Thursday, 24 December 2015

हरयाणवी, रेफ़ुजी (सरणार्थी), सिग्नेचर कैंपेन और कानून!

सुनने में आ रहा है कि हिन्दू अरोड़ा/खत्री कम्युनिटी के लोग सविंधान में आर्टिकल 6 होने के बावजूद भी और UNO चार्टर सामने होते हुए भी सिग्नेचर कैंपेन चलाये हुए हैं कि उनको "रेफ़ुजी" व् "पाकिस्तानी" ना कहा जाए| यह कोरी नौटंकी ही है क्योंकि यह कानून बदल गए तो पिछले 70 साल से इन कानून के तहत यह लोग जो लाभ लेते आ रहे हैं, उनका हिसाब-किताब देना पड़ेगा; बदलवाने चले तो कानून बदलेगा नहीं क्योंकि रेफ़ुजी लॉ UNO इंटरनेशनल होते हैं, जिसके तहत यह लोग आज भी पाकिस्तान में अपना हक़ रखते हैं और जब चाहें वापिस जावें तो इनको इनकी प्रॉपर्टी का क्लेम वहाँ मिल सकता है| फिर भी समाज में अपने लिए एक भावुकता बढ़ाने हेतु, यह सब किया जा रहा है|

और एक हम हरयाणवी हैं जिनको कोई कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर कहे तो फर्क ही नहीं पड़ता| शायद जाट बनाम नॉन-जाट के जहर का ही असर है कि हवा सिंह सांगवान व् उनकी टीम के अलावा कोई भी हरयाणवी इस तरीके से नहीं सोचा कि वो भी इस पर एक सिग्नेचर कैंपेन चलावें और मुख्यमंत्री को उनके ब्यान पे हर जिले के डीसी को नोटिस दे दे के अपने रिमार्क पर माफ़ी हेतु बाध्य करें|

इस जाट बनाम नॉन-जाट के जहर का असर देखा, सिर्फ जाटों को ही हरयाणवी बना के छोड़ दिया| बाकी शायद इस मुद्दे पर इसलिए बोलने को तैयार नहीं क्योंकि हरयाणवी और जाट शब्द अकाट्य तरीके से जोड़ दिए गए हैं| जाटों के लिए तो यह बहुत ही अच्छी बात है| परन्तु नॉन-जाट हर्याणवियों का क्या, जिनकी हरयाणवी आइडेंटिटी छिन गई इस जाट बनाम नॉन-जाट के चक्कर में| क्यों भाई बाकी के हर्याणवियों क्या आपको भी सरणार्थी स्टेटस चाहिए? या फिर यह जाट से नफरत इतनी ताकतवर है कि जाट से जुड़ना मंजूर नहीं भले ही हरयाणवी कहलवाना छूट जाए?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 23 December 2015

एशियाई प्लूटो चिरकाल कूटनीतिज्ञ अफ़लातून महाराजाधिराज 'सूरजमल' सिनसिनवार, भरतपुर (लोहागढ) को उनकी पुण्य तिथि (25 दिसंबर, 1763) पर सत-सत नमन!

जयपुर के राजा ईश्वरी सिंह ने जाट नरेश ठाकुर बदन सिंह से जब कुछ इस तरह सहायता मांगी:

“करी काज जैसी करी गरुड ध्वज महाराज,
पत्र पुष्प के लेत ही थै आज्यो बृजराज|”


तो अपनी यायावरी-यारी निभाने हेतु ठाकुर साहब के आदेश पर कुंवर सूरजमल ने जब 3 लाख 30 हजार सैनिकों से सजी 7-7 सेनाओं {पेशवा मराठा, मुग़ल नवाब शाह, राजपूत (राठौर, सिसोदिया, चौहान, खींची, पंवार)} को मात्र 20 हजार सैनिकों के दम पर बागरु (मोती-डुंगरी), जयपुर के मैदानों में धूळ-आँधी-बरसात-झंझावात के बीच 3 दिन तक गूंजी गगनभेदी टंकारों के मध्य हुए महायुद्ध में अकेले ही पछाड़ा तो समकालीन कविराज कुछ यूँ गा उठे:

ना सही जाटणी ने व्यर्थ प्रसव की पीर,
गर्भ से उसके जन्मा सूरजमल सा वीर|
सूरजमल था सूर्य, होल्कर उसकी छाहँ,
दोनों की जोड़ी फबी युद्ध भूमि के माह||

जाटों से संधि कर, जाटों को ही धोखे में रख दिल्ली अफगानों (अब्दाली) से जीत, जाट राज्य को सौंपने की अपेक्षा मुग़लों को ही देने की छुपी योजना रखने वाले महाराष्ट्री पेशवाओ की चाल को अपनी कुटिल बुद्धि से पहचान, अपने आप पर पेशवाओं द्वारा बिछाए बंदी बनाने के जाल को तोड़ निकल आने वाला वो सूरज सुजान, जब ले सेना रण में निकलता था तो धुर दिल्ली तक मुग़ल भी कह उठते थे:

तीर चलें, तलवार चलें, चलें कटारें इशारों तैं,
अल्लाह-मियां भी बचा नहीं सकदा, जाट भरतपुर आळे तैं!

ऐसी रुतबा-ए-बुलंदी थी लोहागढ़ के उस लोहपुरुष की!

