Sunday, 16 April 2017

किसी समाज-कल्चर-तंत्र में रिश्वतखोरी-भ्र्ष्टाचार की जड़ें पकड़नी हैं तो उसकी धार्मिक व्यवस्था में झांको!

क्योंकि धर्म से ही संस्कार पड़ते हैं, धर्म से ही मूल्य-मान्यता-मति बनती है| माँ-बाप व् गुरु के बाद जिस चीज का इंसान के अंत:कर्ण व् गलत-सही निर्धारित करने की सोच पर सबसे ज्यादा असर पड़ता है तो वह धर्म है| और क्योंकि माता-पिता व् गुरु भी अधिकतर (खासकर बचपन के वक्त) उसी धर्म के होते हैं, जिसमें वह पैदा हुआ होता/होती है, तो ऐसे में यह जाँच-परख अति लाजिमी हो जाती है|

और धर्म-पंथ ही हर बुराई व् अच्छाई की जड़, उसका स्त्रोत होता है| इसलिए लाजिमी है कि अगर उस समाज-कल्चर-तंत्र में फैले भ्र्ष्टाचार व् रिश्वतखोरी की जड़ें समझनी हैं तो उसके धर्म का ढांचा-व्यवस्था जरूर समझी-परखी-जांची जाए|

1) देखा जाए कि धर्म का दर उस धर्म के लोगों का बराबर से सत्कार करता है या नहीं? रंग-नश्ल-वर्ण इत्यादि के आधार पर भेदभाव तो नहीं करता? धर्म-पदों पर एक वर्ग-वर्ण विशेष का ही तो बाहुल्य नहीं है? क्योंकि आपकी नौकरी के इंटरव्यू के वक्त, उसमें प्रमोशन के वक्त, स्कूल-कालेज में दाखिले के वक्त; ऐसे धर्म का इंसान भाईभतीजावाद-पक्षपात करेगा और इस पक्षपात पे खुद को सांत्वना या सही ठहराने या मानने हेतु, अपने धर्म की इस भेदभाव वाली रिफरेन्स दे के सही करार ठहरा लेगा| और ऐसा करने को पाप नहीं मानेगा|

2) देखा जाए कि धर्म के नाम पर दिया दान, कहीं धर्म में ही तोड़फोड़, वाद-विवाद खड़े करवाने हेतु तो प्रयोग नहीं हो रहा है? क्योंकि इससे फिर उसको व्यापारिक टेंडर्स आवंटित करते वक्त, राजनीति में नस्लीय-जातीय वर्गीकरण करते वक्त; यही वाद-विवाद खड़े करने में निपुणता और रिफरेन्स धर्म के दर से आएगी|

3) देखें कि धर्म के दर पर दर्शन हेतु विशेष पंक्तियाँ तो नहीं बनी हैं? जैसे कि 100 रूपये चढ़ाने वालों की सामान्य पंक्ति अलग, 500 चढ़ाने वालों की वीआईपी पंक्ति अलग व् 1000 या इससे ऊपर चढ़ाने वालों की वीवीआईप विशेष डायरेक्ट दर्शन वाली पंक्ति अलग| क्योंकि अगर आप इस सिस्टम से होकर आते हैं तो फिर अपने कार्यस्थल पर भी वीआईपी कल्चर को बढ़ावा देंगे, रिश्वत लेने को अपना धर्म मानेंगे|

4) देखा जाए कि धर्म के नाम पर दान दिया गया पैसा, मुसीबत के वक्त समाज-कल्चर के कितना काम आता है या समाज के कल्चर के विभिन्न आयामों को प्रमोट करने में बराबर के अनुपात से प्रयोग होता है या नहीं? क्योंकि यदि ऐसा क्रॉसचेक नहीं हो रहा है तो आपमें चोरी के अवगुण और जवाबदेही से बचने की बीमारी दोनों प्रवेश कर रही हैं|

और भी ऐसे ही कई पैमाने हैं, जिनको देखने-सुनने-बरतने से विश्वास ना आवे तो उस धर्म में सुधार के लिए आवाज बुलंद कीजिये| यह इसलिए कीजिये क्योंकि आपको मानवता का भला करने वाला इंसान बनना है ना कि धर्म के नाम पर धूर्त व् गुंडे अपने सर पे बैठाने हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Saturday, 15 April 2017

Grand list of "225 Jat Legends" from all religions!

Author: Sir Jasbir Singh Malik, Editor-in-Chief Jat Ratan Magazine

Agreed upon all except figures picked from mythology! - Phool Malik

(1) धन्ना जाट भक्त - हरचतवाल गोत्री,

(2) पूर्ण भक्त उर्फ बाबा चौरंगीनाथ - संधु (सिन्धड़) गोत्री

(3) सन्त गरीबदास - धनखड़ गोत्री

(4) बाबा दीपसिंह - संधु गोत्री

(5) बाबा जोगी पीर - चहल गोत्री

(6) पीर बाबा काला मेहर - संधु गोत्री (पाकिस्तान)

(7) हाफीज बरखुरदार - भराइच गोत्री (पाकिस्तान)

(8) लाखन पीर - चीमा गोत्री

(9) सन्त निश्चलदास - दहिया गोत्री

(10) भक्तशिरोमणि रानाबाई - घाना गोत्री (राज.)

(11) पीर साखी सरवर - सरवर गोत्री (पाकिस्तान)

(12) बाबा सिद्ध भोई - धालीवाल गोत्री

(13) पीर बादोके - चीमा गोत्री

(14) बाबा हरिदास - डागर गोत्री (दिल्ली)

(15) बाबा कालूनाथ - गिल गोत्री

(16) बाबा सिद्ध कालींझर - भुल्लर गोत्री

(17) बाबा मेहेर मांगा - बाजवा गोत्री

(18) बाबा आल्टो - ग्रेवाल गोत्री

(19) बाबा सिद्धासन - रणधावा गोत्री

(20) बाबा तिलकारा - सिन्धु गोत्री

(21) सिद्ध सूरतराम - गिल गोत्री

(22) बाबा तुल्ला - बासी गोत्री

(23) बाबा अकालदास - पन्नु गोत्री

(24) बाबा फाला - ढिल्लो गोत्री

(25) शहीद स्वामी स्वतंत्रानन्द सरस्वती - सरोहा गोत्री

(26) बाबा अदी - गर्चा गोत्री

(27) बाबा उदासनाथ - तेवतिया गोत्री

(28) पीर बादोक्यान - चीमा गोत्री

(29) जट्ट ज्योना - मौर गोत्री, लेकिन इनको ब्राह्मणवाद ने ज्यानी चोर कहकर बदनाम किया, क्योंकि ये दक्षिण एशिया में अपने समय के महान् बुद्धिमान् व्यक्ति थे जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। इन्होंने ही राजकुमारी महकदे की रक्षा की थी।

(30) स्वामी आनन्द मुनि सरस्वती - राणा गोत्री (उत्तरप्रदेश)

(31) स्वामी केशवानन्द - ढाका गोत्री (राजस्थान) - इन्होंने राजस्थान में शिक्षा क्षेत्र में महान् कार्य किया। संघरिया शिक्षा संस्थान इन्हीं की देन है।

(32) भक्त फूलसिंह - मलिक गोत्री। इनके नाम पर हरियाणा के सोनीपत जिले के खानपुर गांव में महिला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है।

(33) लोक देवता वीर तेजा जी - धौला गोत्री, राजस्थान के घर-घर में पूज्यनीय वीर देवता तथा प्रेरणा-स्रोत। इन्हीं के गोत्री भाइयों ने धौलपुर (राज.) शहर बसाया था।

(34) बाबा मस्तनाथ - जाटवंशज

(35) बाबा शिवनाथ - खत्री गोत्री, अस्थल बोहर जिला रोहतक के मुखिया रहे।

(36) सन्त सदाराम जी - रेवाड़ गोत्री जाट, जोधपुर के पूजनीय संत।

(37) सन्त मूदादास जी - वास गोत्री जाट, जोधपुर क्षेत्र में पूजनीय।

(38) साधवी फूलाबाई जी - नागौर क्षेत्र में लोग उनके दर्शन से धन्य होते थे, मांझू जाट गोत्र में जन्मी।

(नोट- याद रहे हरयाणा के पूर्व मुख्यमन्त्री चौ० भजनलाल का भी यही गोत्र है जो हरयाणवी बिश्नोई जाट हैं न कि शरणार्थी पंजाबी।) इनके परिवार ने अवश्य कुछ दिन पाकिस्तान की भारत सीमा के साथ बहावलपुर स्टेट में अपने रिश्तेदारों के यहां खेती की थी। लेकिन ये सन् 1946 में ही वापिस अपने गांव आ गए थे। पर इनका जिक्र न ही करे तो अधिक अच्छा है 7-5-1991 के इन्होंने ही जाट आरक्षण रद्द करके जाट कौम के साथ ऐतिहासिक गद्दारी करी थी ।

(39) चूअरजी जाट जूझा - जिनकी मूर्ति राजस्थान में भगवान् की तरह पूजी जाती है।

(40) सन्त बख्तावर जी - झांझू गोत्री जाट, जिनकी मेवाड़ (राज.) क्षेत्र में पूजा होती है।

(41) हरिभगत कल्याण जी - जाठी गोत्री जाट जोधपुर राजाओं के गुरु कहलाये।

(42) महादानी भगत हर्षराम - फड़गौचा गोत्री जाट जिन्होंने खाटू से 12 कोस दूर पर विस्मयकारी कुंआं बनवाया जो आज भी अजूबा कहलाता है।

(43) गोगामेड़ी वाले - चहल गोत्री जाट, राजस्थान के गजरेरा गांव के रहने वाले थे, जिनके नाम पर मेड़ीधाम विख्यात है। यहां सभी धर्मों के लोग इन्हें पूजने जाते हैं।

