Saturday, 31 October 2015

जाट-जट्ट अलग कब कैसे हुए?

बंटना बहुत आसान है और हमें बांटने वाले भी तैयार बैठे है | जाट जाति के साथ ऐसा ही हो रहा है , कभी कोई इन्हें धर्म के नाम पर बाँट देता है तो कभी कोई बोली क्षेत्र के आधार पर और ये बावले जाट बांटने वालों की मान बहुत जल्दी बंट भी जाते है | कभी कोई आएगा और इनसे कहेगा तुम जाट पंजाब के जट्ट से अलग हो , तुम जाट हो वो जट्ट है और ये बावले मान भी लेते है , यह नहीं सोचते की यह सिर्फ उच्चारण का फर्क है | ये बावले कभी इतिहास में झांक कर नहीं देखते है , इतिहास में झांक कर देखोगे तो पाओगे की हमारी जितनी भी छोटी बड़ी जाट / जट्ट रियासते थी सबकी आपस में रिश्तेदारियाँ थी | उदाहरण के तौर पर -

भरतपुर रियासत की कई रिश्तेदारियाँ पंजाब के सिक्ख जाटों से थी जैसे :- महाराजा जसवंत सिंह की शादी महाराजा पटियाला की बेटी बिशन कौर से हुई , महाराजा ब्रजेन्द्र सिंह की शादी फ़रीदकोट के कुँवर गजीनद्र के बेटी से हुई , राव राजा गिरिराज सिंह मथुरा से दो बार सांसद भी रहे की शादी कपूरथला की महाराजकुमारी सुशीला देवी से हुई ...
 

धोलपुर रियासत की रिश्तेदारियाँ :- राणा भगवंत सिंह के बेटे कुलेन्द्र सिंह की शादी महाराजा पटियाला नरेंद्र सिंह की बेटी बसंत कौर से हुई , इनका एक बेटा हुआ जिसका नाम राणा

निहाल सिंह जिनकी शादी लाहौर के पास पंडरिगनेशपुर के शाह देव सिंह के बेटी से हुई , इनके बेटे राणा राम सिंह की शादी महाराजा नाभा हीरा सिंह की बेटी से हुई , इसी रियासत के राजा हेमंत सिंह महाराजा नाभा प्रताप सिंह के बेटे है जिन्हें उनके नाना ने गोद ले लिया था |
 

हाथरस रियासत :- राजा महेंद्र प्रताप सिंह की शादी जाट सिक्ख रियासत जींद की राजुकमारी बलवीर कौर से हुई |
 

जींद रियासत :- राजा रघुबीर सिंह की शादी दादरी के चौधरी जवाहर सिंह की बेटी से हुई |
 

नाभा रियासत :- राजा प्रताप सिंह की शादी धोलपुर के महाराजा राणा उदयभानु सिंह की बेटी उर्मिला देवी से हुई |

यह पूरी लिस्ट तैयार करने लगा तो बहुत लंबी हो जाएगी इसलिए मोटे तौर पर कुछ उदाहरण दिये है , कहने का मतलब सिर्फ इतना है कि ये जितनी भी जाट व जट्ट सिक्ख रियासते थी इन सबकी आपस मे रिश्तेदारियाँ थी , फिर हम जाट - जट्ट अलग कब कैसे हुए और किसने किए ?

Author: राकेश सांगवान

Thursday, 29 October 2015

उच्च शिक्षा में आरक्षण खत्म करने बारे कल आये सुप्रीम कोर्ट के फरमान से अचम्भित ना होवें, यह अपेक्षित था!

सर छोटूराम ने एक रैली के दौरान उनके एक अभिभाषण में कहा था कि उन्होंने 'मंडी-फंडी' के सिस्टम को इस हद तक विघटित कर दिया है कि आपको जो सीधी पावर और सहूलियत मिली है अब आगे उसको रोकने और आपसे छीनने हेतु और हम 85 प्रतिशतों की एकता बिखेरने हेतु 'मंडी-फंडी' कोर्टों का सहारा लिया करेगा| साथ ही उन्होंने कहा था कि यही इनके हाथ में आखिरी हथियार होगा, परन्तु मैंने पूरे यूनाइटेड पंजाब (आज के हरयाणा-पंजाब-हिमाचल और पाकिस्तान वाला पंजाब) में इतना ग्राउंड वर्क कर दिया है कि 'मंडी-फंडी' का यह कोर्ट वाला हथियार भी सफल नहीं होगा, वरन उल्टा हमें सत्ता तक पहुँचाने में सक्षम रहा करेगा| बशर्ते किसान-दलित एक रहे तो|