खैर, जाटों का बुरा सोचने वाले महाराष्ट्री पेशवाओं को पानीपत में सबक मिल ही गया था| और महाराजा सूरजमल ने फिर भी अपनी राष्ट्रीयता निभाते हुए, पेशवाओं के दुश्मन (अब्दाली) से दुश्मनी मोल लेते हुए, पानीपत के घायलों की मरहमपट्टी कर, सकुशल महाराष्ट्र छुड़वाया|

परन्तु आजकल फिर उधर के ही नागपुर के स्वघोषित राष्ट्रवादी पेशवा दोबारा से जाटों की ताकत और अहमियत को नकारने की गलती दोहरा रहे हैं| भगवान सद्बुद्धि दे इनको, आमीन!

ऐसी नींव और दुर्दांत दुःसाहस की परिपाटी रख के गया था वो सिंह-सूरमा कि आगे चल 1805 में जिनके राज में सूरज ना छिपने की कहावतें चलती थी उन अंग्रेजों को आपके वंशज महाराजा रणजीत सिंह (जाटों के यहां दो रणजीत हुए हैं, एक ये वाले और दूसरे पंजाबकेसरी महाराज रणजीत सिंह) ने 1-2 नहीं बल्कि पूरी 13 बार पटखनी दी थी और इतना खून बहाया था गौरों का कि:

"हुई मसल मशहूर विश्व में, आठ फिरंगी, नौ गौरे!
लड़ें किले की दीवारों पर, खड़े जाट के दो छोरे!"

और क्योंकि इस भिड़ंत ने अंग्रेजों के इतने शव ढहाये थे कि कलकत्ते में बैठी अंग्रेजन लेडियां, शौक मनाती-मनाती अपने आँसू पोंछना भी भूल गई थी| उनका विलाप करना और शोक-संतप्त होना पूरे देश में इतना चर्चित हुआ था कि कहावत चली कि:

"लेडी अंग्रेजन रोवैं कलकत्ते में"।

और जाटों के दोनों रणजीतों का जिक्र आज तलक भी जाटों के यहां जब ब्याह के वक्त लड़के को बान बिठाया जाता है तो ऐसे गीत गा के किया जाता है कि:

"बाज्या हो नगाड़ा म्हारे रणजीत का!"

जी हाँ, यह नगाड़ा वाकई में बाजा था, जिसने अंग्रेजों का भ्रम तोड़ के रख दिया था|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

 

Tuesday, 22 December 2015

घर के झगड़े बीच बाजार खुद ही उघाड़ोगे तो क्या ख़ाक घर संभालोगे!

बहुत सारे जाट भाई, यह सोच के कि जाट कहीं देशवाली, कहीं खादर, कहीं बागड़ी, कहीं बाँगरू, कहीं बृजवासी, कहीं दोआबी, कहीं कौरवी, कहीं पंजाबी जाट, कहीं मेव, कहीं मारवाड़ी, कहीं खड़ी बोली वाले जाटों में बंटे हुए हैं और नाउम्मीदगी के अतिरेक में दूरियां मिटानी असम्भव बता जाते हैं| तो ऐसे भाईयों से एक ही बात कहूँगा कि आप तो दिल्ली के चारों ओर 300-350 कोस की छोटी सी परिधि में होते हुए भी एक नहीं हो सकने की बात करते हैं; मैं कहता हूँ हमें पूरे भारत में फैले ब्राह्मण से सीख लेनी चाहिए| कभी देखा है नागपुरी ब्राह्मण, बनारसी ब्राह्मण, तमिल ब्राह्मण, बंगाली ब्राह्मण, गुजराती ब्राह्मण को खुले में ऐसी बातें करते या फैलाते हुए? जबकि उनके तो हमसे भी बड़े मुद्दे हैं, भाषा से ले के क्षेत्र के और रिवाज से ले काज तक के|

इसलिए हमें इन व्यर्थ के भ्रमों में नहीं पड़ते हुए, "यूनिटी इन डाइवर्सिटी" फार्मूला के तहत "मिनिमम कॉमन एजेंडा" के तहत इस बात पे ध्यान देना चाहिए कि हमें एक कौम के तौर पर क्या चाहिए| जब इस पर सोच केंद्रित होगी तो यह 20-30 कोस के जो बैरियर हम खुद ही लगाये बैठे हैं, यह दूर-दूर तक भी नजर नहीं आएंगे|

आज जाट समाज की दिक्क्त क्षेत्री और भाषाई बैरियर्स नहीं हैं अपितु कौम के स्तर के कॉमन एजेंडों की कमी हो चली है हमारे यहां, इसलिए ऐसी सोचें पनपने लगी हैं| एजेंडे सोचो, कौम के भले का होगा तो भारत के किसी भी कोने में बैठा जाट दौड़ा चला आएगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 21 December 2015

चौधरी साहब हम आएंगे, स्मारक वहीँ बनाएंगे!

आज़ाद भारत में किसान-दलित-पिछड़ों के प्रथम मसीहा, सर छोटूराम की परछाई थे वो; धार्मिक-सहिष्णुता के सिपाही, तानाशाही भ्रष्टों को जेल दिखाए थे वो!

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह जी को उनकी जन्मजयंती (23 दिसंबर, 1902) पर शत-शत नमन!

आईये! इस बार की चौधरी चरण सिंह जी की जन्मजयंती यह संकल्प दोहराते हुए मनाएं कि "चौधरी साहब हम आएंगे, स्मारक वहीँ बनाएंगे!"

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

 

फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा!

