जी हाँ, जहाँ दूसरी जातियों के राजा-रजवाड़े वर्ण व् जातिव्यवस्था के
परिचायक धर्माधीसों के प्रभाव के चलते ऐसा करने की कभी सोच भी नहीं सके
होंगे या सकते थे, वहीँ विश्वप्रसिद्ध भारतवर्ष की एक मात्र अजेय-अपराजेय
रियासत भरतपुर ने यह साहस किया था और एक दलित को अपने राज्य के खजाने की
देखरेख का मुखिया बनाया था|
धर्मनिरपेक्षता व् जातिनिरपेक्षता का
यह अदम्य उदाहरण एशिया के ओडीसियस व् जाटों के प्लूटो कहे जाने वाले आजीवन
अपराजित अमर प्रतापी महाराजा सूरजमल सिनसिनवार जी ने अपने राज्य में एक
गुज्जर को सेनापति, एक दलित को खजांची, जाटों व् अन्यों को
राज-सलाहकार समिति में रख के स्थापित किया था|
वहीँ मुग़लों से
आजीवन लोहा लेने व् उनसे आजीवन अपराजित रहने पर भी, ‘जाट कौम के इंसानियत
धर्म’ को सब मानव स्थापित धर्मों से सर्वोपरि रखते हुए स्व-राज्य में
मंदिरों के साथ-साथ स्व-राजधानी में अपनी देखरेख में मस्जिद का निर्माण भी
करवा अपनी धार्मिक सहिष्णुता का भी परिचय दिया था| और सिद्धांत स्थापित
किया था कि किसी से आपका राजनैतिक, सामरिक, आर्थिक झगड़ा अथवा मतभेद हो सकता
है, परन्तु धार्मिक नहीं|
क्या पुरखे थे मेरे, क्या अदम्यता थी,
क्या साहस था, क्या शौर्य था और क्या न्यायकारी थे; और यही जाट धर्म (जाट
को जाति ना बोल के इसीलिए धर्म बोलता हूँ क्योंकि इसने इंसान के बनाये
धर्मों से भी सदा इंसानियत के धर्म को सर्वोपरि रखा) की सबसे बड़ी पूंजी रही
है| जो दूरदर्शी, सच्चा और पहुंचा हुआ जाट हुआ, उसने इंसानियत धर्म से बड़ा
ना कोई धर्म पाला और ना ही सत्ता| और इसीलिए ऋषियों-साधुओं के मुख से
'जाट-देवता' कहलाया और कहलाया कि, 'अनपढ़ जाट पढ़े जैसा, और पढ़ा हुआ जाट खुदा
जैसा|' जाट अगर रूढ़िवादी जातिव्यवस्था और वर्णव्यवस्था के बहकावे में ना
पड़े तो इससे बड़ा मानवीय धर्म रक्षक व् पालक कोई नहीं|
जाट इतिहास
बताता है कि जाट ने इंसानियत के आगे ना किसी धर्मगुरु की सुनी ना राजगुरु
की और ना सत्ता अथवा शक्ति की| फिर भले ही इस पालना हेतु लाख अपनों के ही
हमले, उजड़ने, तान्ने व् बिखरने सहे हों| और यह सिलसिला धुर जाट के आदिकाल
से चल जाट महाराजा हर्षवर्धन बैंस से होते हुए खापों और जाट शासकों से होता
हुआ, आधुनिक युग के जाट राजनीतिज्ञों जैसे कि सर छोटूराम, सर फजले हुसैन,
सर हिज्र खाँ तिवाना, चौधरी चरण सिंह, सरदार प्रताप सिंह कैरों, ताऊ
देवीलाल और बाबा महेंद्र सिंह टिकैत तक अविरल चलता आया|
हाँ बाबा
टिकैत के जाने के बाद से समाज इस परम्परा का अपना नया उत्तराधिकारी ढूंढ