(44) दानवीर सेठ छाजूराम - लांबा गोत्री जाट, जिनकी दान आस्था व सामर्थ्य कभी बिड़ला सेठ से भी अधिक थी।

(45) संत गंगा दास - ये महान् कवि संत थे जिनकी रचना ‘गंगा सागर’ संत सूरदास की रचनाओं के समक्ष मानी जाती है। ये गाजियाबाद के पास रसलपुर-बहलोलपुर के मुंडेर गोत्री जाट थे।

(46) बाबा सावनसिंहं - ग्रेवाल गोत्री - राधा स्वामी ब्यास

(47) जगदेवसिंह सिंह सिद्धान्ती - अहलावत गोत्री, यह महान् आर्यसमाजी तथा सांसद भी रहे ।

(48) राधा स्वामी ताराचन्द - मल्हान गोत्री - राधा स्वामी दिनोद सत्संग के संस्थापक।

(49) भगवानदेव आचार्य उर्फ स्वामी ओमानन्द – खत्री गोत्री, यह महान् आर्यसमाजी जिन्होंने कन्या गुरुकुल नरेला तथा गुरुकुल झज्जर की स्थापना की।

(50) सन्त जरनैलसिंह भिण्डरवाला - बराड़ गोत्री जिन्होंने सन् 1984 में विद्रोह किया।

(51) संत कैप्टन लालचन्द - जिला चुरू के रहने वाले सहारण गोत्री जाट जिन्होंने एक नया अध्यात्मक विचार पैदा किया।

(52) त्यागी मनसाराम व बूज्जाभगत - श्योराण गोत्री, आदि-आदि।


कुछ अन्य वीर योद्धा व विख्यात जाट, जिन्हें इतिहास ने भुलाया

कह न सकेगा देव भी, जाट वंश की गौरव कहानी ।

प्रेम से जिसने मिटा दी, देश हित में अपनी निशानी ॥


यह प्रामाणित सत्य है कि जो व्यक्ति अपने पूर्वजों के साहसिक कार्य पर गर्व नहीं करेगा वह अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं कर पायेगा जिस पर उसके वंशज गर्व कर सकें।


(1) वीर जाट द्रह्म - ये चन्द्रवंशी जाट थे जिन्होंने 2207 ईसा पूर्व चीन के तातार प्रदेश में पहुंचकर राज की स्थापना की, जिसे बाद में यूती जाति के नाम से जाना गया। यही चीन के पहले राजा हुए हैं।

(2) जाट योद्धा स्कन्दनाभ - ये चन्द्रवंशी जाट थे जो सबसे पहले अपने दल के साथ 500 ईसा पूर्व एशिया माइनर से होते हुए यूरोप पहुंचे तथा इसी नाम पर स्कंदनाभ राज बनाया जो बाद में स्कैण्डीनेविया कहलाया तथा जटलैण्ड की स्थापना की जिसे आज भी जटलैण्ड ही कहा जाता है। इसके बाद बैंस, मोर, तुड् आदि अनेक गोत्रीय जाट गए जो पूरे यूरोप में फैले जिन्हें बाद में गाथ व जिट्स आदि नामों से जाना गया।

(3) राजा गज - इन्होंने सबसे पहले अफगानिस्तान में गजनी राज की स्थापना की तथा गजनी के पास बुद्ध का एक बड़ा विश्व प्रसिद्ध

ऐतिहासिक स्तूप बनवाया था जिसे सन् 2001 में सभी विरोधों के बावजूद तालिबानियों ने डायनामाइट से उड़वा दिया। राजा गज के वंशज राजा बालन्द ने इस्लाम धर्म अपनाया। इसके बाद वहां के सभी जाट मुस्लिम धर्मी हो गए और इन जाटों ने चंगताई नामक मुगलवंश की स्थापना की।

(4) राजा वीरभद्र - इन्हें जाटों का प्रथम राजा कहा जाता है, जिन्होंने हरद्वार पर राज किया। इनके नाम पर हरद्वार के पास रेलवे स्टेशन है। इनका वर्णन देव संहिता में है। नील गंगा को जाट खोद कर लाये थे जिसे आज भी जाट गंगा कहा जाता है।

(5) मता जाट राजा - ये शिवी गोत्री जाट थे, जिन्होंने शिवस्तान पर राज किया।

(6) राजा चित्रवर्मा - ये बलोचिस्तान के राजा थे, जिनकी राजधानी कुतुल थी।

(7) राजा चन्द्रराम - हाला गोत्री जाट, जिसने सूस्थान पर राज किया।

(8) नरेश मूसक सेन - मौर गोत्र के जाट राजा जिन्होंने सिन्ध पर राज किया। इन्होंने सिकन्दर को सिन्ध से ब्यास तक पहुंचने पर 19 महीने तक उलझाए रखा।

(9) राजा सिन्धुसेन - मौर गोत्री जाट, जो सिन्ध के प्रसिद्ध राजा हुए।

(10) महाराजा जगदेव पंवार - अमरकोट के प्रसिद्ध राजा हुए जो पंवार गोत्री थे। गुजरात के जाट राजा सिद्धराज सोलंकी ने अपनी सुन्दर कन्या वीरमती का इनसे विवाह किया था। लोहचब पंवार गोत्र भी इन्हीं के वंशज हैं।

(11) वहिपाल - कुलडि़या गोत्री जाट, जिसने मारवाड़ (राज.) पर राज किया।

(12) नरेश कंवरपाल - कंसवा गोत्री जाट, जिन्होंने जांगल प्रदेश (राज.) पर राज किया। इनका राज सातवीं सदी तक था। ये महान् प्रशासक थे।

13) नरेश कान्हा देव - ये पूनियां गोत्री जाट राजा थे। इनका पश्चिमी राजस्थान पर राज था। इन्हें कभी नहीं हारनेवाला राजा कहा गया है।

(14) राजा जयपाल - दसवीं सदी के महान् जाट राजा हुए, जिनका विशाल राज्य था। इन्हीं का पुत्र राजा आनन्दपाल तथा इनका पौत्र सुखपाल हुआ, जिसने मुस्लिम धर्म अपनाया और नवाबशाह कहलाये।

(15) सम्राट् कक्कुक - काक गोत्री जाट, जिसने जोधपुर क्षेत्र पर राज किया।

(16) नरेश सिद्धराज विष्णु - पल्लव गोत्री जाट, जिसने दक्षिणी भारत पर राज किया।

(17) नरेश नरसिंह वर्मन - नरेश सिद्धराव के पौत्र जिसने सन् 640 में श्रीलंका पर विजय पाई।

(18) राजा रिसालू - सातवीं सदी में स्यालकोट क्षेत्र पर राज किया।

(19) राजा भोज - पंवार गोत्री जाट, जिनका इतिहास आज भी गांव के लोगों की जनश्रुतियों में है।

(20) राजा मुंजदेव - पंवार गोत्री जाट, जिनका दसवीं सदी में मालवा (पंजाब) क्षेत्र पर राज था।

(21) राजा अजीत व राजा बछराज - मोहिल गोत्री जाट, जिनका राजपूतों से पहले जोधपुर पर राज था। याद रहे जोधपुर व जालौर के किले दहिया जाट राजाओं ने बनवाये थे।

(22) राजा शिशुपाल - चेदि गोत्री जाट, जिसने बुन्देलखण्ड पर राज किया।

(23) सम्राट् चकवाबैन - इनका पूरे पंजाब पर राज रहा, इन्हीं के पौत्र मघ ने स्वप्नसुन्दरी राजकुमारी निहालदे से विवाह किया। इसी चकवाबैन से जाटों के बैनीवाल गोत्र की उत्पत्ति हुई।

(24) राजा छत्रसाल - गोहद (मध्यप्रदेश) के राजा, जिन्होंने लड़ाई में मराठों को हराया।

(25) सरदार झूंझा - नेहरा गोत्री जाट योद्धा जिसके नाम पर झूंझनू (राजस्थान) शहर बसाया। नेहरा जाटों का राज राजस्थान में नरहड़ और नाहरपुर पर था। इसलिए इस क्षेत्र (राज.) को पहले नेहरावाटी कहते थे, जो बाद में शेखावाटी कहलाया।

(26) कंवरपाल जाट - कसवां गोत्री जाट, जिसने राजस्थान में राठौर राजपूतों से आखिर तक लोहा लिया।

(27) तोला सरदार - तोयल गोत्री योद्धा जाट जिसने नागौर (राज.) जिले के खारी क्षेत्र पर राज किया। यहां शिलालेख मिला है जिस पर लिखा है-

अकबर सूं तोला मिला करके बात करारी।

पट्टी रहू मैं नगौररी घर म्हारा खारी।।

(28) बीजल जाट - मान गोत्री जाट जिसने ढोसी (हरयाणा) पर राज किया।

(29) राजा विजयराव - भटिण्डा क्षेत्र के राजा राव गोत्री जाट जिसने एक बार गजनी को लूटकर नंगा कर दिया था। राव गोत्री जाटों के गांव उत्तरप्रदेश के अलीगढ़ जिले में हैं। सांगवानों के गांव खेड़ी बत्तर में भी राव जाटों के कुछ घर हैं।

(31) विजयपाल जाट - इन्होंने आज के भरतपुर (राज.) के पास तवणगढ़ बसाया फिर डीग के पास सिनसिनी गांव बसाया और यही सिनसीनवार गोत्री जाट कहलाए, जिन्होंने सन् 1723 में भरतपुर राज्य की विधिवत् स्थापना की।