एक मित्र ने कहा अपनी ऊर्जा आरएसएस जैसे राष्ट्रवादियों के साथ क्यों नहीं लगाते, मैंने कुछ यूँ जवाब दिया:
1) जाओ पहले आरएसएस को बोलो कि महाराजा सूरजमल, महाराजा रणजीत सिंह, राजा नाहर सिंह, महाराजा जवाहर सिंह, महाराजा हर्षवर्धन पे भी ऐसे ही राष्ट्रीय स्तर के उत्सव मनावे, जैसे औरों पे मनाती है; फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा।
2) जाओ पहले आरएसएस को बोलो कि "गॉड गोकुला" को मुग़लकाल का 'पहला हिन्दू धर्म रक्षक' घोषित करे, फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा
3) जाओ पहले आरएसएस को बोलो कि "शहीद-ए-आज़म भगत सिंह" को अपनी मोदी सरकार से देशभक्त घोषित करवा दे और चंडीगढ़ एयरपोर्ट के पहले से घोषित नामकरण के साथ छेड़खानी ना करे, फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा। 
4) जाओ पहले आरएसएस को बोलो कि हरयाणा से 'जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े' उठवा दे, फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा।
5) जाओ पहले आरएसएस को बोलो कि राजा महेंद्र प्रताप, सर छोटूराम, चौधरी चरण सिंह, सरदार भगत सिंह को अपनी सरकार से भारत-रत्न से नवजवाये, फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा। 
6) जाओ पहले आरएसएस को बोलो कि तैमूरलंग, गजनवी, गौरी, लोधी आदि से लोहा लेने वाले यौद्धेयों को अपने मंच से सम्मान और पहचान देवें, फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा।

निचोड़ यही है कि या तो राष्ट्रवादिता का ढिंढोरा ना पीटें और पीटें तो वीरता और देशभक्ति में काटछांट ना करें। सीधी सी बात है जो संगठन मेरे पुरखों के बलिदान और देशभक्ति को सम्मान और स्थान नहीं दे सकता, उनके साथ मेरा क्या काम?

विशेष: यह ऊपर जितने भी नाम गिनवायें, इन पर वैसे तो आरएसएस पहले से ही जानती है फिर भी कहे कि इनका योगदान साबित करो, तो वो पहले यह साबित करें कि जिनको आप "भारत रत्न" से नवजवाते हो, ये उनसे कम कैसे?

Reactions1:
मेरी, "फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा" पोस्ट पर JAT HISTORY AND VIRASAT (जाट इतिहास और विरासत ) ग्रुप में आदित्य चौधरी लिखते हैं, "कोई एक मुल्ला रोता है तो सब मुल्ले एक साथ हो जाते हैं, यहां हिन्दुओं में देखो, आपस में बंटे हुए हैं, ...... मारा ले बहन ....... जिसने ये पोस्ट की है, आज ना गांधी काम आएगा ना भगत, कब तक बहन के। ..... पास्ट से। .... मराते रहोगे?"

ऐसा है आदित्य, "पास्ट से इतनी ही नफरत है है तो गीता-ग्रन्थ-पुराण क्यों ढो रहा है, उनको भी छोड़ दे? और जो इतिहास तुझे तथाकथित राष्ट्रवादी बांचते और पढ़ाते हैं, वह भी पास्ट ही है, उसको भी मिटा दे| और रही रोने की बात तुझे अंधभक्ति के चश्मे से ना दीखते तो क्या जाट रोते हुए किसी को नहीं दीखते? और सुन यह जाट बनाम नॉन-जाट के अखाड़े सजा के रुलाने वाले भी मुल्ले नहीं, तेरे तथाकथित हिन्दू ही हैं? जा करवा जाटों के रोने पे तमाम हिन्दू को एक, हो जाऊंगा मैं भी तेरे साथ? वर्ना यह कच्छाधारियों का ज्ञान रख अपनी जेब में|"

Reaction2:
मेरी "फिर मैं आरएसएस ज्वाइन कर लूंगा!" पोस्ट पर एक 'माथुर' भाई कह रहा कि, "भाई अगर RSS ना होती ना तो अब तक देश पर मुसलमानों का कब्ज़ा हो चुका होता और तुम उनके घर में लैट्रिन साफ कर रहे होते|"
माथुर जवाब यूँ है, "लैट्रिन साफ़ करने का तो पता नहीं, परन्तु मुज़फरनगर के दंगे में उलझवा के तुमने जाट के खेतों के मजदूर जरूर छिनवा दिए|"

अच्छा तो यह वो "लैट्रिन वाला" जुमला है जिसके कारण तुम लोग जाटों को डराते हो? और कमाल है जाट डर भी जाते हैं, नहीं जरूर साथ में हिंदुत्व का तड़का भी लगाते होंगे| और पागल जाट, जब आरएसएस लोग के यह "लैट्रिन" वाला जुमला कहके डराते हैं तो इतना भी नहीं समझते कि, "इन आरएसएस वालों के ख्यालों में भयभीत होने वाले नेचर की वजह से, जो मुस्लिम भाई हमारे खेतों में पल-पल का साथी था, इनकी वजह से आज पश्चिमी यूपी में 1000 रूपये में भी मजदूर टोह्या ना मिल रहा| कोई पूछने वाला हो इनसे कि जाट के खेत में जा के मजदूरी करके आवें हैं क्या आरएसएस वाले, बदले में? आये लैट्रिन साफ़ करवाने का ख्याली भय दीखाने वाले| तुम्हें भय लागे है तो क्या सबको लागे है? जो जब चाहो पीट दो "पापी के मन में डूम का ढिंढोरा!"
तुम लोगों ने जाट (सब धर्म के) का आर्थिक तंत्र हिलाना था सो हिला दिया| परन्तु तुम्हें अब भी चैन नहीं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

"कर्म किये जा, फल की चिंता ना कर" सिर्फ समाज में गुलाम और बेगार पैदा करने का सूत्र है!

