवें, जिससे कि आपके पुरखों-बुजुर्गों का आपको डायरेक्ट आशीष तो मिलेगा ही, हमारी अपनी संस्कृति का संवर्धन भी होगा|
6) किसी भी प्रकार का नामकरण-गृहप्रवेश-पिंडदान अपने-आप कर लेवें अन्यथा इनसे ना करवावें| क्योंकि पहले ही फसलों के कम दाम, कर्ज में डूबे जाट, कहाँ से यह आलतू-फ़ालतू के नवाबी शौक पुगाया करेंगे, अब?

हाँ इन सबके मद्देनजर किसी भी प्रकार की तोड़-फोड़ ना होने पाये|

क्योंकि आप जाट होते हो, जिनको कि भारतीय इतिहास और संस्कृति ने खुद 'देवता' कहा है, याद रखिये हम 'जाट देवता' कहलाते हैं, तो देवता की पूजा अब यह लोग करें| हम इनकी कही, बताई चीजें क्यों करें? इसलिए आज से हर जाट अपने वास्तविक देव्य रूप में आ जावें और "जाट देवता" का अपना वास्तविक रूप धारण कर लेवें|

व्यापारियों से असहयोग के साथ अब पुजारियों से भी असहयोग का वक्त है और इसके लिए हर जाट का अब "जाट-देवता" बनना जरूरी हो गया है| और इस प्रकार मैं आज से 'जाट-देवता' हुआ! - फूल मलिक

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जाट आरक्षण खत्म करना 18 मार्च को दिल्ली में होने वाले किसान आंदोलन की कमर तोडना!


(यह मंडी और फंडी की किसान समाज को बाँटें रखने की साजिश के अलावा कुछ भी नहीं)

वर्तमान सरकार ने आते ही किसानों की फसलों के दाम गिराये, यूरिया के लिए किसानों की औरतों तक की थानों में लाईन-हाजिरी हुई, फिर काला लैंड आर्डिनेंस लाये, उस पर अभी हाल ही हुई प्रकृति की ओलावृष्टि और बेमौसम बरसात की मार; यह सब प्राकृतिक और कृत्रिम कारण मिलजुल कर, कल यानी 18 मार्च को जंतर-मंतर पर किसान की आवाज बनने जा रहे थे और 1991 से टूटी चली आ रही "अजगर" समेत तमाम किसान-कमेरा वर्ग की एकता का आगाज, कल के किसान आंदोलन से होता दिख रहा था, कि मंडी और फंडी के हाथ-पाँव फूल गए और उतार दिया ना सिर्फ इन मुद्दों से ध्यान बंटवाने अपितु किसान समाज को एक ना होने देने से रोकने हेतु 'जाट आरक्षण को रद्द करने का फैसला' वो भी सुप्रीम कोर्ट के रास्ते से|

इसलिए इस वक़्त जाट आरक्षण क्यों रद्द हुआ, जाट इसको छोड़ कर, बाकी सारे किसान समाज को जोड़ के कल के होने वाले किसान आंदोलन पर ही ध्यान केंद्रित रखें तो ही इन मंडी-फंडी की साजिशों का मुंहतोड़ जवाब दिया जा सकेगा| थोड़ा सा इतना जरूर लिख दूँ कि आज के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किसान आंदोलन कैसे प्रभावित होगा| होगा यह कि जो अजगर की 24 साल पुरानी फूट थी, उसको फिर से मंडी-फंडी गैर-जाट किसानी जातियों में ले के जायेगा और उनको बहका लेगा| और गैर-जाट किसान भी जाट की ही तरह इतना भोला है कि वो शायद जाट किसान से एकजुट हो वर्तमान में किसान पर मंडराएं काले बादलों को छांटनें हेतु लड़ने की अपेक्षा कहीं जाटों के आरक्षण रद्द होने के जश्न में ना डूब जाए| और यही चाहने और पाने के लिए मंडी-फंडी ने यह तुरुप का पत्ता आज चलवाया है|