(32) चूड़ामन जाट - ये बहादुर चूड़ामन जाट सिनसीनवार जाट खाप के प्रधान थे जिन्होंने बहादुर जाटों की अपनी एक सेना बना ली थी जो मुगलों के दक्षिण से आने वाले खजानों को लूट लेती थी और अपने क्षेत्र से मुगलों को जमीन की कोई भी मालगुजारी नहीं देते थे। यही वीर चूड़ामन जाट वास्तव में भरतपुर रियासत के आधार रखने वाले थे, जिन्हें ‘बेताज बादशाह’ कहा जाता है। जाटों को लुटेरा कहे जाने का एक कारण चूड़ामन जाट है जिन्होंने केवल मुगलों को ही जी भर कर लूटा था।

(33) महाराजा बदनसिंह - जैसा कि ऊपर लिखा है कि भरतपुर रियासत का आधार चूड़ामन जाट ने रखा था, लेकिन इस रियासत के विधिवत् पहले राजा बदनसिंह थे, जिन्होंने इसको एक विशाल रियासत का पूर्ण रूप देकर अपनी सीमाओं का विस्तार किया।

(34) वीर चरहतसिंह जाट - पंजाब में अब्दाली को धावा बोलकर लूटा।

(35) योद्धा रोरियासिंह जाट - सिनसिनवार गोत्री जाट, जिसने अपने ब्रज क्षेत्र में जाट खापों को इकट्ठा करके सबसे पहले सन् 1635 में मुगल शासन का विरोध किया।

(36) नन्दराम जाट सरदार - ठेनुवा गोत्री जाट जिसने जमनापार मुगलों के विरुद्ध झण्डा बुलन्द किया।

(37) योद्धा मोहन मढान - मढान गोत्री जाट, जिसने सन् 1526 के आसपास किलायत (हरयाणा) रियासत की स्थापना की। बाद में इन्हीं के वंशजों से मुस्लिम धर्म अपनाया और चौधरी लियाकत अली खां पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमन्त्री इसी खानदान से थे।

(38) वीर योद्धा रामलाल खोखर - खोखर गोत्री जाट - जिसने 15 मार्च सन् 1206 को मोहम्मद गौरी उर्फ साहबुद्दीन गौरी को लाहौर के पास लड़ाई में मारा था।

(39) सेनापति कीर्तिमल - लड़ाई में राणा सांगा का मुख्य सेनापति, जो राणा सांगा को घायल अवस्था में युद्धभूमि से खींचकर बाहर लाये तथा उनका ताज पहनकर लड़ते हुए शहीद हुए। ये वीर योद्धा धौलपुर के भम्भरोलिया गोत्री जाट थे।

(40) सरदार श्यामसिंह - यह एंगलो सिक्ख लड़ाई में सेनापति थे जो बराड़ गोत्री जाट थे।

(41) रहमत खाँ भराइच - भराइच गोत्री जाट, जिसने गुजरात किले पर कब्जा किया।

(42) सरदार भीमसिंह - ढिल्लों गोत्री जाट, जिसने भंगी मिसल की स्थापना की।

(43) भीमसिंह राणा - जाटों की गोहद रियासत के राजा जिन्होंने ग्वालियर किले को फतेह किया- राणा इनकी उपाधि थी, गोत्र भम्भरोलिया था। इसी विजय को मध्यप्रदेश के जाट आज भी हर वर्ष राम नवमी के दिन एक विजय दिवस के रूप में मनाते हैं। ग्वालियर के चारों ओर जाटों की अनेक गढि़या हैं।

(44) छत्तरसिंह राणा - ग्वालियर के आखरी जाट राजा, भम्भरोलिया गोत्र के जाट थे। जाटों ने गवालियर पर सन् 1755 से 1785 तक शासन किया।

(45) वीर सज्जनसिंह - बालियान गोत्री जाट थे जिन्होंने सतारा (महाराष्ट्र) रियासत की स्थापना की।

(46) वीर विक्रमशाह राणा वीरेन्द्रसिंह - नेपाल नरेश के पूर्वज गहलोत वंशी जाट थे।

(47) जयसिंह कान्हा - सिन्धु गोत्री, जिसने कान्हा मिसल की स्थापना की।

(48) सरदार हीरासिंह भंगी - ढिल्लों महान् योद्धा भीमसिंह का भतीजा।

(49) राजा जोधासिंह - बराड़ गोत्री जाट, जिसने कोटकपूरा (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(50) राजा जाटवान - मलिक गठवाला गोत्री जाट, जो दिपालपुर (हरयाणा) राज के राजा थे जिसने कतुबुद्दीन ऐबक को नाकों चने चबाये।

(51) राजा हस्ती - तक्षक (टोकस) गोत्री जाट जिसका सिंध पर राज था तथा राजा पोरस के रिश्तेदार थे जिन्होंने सिकन्दर से बहादुरी से लोहा लिया।

(52) शालेन्द्र जाट - महाराजा कनिष्क के रिश्तेदार तथा पंजाब के मालवा से कोटा तक राज किया, इन्हीं के वंशज शालीवाहन ने स्यालकोट बसाया।

(53) नवाब कपूरसिंह - विर्क गोत्री जाट, जिसने ‘दल खालसा’ तथा सिंघपुरिया मिसल की स्थापना की।

(54) खौसालसिंह - रामगढि़या मिसल की स्थापना की।

(55) राव दुलसिंह - बराड़ गोत्री जाट, जिसने फरीदकोट (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(56) सरदार बघेलसिंह ढिल्लो के पुत्रों ने कसलिया और फतेहगढ़ (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(57) कलियाणा जाट सरदार उज्जैन (मध्यप्रदेश) के शासक रहे जिससे जाटों का कल्याण गोत्र प्रचलित हुआ।

(58) वीर दरगा - सिन्धु गोत्री जाट जिसने सिराववाली (पंजाब) राज की स्थापना की।

(59) वीर गुरदतमल - सिन्धु गोत्री जिसने बडाला (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(60) दयानल - रणधावा गोत्री जाट जिसने ‘खंदा’ (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(61) भगत जाट औम - सिन्धु गोत्री जाट जिसके वंशजों ने भटिण्डा, कैथल व दूनोली (पंजाब) पर राज किया।

(62) वीरराज रामधन - दलाल गोत्री जाट जिसने कुचेसर (उत्तरप्रदेश) रियासत की स्थापना की।

(63) वीर योद्धा सुन्दरसिंह - जिसने जारखी (उत्तरप्रदेश) रियासत की स्थापना की।

(64) वीर नन्दरामसिंह - जिसने हाथरस (उत्तरप्रदेश) रियासत की स्थापना की।

(65) वीरराज जयदेव - भम्भरोलिया गोत्री जाट जिसने धौलपुर (राजस्थान) और गोहद (मध्यप्रदेश) रियासतों की स्थापना की।

(66) वीरशिरोमणि भज्जासिंह - सिनसिनवार गोत्री जाट, जिसने शहजादा बेदाबख्त तथा बिशनसिंह राजपूत की सेनाओं को सिनसिनी युद्ध में नाकों चने चबाये।

(67) वीर कैलाश - बाजवा गोत्री जाट जिसने कैलाश बाजवा (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(68) वीर सूरजप्रकाश जाट - दहिया गोत्री जाट, सर्व खाप हरयाणा का वीर एक सेनापति जिसने तुर्कों को करनाल के मैदान में हराया।

(69) दसोदासिंह - गिल गोत्री जाट जिसने निशानवाला मिसल की स्थापना की।

(70) चतरसिंह - शिवी गोत्री जाट जो महाराजा रणजीतसिंह के दादा थे जिन्होंने सुकरचकिया मिसल की स्थापना की।

(71) करोड़ासिंह - विर्क गोत्री जाट जिन्होंने ‘करोड़ा सिंघया’ मिस़ल की स्थापना की।(72) तीलोका - सिन्धु गोत्री जाट फूलसिंह का लड़का जिसके दो पुत्रों ने नाभा (पंजाब) व जीन्द (हरयाणा) रियासतों की स्थापना की। फूलसिंह के वंशजों ने ही नाभा, जीन्द और पटियाला रियासतों की स्थापना की, इसलिए ये फूलकिया रियासत कहलाई।

(73) ठाकुरसिंह सन्धानवाला - सिन्धु गोत्री जाट जिसने ‘सिंघसभा’ की स्थापना की।

(74) हीरासिंह - नकई गोत्री जाट जिन्होंने ‘नकई’ मिसल की स्थापना की।

(75) बाबा आलासिंह - सिन्धु बराड़ गोत्री जाट जिसने ‘पटियाला’ रियासत की स्थापना की। नोटः- बराड़ गोत्र का निकास संधु, सिन्धु, सिधु व सिन्धड़ गोत्र से है। सिंधु गोत्र के 36 गांव हैं । रामपुरा फूल जिला भटिण्डा (पंजाब) में है।

(76) स्वामी केशवानन्द - ये राजस्थान के रहने वाले ढाका गोत्री जाट थे जो अत्यन्त गरीबी में पैदा हुए जिनके पास बचपन में पहनने के लिए जूते भी नहीं होते थे। इन्होंने अपने महान् तप और तपस्या से राजस्थान के संघरिया शिक्षण संस्थानों की नींव डाली। सन् 1927 में गुरु ग्रंथसाहिब का हिन्दी में अनुवाद करवाया तथा 1945 में सिक्ख इतिहास का हिन्दी में अनुवाद किया। राजस्थान में जाटों की शिक्षा की उन्नति में स्वामी जी का बड़ा हाथ है जिससे राजस्थान के जाट इनके बहुत ही ऋणी अनुभव करते हैं। जाट जाति को इन पर गर्व है।

(77) भरतपुर नरेश कृष्ण सिंह - ये अंग्रेजों के समय 26 अगस्त 1900 को भरतपुर रियासत के राज्याधिकारी बने जिन्होंने अपनी प्रजा के लिए अनेक सार्वजनिक कार्य किए। इन्हें हमारी जाट कौम से विशेष स्नेह था। भारत के इतिहास} में सबसे पहले इन्होंने ही नगर पालिका की स्थापना करी थी जो आज भारत सरकार के लिए आदर्श है ।