"कर्म किये जा, फल की चिंता ना कर" की पद्द्ति पर या तो गधे की तरह काम करने वाले चल सकते हैं या फिर कोल्हू का बैल बनके चलने वाले; यानी कि गुलाम या बेगार| और गधे या बैल बनके खटने वालों का कर्म मंडी-फंडी जैसे परजीवी उड़ा ले जाते हैं| मानों या ना मानों, यह सूक्ति इन्होनें अपनी रोजी-रोटी हेतु बना रखी है| और आमजन को इसलिए थमा रखी है ताकि यह किसी की नेक कमाई लूट भी ले जाएँ तो इस लाइन को पकड़ के खुद को दिलासा देते रहो कि वह जो ले गया या गया वो तुम्हारा था ही नहीं, आदि-आदि|

मतलब लूट-हड़प के ले जाए गए के लिए कोई आवाज मत उठाओ, बस एक यही लाइन पकड़े बैठे रहो कि वो तुम्हारा था ही नहीं| तो भाई फिर इतनी बड़ी महाभारत क्यों करवा दी? दुर्योधन, पांडवों का राजपाट हड़प ले गया था तो पांडवों को यही दिलासा दे के बैठा देते कि "वो जो ले गया वो तुम्हारा था ही नहीं, उसके लिए व्यथित मत होवो, बस कर्म करते रहो|"

सच तो यह है कि बिना अधिकार क्षेत्र सुनिश्चित किये कोई कर्म हो ही नहीं सकता| और यही वो "अधिकार क्षेत्र" का मसला है जो इस सूत्र के रचियता अपने हाथ में रखना चाहते हैं| यह चाहते हैं कि आमजन बस कर्म करो, उसको अधिकार क्षेत्र हमें दे दो, हम निर्धारित करेंगे कि उसका फल कौन भोगेगा और कौन भुगतेगा| सीधा सा इशारा है भोगना होगा तो हम और भुगतना होगा तो आमजन|

If to say in English, this line leads human to become "Subjective" i.e. materialistic instead of reaching true wisdom of being "Objective" i.e. complete.

तुच्छ से तुच्छ ज्ञान का माँ-बाप भी अपने बच्चे को फ़ैल होने पे आगे बढ़ने के लिए दृढ करता है, पीछे हटने को नहीं| तो क्या इसका मतलब माँ-बाप बच्चे को फ़ैल होने पे आगे के लिए प्रेरित ही ना करें? यह तो तर्कसंगत नहीं|

इन सबपे विजय पाने का एक ही सूत्र है, बुद्ध पद्द्ति का "विपसना मैडिटेशन" करो, खुद को जानों, संसार को जानों और अपनी राह को सुदृढ़ करो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Sunday, 20 December 2015

आगरा-जयपुर देखो या ना देखो, परन्तु भरतपुर जरूर देख के आया करो!

1) देख के आया करो कि वो किला कैसा है जिसकी दीवारों पर खड़े होकर जाटों ने 1804 में अंग्रेजों को 1-2 नहीं अपितु 13 बार धूल चटाई थी। पृथ्वी-गौरी की मात्र 2 लड़ाईयों की कहानी को 17 लड़ाईयों की गपेड बना के परोसने वालों को आखिर सच्चाई से इतना परहेज क्यों, यह समझ के आया करो।

2) देख के आया करो 1761 में जिनको हराने हेतु पानीपत के मैदान में मराठे-होल्कर-बुंदेले हार गए थे, उनको हराने वाले भारतेंदु जवाहर सिंह और उनकी सेना किस मिट्टी की बनी थी।

3) देख के आया करो कि पानीपत के युद्ध में दिल्ली को जीतकर मुग़लों को देने वाले महाराष्ट्री पेशवाओं की इस बात का विरोध करने वाले वो सूरज सुजान कौनसे महलों में जन्में थे। कहाँ से उन्होंने वो करुणा पाई थी कि मुग़लों से ही छीन मुग़लों को ही दिल्ली देने की मंशा रखने वाले उन पेशवाई सैनिकों की मरहमपट्टी करी।

आज के दिन आपके टूरिज्म के पैसे की उस भरतपुर को ज्यादा आवश्यकता है बजाये किन्हीं हारे हुए स्मारकों में जा के पहले से ही धनवान को और धन दे के आने के।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 19 December 2015

जिंदगी में आज पहली बार शाहरुख़ खान की फिल्म रिलीज़ के हफ्ते में ही देख डाली, and due credit goes to अन्धभक्तमंडली!

वर्ना एक वो भी जमाना होता था कि दोस्तों के लाख कहने पर भी पांच साल तक तो "DDLJ" तक नहीं देखी थी| मुझे आज भी याद है 1995 में जब डीडीएलजे आई थी तो मेरे हाई स्कूल के दोस्तों के साथ स्कूल बस से अलग 'बागी बनके' अपनी गाडी करके, हम करीब 25-26 दोस्त दिल्ली घूमने गए थे| दरअसल एक टीचर से ठन गई थी, जो स्कूल बस से जाने वाले टूर का इंचार्ज था और हमें 'ब्लैक-लिस्टेड' घोषित करते हुए, टूर पर ले जाने से मना कर गया था| ना-ना defaulters का टोला मत समझना हमें, हाई स्कूल का इंग्लिश मीडियम का मेरिट सेक्शन था हमारा; टोटल 49 में से 45 की मेरिट (including this नाचीज) और no one below 70% आये थे|