कितने दूरदर्शी थे सर छोटूराम कि 1937 में पूर्वानुमानित उनकी बात आज यथावत सत्य हो रही है|

पहले तीन बार लैंड आर्डिनेंस ला के सर छोटूराम ने जो तमाम जातियों और धर्मों के किसान सीधे-सीधे जमीन के मालिक बनाये थे वो मल्कियत छीनने की कोशिश की, परन्तु एक ना चली| अब बाबा साहेब आंबेडकर और सर छोटूराम के दिए आरक्षण को समाप्त करने के हर हथकंडे अपना रहे हैं, परन्तु इसमें भी कामयाब नहीं होंगे|

जय यौद्धेय!

फूल मलिक

Wednesday, 28 October 2015

मैच्योर और इम्मैच्योर राजनीति में फर्क!

अमेरिका में बाप-बेटे जॉर्ज बुश की जोड़ी राष्ट्रपति बनती है, लोग इसमें कोई वंशवाद नहीं ढूंढते और ना ही राजनैतिक प्रतिध्वंधी इसमें वंशवाद उछालते|

जबकि भारत में कांग्रेस हो, भाजपा हो, कम्युनिस्ट हों चाहे जो दल हो, खुद तो ऐसे एंगल्स को एक्सपोज करेंगे ही करेंगे, साथ-साथ जनता भी उनके सुर-में-सुर मिलाने लग जाती है|

ताज्जुब है कि जाति और वर्ण-व्यवस्था में जीने वाले हम लोग, जो जिस कुल-कर्म-वर्ण-जाति-लिंग में पैदा हुआ है उसके लिए उसी कर्म की वकालत करने वाले हम लोगों को इलेक्शन के जरिये चुन के, आने वाले एक राजनैतिक परिवार से दूसरी पीढ़ी का नेता तक मंजूर नहीं होता?

क्या जाति और वर्णव्यवस्था से खत्म करवा दिया इस सिस्टम को जो लेते हो और पॉलिटिक्स में ही इस बीमारी को उठाये रहते हो? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि एक पुजारी चरित्रवान और योग्य है कि नहीं, उसका बेटा-पोता भी उसके जितना ही चरित्रवान और योग्य है कि नहीं? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि एक व्यापारी सूदखोर, जमाखोर व् मिलावट का सामान बेचने वाला तो नहीं है, या उसका बेटा-पोता इस मामले में कैसा है? कभी यह चेक क्यों नहीं करते कि अफसर लोग भाईभतीजावाद, जातिवाद, घोटालेबाज है कि नहीं?

जो देश की राजनीति का चरित्र बनाने और बनने के कारक हैं, देश की राजनैतिक पौध कैसी होगी, इन ऊपर बताये इन कारकों पर भी नजर रखो तो अमेरिका की तरह बिना दुविधा के एक ही वंश के दो बाप-बेटे राष्ट्रपति की पोस्ट पर चल जायेंगे|

असल सच्चाई यही है जातिवाद और वर्णवाद से पीड़ित हमारा समाज और उसकी नब्ज जानने वाले नेता, जानबूझकर ध्यान पलटते हैं जनता का| अरे किसी का बेटा-बेटी नेता बनेगा या नहीं यह तो आपको ही वोट के जरिये निर्धारित करना है ना, वो कोई धक्के से तो जा के नहीं बैठता किसी राजनैतिक कुर्सी पर, जनता आदेश देती है, चुनती है तो ही तो वहाँ तक पहुँचता/पहुंचती है?

यह ना ही तो दादा-लाही खेती है, ना ही दादा-लाही पंडताई, ना ही दादा-लाही साहूकारी, ना ही दादा-लाही दुकानदारी, ना ही दादा-लाही भंगारी, ना ही दादा-लाही दलिताई कि मन हो ना हो झेलनी ही पड़ेगी|

अगर चुनावी प्रक्रिया में कोई झोल है तो उसको ठीक करवाया जाने पे जोर दिया जाना चाहिए, वरना यह कोई श्राप थोड़े ही है कि कोई किसी राजनेता की औलाद हो गया तो वो राजनेता नहीं बन सकता|

फूल मलिक

पहले भागवत अब सुप्रीम कोर्ट!