(78) जननायक राजा मानसिंह - राज मानसिंह एक जननायक कर्मठ और शेर-ए-दिल इंसान थे जिनकी निर्मम हत्या दिनांक 21 फरवरी 1985 को डींग की अनाज मण्डी में राजस्थान के मुख्यमन्त्री शिव चरण माथुर के हेलीकाप्टर को अपनी जीप से टक्कर मारकर तोड़ डालने के कारण की गई, जिसका कारण था चुनाव में इनके पोस्टर और बैनर फाड़ दिए गए थे।

(79) आला-उद्दल-मलखान - वत्स गोत्री जाट जिनके साथ युद्ध में पृथ्वीराज चौहान का पुत्र पारस मारा गया था।

(80) जाटनी सदाकौर - कन्हैया मिसल की सरदार (मुखिया) महाराजा रणजीतसिंह की सास।

(81) अकाली फूलासिंह - सहारण गोत्री जाट महाराजा रणजीतसिहं के सेनापति तथा अकाल तख्त के जत्थेदार।

(82) वीर कान्हा रावत - मेवात के रहने वाले रावत गोत्री जाट जो औरंगजेब के विरुद्ध लड़कर शहीद हुए। इस वीर जाट को औरंगजेब ने जिंदा जमीन में गड़वा दिया था जिनका इतिहास बहुत लम्बा है।

(83) क्रांतिकारी राजा महेन्द्रप्रताप - ठेनुवा गोत्री मुरसान (उ०प्र०) के जाट राजा जिसने देश की आजादी के लिए अपनी रियासत की बलि चढ़ा दी और 32 साल विदेशों में रहकर ‘आजाद हिन्द सरकार’ की स्थापना करके आजादी का बिगुल बजाते रहे। आई.एन.ए. के वास्तविक संस्थापक वही थे, नेता जी इसके सेनापति थे तो राजा जी इसके राष्ट्रपति थे। लेकिन अफसोस है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के क्षेत्र को छोड़कर जाट भी उनके बारे में नहीं जानते।

(84) जनरल मोहनसिंह - नेता जी सुभाष की आई.एन.ए. में एक प्रमुख सेनापति थे।

(85) वीर योद्धा पदमसिंह जाट - आई.एन.ए. में वीरता की सबसे बड़ी उपाधि ‘वीर-ए-हिन्द’ थी, जिसमें एकमात्र हिन्दू को यह उपाधि मिली बाकी दो मुसलमानधर्मी जाट थे। नेता जी को इन पर बड़ा गर्व था।

(86) वीर अजीतसिंह संधू शहीद भगतसिंह के चाचा जी तथा महान् क्रांतिकारी जिन्होंने नारा दिया 'पगड़ी सम्भाल ओ जट्टा पगड़ी सम्भाल’।

(87) शहीद वीर बन्तासिंह - दायमा गोत्र के जाट, शहीद भगतसिंह के साथी तथा महान निडर क्रान्तिकारी।

(88) शेरे दिल अवतारसिंह शराबा - ग्रेवाल गोत्री शहीद भगत सिंह के आदर्श, जिनको फांसी की सजा सुनाने के 4 महीने बाद जब फांसी हुई तो 8 किलो वजन बढ़ा हुआ मिला।

(89) वीर बाबा बेशाखासिंह - महान् क्रांतिकारी और अंग्रेजी सरकार का बड़ा सिरदर्द।

(90) शेरे दिल शहीद हरिकिशन - महान् क्रांतिकारी जिसको फांसी सुनाने पर उन्होंने जज से कहा - very good.

(91) ताना जाट - मलसूरा गोत्री जाट जिसने शिवाजी व उसके पुत्र सम्भाजी को औंरगजेब की जेल से मिठाई के टोकरों में बाहर निकाला।

(92) मेजर जयपालसिंह मलिक - महान् क्रांतिकारी जो अंग्रेजी सेना के सीने में कील थे।

(93) शहीद रंगासिंह व शहीद वीरसिंह - आजादी के दीवाने।

(94) वीर योद्धा सज्जनसिंह जाट - सतारा रियासत के संस्थापक (महाराष्ट्र)।

(95) हरफूल जाट जुलानीवाला - श्योराण गोत्री जाट, इनकी बहादुरी मंगल पाण्डे से कई गुणा अधिक थी। ये जींद जिला हरयाणा के जुलानी गांव के रहने वाले थे।

(96) हीर-रांझा - दक्षिण एशिया के महान् जाटयुगल प्रेमी हुए जिसमें लड़की का नाम हीर तथा गोत्र ‘स्याल’ था, लड़के ढिल्लो गोत्र रांझा था।

(97) मिर्जा और साईबा - महान् प्रेमीयुगल हुए, जिसमें मिर्जा खरल गोत्री जाट तथा साईबा भराईच गोत्री जट्ट पुत्री थी।

(98) पील्लू जट्ट - मिर्जा साहिबा पर लोकगीत लिखकर एक विशाल साहित्य की रचना की।

(99) कादर यार - सन्धु गोत्री जाट जिसने पूरण भक्त पर लोकगीत तथा साहित्य की रचना की।

(100) भाई मनीसिंह - ‘दौलत’ गोत्री योद्धा। एक लेखक और शहीद जिन्होंने मौलिक ‘गुरुग्रंथ’ को लिपिबद्ध किया।

(101) भाई महताबसिंह - भंगू गोत्री वीर योद्धा जाट – जिसने स्वर्ण मन्दिर को अपवित्र करने वाले रांघड़ों (मुस्लिम राजपूतों) से बदला लिया।

(102) राजा राव नैनसिंह - ये कश्यप गोत्री जाट थे, राव इनकी उपाधि थी। इनका छोटा सा व आखिरी राज 12वीं सदी में ब्यावर (राज.) के लहरीग्राम में था। जो आज रैबारी जाति का ग्राम है। ये चौ. संग्रामसिंह जिनके नाम पर सांगवान गोत्र का प्रचलन हुआ, के पिता थे। पहले इन कश्यप गोत्री जाटों का बड़ा पंचायती राज सारसू जांगल (राज.) पर था। राव व सांघा इन जाटों की उपाधि रही हैं। 14वीं सदी में चरखी दादरी (हरयाणा) क्षेत्र में आए।

(103) धौलपुर नरेश उदयभानुसिंह - इन्होंने दिल्ली के बिरला मन्दिर की नींव अपने करकमलों से सन् 1932 में रखी थी। इसका पत्थर मन्दिर के बायीं तरफ पार्क में लगा हुआ है।

(104) वीर योद्धा रामसिंह - ये खोजा गोत्री जाट थे, जिन्होंने राजस्थान में 11वीं सदी में टोंकरा शहर बंसाया जो आज टोंक कहलाता है।

(105) वीर नल्ह विजयराणिया - इतिहासकार लिखते हैं कि इनके पूर्वज सिकन्दर की सेना में भारत आये थे। ये स्वयं भी सिकन्दर के एक सेनापति थे। ये विजयराणा इनकी पदवी थी, इन्हीं के वंशज योद्धा जगतसिंह, वीरसिंह व देवराज आदि हुए। यह पदवी इनके गोत्र में बदल गई और आज गलत उच्चारण करके इन्हें लोग बिजाणियां बोलते हैं।

याद रहे सिकन्दर की सेना में काफी जाट थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि हमेशा जाट ही जाट से लड़ते रहे। जब सिकन्दर की यूनानी सेना ने ब्यास से आगे बढ़ने से मना कर दिया तो सिकन्दर ने कहा था “मैं जाटों के साथ आगे बढ़ जाऊंगा”।

(106) वीर खेमसिंह - भूखर गोत्री जाट, जिसका सांभर प्रदेश (राज.) पर राज था। इन्हीं के वंशज योद्धा उदयसिंह हुए।

(107) जाटनरेश सम्मतराज - ये भादु गोत्री महान् योद्धा जाट राजा हुए, जिन्होंने राजस्थान में भादरा बसाया और राज किया।

(108) शेर जाट रणमल - इस योद्धा जाट ने जहां रणखंभ गाड़ा था वही बाद में राजस्थान में रणथम्भौर कहलाया। बाद में यह राज चौहान राजपूतों के हाथ चला गया।

(109) नरेश नागावलोक - यह नागिल गोत्री जाट थे जिनका मेदपाट (राज.) पर राज था। बाद में इन जाटों ने नागौर व नोहर पर भी राज किया।

(110) सरदार लाडसिंह - यह जाखड़ गोत्री जाट थे, जिन्होंने हरयाणा में लाडान गांव बसाया। ये योद्धा जाखड़ गोत्र के कुछ जाटों को राजस्थान से हरयाणा क्षेत्र में लाये।

(111) वीर बादल और गौरा - राणा रायमल के दो जाट सेनापति थे जिनके नाम पर चितौड़ में दो गुम्बजदार मकान हैं। ये चाचा भतीजे थे।

(112) वीर शहीद माड़ू उर्फ उदयसिंह - ये वीर योद्धा शूरवीर गोकुला जाट के साथ शहीद हुए।

(113) नेता श्रीपत माखन - ठेनुवा गोत्री जाट, जो जाटों को ब्रज क्षेत्र में लाये और टप्पा रावरा (उ.प्र.) रियासत की स्थापना की।

(114) जाट योद्धा भागमल - मीठा गोत्री जाट, जिसने इटावा (उ.प्र.) के पास फफूद राज्य की स्थापना की।