तो हम भी पूरे बागी थे टीचर ने हमें ले जाने से मना कर दिया तो, दिन-के-दिन अगले दिन के लिए 'लम्बे वाली मेटाडोर' करी| परन्तु अगले दिन कोई रैली-वैली थी तो जो मेटाडोर बुक करी थी, उसको RTO ने उठा के ऐन उस वक्त रैली के लिए बुक कर दिया, जब हम स्कूल के आगे खड़े दिल्ली निकलने को मेटाडोर के आने की इंतज़ार कर रहे थे| सुन के मुंह से हरयाणवी में यही निकला कि "यें किसकी बेबे के फेरे होए"| हम 1-2 दोस्त पहुंचे RTO ऑफिस जींद बस अड्डे पे| और RTO से विनती करी, 'जी म्हारी मेटाडोर छोड़ दो', बाकी चाहे सारे हरयाणे के रेहडू-गाड्डे रैली के लिए बुक कर लो| मखा ऐसे-ऐसे इज्जत का सवाल बना हुआ है| खुशकिस्मती से RTO साहब मान गए और थोड़ी देर पहले ही जब्त करके जींद बस डिपो के वर्कशॉप में लॉक करी मेटाडोर छुड़वा लाये| ड्राइवर भी कूदता हुआ आया कि छूटा पिंड मुफ्त में गाडी तुड़वाने से|

खैर, आगे स्कूल का बैनर लगाया और निकल लिए स्कूल बस के जस्ट एक दिन के टूर के जवाब में दो दिन का टूर ले के| पहले दिन दिल्ली घूमने का प्लान था और अगले दिन क्योंकि प्रगति मैदान में स्कूल बस टूर भी ट्रेड-फेयर देखने आ रहा था तो; साथ आने वाले टीचर्स को यह दिखा के कि देखो हम बच्चे हैं तो क्या हुआ, जो बच्चों को टूर दिखा के तुम चौड़े होते हो वो हम तुम्हारे फुफ्फे अकेले भी देख के आ सकते हैं|

खैर, उससे पहले वाली रात को दिन में घूमने-घुमाने के बाद लेट नाईट मूवी देखने का प्लान हुआ| जा के एक थिएटर के बगल में गाडी रोक दी| तब मल्टीप्लेक्स नहीं हुआ करते थे, एक थिएटर में एक ही मूवी लगती थी| जहां हम गए थे पता लगा कि उस थिएटर में 'DDLJ’ लगी हुई है| मैंने दोस्तों से कहा कि भाई तुम लोग देख आओ, मैं यह फिल्म नहीं देखूंगा| और मैं पास के पार्क में जा के टहलता रहा, शायद एक-दो दोस्त और रुक गया था मेरे साथ|

साला जिनकी मूवीज को देखने की by-default मन में ना हुआ करती थी, इन पनौती अंधभक्तों की वजह से आज हम उन्हीं के फैन हो गए| good work शाहरुख़-काजोल-कृति-वरुण-अजय| काश! यह अंधभक्त 1995 में भी होते तो मुझे शाहरुख़ का फैन बनने में इतना अरसा ना लगता और ना ही मैं DDLJ पांच साल बाद देखता, वरन उसी दिन देख डालता दोस्तों के साथ ही|

जय हो अंधभक्तो की!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

और यही अंतर है विकासशील और विकसित में!

व्यापार का ग्लोबलाइजेशन चाहिए, टेक्नोलॉजी का ग्लोबलाइजेशन चाहिए, डेवलपमेंट ग्लोबल स्टैण्डर्ड की चाहिए, इंफ्रास्ट्रक्चर ग्लोबल स्टैण्डर्ड का चाहिए, रिलिजन को ग्लोबल पहचान दिलवानी है; परन्तु ऐसी बातें करने वाले भारतियों को सामाजिक सरंचना और न्याय व्यवस्था के ग्लोबलाइजेशन से परहेज है|

ग्लोबल लोकेशंस पर बैठे भारतियों तक से भारतीय सामाजिक वर्ण व् जाति व्यवस्था खत्म करने बारे पूछ लो तो, गर्म तवे पे जैसे गिर गए हों ऐसे फफकते हुए कहेंगे कि नहीं, उसमें क्या खराबी है?

खराबी है यही तो खराबी है, आजतक इंटेल्लेक्टुअल्ली इतने ही वाइज नहीं हुए हैं हम कि सिवाय अपने कर्म के दूसरे के कर्म/हुनर को अपने बराबर का भी समझें| ग्लोबल लोकेशंस पर बैठ के भी वर्ण और जाति-व्यवस्था में जीने वाले लोग एक सीजन खुद से अन्न उगा के देखें तो जैसे बाकी के विकसित विश्व को समझ आ गया ऐसे ही समझ आ जाएगा कि किसी और का हुनर भी आपसे सर्वोच्च और श्रेष्ठ हो सकता है|

हम अपने दिमाग और सोच जिस दिन इतने विकसित कर इस वर्ण और जातिगत दम्भ, अहम और गरूर से ऊपर उठ गए, उस दिन स्वत: ही विकसित देश बन जायेंगे| अन्यथा भारत इस प्रतिष्ठा पदवी तक पहुँचने से कोसों दूर था और मीलों दूर रहेगा|

क्योंकि कल को जब हम अपनी विकसितता विश्व को गिनवाने चलेंगे तो विश्व यह गिनके हमें विकसित होने का सर्टिफिकेट नहीं देगा कि हमारे यहां कितने स्काईस्क्रेपर हैं, या कितने बिलियनएयर; वो सबसे पहले यह देखेगा कि देश के भीतर हम ह्यूमैनिटी और हार्मोनी पर कितने निष्पक्ष और उदार हैं।

जय यौद्धेय! - फूल कुमार मलिक

Friday, 18 December 2015

जाट तो आजकल निठ्ठले ही हो गए हैं!