फ़िलहाल इतना ही और कहूँगा कि इन तमाम तरह के षड्यंत्रों का एक ही अचूक इलाज है और वो है "दो महीने के लिए किसान जातियों द्वारा व्यापारिक जातियों से खाने-पीने के सामान को छोड़, बाकी सारे सामान के खरीदने-बेचने का बायकाट का असहयोग आंदोलन|" - my video on how to run this 'असहयोग आंदोलन' - https://www.youtube.com/watch?v=osGdn8hPXC4

और मेरा परसों लिया "मेरा दान मेरी ताकत, मेरी कंजूमर-पावर मेरा कंट्रोल" का फैसला ना सिर्फ सही है अपितु आजीवन के लिए और भी पक्का व् दुरुस्त हो गया है| - फूल मलिक

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Monday, 16 March 2015

Paragraphic - प्रकरण-संबंधी

4) या तो हिन्दू धर्म मुझे बुद्ध की उपासना करने दे, अन्यथा बुद्ध को हिन्दू धर्म का दसवां अवतार लिखना और कहना बंद करे!

3) व्यापारियों की इस सरकार के दौर में किसान अपनी Consumer Power को पहचानें, यही एक शक्ति है जो आज किसान की दुर्गति होने से बचा सकती है|

2) फूल बनकर कभी मत जीना, जिस दिन खिलोगे टूटकर बिखर जाओगे! जीना तो पत्थर की तरह जीना, जिस दिन तराशे गए, खुदा कहलाओगे|

1) किसान से तो पशु की औकात भी ज्यादा: कोई पशु (गाय) को काटे तो उसपे 302 का मुकदमा, लेकिन कोई किसान ख़ुदकुशी कर ले तो उसके लिए 309 के तहत नामजदगी भी बंद|
 

Sunday, 15 March 2015

NH10 Movie Review!


इस मूवी को ले के जिस इंसान का दिया review प्रस्तुत कर रहा हूँ, अक्सर मुझे ना तो इसकी बातें पसंद आती हैं और ना ही इसका व्यवहार| परन्तु शायद यह फिल्म ही इतनी बड़ी बकवास थी कि मुझे पहली बार कमाल खान का किया analysis इस फिल्म से ज्यादा पसंद आया आप भी देखें, क्यों?

A rightly and firmed slap on the makers of this totally nonsense flick!

धन्यवाद कमाल खान आपने मेरी मेहनत बचा दी, वर्ना मुझे मेरी स्टेट को इस बकवास फिल्म के विरुद्ध बचाने में एक लम्बा लेख लिखना पड़ता| मतलब एक ऐसी स्टेट जो 1947 में बॉर्डर के उस पार से आये से ले के (ध्यान दें, वो अधिकतर इसी NH10 पे बसे हैं), 1984 में सिख दंगों से तंग हो के पंजाब से हरियाणा के जीटी रोड पे आन बसे और अब तीन दशक से असमी-बिहारी-बंगाली सबको रोजगार दे रही है, वो इतनी खूंखार बना के पेश की जा रही है| और इसपे भी अचम्भा तो यह कि इस हरियाणा में इन्हीं लोगों के अनुसार इतने अत्याचारी लोग होने के बावजूद भी पूरे देश, यहां तक कि मुंबई-महाराष्ट्र छोड़ के भी लोग इधर ही क्यों रोजगार कमाना, बसना, आशियाना बनाना पसंद करते हैं? कमाल तो यह है कि इनमें (यहीं रोजी-रोटी पाने वाले) से कोई हरियाणा का कुछ पॉजिटिव बोलने को तैयार नहीं|

KRK Review:

मेरा दान मेरी ताकत, मेरी कंस्यूमर पावर मेरा कंट्रोल!