(115) वीर योद्धा पाखरिया - महाराजा जवाहरसिंह भरतपुर नरेश के सेनापति। खुटेल गोत्री जाट जिसने लाल किले के किवाड़ उतारकर भरतपुर पहुंचाये।

(116) सेनापति पूर्ण जाट - गढवाल गोत्री जाट, जो मलखान के

सेनापति थे। इन्हीं के पूर्वजों ने उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर का निर्माण करवाया (117) प्रचण्ड वीर खेमकरण - शूर गोत्री जाट, जिनके कारण शौरसेन क्षेत्र कहलाया।

(118) योद्धा रामकी चाहर - चाहर गोत्री जाट, जिसने ब्रज क्षेत्र में मुगलों का छाया की तरह पीछा किया। मुगल औरतें अपने बच्चों को इनका नाम लेकर डराया करती थीं।

(119) वीर योद्धा हाथीसिंह - खुटले गोत्री जाट, जिसने सोख (उ.प्र.) किले का निर्माण करवाया।

(120) राजा सरकटसिंह - शेखपुरा (पंजाब) के जाट राजा जो लड़ाई में दुश्मन का सिर काटने में माहिर थे, जिस कारण इनका नाम सरकटसिंह पड़ा।

(121) जाट नरेश शेरसिंह - अफगानिस्तान के हजारा राज के प्रसिद्ध राजा हुए।

(122) योद्धा पदार्थसिंह - इन्होंने सहारनपुर (उ.प्र.) रियासत की स्थापना की।

(123) योद्धा फोदासिंह - कुन्तल गोत्री जाट, जो महाराजा सूरजमल के एक सेनापति थे।

(124) वीर शहीद हरबीर गुलिया - बादली (हरयाणा) के गुलिया गोत्री जाट योद्धा जिसने तैमूरलंग की छाती में भाला मारकर सख्त घायल किया। लेकिन स्वयं 52 घाव होने पर लड़ते हुए शहीद हुए।

(125) हरावल जाट - महाराजा सूरजमल के एक अन्य वीर सेनापति।

(126) शंकर जाट - भरतपुर नरेश नवलसिंह के महान् योद्धा सेनापति।

(127) राजा भूपसिंह - मुरसान तथा हाथरस (उ.प्र.) के जाट राजा जिसने कभी जाटों को भूमिकर नहीं देने दिया।

(128) महारानी जिन्दा - महाराजा रणजीतसिंह की महारानी जिन्होंने कुछ समय के लिए महाराजा रणजीतसिंह के राज पर राज किया।

(129) योद्धा वीरदत्ता - बराड़ गोत्री जाट, जिसने नाभा (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(130) रावसिध - बराड़ गोत्री योद्धा, जिसने फरीदकोट (पंजाब) रियासत की स्थापना की।

(131) सुखचैन - बराड़ गोत्री जाट, जीन्द (हरयाणा) रियासत के संस्थापक।

(132) महारानी किशोरी देवी - महाराजा सूरजमल की बहादुर रानी जिसने लाल किले की चढ़ाई में भाग लिया तथा पुष्कर में पर भी की लूट का कारण बनी तथा वहां जाट घाट बनवाया।

(133) बलराम जाट - रानी किशोरी का भाई, जो लाल किले की लड़ाई में किले के दरवाजों पर पीठ लगाकर हाथी से टक्कर मरवाकर शहीद हुए।

(134) वीरांगना समाकौर - मलिक जाटों की बेटी तथा अहलावत जाटों की बहू, जिसने कलानौर नवाब की गलत प्रथाओं को मानने से इनकार किया तथा नवाब और उसके परिवार के अन्त का कारण बनी।

नोट - इस कुप्रथा के बारे में लोगों ने बहुत अनाप-शनाप लिखा ह। इसे ‘कलानौर का कोला पूजा प्रथा’ कहा जाता था। कोला का अर्थ है मुख्य दरवाजे के दोनों तरफ के हिस्से, जिसको वहां से गुजरनेवाली नई नवेली दुल्हन को नवाब की कोठी (गढ़ी) के दरवाजे के साथ दीपक जलाकर साथ पतासे रखकर दोनों तरफ कोलों पर पानी के छीटें मारकर पूजा करनी पड़ती थी। इसके अलावा जो बतलाते हैं कोरी बकवास है जिसके प्रमाण हैं। चौधरी सूरजमल सांगवान ने भी इसका पूरा सच्चा वर्णन अपनी पुस्तक ‘किसान संघर्ष और विद्रोह’ में किया है।

(135) योद्धा ढलैत - सांगवान गोत्री जाट, जो सर्वखाप सेना के सेनापति थे, जिसने कलानौर नवाबी का नाश किया। इनकी यादगार गांव गढ़टेकना (रोहतक) में बनी है।

(136) बीबी साहिबकौर - सरदार जाट गुलाबसिंह की पुत्री, जिसने सन् 1787 में राजगढ़ के मैदान में मराठों को लड़ाई में धूल चटाई।

(137) वीरांगना सोमा देवी - चाहर गोत्र की जाटपुत्री, जिसने बीकानेर में सिधमुख स्थान पर लड़ाई में मुगलसेना टुकड़ी को धूल चटाई।

(138) वीरांगना हरशरणकौर - मान गोत्र की जटपुत्री, जिसने 1837 में जमरोद (पाकिस्तान) के किले की अपनी बहादुरी से रक्षा की।

(139) सम्राट् अवन्ती वर्मन - उत्पल गोत्री महान् सम्राट्, जिसने नौवीं सदी में सम्पूर्ण काश्मीर पर दृढ़ता से शासन किया तथा अवन्तीपुर शहर बसाया, जहां उसके बौद्ध मन्दिरों के खण्डरात आज भी मौजूद हैं।

(140) हरिसिंह नलवा - खत्री गोत्री जाट, जो महाराजा रणजीत सिंह के एक मुख्य सेनापति थे।

(141) करणीराम जाट - झूंझनूं (राजस्थान) में अपनी जाति के लिए शहीद होने वाले पहले वकील।

(142) भूरा तथा निघाइया नम्बरदार - लजवाना (हरयाणा) गांव के दलाल गोत्री जाट, जिन्होंने राजा जीन्द से 6 महीने तक छापामार युद्ध किया।

(143) कर्नल दिलसुख - मान गोत्री जाट, जो आई.एन.ए. में नेता जी के साथ रहे, वरना ये इतने सीनियर थे कि ये भारतीय थल सेना के अध्यक्ष बन सकते थे।

(144) कप्तान कंवल सिंह दलाल - नेताजी सुभाष के साथ बर्लिन से टोकियो तक पनडुब्बी में साथ रहे।

(145) जमादार हरद्वारी लाल - जिन्होंने संसार में सबसे पहले 10 हजार फुट की ऊंचाई पर अपना टैंक चढ़ाया।

(146) सूबेदार बस्ती राम - पहले भारतीय जिनको सन् 1839 में इण्डियन आर्डर आफ मैरिट (आई.ओ.एम.) बहादुरी का पदक मिला।

(147) सिपाही भवानी सिंह - गिलजाई की लड़ाई में पहला आई.ओ.एम. बहादुरी का पदक मिला। याद रहे 1856 के बाद विक्टोरिया क्रास (वी.सी.) मिलना प्रारम्भ हुआ।

(148) कैप्टन भोला सिंह - हिन्दू डोगरा जाट, जो भारतीय सेना के प्रथम योद्धा जिन्हें ओ.बी.आई. (आर्डर आफ ब्रिटिश इण्डिया) का वीरता का पदक मिला जिनकी मूर्ति देवलाली आर्मी सैन्टर में लगी है। इन्हें जम्मू क्षेत्र के जाटों को जम्मू काश्मीर लाईट इन्फैन्टरी में स्थान दिलाने का श्रेय है।

(149) मेजर होशियारसिंह (बाद में ले. कर्नल) दहिया गोत्री जाट जिसे भारतीय सेना में जीवित अवस्था में प्रथम ‘परमवीर चक्र’ मिला। अन्य जाट थे -

(150-151) ला. ना. कर्मसिंह तथा स्का. लि. निर्मलजीत सिंह शेखों (दोनों सिख जाट)।


सन् 1856 से लेकर सन् 1947 तक कुल 1346 सैनिकों को ‘विक्टोरिया क्रास’ मिला, इनमें 40 भारतीय थे और इनमें से 10 ‘विक्टोरिया क्रास’ जाटों के नाम हैं। नाम इस प्रकार हैं -

1-रिसलदार बदलूसिंह धनखड़ (पहले भारतीय जिनको यह पदक मिला),

2-सिपाही ईश्वर सिंह,

3-सूबेदेदार रिछपाल राम लाम्बा,

4-हवलदार प्रकाश सिंह,

5-हवलदार छैल्लूराम कोठारी,

6-नायक नन्दसिंह,

7-सिपाही कमलराम,

8-जमादार ज्ञानसिंह (इन्हें 1948 की लड़ाई में महावीर चक्र भी मिला था।)

9-कैप्टन परमजीत,

10-जमादार अब्दुल हमीज (यह प्रथम जाट बटालियन के थे. वैसे जाति से रांघड़ थे)।


(150) शहीद पायलट शैफाली चौधरी - लोदाना गांव (उ.प्र.) - भारतीय वायुसेना में ‘शौर्य चक्र’ प्राप्त करने वाली प्रथम महिला।

(151) डा. रामधनसिंह - जिसने सबसे पहले गेहूं की नई नस्ल का आविष्कार किया, लेकिन नोबल पुरस्कार डा. बोरलंग ले उड़े।

(152) डॉ. पी.एस. गिल - पहले भारतीय जिन्होंने दूसरे विश्वयुद्ध के समय अमेरिका की ‘एटम बम्ब मैनहैटन योजना’ में कार्य किया।