1) पहले जाट अपनी आर्यसमाजी परम्परा के तहत जो ढोंग-पाखंड-आडंबर का भांडा फोड़ने का काम किया करते थे वो आजकल दलित और फिल्मों वाले कर रहे हैं| जाट तो बल्कि आज अपना आर्यसमाजी स्वाभिमान और अभिमान छोड़, इसके उल्ट चौकियों-जगरातों-भंडारों में जा फंसे हैं|
2) पहले जो जाट, समाज के आपसी झगड़े निबटवाया करते थे, वो आजकल टीवी डिबेटों वाले निबटा रहे हैं (नहीं शायद निबटवाने का ढोंग करके और ज्यादा पेचीदा उलझा रहे हैं)| जाट तो बस आरक्षण की लड़ाई लड़ने तक ही सिमट कर रह चुके हैं|
3) पहले जो जाट-खाप सामाजिक सुधार के आंदोलन और मूवमेंट चलाया करते थे वो आजकल जाट बनाम नॉन-जाट के मुद्दे तक पर भी खुलकर राय रखने से घबराते हैं| खुद की जाट-ब्रांड को ही सुरक्षित रखने में समर्थ साबित नहीं हो रहे, पूरे समाज की ब्रांड की तो अब बात करना ही सपना लगने लगी है|
4) जो जाट शिक्षा के लिए खुद आगे बढ़ के कहीं जाट स्कूल तो कहीं जाट कॉलेज तो कहीं आर्य गुरुकुल बनवाया करते थे वो आजकल यह चंदा माता की चौकी और अंधभक्ति वालों के भीतर में उतार रहे हैं| क्या कहीं सुना है कि 'जाट कम्युनिटी' के नाम पर नए जाट कॉलेज या स्कूल निर्माण हेतु विगत दो दशकों से तो खासकर जाटों ने एक भी नई ईंट लगाई हो?
5) खापें अगर चाहें तो एक पल में 36 बिरादरी की महापंचायत करके राजकुमार सैनी, मनोहरलाल खट्टर और रोशनलाल आर्य जैसों को एक पल में सामाजिक मंच से उनकी समाज को तोड़ने की बातें (कभी जाटों को ले के तो कभी हरयाणवियों को ले के कंधे से ऊपर कमजोर जैसे बयान) करने पे माफ़ी मांगने को विवश कर दें, परन्तु वो यह कह के चुप बैठ जाती हैं कि हम सब बिरादरियों के प्रतिनिधि हैं, कोई बुरा मान गया तो? कमाल है समाज को तोड़ने वालों को आगाह करने से भला कौन बुरा मानेगा?

तो ऐसे में जाटों का सामाजिक रुतबा सिकुडेगा नहीं तो और क्या होगा? जाट समाज की 40 से 60 साल और 20 से 40 साल की दोनों पीढ़ियों को सोचने की गंभीर जरूरत है कि आप लोग किधर से किधर निकल आये हैं| क्या रुतबा आपके पुरखों ने हासिल किया था| हालत यह होती जा रही है कि उसमें नया जोड़ने की बजाये जो वो दे गए थे उसको संभालने और बरक़रार रखने भर में ही आज के जाट के पसीने छूट रहे हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 17 December 2015

दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर मलाई मार रहे!

लोकतंत्रवाद को छोड़ के जातपात के द्वेष में डूबे अधिनायकवाद के पीछे दौड़ने से ऐसे घाघ आपके ऊपर थोंप दिए जाते हैं जैसे मोदी ने हरयाणा वालों पे थोंपा है| जाटों की तो छोड़ो, हरयाणा के नॉन-जाट किसान-पिछड़ा-दलित तक ने जिस आस में इनके 'एक ही जाति के राज से मुक्ति" वाले जुमले में फंस के (यह जुमला इसी पार्टी के 'हिन्दू एकता और बराबरी" के नारे पर भी हावी पड़ा था) इनको वोट किये थे, उनसे जानना चाहिए कि जाटों से छींटक के वोट करने से विगत डेड-पौने दो साल में आपकी जाति में कितना ज्यादा नौकरियां आई हैं या प्रमोशन मिल चुके हैं? इनको वोट देने की ऐवज में फसलों के दाम कितने बढ़ा के मिल चुके हैं आपको? हिसाब-किताब रखियेगा, पांच साल बाद काम आएगा| बाकी जाट नॉन-जाट के चक्कर में अपनी हरयाणवी सभ्यता-संस्कृति-भाईचारे की वाट जो लगवा बैठे हैं वो अलग से| दुआ है कि जिस उम्मीद में जाट से नॉन-जाट किसान-दलित-पिछड़ा छींटके थे वो जरूर पूरी हो जावे|

अभी तक तो "दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर सारी रोटी खा रहे हैं!" वाली कहावत ही चरितार्थ हो रही है| और इनको आगे बढ़के वोट देने वाले, इनको रोक भी नहीं पा रहे| यह ना हमारे हरयाणवी मूल के हैं और ना ही हरयाणा से प्रेम और इसकी इज्जत करने वाले, बल्कि हरयाणवियों को "कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर" बोल के हमारी-आपकी खिल्ली उड़ा रहे हैं| आपके-हमारे संसाधनों और रोजगारों का एकमुश्त दोहन कर रहे हैं| मेरे ख्याल से जाट से मात्र चिड़ के नाम पे इनको वोट करने वालों को कुदरत ने करारा जवाब दिया है| और दिखाया है कि कैसे जाती-द्वेष में पड़ के चलने से दूसरे को सबक सीखा पाओ या नहीं, परन्तु अपने घर जरूर बेगैरत की घुटन को निमंत्रित कर बैठते हैं| अभी बोल भले ही कोई ना रहा हो, परन्तु यह घुटन हर नॉन-जाट किसान-दलित-पिछड़ा हरयाणवी के घर में साफ़ महसूस की जा सकती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

एयरपोर्ट का नाम शहीद-ए-आजम भगत सिंह की बजाये RSS नेता के नाम पर रखने की हरयाणा सरकार की तैयारी!