लगता है हर कोई मोदी के सुवाद लेने पे आमादा है।

अभी दो दिन पहले ही मोदी ने मोहन भागवत के आरक्षण पर दिए ब्यान से मचे बवाल को शांत करने हेतु बिहार रैली में कहा था कि "मैं आरक्षण बचाने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दूंगा।"

लो मोदी जी, आज सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिए हैं कि उच्च शिक्षा में आरक्षण बंद हो। अब देखते हैं आप वाकई में अपनी जान की बाजी लगाते हो या यह भी एक जुमला ही साबित होगा।

वैसे क्या दिन आ गए हैं जनाब, यह लोग आपके जुमलों को दो दिन भी नहीं चलने दे रहे? क्या मतलब सुप्रीम कोर्ट भी आपसे तंग आ चुका है या मोहन भागवत सुप्रीम कोर्ट के जरिये अपनी बात को अंदरखाते सच साबित करवा रहे हैं?

रै भुंडू, भाई उस आपणे कुलछत्र आळे राजकुमार सैनी साहब ताहीं पुहंचाहिए भाई इस खबर नैं।

फूल मलिक

Monday, 26 October 2015

हिंदुत्व के होने वाले ग्यारहवें अवतार श्रीमान कल्की महाराज, अब अवतार ले ही लो तो शायद हिन्दू धर्म की गरिमा और मर्यादा बचे!

नफरत की ऐसी हद कि एक औरत की कब्र खोदकर उससे बलात्कार किया? दिल्ली से महज पचास किलोमीटर दूर गाजियाबाद के तलहटा गांव में कब्र से निकालकर इस घटना को अंजाम दिया गया| अरे धर्म की ना सही मानवता की ही शर्म कर लो|

"हो रहा विकास और अच्छे दिन" का एक और माइलस्टोन अर्जित किया गया| मुझे और मेरे जैसे वोटरों को तो आपके विकास की इस परिभाषा का पहले से ही पता था, शायद आपको... वोट देने वाले भी समझे होते तो धर्म के नाम पर बदले लेने हेतु चाहे जो कुछ हो रहा होता परन्तु लाशों से बलात्कार तो कम से कम नहीं होता|

अब किस मुंह से संत और प्रचारक विश्व पट्टल पर हिन्दू धर्म की साहिन्षुणता और मर्यादा की शेखीयाँ बघारा करेंगे| मैंने भी दो बार जर्मनी-फ्रांस-इंडिया क्रॉस-कल्चरल सेमिनारों में हिन्दू धर्म की बढ़ाई पे प्रेसेंटेशन्स दी हैं| परन्तु अब लगता है कि अगली बार ऐसा करते हुए ऑडियंस देख के सोचना पड़ेगा कि कहीं कोई ऐसी घटनाओं का हवाला दे प्रेजेंटेशन देते वक्त मेरा मुंह बंद ना करवा दे|

A potential source behind preparing such maniacs: https://www.youtube.com/watch?v=JJtfOnI-6rM

फूल मलिक

जातिवाद क्या होता है?

अपनी जाति पर गर्व करना, उसकी सकारात्मकता का प्रचार करना जातिवाद नहीं होता, अपितु दूसरे की जाति से अपनी जाति की प्रतिस्पर्धात्मक तुलना करना, दूसरे की जाति के बारे बिना वजह भला-बुरा कहना, उसके विरुद्ध षड्यंत्र रचना, उसके बारे नकारात्मक प्रचार करना जातिवाद होता है|

जातिवाद यह नहीं है जो मैं जाट के बारे उपर्लिखित परिभाषा की परिधि में रहते हुए लिखता हूँ, अपितु जातिवाद वह है जो मीडिया जाट (साथ ही खाप को भी लपेटता है) के बारे बरतता है, जातिवाद वह है जो खट्टर साहब जाट के बारे बोलते हैं, जातिवाद वह है जो राजकुमार सैनी जाट के बारे बोलते हैं, जातिवाद वह है जो मोदी हरयाणा में चुनाव-प्रचार करते हुए जाट के बारे बोलते हैं|

इतनी बड़ी-बड़ी हस्तियों और ज्ञानियों द्वारा जाट जाति की छवि, समाज में उसके ऐतिहासिक-सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक-आध्यात्मिक योगदानों और अस्तित्व पर प्रहारों को बिना उनकी जातियों को उनकी तरह कटघरे में खींचे, उनको जवाब देना और अपनी जाति का सकारात्मक पक्ष समाज के आगे रखना जातिवाद कैसे हो सकता है?