(153) कैप्टन भगवान सिंह - हिन्दू जाटों के पहले आई. सी. एस. अधिकारी थे। ये राजदूत भी रहे तथा कई वर्षों तक अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष भी थे।

(154) मेजर जनरल सूभेगसिंह - भंगू गोत्री जाट, भाई महताबसिंह के वंशज- जिन्होंने सन् 1984 के विद्रोह में सन्त जनरेलसिंह भिन्डरवाला का साथ दिया।

(155) ए.एस.चीमा - प्रथम भारतीय जो ‘माउंट एवेरेस्ट’ पर चढ़े।

(156) कै० सुमन सांगवान - प्रथम वर्दीधारी उच्च-अधिकारी महिला जो ‘माउंट ऐवरस्ट’ पर चढ़ी ।

(157) शेरसिंह ढिल्लों - ढिल्लों गोत्री जाट, जिन्होंने हिन्द महासागर को पैडल बोट से पार करने में विश्व रिकार्ड कायम किया।

(158) कृष्ण कुमार चहल - चहल गोत्री जाट, जिसने मैमोरी (यादगार) में सन् 2006 में विश्व रिकार्ड बनाया।

(159) नवीन गुलिया - गुलिया गोत्री जाट, जिसने शतप्रतिशत विकलांग होते हुए कार चलाने में विश्व रिकार्ड बनाया।

(160) बिजेन्द्र सिंह बैनीवाल - पहले भारतीय जो विश्व बाक्सिंग रैंकिंग में प्रथम स्थान पर आये और खेल रत्न से नवाजे गए।

(161) साइना नेहवाल - नेहवाल गोत्री जट पुत्री, जो बैडमिंटन में विश्व में अब दूसरे स्थान पर है इन्हें भी ‘खेल रत्न’ से नवाजा गया है।

Saturday, 8 April 2017

जागरण/भंडारा/सतसंग इत्यादि पर मनोरंजन टैक्स व् पंचायती टैक्स लगना चाहिए!

एक मरे-से-मरे जगराते से भी औसतन 5000 की कमाई होती है| एक गाँव में आजकल महीने में औसतन 2 जगराते/भंडारे/जागरण/सतसंग होने लगे हैं| यानि सालाना न्यूनतम 1 लाख 20 हजार रूपये की आमदनी एक गांव से| अगर सिर्फ हरयाणा का भी उदाहरण लिया जाए तो हरयाणा में करीब 6700 गाँव हैं| यानि 8 अरब 4 करोड़ रूपये का सालाना कारोबार|

और इस पर ना कोई सरकारी टैक्स, ना कोई मनोरंजन टैक्स और ना ही कोई पंचायती टैक्स? यह तो छोडो सबसे बड़ी बात तो यह है कि किसी को यह भी नहीं पता कि यह पैसा जाता कहाँ है, किन धंधों में प्रयोग होता है?
मैं मुख्यमंत्री होऊं तो इसपे 50% तो पंचायती टैक्स लगाऊं, यानि जिस गांव-गली-मोह्हले में जागरण हुआ और जितना पैसा आया, उसका आधा उस गाँव की पंचायत या मोहल्ले की परिषद को गाँव/मोह्हले के सामाजिक कार्यों में प्रयोग करने हेतु दे के आओ| बाकी में से 25% मनोरंजन टैक्स सरकार को दो और बचे हुए 25% से अपनी रोजी-रोटी व् खर्चा चलाओ|

और वाकई में होता भी यही है इस पैसे का 75% से ज्यादा ऐसे कार्यों में प्रयोग होता है जिनके जरिये समाज में फूट डाली जाती है, जाट बनाम नॉन-जाट जैसे अखाड़े खड़े किये जाते हैं; कभी सीधे-सीधे दे के तो कभी इनडायरेक्ट दे के|

अब यहां कोई नादाँ अंधभक्त आ के अपना बासी ज्ञान मत सुनाने लग जाना कि तुम दूसरे धर्मों बारे भी तो बोलो; ऐसे नादानों को सिर्फ एक ही जवाब है कि दूसरे धर्म वाले दूसरे धर्म से भले ही कितनी ही नफरत करते हों, परन्तु अपने धर्म कार्यों से होने वाली आमदनी को अपने ही धर्म के भीतर जाट बनाम नॉन-जाट जैसे अखाड़े खड़े करने में नहीं लगाते| मुझे तो समझ यह नहीं आता कि आखिर यह धर्म ही कैसे हो जाता है जिसके अंदर एक जाति को दूसरी जाति से भिड़ाने हेतु पैसा भी धर्म के नाम पर उन्हीं से उगाहा जाता है?

या तो अपना उल्लू कटवाना और यूँ अपनी मौत का सामान करवाना बंद करो या इनपे टैक्स लगवा के इनका हिसाब-किताब लेना शुरू करो, जो अगर ना आँखें फ़टी की फ़टी रह जाएँ यह देख के कि यह लोग इस पैसे का इस्तेमाल क्या, कैसे और कहाँ करते हैं?

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 7 April 2017

दुनिया में कुछ ऐसी बंधी सोच के लोग भी हैं जो हॉनर किलिंग से आगे की अमानवीयता अपनों के साथ करते हैं!

माँ का अवैध संबंध सुनने में आया तो कहते हैं कि पहले तो पिता की आज्ञा से फरसे से माँ की गर्दन उड़ाई, फिर उसको देवदासियों की देवी भी बना दिया, आंध्र-प्रदेश की माँ वेल्ल्मा वही तो हैं| और माँ की गर्दन उड़ाने वाले को क्या पारितोषिक दिया, भगवान बना लिया अपने समाज का वो भी सबसे बड़ा|

और यह जो हॉनर किलिंग पे कुछ समाज विशेषों को टीवी के डब्बों में बैठ के कोसते हैं यह इसी महान सोच की औलादें हैं| खुद माँ के हत्यारे को भगवान बनाये घूमते हैं व् माँ को मरने के बाद भी देवदासियों की देवी और जनता को लेक्चर "हॉनर-किलिंग" पे; बचो इस अमानवता की क्रूरतम सोच से व् इस सोच वालों से|

हरयाणवी-पंजाबी किसान समाज में हॉनर किलिंग करने वाले का कभी महिमामंडन नहीं होता और इतना तो बिलकुल ही नहीं कि उसको भगवान ही बना लिया जाए| और फिर उस हॉनर किलिंग की शिकार औरत की आत्मा यूँ तिल-तिल तड़पाई जाए कि उसको देवदासियों की देवी बना दिया जाए|
कसम से हरयाणवी-पंजाबी किसान समाज इतना भी मूढ़ स्तर का क्रूर नहीं है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

फंडी-पाखंडी तो इतना मनहूस होता है कि जिसको माँ कह दे!

फंडी-पाखंडी तो इतना मनहूस होता है कि जिसको माँ कह दे उस तक को दर-दर धक्के खाने पड़ते हैं, गलियों-सड़कों पर पाँव भिड़ाने पड़ते हैं, घर-घर के झलकारे खाने पड़ते हैं (ट-ट-ट चाल आगै नैं), प्लास्टिक-कागज खा के दिन गुजारने पड़ते हैं यानि गौमाता|

जबकि भगवान का दूत व् अन्नदाता अकेले का जिसपे हाथ रखा रहे, वह घरों की रौनक होती है; सुख-चैन से रहती है, सब धर्म-जातियों को भाती है यानी कि भैंस-राणी|

इसलिए हे किसानों की औलादो, अपनी भैंस को इन फंडी-पाखंडियों के काले साये से भी दूर रखना वरना कहीं इसको भी प्लास्टिक-कागज खा के ना दिन गुजारने पड़ें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

सिर्फ दादा खेड़ा को हृदय से लगाओ, एक वही व्यवहारिक है; बाकी सब मिथ्या है, संकुचित है!

1) क्योंकि उसकी कोई जात नहीं कोई धर्म नहीं, उसको हिन्दू भी मानता है, मुस्लिम भी और सिख भी, स्वर्ण भी और दलित भी|

2) क्योंकि उसके दर पर दिया जलाने हेतु ना जात चाहिए ना धर्म, सिर्फ इंसान को इंसान होना चाहिए|

3) क्योंकि उसमें कुछ भी माइथोलॉजी नहीं, शुद्ध वास्तविकता में हो के गए पुरखों की निशानी है; उनके जौहर, बलिदान, इतिहास की बाणी है|

4) क्योंकि वह उस अन्नदाता की कहानी है, जिसका उगाया हर धर्म-जात खाती है; परन्तु वह किसी पर रोक नहीं लगाता, ना उस अन्न का धर्म-जाति के हिसाब से प्रारूप बनाता-बताता|

5) क्योंकि ना उस पर कोई धर्माधीस बैठता, ना उस पर वीआईपी की पंक्ति अलग और सामान्य की पंक्ति अलग लगती; सबकी समान अर्ज लगती है|

नोट: गंगा से ले के रावी-व्यास तक फैली इस शक्ति का क्षेत्र व् बोली के फर्क के हिसाब से भिन्न पर्यायवाची जैसे दादा बड़ा बीर, दादा भैया, ग्राम खेड़ा, बाबा भूमिया आदि हैं परन्तु स्वरूप एक है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

आम-मानव के हिसाब से किसान को बोलना क्यों नहीं आता?