Shame on BJP & Haryana Government!

हद की बात है जो खुद राष्ट्रभक्त होने के दम भरते हैं, वो राष्ट्रभक्ति के सिरमौर से ही छलावा करते हैं; अरे अंधभक्त बने भोले भारतीय युवाओ अब तो नींद से जागो।

बीजेपी और आरएसएस की सेल्फस्ट्य्लेड राष्ट्रभक्ति की मेरी पहले से चली आ रही शंका की कन्फर्मेशन मुझे तो उसी दिन हो गई थी जिस दिन मोदी ने पहली बार लालकिले से भाषण देते हुए यह कहा था कि, "सिर्फ भगत सिंह की तरह फांसी पर झूल जाना ही देशभक्ति नहीं होती|"

और नमूना यह देख लीजिये, "हरियाणा की भाजपा की खट्टर सरकार ने शहीद भगत सिंह के नाम पर प्रस्तावित चण्डीगढ़ एअरपोर्ट के नाम से शहीद भगत सिंह का नाम हटा कर RSS के नेता मंगलसेन जिस पर 1977 की जनता पार्टी सरकार में मक्की घौटाले का आरोप है और जिसके नेतृत्व में शहीद भगत सिंह की विरासत सम्भालने वाले HSRA के क्रान्ति कुमार को पानीपत में जलाने के लिए लोगों को बहकाने का आरोप है, के नाम पर रखने का प्रस्ताव रखा है। जिससे आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले अमर शहीद भगत सिंह का अपमान ही नहीं देश का भी अपमान करने की दुष्टभावना पता चलती है। इससे पता चलता है कि कैसे आरएसएस आज़ादी की लड़ाई के खिलाफ थी|

अंधभक्त बने भारतीयों, हरयाणवियों, सिखो अब तो जागो! क्या अब देश के इतिहास की तरह देशभक्ति को भी फिर से घड़ा जायेगा और आप शहीद-ए-आजम के साथ हो रहे अपमान पर भी मोदी-मोदी की गोटी गिटके बैठे रहोगे?

शहीद-ए-आजम के दीवाने तो जरूर जागो जो सोशल मीडिया पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर भी सरदार भगत सिंह की ही लगाना गर्व समझते हैं| आईये हरयाणा की भाजपा सरकार के इस कदम के विरोध को इतना बड़ा सोशल मीडिया मूवमेंट बना दें कि सरकार ऐसा करने की जुर्रत ना कर पाये| भगत सिंह ना कांग्रेस के थे, ना आप के, ना बीजेपी के, ना लेफ्ट के, वो पूरे देश के थे और देशभक्ति के सिरमौर थे, हैं और रहेंगे!

आप जहां भी हैं जिस भी राजनैतिक पार्टी से जुड़े हैं, वहाँ अपने नेताओं को इस मुद्दे पर चेतायें कि इस मुद्दे पर भी चुप रह गए तो फिर समझो मारे गए।

मेरा रंग दे बसंती चोला, माहे रंग दे बसंती चोला!

News Source: 
1) http://navbharattimes.indiatimes.com/state/punjab-and-haryana/chandigarh/Bhagat-Singhs-nephew-slams-neighbouring-states-move-on-renaming-airport/articleshow/50188766.cms?utm_source=whatsapp_wap
2) http://www.outlookhindi.com/country/state/mangal-sen-is-bjps-not-shaheed-bhagat-singh-5568

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 15 December 2015

सन् 1947 तक जाटों की रियासतें!

15 अगस्त 1947 तक जाटों की निम्नलिखित रियासतें थीं -

(क) हिन्दू जाट रियासतें: भरतपुर, धौलपुर, मुरसान, सहारनपुर, कुचेसर, उचागांव, पिसावा, मुरादाबाद, गोहद और जारखी। बल्लभगढ़ व टप्पा राया को अंग्रेजों ने 1858 में जब्त किया तथा हाथरस को 1916 में।
 

(ख) जाट सिक्ख रियासतें: पटियाला, नाभा, जीन्द, (फूलकिया रियासत) और फरीदकोट। इसके अतिरिक्त कैथल, बिलासपुर, अम्बाला, जगाधरी, नोरडा, मुबारिकपुर, कलसिया, भगोवाल, रांगर, खंदा, कोटकपूरा, सिरानवाली, बड़ाला, दयालगढ़/ममदूट तथा कैलाश बाजवा आदि को महाराजा रणजीतसिंह के राज में विलय किया तथा कुछ को अंग्रेजों ने जब्त कर लिया।
 

