Thursday 19 March 2015

"किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने"


(लैंड-बिल 2015 यानी गुलाम किसान)

सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|


इंकलाब और जिंदाबाद का, मिलकेँ लगा रहे नारा,
हे भगवान कौण दिन होगा, जब हो राज-काज म्हारा|
जमीं हो अपणी, आसमान पर चमकै किसानों का तारा,
मेळे लगें चिताओं पै म्हारी, हँसता रहै किसान सारा||
मुर्दाबाद जुल्म हो थारा, यें डह ज्यांगे चौकी-थाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

सर देणे की हमें तमन्ना, देखेंगें महाघोर तेरा,
वक्त आणे दे, गूँज उठैगा, पाप रूप का शोर तेरा|
चेहरे पै काळस पुत री है, खुद है मन म चोर तेरा,
चढ़-चढ़ कैं कितने गिरगे, के सदा रहगा जोर तेरा||
रळै रेत म्ह बोर तेरा, यें शमा पै जळ ज्याँ परवाने|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

वतन की इज्जत ऊंचीं हो हम इसकी आस करणीया हैं,
मंडी-फंडी हुकूमत की जड़ पाडेँ, दाहूँ नाश करणीया हैं|
किसान-कौम की आज़ादी की, हम दरखास करणीया हैं,
जीणे से ज्यादा मरणे का, हम अभ्यास करणीया हैं|
धरती-माँ के लाल हमें हैं, अपने फर्ज पुगाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

झूंम-झूंम कैं गाण लगे अब, नहीं हमें गुलाम करो,
नहीं किसान झुकै कभी भी, चाहे तुम कितणा त्रास करो|
न्यूं ही किसान चलता जावैगा, जुल्म को जालिम ख़ास करो,
'फुल्ले-भगत' टिल्ले म जा कैं, खूब जोर से अभ्यास करो||
फांसी द्यो या जन्म-कैद, लिए पहर केसरी अब बाणे|
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

सर पे कफ़न बाँध कैं आये, हम आज़ादी के दीवाने,
किसानों को आज़ाद कराएं, मस्ती में हम मस्ताने|

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