एक मुख्यमंत्री, एक प्रधानमंत्री, एक एम.पी. और एक खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहने वाला लगभग समस्त समूह अगर जातिवाद करे तो बोलना बनता है, श्रीमान| आम लोग बोलें तो मायने नहीं रखता परन्तु ऐसे ओहदों और किरदारों पर बैठे लोग बोलें तो डैमेज कंट्रोल जितना बोलना तो बनता ही है|

ऐसा इंसान अथवा समूह सिर्फ मेरा तो क्या समाज में किसी का भी शुभचिंतक नहीं हो सकता| क्योंकि जब वो किसी समाज पे ऊँगली उठाता है तो सैंकड़ों-हजारों उँगलियाँ अपने समाज पे भी खड़ी करवा लेता है, कम से कम प्रश्नात्मक बोहें तो जरूर तनवा लेता है| और मैंने तो फिर भी किसी के समाज पे उँगलियाँ नहीं उठाई, सिर्फ वही कहा जो ऐसी परिस्थिति में कहना बनता है|

इसलिए मेरे मुंह से जाट शब्द निकलते ही चील-कव्वों की भांति झपटने से पहले यह जरूर देखो कि इसने सिर्फ कहने वाले को जवाब देते हुए अपना बचाव किया है, तुम्हारा दुष्प्रचार नहीं|

फूल मलिक

Relation of Jat and Indian Media!

Suppose if one man kills or querrels another somewhere in India.

Scenario 1: If one was non-jat hindu and other a muslim

Journalist rings the editor or his/her media office

Editor: Which caste from Hindu side?
Journalist: Sir, non-jat hindu.
Editor: Keep it Hindu versus Muslim in reporting. Example: All incidents where Jat or Jats were not a part.

Scenario 2: If one was hindu jat and other a muslim
Editor: Make it jat versus muslim and keep the word hindu apart from it in reporting, sending OB Van. Example: Muzaffaranagar riots

Scenario 3: If both were hindus but one dalit and another a jat
Editor: Make it crush of dalits by jat samaj and make it as big as much possible; add the KHAP angle too, sending OB van, informing other media houses fellows, leftists, ngos etc too to reach on the spot. Making sure that international english press covers it in bold coverage. Examples: Mirchpur, Gohana etc.

Scenario 4: If both were hindus but one dalit and another non-jat
Editor: Keep it minimal as a mere rivalry between two families only. Example: Sanped, Faridabad etc.

Phool Malik

भारतीय सेना, सविंधान और सुप्रीम कोर्ट को ठेंगा दिखाती है यह तस्वीर!


इस तस्वीर को खुद हिन्दू होने के पहलु से न्यूट्रल हो के देखूं तो आरएसएस और आईएसआईएस में क्या फर्क करूँ, बताने वालों का शुक्रिया?

यह तस्वीर पिछले हफ्ते इस फोटो में दिख रहे महानुभावों द्वारा किये गए मार्चपास्ट की हैं| मैं इसको देख के ना ही तो विचलित हूँ, ना ही प्रभावित और ना ही अचम्भित अपितु ऐसी हरकतों से विश्वपट्टल पर हिंदुत्व की नई उभरती छवि को ले मंथन में हूँ|

क्या मैं एक सवैंधानिक राष्ट्र जिसकी सुरक्षा का जिम्मा बाकायदा आधिकारिक भारतीय सेना का है, उसके अस्तित्व को नकार के इस तस्वीर को वैध मान लूँ? या भारतीय पुलिस जिसके कंधों पर देश की आंतरिक सुरक्षा का जिम्मा है, उसके अस्तित्व को नकार के इसको वैध मान लूँ? कि अब इस देश में भारतीय सेना और पुलिस दोनों पंगु हो गई और इसलिए इन्होनें हथियार उठाये हैं?

फिर ऐसी बात है तो मैं बधाई देता हूँ इन लोगों को और आह्वान करता हूँ भारत सरकार को कि कम से कम एक बार भारतीय सेना को छुट्टी दे के, देश की सीमाओं पर इन महानुभावों को तैनात कर दिया जाए| साल-छ महीने इनकी उपयोगिता परखी जाए और यह सेना के बराबर या बेहतर उतरते हैं तो फिर देश की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए देश की सेना की जगह आरएसएस को ही अधिग्रहित कर लिया जाए|

वरना कोई माने या ना माने परन्तु यह लोग, विदेशों में घूम-घूम के सभाएं-कर-करके छवि बनाने की प्रधानमंत्री की सारी कोशिशों पर साथ-साथ पानी फेर रहे हैं| जितना भी कॉर्पोरेट वर्ल्ड का इंडिया है वो भली भांति जानता है कि ग्लोबल कॉर्पोरेट ही नहीं अपितु सारा पश्चिम भी इन लोगों की इन हरकतों को बड़ी बारीकी से देख रहा है| ऐसी हरकतों के साथ आप यूएनओ में स्थाई सीट मिलना तो दूर की बात अपितु इस्लामिक राष्ट्रों की भांति उससे तो कोसों दूर जा ही रहे हो साथ-साथ हिन्दू धर्म को आतंकवाद का चेहरा बना के परोस रहे हो|

और इतने भोले तो आप हो नहीं कि विश्व सिर्फ इस्लाम द्वारा ऐसे खुले में हथियार प्रदर्शन को ही आतंकवाद कहेगा और आप लोगों को इसमें रियायत दे देगा|

आरएसएस और बीजेपी से इतना ही कहूँगा कि तुम्हें अपनी दबंग छवि बनाने हेतु ऐसे हथियार उठा के वीरता के ढोंग करने की आवश्यकता नहीं, अपितु जाटों को आदर-सम्मान से पकड़े रहो, उतना ही काफी है| जाट की विचारधारा की भांति लोकतान्त्रिक व् सभी जाति-धर्मों के प्रति सहिष्णु बने रहो, वही काफी है| हरयाणा और तमाम जाटलैंड में जो तुम जाट-बनाम नॉन-जाट के अखाड़े खोले हुए हो उनको बंद कर दो, उतना ही काफी है|

फूल मलिक

 

बाजैंगी एड, उठैंगी धणक, गूँजेंगी बीन, नाचैंगे छैल!

ब्रज से ले कुरु और मरू से ले दोआब, हरयाणे के अट्टहासों का गजब उमड़ैगा सैलाब।
27 तैं 30 अक्टूबर कुवि कुरुक्षेत्र माह, जाटू अल्हड़ता निसरैगी ला ख़्वाबां कैं पाँख।।

हरयाणवी संस्कृति, सभ्यता और लोक-कला के सबसे बड़े समागम के साक्षी बनना व् इसको आत्मसात करना ना भूलें!

विशेष:
1) आशा है कि हरयाणवियों को कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर कहने वाले बेगैरत अपना आत्मसम्मान कायम रखते हुए, इस समागम से दूर रहेंगे।
2) काफी साहित्यकारों व् इतिहासकारों ने हरयाणवी सभ्यता को जाटू सभ्यता का नाम दिया है, इन दोनों शब्दों को एक दूसरे का धोतक कहा है। इसलिए यहाँ इस शब्द का प्रयोग किसी जाति का नहीं अपितु सभ्यता और संस्कृति का सूचक है। संकुचित दिमाग के लोग इसमें जात-पात ना ढूंढें।

जय यौद्धेय! - जय हरयाणा! - जय हरयाणवी! - जय हरयाणत!

फूल मलिक








 

Friday, 23 October 2015

हरयाणा में आजकल खटटर साहब कितना नाम कमा रहे हैं इसकी एक मिसाल एक मित्र ने कुछ इस तरह दी!


हरियाणा में सरकार का भुंडा हाल हो रया सै... जै घरां काटड़ा भी चूंग जा तो भी न्यू कहवैंगे... "अक ले बै ओ चूँग गया खट्टर!"

खट्टर साहब सुन रहे हो, आपने हर्याणवियों को कंधे से ऊपर कमजोर ठहरा दिया तो देखो हर्याणवियों ने आपको क्या बना डाला|
...

शब्दावली:
काटड़ा: भैंस का बच्चा!
चूँग जा: रस्सा तुड़वा के अपनी माँ का दूध पी जाये तो!

विशेष: बुरा नहीं मानने का यह हरयाणा है, यहां राजा हो या रंक सबकी ऐसे ही हंसी उड़ती आई है|

फूल मलिक

म्हारा सीएम खट्टर साहब, घणा स्याणा:!

