15 अगस्त 1947 तक जाटों की निम्नलिखित रियासतें थीं -
(क) हिन्दू जाट रियासतें:
भरतपुर, धौलपुर, मुरसान, सहारनपुर, कुचेसर, उचागांव, पिसावा, मुरादाबाद,
गोहद और जारखी। बल्लभगढ़ व टप्पा राया को अंग्रेजों ने 1858 में जब्त किया
तथा हाथरस को 1916 में।
(ख) जाट सिक्ख रियासतें: पटियाला, नाभा,
जीन्द, (फूलकिया रियासत) और फरीदकोट। इसके अतिरिक्त कैथल, बिलासपुर,
अम्बाला, जगाधरी, नोरडा, मुबारिकपुर, कलसिया, भगोवाल, रांगर, खंदा,
कोटकपूरा, सिरानवाली, बड़ाला, दयालगढ़/ममदूट तथा कैलाश बाजवा आदि को
महाराजा रणजीतसिंह के राज में विलय किया तथा कुछ को अंग्रेजों ने जब्त कर
लिया।
अक्सर कहा जाता है कि जाट फूलकिया रियासतों ने सन् 1857 में
अंग्रेजों का साथ दिया, जिसका कारण था दिल्ली का बादशाह बहादुरशाह जफर।
क्योंकि इस लड़ाई में भारतीयों ने इन्हें नेता चुना था। लेकिन सिख इसलिए
नाराज थे कि मुगलों ने सिख गुरुओं को बहुत सताया और शहीद किया, जिस कारण
सिखों ने उनका साथ नहीं दिया। लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि राजस्थान की
भी ऐसी तीन रियासतें थी - बीकानेर, जयपुर तथा अलवर जिन्होंने अंग्रेजों की
पूरी सहायता की। महाराजा सिंधिया और टेहरी में टीकमगढ़ के राजाओं ने
अंग्रेजों की फौजों के लिए पूरा राशन-पानी का प्रबन्ध किया और जी भरकर
चापलूसी की। यह तो इतिहासकारों व लेखकों पर निर्भर रहा है कि उनकी नीयत
क्या थी। ‘हरयाणा की लोक संस्कृति’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ. भारद्वाज अपनी
पुस्तक, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा स्वीकृत है, में एक ही हरयाणवी कहावत
लिखते हैं “जाट, जमाई, भाणजा, सुनार और रैबारी (ऊँटों के कतारिये) का कभी
विश्वास नहीं करना चाहिए।” जबकि हरयाणा में तो ये भी कहावतें प्रचलित हैं
“काल बागड़ से तथा बुराई ब्राह्मण से पैदा होती है”, दूसरी “ब्राह्मण भूखा
भी बुरा तो धापा भी बुरा” तीसरी “ब्राह्मण खा मरे, तो जाट उठा मरे” अर्थात्
ब्राह्मण खाकर मर सकता है और जाट बोझ उठाकर मर सकता है आदि-आदि। विद्वान्
लेखक ने अपनी पुस्तक में दूसरी जातियों के सैंकड़ों गोत्रों का वर्णन भी
किया है, कुम्हार जाति के भी 618 गोत्र लिखे हैं, लेकिन जाटों के 4800
गोत्रों में से केवल 22 गोत्र ही उनको याद रहे। “हरियाणा का इतिहास” के
विद्वान् लेखक डा. के.सी. यादव अपनी पुस्तक में सिक्खों को बार-बार एक जाति
लिखते हैं जबकि हम सभी जानते हैं कि सिक्ख जाति नहीं एक धर्म है। उनका
लिखने का अभिप्राय सिक्ख जाटों को हिन्दू जाटों से अलग करने का प्रयास है।
जबकि सभी जाटों का आपसी खूनी रिश्ता है और सभी सिक्ख जाट और हिन्दू राजाओं
में आपसी रिश्तेदारियां रही हैं। बल्लभगढ़ नरेश नाहरसिंह फरीदकोट के राजा
की लड़की से ब्याहे थे। मुरसान (उ.प्र.) नरेश महेन्द्र प्रताप जीन्द की
राजकुमारी से तथा भरतपुर के नरेश कृष्ण सिंह फरीदकोट के राजा की छोटी बहन
से ब्याहे थे। भरतपुर के अन्तिम नरेश बिजेन्द्र सिंह पटियाला की राजकुमारी
से ब्याहे थे। पूर्व विदेश मन्त्री नटवरसिंह पटियाला रियासत के वंशज
अमरेन्द्र सिंह की बहन से विवाहित हैं आदि-आदि। पंजाब के उग्रवाद तथा
मीडिया के दुष्प्रचार ने हमारे आपसी रिश्तों पर कड़ा प्रहार किया है। इस
प्रकार की पक्षपाती विचारधारा अनेक पुस्तकों में लिखी मिलेगी।
(ग) मुस्लिम जाट रियासत:
करनाल मण्ढ़ान गोत्र की मुस्लिम जाट रियासत थी जिसके अन्तिम नवाब लियाकत
अली थे जिसको पंत ब्राह्मणों ने अपनी लड़की ब्याही तथा ये पाकिस्तान के
प्रथम प्रधानमंत्री बने। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चौ. फिरोज खाँ नून
गोत्री, चौ. सुजात हुसैन भराइच गोत्री तथा चौ. आरिफ नक्कई सिन्धु गोत्री जो
सिक्ख मिसल के सरदार हीरासिंह के वंशज थे। राष्ट्रपति चौ. रफिक तरार -
तरार गोत्री जाट थे। चौ. छोटूराम के समय संयुक्त पंजाब में उनकी जमींदारा
पार्टी (यूनियनिष्ट) के दोनों ही मुख्यमंत्री (प्रीमियर) सर सिकन्दर हयात
खाँ - चीमा गोत्री तथा खिजर हयात खाँ ‘तिवाना’ गोत्री जाट थे। पूर्व में
पंजाब पाकिस्तान के मुख्यमंत्री चौ. परवेज इलाही भराईच गोत्री जाट हैं। चौ.
छोटूराम के समय संयुक्त पंजाब के अन्तिम प्रीमियर चौ. खिजर हयात खां
तिवाना के पोते ने हमें बतलाया कि वहां पाकिस्तान में जाट मुसलमान रिश्ते
के समय आज भी अपने मां व बाप का गोत्र छोड़ते हैं। उन्होंने हमें पाकिस्तान
में आने का न्यौता दिया कि पाकिस्तान में आकर उन जाटों की लाइब्रेरियां और
उनके संगठन देखें। चौ. उमर रसूल करांची (पाकिस्तान) ने बतलाया कि
पाकिस्तान का मुस्लिम जाट चौ. छोटूराम का आज भी उतना ही भक्त है जितना सन्
1945 से पहले था। उनके घरों में सरदार भगतसिंह, चौधरी छोटूराम के चित्र तथा
डा. बी. एस. दहिया की पुस्तक The Jat Ancient Rulers के उर्दू अनुवाद का
मिलना आम बात है। जबकि हमारे यहां जाटों के घरों में या तो किसी बाबा का
चित्र मिलेगा जिसका परिवार ने नाम दान दे रखा है या किसी वर्तमान राजनेता
के साथ चित्र या किन्हीं देवताओं का चित्र मिलेंगे। यदिआज कोई नेता किसी
जाट के घर में आकर चाय या नाश्ता आदि ले लेता है तो उस घर वाले अपने को
धन्य समझने लग जाते हैं। यही आज के हमारे जाट की पहचान रह गई है।
(पुस्तक - सिख इतिहास, जाट इतिहास)
जय जाट
जय यौद्धेय