क्योंकि उसकी रोजगारी-रोटी-रोजी भगवान (प्रकृति) के हाथ में होती है, जबकि आम इंसान की रोजी-रोटी आम इंसान के ही हाथ में होती है| और जिसके हाथ में रोजी-रोटी होती है इंसान उसी के आगे झुकता है, उसी से विनम्र बोलता है|

स्पष्ट शब्दों में कुछ यूँ समझिये: किसान की फसल अच्छी होगी, बुरी होगी सब निर्भर करता है प्रकृति की मर्जी पर| सूखा पड़ा, बाढ़ आई, बेमौसम बरसात आई, ओले पड़े, बीमारी आई तो फसल खत्म; वक्त की बारिश हुई, सही वक्त पर सही तामपान चला, बीमारी ना आई तो फसल अव्वल और किसान की बचत अव्वल| तो यह सब होना या नहीं होना निर्भर हुआ प्रकृति पर यानि भगवान पर| मतलब साफ़ है किसान को कमाई देने वाला उसका बॉस इंसान नहीं अपितु भगवान है|

जबकि एक सरकारी या प्राइवेट नौकरी करने वाले इंसान का, उसकी नौकरी की प्रमोशन-डिमोशन का पैरोकार कौन; दुकान करने वाले दुकानदार का कारोबार चलाने वाला कौन; मन्दिर में पुजारी का पेट पालने वाला व् उसका घर चलाने वाला कौन; जवाब एक ही है - इंसान| इसलिए अगर आपको सुरक्षित नौकरी, बढ़िया सैलरी, बढ़िया कारोबार व् बढ़िया चढ़ावा चाहिए तो आपको इंसान की जी-हजूरी करनी पड़ती है| उसको भाव देना पड़ता है, उसको खुश करना पड़ता है| अत: आपकी भाषा में आपको विनम्रता झक मार के भी लानी ही पड़ती है|

जबकि किसान के बॉस भगवान के केस में कोई जी-हजूरी काम नहीं आती| प्रकृति को कितना सहेज के रखो, वह उतनी किसान पर खुश होती है| तभी तो किसानी परिवेश की पहली पीढ़ी जो बाहर नौकरियों या कारोबारों में हाथ आजमाने आती है तो जल्दी से जी-हजूरी नहीं कर पाती; क्योंकि उसके पैतृक कारोबार का बॉस भगवान रहा होता है, इंसान नहीं|

दूसरा अहम पहलु, किसान (सनद रहे यहां किसान की बात हो रही है, उन सामन्तों की नहीं, जो खेत के किनारे खड़े होकर दूसरों से खेती करवाते हैं) कितना ही अमीर हो जाए, विनम्रता नहीं छोड़ता, हेराफेरी, छलावा नहीं सीखता; क्योंकि उसके खेत रुपी दफ्तर में प्रकृति व् भगवान रुपी बॉस के आगे यह सब नहीं चलते| जबकि जिन कार्यों में बॉस भी इंसान और एम्प्लोयी भी इंसान वहाँ हेराफेरी, डर, भय छलावे सब पनपते हैं|

और यही दो सबसे बड़े डिसकनेक्ट हैं, किसान और बाकियों के कारोबार में| और क्यों फिर दूसरे कारोबार वाले किसान को अपने से कम आंकने व् दिखाने और अपना झूठा अहम् ऊपर रखने के लिए अक्सर किसान पर तोहमत लगाते पाए जाते हैं कि उसको बोलना नहीं आता|

किसान को बोलना आता है, किसान को अपने बॉस भगवान को खुश रखने की भाषा भली-भांति आती है; जबकि बाकि अधिकतर भगवान को खुश करने हेतु भी उसको रिश्वत रुपी दान-चन्दा-चढावा चढ़ाते हैं| जिन कार्यों में इंसान ही इंसान का बॉस है वहाँ उनको दोनों यानी इंसानी बॉस को भी और भगवान् (किसान के बॉस) को भी रिश्वत देनी पड़ती और खिलानी पड़ती है, कभी पैसे की रिश्वत तो कभी खुशामद की रिश्वत| जबकि किसान को इंसानों को खुश करने की ना ही तो कला आती होती और बस हाँ दाता की भांति अन्नदाता बन भूखा पेट वो दुश्मन का भी भर देता है|

किसान का प्रकृति से, भगवान से वन-टू-वन कनेक्शन खेत के जरिये होता है तो उसको किसी इंसान की जी-हजूरी नहीं करनी पड़ती| उसको स्वच्छन्दता रहती है|

परन्तु इस स्वच्छन्दता का एक नुकसान भी है| किसान उसकी फसलों के भाव निर्धारति करने वाले इंसानों और उसकी फसलें खरीदने वाले इंसानों से इंसान लेवल की डालॉगिंग नहीं करता या कहो कि इन मसलों को अपने हाथों में नहीं रखता| क्योंकि उसकी आदत भगवान की यानी प्रकृति की स्तुति करने की बनी होती है तो वह इंसानी आढ़तियों-मंडियों से बार्गेनिंग करने को सीरियस नहीं लेता; सीरियस लेवे तो उसकी फसलें उसी भाव पे बिकें, जिसपे वो चाहे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

फूटी कौड़ी > दमड़ी > पाई > धेल्ला > पैसा > रुपया!

फूटी कौड़ी > दमड़ी > पाई > धेल्ला > पैसा > रुपया!

Tuesday, 4 April 2017

यह उनके लिए, जिनको सर छोटूराम और सरदार भगत सिंह के रिश्तों को ले के चुरणे हुए रहते हैं!

चुरणे, इसलिए क्योंकि ऐसे-ऐसे सवाल वही घाघ करते हैं जो बस इसी उधेड़-बुन में रहते हैं कि कैसे इन दोनों हस्तियों के बीच कुछ तकरार सा मिले और सिख व् हिन्दू जाटों में दरार डालने का कुछ और मसाला मिले|
इस पोस्ट में सलंगित कटिंग "Sir Chhoturam - A saga of Inspirational Leadership" - लेखक बलबीर सिंह जी की पुस्तक से ली है| इसमें साफ़ लिखा है कि सर छोटूराम ने सरदार भगत सिंह द्वारा उठाये कदमों को देशभक्ति की पराकाष्ठा में उठाये कदम बताते हुए, उनको क्रिमिनल नहीं माने जाने की दरख्वास्त की थी| सनद रहे कि इस मामले में गांधी ने यह कहा था, "अगर इन बच्चों को मरने का शौक चढ़ा है तो मैं क्या करूँ, दे दो फांसी!"

यह दूसरा ऐसा किस्सा है जब सरदार भगत सिंह व् सर छोटूराम के बीच के भावनात्मक रिश्ते का पता चलता है| इससे पहले जब काकोरी काण्ड के बाद सरदार भगत सिंह भेष बदल कर कलकत्ता चले गए थे तो उनका वहाँ दो महीने अज्ञातवास में रहने का प्रबन्ध सर छोटूराम ने ही अपने धर्म पिता व् उस जमाने में कलकत्ता के जूट किंग सेठ छाजूराम जी को कहके करवाया था|

इन दोनों में एक देशभक्ति का भगवान था तो दूसरा किसानी का भगवान था| सो अपने दोनों भगवानों के रिश्ते बड़े ही भावुक थे, निश्चिन्त होकर कहो| और जिनको चुरणे हैं, वो रेतीली मिटटी में घिसणी कर लें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

एंटी-रोमियो स्क्वैड के चलते कृष्ण की जाति-चरित्र इत्यादि पर छिड़ चली बहस, बैठे-बिठाये इस चरित्र की पॉलिशिंग कर देगी; ऐसी नादानी से बाज आओ!

यह जो भारतीय माइथोलॉजी का इतिहास है ना यह इतना परिवर्तनशील है कि इनको रचने वाले जनता के ओपिनियन के अनुसार इनको समय-समय पर ढाल देते हैं| सो यह जो एंटी-रोमियो स्क्वैड के बहाने सोशल मीडिया पर कृष्ण की जाति व् चरित्र पर थीसिस लिखने की टाइप की जो दुकानें खोलें बैठे हैं, यह कृपया बन्द करें| क्योंकि जो परिवर्तित हो जाए वह इतिहास नहीं होता और जिसकी सच्चाई न पता चल सके वह माइथोलॉजी होती है| सो माइथोलॉजी को घसीट के इतिहासकार बनने की बजाये आपके समाज की सोशियोलॉजी-साइकोलॉजी-आइडियोलॉजी व् डीएनए प्रॉपर्टीज के तर्क से किसी बात का निचोड़ निकालो| इन भांडों (प्राचीन काल में भाट) की लेखनी पैसे के दम पर तर्क-वितरक को ताक पर रखती रही है और जैसा पैसे ने बोला वैसा लिखती रही है| तो ऐसे में कोई तरीका बचता है इन बातों की सच्चाइयों को जांचने का तो वह है लॉजिक्स पर चलते हुए आपके समाज की सोशियोलॉजी-साइकोलॉजी-आइडियोलॉजी व् डीएनए प्रॉपर्टीज के साथ इन तथ्यों की मैपिंग करो; मेल निकले तो आपका नहीं तो बहरूपियों का|

अब काम की बात, मेरी दिवंगत दादी जी के भतीजे के यहां मलिक गौत की लड़की ब्याह रखी है; जो कि दादी की तरफ वाले नाते से मेरी काकी लगी; परन्तु क्योंकि जाट के यहां गाम-गौत-गुहांड रिश्ते निर्धारित करने की सबसे उच्च थ्योरी है तो इस थ्योरी के चलते उस लड़की को हम आज भी बुआ कहते हैं और बावजूद मेरे पिताजी के नानके (जहां भांजे को मान-पैसा मिलता है) में भी उस बुआ को हाथ रुपया दे के अपने गौत की मान पुगाते हैं| लेकिन स्वाभिमान यह भी है कि उस काका को काका ही कहते हैं , फूफा या जीजा नहीं; क्योंकि उधर से दादी का गौत और नाता पहले माना जाता है और इधर से मलिक गौत का|

ऐसे ही खुद मेरे चार मामाओं में से दो के यहां मलिक गौत की पत्नियां हैं, जो नानके के नेग से तो मामी लगी परन्तु हम अपने गौत के नेग से उनको बुआ कहते हैं और हर बार हाथ रुपया दे के आते हैं| परन्तु नाना के गौत के नाते उन मामाओं को मामा ही कहते हैं, फूफा या जीजा नहीं|