रहा है| ऐसा उत्तराधिकारी जो सर्व-समाज को इन नए-नए उभरे तथाकथित धर्म और
राष्ट्र के स्वघोषित राष्ट्रवादियों के गिद्दी इरादों से बचा; वर्ण, जाति,
नश्ल व् धार्मिक द्वेष से निकाल इंसानी धर्महीनता पर ला, इंसानी धर्म पे
चला सके|
जिससे कि फिर कोई दादावीर धूला भंगी जी तैमूरलंगी जंग में
सर्वखाप-सेना का उपसेनापति बन सके, फिर कोई दादावीर मोहर सिंह बाल्मीकि
जी 1529 में चित्तौड़गढ़ की रक्षा हेतु सर्वखाप-सेना का सहायक सेनापति बन
राणा सांगा की मदद को सर्वखाप-सेना ले जावे, अथवा फिर कोई दादावीर मातेन
बाल्मीकि जी की तरह सर्वखाप आर्मी का राष्ट्रीय मल्लयुद्ध प्रशिक्षक
नियुक्त होवे| कम से कम मेरे जैसे कौम के जागरूक तो ऐडी उठा-उठा भविष्य के
गर्भ में झाँक बाट जोह रहे हैं कि कब फिर से कोई बाबा टिकैत के स्टेज से
'अल्लाह-हू-अकबर' नारा गूंजे और भीड़ 'हर-हर महादेव' दहाड़े; स्टेज से
हल्कारा आवे 'हर-हर-महादेव' तो भीड़ 'अल्लाह-हू-अकबर' से आस्मां गूंजा दे|
मेरे उन तेजस्वी-ओजस्वी पुरोधाओं की ओर देखता हूँ तो आज के समाज की हालत
देखकर सिहर जाता हूँ| कहाँ तो वो लोग थे जो दुश्मन को भी इस तरह खुद में
रमा लेते थे कि अल्लाह बोलो या महादेव कोई फर्क ही नहीं पड़ता था और कहाँ यह
आज वाले कि वो उसकी मस्जिद की अरदास सुनके भड़के तो वो उसके मंदिर की आरती
पे बिफरे| आखिर राष्ट्रवादिता यह तो नहीं हो सकती जो अपनी ही जनता में
अविश्वास, अराजकता, आंतक, घृणा व् द्वेष के जहर डाल उसको ना सिर्फ धार्मिक
वरन जातीय मतभेद की भट्टी में झोंकवा दे?
दलित हो या जाट, मुस्लिम
हो या हिन्दू, दोनों एक बार खाप और जाट के साथ आपके इतिहास में झाँक के
देखें तो पाएंगे कि इतनी गलबहियां डाल के रणभूमियों से ले रैलियों में
वीर-रस और आल्हे दूसरी कौमों ने ऐसे आपस में मिलके शायद ही कभी गाये हों,
जैसे आप लोगों ने गा रखे हैं| इसलिए:
मत बनने दो नए नागौर और अटाली,
दे मारो राष्ट्रवादियों के सर पे टाल्ली|
यह इतिहास ले जाओ बीच अपनों के,
वर्ना धर्म के अंधे, घरों बुला दें रुदाली||
अंत में स्टार न्यूज़ का कोटि-कोटि धन्यवाद! आपने पहली बार मीडिया में भारत
की सबसे गौरवशाली रियासत बारे प्रशंसनीय डाक्यूमेंट्री पेश करी है| और सही
मायनों में यही डॉक्यूमेंट्री इस लेख की प्रेरणा बनी, आप भी एक बार जरूर
देखें|
Link: https://www.youtube.com/watch?v=sfyFIK_D2hs&sns=fb
लेख-सार: किसी से आपका राजनैतिक, सामरिक, आर्थिक झगड़ा अथवा मतभेद हो सकता है, परन्तु जातीय व् धार्मिक नहीं|
जय योद्धेय! - फूल मलिक
Video of Star News Report: