Tuesday 17 March 2015

हर जाट का अब "जाट-देवता" बनना जरूरी हो गया है!

("मेरा दान मेरी ताकत, मेरी कंजूमर-पावर मेरा कंट्रोल" का सूत्र अपनावें|)

जाट आरक्षण को रद्द करने के आये फैसले को वापिस करवाने का सबसे अचूल-मूल तरीका और इसकी जरूरत को कानून को समझाने का रास्ता अब यही है कि सारे जाट, पुजारियों-पुरोहितों से निम्न प्रकार का असहयोग शुरू कर देवें|

हालाँकि वैसे तो आप लोग पहले से ही भारत की उन जातियों में आते हो, जो नीचे बताई हुई चीजों को सबसे कम मात्रा में करती है, परन्तु अब वक्त आ गया है उस कम को और कम करके शून्य पे ले आने का या उससे स्वरोजगार योजनाएं शुरू करने का, और वो कैसे, वो ऐसे:

1) किसी भी जगराते वाले को अपनी गाँव-गली-मोहल्ले में मत फटकने दो, जितने जगराते बुक कर रखे हैं सारे कैंसिल कर दो या करवा दो|
2) कोई गाँव में जगराता करवाये तो करवाने वाले और जगराता पार्टी दोनों से गांव में जगराते के लिए मिली सुविधाओं के बदले उन पर टोटल चंदे (इनकी निजीभाषा में कमाई) का 50% सर्विस टैक्स चार्ज करना शुरू कर दो और उसको गाँव के विकास के लिए वहीँ के वहीँ रखवा लिया जावे| क्योंकि अब जाटों को और तो कहीं नौकरी मिलनी मुश्किल होंगी, इसलिए स्वरोजगार योजना के तहत यह काम शुरू किया जावे और अपने गाँव-गली-नगरी के विकास में सहयोगी बना जावे|
3) जब तक जाट आरक्षण वापिस नहीं होता, तब तक कोई भी जाट किसी भी मंदिर-धार्मिक संस्था में दान ना देवे| और अपने-अपने गाँवों में निर्माणाधीन मंदिरों का तुरंत प्रभाव से बहिष्कार करे| उनमें अनिश्चितकाल के लिए खुद भी जाना और अपनी औरतों को भी इनमें ना जाने बारे जागरूक बनावें|
4) टोने-टोटके वालों की दुकानों पे जाना बंद कर देवें|
5) ब्याह-शादी में फेरे सिर्फ जाटू भाषा (यानी हरियाणवी या हिंदी) में करवाने शुरू करवाएं| और अग्नि की जगह गाँव के खेड़े के सात फेरे लेवें, जिससे कि आपके पुरखों-बुजुर्गों का आपको डायरेक्ट आशीष तो मिलेगा ही, हमारी अपनी संस्कृति का संवर्धन भी होगा|
6) किसी भी प्रकार का नामकरण-गृहप्रवेश-पिंडदान अपने-आप कर लेवें अन्यथा इनसे ना करवावें| क्योंकि पहले ही फसलों के कम दाम, कर्ज में डूबे जाट, कहाँ से यह आलतू-फ़ालतू के नवाबी शौक पुगाया करेंगे, अब?

हाँ इन सबके मद्देनजर किसी भी प्रकार की तोड़-फोड़ ना होने पाये|

क्योंकि आप जाट होते हो, जिनको कि भारतीय इतिहास और संस्कृति ने खुद 'देवता' कहा है, याद रखिये हम 'जाट देवता' कहलाते हैं, तो देवता की पूजा अब यह लोग करें| हम इनकी कही, बताई चीजें क्यों करें? इसलिए आज से हर जाट अपने वास्तविक देव्य रूप में आ जावें और "जाट देवता" का अपना वास्तविक रूप धारण कर लेवें|

व्यापारियों से असहयोग के साथ अब पुजारियों से भी असहयोग का वक्त है और इसके लिए हर जाट का अब "जाट-देवता" बनना जरूरी हो गया है| और इस प्रकार मैं आज से 'जाट-देवता' हुआ! - फूल मलिक

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