हरयाणवी में "घणा स्याणा" का मतलब होता है "डेड स्याणा", यानी काइयां किस्म का आदमी| इसके साथ ही यह भी बता दूँ कि चतुर-समझदार-अक्लवान आदमी को हरयाणा में सिर्फ "स्याणा" कहते हैं| स्याणा के साथ घणा शब्द लगा और अर्थ उल्टा|

अब यह "घणा स्याणा" सीएम साहब को कहा किसने है जरा यह भी देख लीजिये| हमारे प्यारे अक्ल के पिटारे हरयाणवी मीडिया के लगभग हर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया ने, बीजेपी सरकार के एक साल पूरे होने पे "म्हारा सीएम खट्टर साहब, घणा स्याणा" टाइटल के सांग से खट्टर साहब का स्तुति वंदन के द्वारा|

वाह खट्टर साहब हरयाणा के लोग कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर तक का ज्ञान रखने वाले, सारा दिन मीडिया चिल्ला-चिल्ला के आपको काइयां कहता रहा और आपकी कंधे से ऊपर की अक्ल में यह बात तक नहीं आई कि आपकी खड़ी बैंड बजाई जा रही है| ओह, लगता है जनाब के कंधे से ऊपर कुछ ज्यादा ही अक्ल शरीर पे वसे की तरह परत-दर-परत चढ़ गई है कि इनकी चेतना तक यह शब्द कोंधा ही नहीं|

बड़े शर्म की बात है सीएम साहब, हरयाणा का मुखिया और हरयाणवी का इतना बात-बात पे प्रयोग होने वाले शब्द का अर्थ तक पता नहीं|

सीएम तो सीएम दिन-रात जो यह मीडिया खुद को स्याणों का भी बटेऊ बताता रहता है साबित करता रहता है उन तक को यह भान नहीं कि तुम चला क्या रहे हो?

वाकई में हरयाणा "अंधेर नगरी चौपट राजा" हुआ पड़ा है|

सीएम साहब सच कहूँ, आपके समाज की समझदारी और होशियारी की जो छाप मेरे दिमाग में थी, आप तो उसके बिलकुल विपरीत ही उतर रहे हो| या शायद कंधे से ऊपर मजबूती की ग्लोबल ब्रांड होती ही ऐसी हो|

मैं तो सीएम साहब के उस ओएसडी या राजनैतिक सलाहकार को मिलकर उसकी पीठ थपथपाना चाहूंगा, जिसने इस टाइटल का सांग सीएम साहब के लिए अप्रूव किया|

इसने कह्या करें हरयाणवी में अक "जिह्से हम सयाणे, इह्सी-ए म्हारी ऐल-गैल|"

फूल मलिक

मैं इन तर्कों के आधार पर "सनपेड़ दलित अग्निकांड" को खुद दलित की की हुई साजिश नहीं मानता!

1) दलित के घर के दरवाजे बाहर से क्या खुद दलित ने बंद किये? जबकि मौका-ए-वारदात पहुंची पुलिस ने बताया कि घर के दरवाजे बाहर से बंद थे?

2) उसको षड्यंत्र करना था तो वो खुद को जला लेता, बीवी को जला लेता, भला अपने ही हाथों इतने मासूम वो भी एक 8 महीने का और एक अढ़ाई साल के बच्चों को आग क्यों लगाएगा?

3) उसको षड्यंत्र करना होता तो वो रात को तीन बजे ही क्यों करता? दिन में या शाम में ना करता? जबकि रात में करने के वक्त उसको भी पता था कि उसको कोई बचा नहीं पायेगा| दिन में करता जलने का नाटक, ताकि लोग झट से बचा लेते| साफ़ है कि घर को आग लगाने वालों ने रात का वक्त और वो भी जगराते की रात के शोर का वक्त इसलिए चुना ताकि पकड़े ना जाएँ, किसी को दिखें ना, पुलिस तो फिर खुद दुर्गा-जगराता देखने में लगी ही हुई थी| जगराते के शोर में पुलिस को ना वो आते सुने ना जाते, वरना शांत वातावरण में पुलिस को उनमें से किसी की तो पदचाप सुनती? इसलिए बड़ा सोच-समझ के वक्त और मौका चुना गया|