अक्सर कहा जाता है कि जाट फूलकिया रियासतों ने सन् 1857 में अंग्रेजों का साथ दिया, जिसका कारण था दिल्ली का बादशाह बहादुरशाह जफर। क्योंकि इस लड़ाई में भारतीयों ने इन्हें नेता चुना था। लेकिन सिख इसलिए नाराज थे कि मुगलों ने सिख गुरुओं को बहुत सताया और शहीद किया, जिस कारण सिखों ने उनका साथ नहीं दिया। लेकिन यह भी नहीं भूलना चाहिए कि राजस्थान की भी ऐसी तीन रियासतें थी - बीकानेर, जयपुर तथा अलवर जिन्होंने अंग्रेजों की पूरी सहायता की। महाराजा सिंधिया और टेहरी में टीकमगढ़ के राजाओं ने अंग्रेजों की फौजों के लिए पूरा राशन-पानी का प्रबन्ध किया और जी भरकर चापलूसी की। यह तो इतिहासकारों व लेखकों पर निर्भर रहा है कि उनकी नीयत क्या थी। ‘हरयाणा की लोक संस्कृति’ नामक पुस्तक के लेखक डॉ. भारद्वाज अपनी पुस्तक, जो केन्द्रीय सरकार द्वारा स्वीकृत है, में एक ही हरयाणवी कहावत लिखते हैं “जाट, जमाई, भाणजा, सुनार और रैबारी (ऊँटों के कतारिये) का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।” जबकि हरयाणा में तो ये भी कहावतें प्रचलित हैं “काल बागड़ से तथा बुराई ब्राह्मण से पैदा होती है”, दूसरी “ब्राह्मण भूखा भी बुरा तो धापा भी बुरा” तीसरी “ब्राह्मण खा मरे, तो जाट उठा मरे” अर्थात् ब्राह्मण खाकर मर सकता है और जाट बोझ उठाकर मर सकता है आदि-आदि। विद्वान् लेखक ने अपनी पुस्तक में दूसरी जातियों के सैंकड़ों गोत्रों का वर्णन भी किया है, कुम्हार जाति के भी 618 गोत्र लिखे हैं, लेकिन जाटों के 4800 गोत्रों में से केवल 22 गोत्र ही उनको याद रहे। “हरियाणा का इतिहास” के विद्वान् लेखक डा. के.सी. यादव अपनी पुस्तक में सिक्खों को बार-बार एक जाति लिखते हैं जबकि हम सभी जानते हैं कि सिक्ख जाति नहीं एक धर्म है। उनका लिखने का अभिप्राय सिक्ख जाटों को हिन्दू जाटों से अलग करने का प्रयास है। जबकि सभी जाटों का आपसी खूनी रिश्ता है और सभी सिक्ख जाट और हिन्दू राजाओं में आपसी रिश्तेदारियां रही हैं। बल्लभगढ़ नरेश नाहरसिंह फरीदकोट के राजा की लड़की से ब्याहे थे। मुरसान (उ.प्र.) नरेश महेन्द्र प्रताप जीन्द की राजकुमारी से तथा भरतपुर के नरेश कृष्ण सिंह फरीदकोट के राजा की छोटी बहन से ब्याहे थे। भरतपुर के अन्तिम नरेश बिजेन्द्र सिंह पटियाला की राजकुमारी से ब्याहे थे। पूर्व विदेश मन्त्री नटवरसिंह पटियाला रियासत के वंशज अमरेन्द्र सिंह की बहन से विवाहित हैं आदि-आदि। पंजाब के उग्रवाद तथा मीडिया के दुष्प्रचार ने हमारे आपसी रिश्तों पर कड़ा प्रहार किया है। इस प्रकार की पक्षपाती विचारधारा अनेक पुस्तकों में लिखी मिलेगी।
 

(ग) मुस्लिम जाट रियासत: करनाल मण्ढ़ान गोत्र की मुस्लिम जाट रियासत थी जिसके अन्तिम नवाब लियाकत अली थे जिसको पंत ब्राह्मणों ने अपनी लड़की ब्याही तथा ये पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री बने। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री चौ. फिरोज खाँ नून गोत्री, चौ. सुजात हुसैन भराइच गोत्री तथा चौ. आरिफ नक्कई सिन्धु गोत्री जो सिक्ख मिसल के सरदार हीरासिंह के वंशज थे। राष्ट्रपति चौ. रफिक तरार - तरार गोत्री जाट थे। चौ. छोटूराम के समय संयुक्त पंजाब में उनकी जमींदारा पार्टी (यूनियनिष्ट) के दोनों ही मुख्यमंत्री (प्रीमियर) सर सिकन्दर हयात खाँ - चीमा गोत्री तथा खिजर हयात खाँ ‘तिवाना’ गोत्री जाट थे। पूर्व में पंजाब पाकिस्तान के मुख्यमंत्री चौ. परवेज इलाही भराईच गोत्री जाट हैं। चौ. छोटूराम के समय संयुक्त पंजाब के अन्तिम प्रीमियर चौ. खिजर हयात खां तिवाना के पोते ने हमें बतलाया कि वहां पाकिस्तान में जाट मुसलमान रिश्ते के समय आज भी अपने मां व बाप का गोत्र छोड़ते हैं। उन्होंने हमें पाकिस्तान में आने का न्यौता दिया कि पाकिस्तान में आकर उन जाटों की लाइब्रेरियां और उनके संगठन देखें। चौ. उमर रसूल करांची (पाकिस्तान) ने बतलाया कि पाकिस्तान का मुस्लिम जाट चौ. छोटूराम का आज भी उतना ही भक्त है जितना सन् 1945 से पहले था। उनके घरों में सरदार भगतसिंह, चौधरी छोटूराम के चित्र तथा डा. बी. एस. दहिया की पुस्तक The Jat Ancient Rulers के उर्दू अनुवाद का मिलना आम बात है। जबकि हमारे यहां जाटों के घरों में या तो किसी बाबा का चित्र मिलेगा जिसका परिवार ने नाम दान दे रखा है या किसी वर्तमान राजनेता के साथ चित्र या किन्हीं देवताओं का चित्र मिलेंगे। यदिआज कोई नेता किसी जाट के घर में आकर चाय या नाश्ता आदि ले लेता है तो उस घर वाले अपने को धन्य समझने लग जाते हैं। यही आज के हमारे जाट की पहचान रह गई है।
(पुस्तक - सिख इतिहास, जाट इतिहास)
जय जाट
जय यौद्धेय