 ताकि मुझ किसान को कोई लूट ना सके, मुझे लूटने की सोच ना सके, मुझे गुलाम व् बंधुआ ना बना सके|

मैं, एक किसान वंशज भारतीय किसान इतिहास के सबसे काले लैंड-आर्डिनेंस 2015 व् कर्मकांड के नाम पर बढ़ते पाखंडों से बुरी हो चली किसान कौम की दुर्दशा के मद्देनजर आज दिनांक 15/03/2015 को आधिकारिक व् सार्वजनिक तौर पर निम्नलिखित ‘आजीवन संकल्प’ लेता हूँ कि:

मैं ताउम्र किसी भी ऐसी धार्मिक सभा-संस्था-आस्था में ना दान दूंगा, ना भाग लूंगा, जो:
1) मुझे मेरे दिए दान का हिसाब-किताब ना बताती हो|
2) उस दान को कहाँ और क्यों लगाया गया, इसकी जानकारी ना देती हो|
3) उस दान के पैसे से मेरी कौम-समाज-गांव-जिले-राज्य के इतिहास और विरासत लिखने-संजोनें पे कितना खर्च किया, यह ना बताती हो व् कितना खर्च करने का लक्ष्य रखती है यह निर्धारित ना करती हो|
4) उस दान के पैसे से मेरी कौम-समाज-गांव-जिले-राज्य की संस्कृति के संवर्धन-उत्थान-प्रचार के लिए कितना खर्च करती है, यह ना बताती हो व् ऐसा कोई लक्ष्य ना रखती हो|

मैं ताउम्र किसान समाज को प्रेरित व् जागृत करता रहूँगा कि:
1) वो अपनी औलाद को व्यापार जरूर सिखाये, अर्थात भावनात्मकता से पहले पैसा-उन्मुख (money oriented) बनना सिखाएं|
2) उसको त्रिभाषी (हिंदी, इंग्लिश व् अपनी जन्मज भाषा/बोली) बनाएं और इसको गलत बताने वालों की आलोचना करना सिखाएं|
3) अपने उत्पाद यानी फल-फसल-फूल का विक्रय मूल्य खुद निर्धारित करने का हक लेवे|
4) अपनी खेती का व्यापारीकरण कैसे किया जाए, इस पर तब तक चिंतन-मंथन करते रहें, जब तक कि एक दिन यह हासिल ना हो जाए|
5) साल में दो हफ्ते का "किसान उपवास" रखें; जिसमें दो हफ्ते तक बाजारों से सिवाय खाने के बाकी किसी भी प्रकार का सामान ना ही तो खरीदा जावे, और ना ही बेचा जावे|

अनियंत्रित और बिना निगरानी के दान से फंडी अनियंत्रित होता है और बिना सोची समझी स्वभिमान रिक्त खरीदारी से मंडी अनियंत्रित होता है| और इन दोनों बातों की अनुपस्थिति में यह दोनों इतना दुःसाहस पा जाते हैं कि किसान को भूमि अधिग्रहण आर्डिनेंस 2015 जैसे बिल और कटटरता-धर्मान्धता के नाम पर भटकाए व् गुलाम बनाये रखने के गौरख-धंधे बढ़ाते ही चले जाते हैं| यह दोनों किसान के बाड़े के वो खूंखार व् उन्मादी पशु हैं, जिनको अगर खूंटे से बाँध के ना रखा जाए, तो दूसरे शांत-शरीफ पशुओं को भी नुक्सान पहुंचाने से बाज ना आवें|

इसके साथ मैं हर किसान-कमेरे की संतान को भी इन संकल्पों को धारण करने का आग्रह करता हूँ| इन संकल्पों बारे आपके संदेह-सुझाव हेतु मैं आपसे चर्चा करने को उपलब्ध हूँ|


- फूल मलिक, निडाना नगरी, जिला जींद, हरियाणा!

जय यौद्धेय! जय माँ हरियाणवी! जय दादी भारती!

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