4) अगर शराब पी के आग लगाई होती तो जब उसकी डॉक्टरी व् मरहम-पट्टी हुई तो उन डॉक्टर्स ने भी तो उसको चेक किया होगा? तो शराब पिए हुए होता तो क्या डॉक्टर नहीं रिपोर्ट में बता देते? वैसे भी ऐसे मामलों में डॉक्टर फर्स्ट-ऐड करते वक्त मरीज की यथास्थिति पे रिपोर्ट जरूर बनाता है| जलने के बीच और अस्पताल पहुँचाने के बीच इतनी देर तो नहीं लगी थी कि उसकी दारू उत्तर चुकी होगी, उसके चेहरे से ही दिख जाती कि वो पिए हुए था या नार्मल? नार्मल रहा होगा तभी डॉक्टर्स ने उसकी रिपोर्ट में शराब नहीं बताई| और बताई होती तो सबसे पहले मीडिया ने ही गा दिया होता|

5) शराब पी के पेट्रोल छिड़कता तो क्या उसके सिर्फ हाथों पर ही पड़ता| शराब पिया हुआ आदमी काँपता है, हिलता-डुलता है, असंतुलित होता है तो ऐसे में उसके बाकी हिस्सों पे भी तो पेट्रोल गिरता? उसके सिर्फ हाथ जले, शायद बच्चों को बचाने की कोशिश में और उसपे पेट्रोल नहीं गिर पाया होगा, बच्चों और बीवी पे गिर गया होगा| इसलिए वो ज्यादा जल गए, उसके सिर्फ हाथ और आग की आंच से मुंह जले|
 

6) कह रहे हैं कि दोषियों को पुलिस ने सोते हुए गिरफ्तार किया, वो अपराधी होते तो भाग जाते| अब जैसा कि बिंदु 3 में सीन को देखा जाए तो उनको यह विश्वास रहा होगा कि तुमको जगराते के शोर में किसी ने नहीं देखा है, इसलिए किसी को क्या पता लगेगा, चुपचाप जा के सोने का नाटक करो, सब नार्मल दिखेगा| परन्तु इस परिस्थिति में पुरानी रंजिश के संदेह से कैसे बचोगे, इस पर वो लोग होमवर्क करना भूल गए|

यह सब अभी तक इस केस में जो दिखा और सुना उसके आधार पर लिखा, बाकी अब रिपोर्ट आती है तो तब देखते हैं, दलित और राजपूत कैसे अपना-अपना पक्ष साबित करते हैं|

फूल मलिक

जो आज मुग़लों को दुश्मन बता रहे, वो खुद दिल्ली मुग़लों को देने की बात किया करते थे!

इस वीडियो में पानीपत के तीसरे युद्ध से पहले "जाट-पेशवा ब्राह्मण-सिंधिया-होल्कर" अलायन्स में होती चर्चा सुनिए।

पेशवा सदाशिव राव भाऊ: "दिल्ली को मुगलों को देंगे!"
 

महाराजा सूरजमल: "दिल्ली जाटों की है।"

मतलब आज जो मुस्लिमों से नफरत करते नहीं थकते, उन्हीं नागपुरी पेशवाओं को दिल्ली मुग़लों तक को देनी मुहाल थी, परन्तु जाटों को नहीं।

अचरज है कि जब दिल्ली देनी ही मुग़लों को थी तो अब्दाली से लड़ने ही किसलिए जा रहे थे? आखिर वो भी तो अफगानी मुग़ल ही था? मुग़ल-मुग़ल लड़ लेते आपस में दिल्ली के लिए, नहीं?

और ऐसे दम्भ में भरे पेशवा जाटों को कूच करने का संदेशा मिलने का इंतज़ार करते छोड़ जा चढ़े बिन जाटों के ही पानीपत में अब्दाली के आगे और वहाँ पे मुंह की खाई, तत्पश्चात जाटों ने ही इनकी फर्स्ट-ऐड करी।

फिर 1764 में महाराजा सूरजमल के सुपुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने अकेले जाट दम पे मुग़लों से दिल्ली जीत के भी दिखाई, वरन अहमदशाह अब्दाली की हिम्मत तक ना हुई आ के दिल्ली को महाराजा जवाहर सिंह से छुड़वाने की।

और यही रूख इन नागपुरी पेशवाओं का जाटों के प्रति आज है। कुछ नहीं बदला, इन्होनें इतिहास से कोई सीख नहीं ली। वही ढाक के तीन पात, चौथा होने को ना जाने को।

फूल मलिक