ऐसे ही बात आती है कृष्ण, बलराम और इनकी बहन सुभद्रा, बुआ कुंती और बुआ के लड़के अर्जुन की| पहली कक्षा से ले के दसवीं तक आरएसएस के स्कूल में पढा हूँ और छटी कक्षा में आरएसएस वालों ने जो महाभारत पढ़वाई थी, उसके अनुसार कृष्ण, बलराम व् सुभद्रा, दो माओं व् एक पिता यानि वासुदेव की औलाद थे| कुंती उनकी बुआ थी और अर्जुन उसका बेटा| अब आरएसएस की रिफरेन्स से जो महाभारत पढ़वाई गई हो, उसपे तो सन्देह का कारण नहीं बचना चाहिए? और फिर भी बचता है तो ऐसे स्वघोषित ज्ञानियों का कोई कुछ नहीं कर सकता|

पहली तो बात जाट सभ्यता में अगर एक आदमी की दो बीवियां हैं (चाहे वो दोनों जिन्दा हों, या एक के मरने के बाद दूसरी से ब्याह किया गया हो) उन दोनों औरतों की उस एक मर्द से पैदा हुई औलादें सगे-भाई बहन ही होते हैं| ठीक ऐसे ही केस कृष्ण, बलराम व् सुभद्रा, दो माओं व् एक पिता यानि वासुदेव का है| यहाँ तक तो ठीक है कि वो जाट रहे हों| परन्तु असली लोचा पड़ता है इस बिंदु पे आ के कि कृष्ण ने सुभद्रा को अर्जुन के साथ भगा के उसका ब्याह करवा दिया| जो कि जाट सभ्यता के अनुसार किसी भी एंगल से गले उतरने की बात नहीं है| मैं अपनी बहन को अपनी बुआ के लड़के के साथ भगाने या ब्याहने की तो सोच भी नहीं सकता| और इन्हीं मान-मान्यताओं की वजह से जाट को ब्राह्मणों ने एंटी-ब्राह्मण कहा है सदा से| नए-नए खून वाले युवाओं को इस बात का ना पता हो तो जा के अपने दादा वाली पीढ़ी के बुजर्गों से पूछो, आप सदा से एंटी-ब्राह्मण कहलाते आये हो यानी पांचवा वर्ण|

तो अब इसके ऊपर इतने बेइंतहा थीसिस मत लिखो कि कृष्ण का चरित्र घड़ने वालों को पता लगे कि कृष्ण को जाट बता देने से जाटों की जेबें धर्म के नाम पर ज्यादा ढीली करवाई जा सकती हैं तो फिर वो उसको जाट ही घोषित कर दें|

दूसरी बात कयास लगाने की उत्तेजना मत दिखाओ, क्योंकि महाभारत की कोई भी पुस्तक हो, फिल्म हो या टीवी सीरियल; जैसे इनमें कृष्ण के यादव होने का जिक्र आता रहता है, ऐसे एक बार तो कहीं जाट होने का जिक्र भी आता? तो किस बात की बेचैनी एक मैथोलोजिकल चरित्र को जाट घोषित करवाने की? इनका कुछ ना लगने वाला, इनको तो पैसा चाहिए, जब दिखेगा कि कृष्ण को यादव की बजाये जाट घोषित करने में ज्यादा कमाई होवेगी तो यह तो घोषित कर देंगे; और तो और कृष्ण और सुभद्रा भाई-बहन नहीं थे, यह भी साबित कर देंगे|
चलते-चलते यही कहूंगा कि अगर कोई जाट की सोशियोलॉजी-साइकोलॉजी-आइडियोलॉजी व् डीएनए प्रॉपर्टीज के आधार पर कृष्ण को जाट साबित कर दे तो मुझे सबसे ज्यादा हर्ष होगा|

लेकिन इसमें सबसे बड़ी बाधा तब आएगी जब कृष्ण की गोपियों संग रासलीलाएं आड़े आएँगी क्योंकि जाट सभ्यता में ऐसा कोई बखान नहीं, चरित्र नहीं और मान्यता नहीं कि लड़के को यूँ खुलेआम लड़कियां छेड़ने का लाइसेंस दे देते हों और फिर उसको भगवान भी बना लेते हों| ऐसे लड़कियां छेड़ने वाले को तो सबसे पहले उसके घर वाले ही झाड़-झाड़ जूते मारेंगे और फिर समाज उसकी जो बैंड बजायेगा वो अलग से| इसलिए माइथोलॉजी को माइथोलॉजी रहने दो और कुछ करना ही है तो किसानों को फसलों के एम.एस.पी. दिलवाने व् बैंकों से लोन माफ़ करवाने बारे करो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Wednesday, 29 March 2017

साइंस में पूरे विश्व में इनका ही रिवर्स गियर क्यों लगा?

सलंगित अख़बार की कटिंग में दिखाई ईमानदारी के लिए यह प्रसंशा के पात्र हैं, कम-से-कम कुँए से बाहर निकल दावे करने तो शुरू किये| परन्तु भारत से बाहर इन बातों को मनवाने के लिए इनको अमेरिका-यूरोप-जापान जैसे देशों से प्रतियोगिताएं करनी होंगी| वर्ना अपने मुंह मियां मिठठू बनने वाली बात ना हो जाए कहीं|

अमेरिका-यूरोप-जापान इत्यादि वालों ने जो भी साइंटिफिक रिसर्च करी हैं, उनकी सब तारीखें-स्थान सम्भाल के रखे हुए हैं| इनको सबसे बड़ी बाधा तो यही तारीखें व् स्थान साबित करने में आनी है और उससे भी बड़ी हास्यसद्पद स्थिति तब बनेगी जब इनसे पूछा जायेगा कि 1947 से ले जितने भी सालों पुराने इन अविष्कारों के दावे किये जायेंगे, उनका लाभ भारत हजारों-हजार साल क्यों नहीं ले पाया, यह इनको आगे जारी क्यों नहीं रख पाए| जब विदेशी लुटेरों ने भारत पर आक्रमण किये तो तब यह रॉकेट, हवाई जहाज व् न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी इस्तेमाल क्यों नहीं किये?

माना भारत शांतिप्रिय देश था, कभी अपनी सीमा से बाहर किसी मुल्क पर आक्रमण करने नहीं गया; परन्तु जब रामायण-महाभारत (क्योंकि यह आपस में ही लड़ के ही, भाई-को-भाई से लड़वा के ही विश्व विजेता बन लिया करते थे) में इन सारे औजारों का प्रयोग हुआ बताया जाता है तो विदेशी लुटेरों के वक्त क्यों नहीं किया? रावण ने राम की सीता उठा ली तो इसी बात पे राम ब्रह्मास्त्र निकाल के खड़ा हो गया था, तो जब विदेशी लुटेरे आये तब कहाँ थे यह सब यन्त्र-आविष्कार?

ऐसी क्या फिरकी फिरि थी इन आविष्कारों की कि दुनिया में आजतक कोई भी साइंस रिवर्स गियर में नहीं चली, तो फिर इनकी साइंस को ऐसा क्या उल्टा गियर लगा कि सब मलियामेट हो गया? साइंस में पूरे विश्व में इनका ही रिवर्स गियर क्यों लगा?

बस अंत में घूम-घुमा के कहीं इन दावों को साबित करने में भी कोई हिंदुत्व मत घुसा लाना कि तुम तो कम से कम इनको हिन्दू होने के नाते सपोर्ट करो, तुम ही नहीं करोगे तो कौन करेगा? उम्मीद है कि यह लोग इन दावों को साइंस के हिसाब से सिद्ध करेंगे, ना कि धर्म के नाम पर इन बातों को सच मानने का समर्थन कैंपेन चला देंगे|
विश्व के पट्टल पर इनको साबित करो, सबसे ज्यादा प्रचार मैं करूँगा| वर्ना विश्व अक्ल ले चुका, तुम भी ले लो कि धर्म को साइंस में और साइंस को धर्म में नहीं घुसाया करते|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 28 March 2017

जाट समाज में पाई जाने वाली "विधवा-पुनर्विवाह" की प्रथा स्वेच्छा है बाध्यता नहीं!

उद्घोषणा: इस पंक्ति को पढ़ के मुझे घोर जातिवादी बताने वाले इस पोस्ट से दूर रहें, क्योंकि जब इस प्रथा की कमियों की बात आती है तो इसकी कमियां बतलाने वाले इसको जाटों की प्रथा बता के कमियां गिनवाते हैं, और यह मुझे जातिवादी कहने वाले उस वक्त बिलकुल नहीं बोलते कि यह तो हमारी भी प्रथा है; तो फिर मैं इसकी खूबियां भी इसको मुख्यत: जाटों की बता के क्यों ना गिनवाऊँ?

अब विषय की बात: अस्सी के दशक में एक हरयाणवी फिल्म आई थी "सांझी" जो "विधवा-पुनर्विवाह" को बाध्यता बना के दर्शाती है| जो इस फिल्म में दिखाया गया है वह मुश्किल से 5-7% मामलों में होता है, जबकि इस फिल्म ने जो 90-95% मामलों में होता है वह तो दिखाया ही नहीं था| वह आपको मैं बताता हूँ| लगे हाथों बता दूँ कि हरयाणा में "विधवा पुनर्विवाह" को "करेवा" या "लत्ता ओढ़ाना" भी बोलते हैं|

विधवा-पुनर्विवाह औरत की स्वेच्छा होती है बाध्यता नहीं: इसके 4 उदाहरण खुद मेरे परिवार-कुनबे के देता हूँ|

उदाहरण एक: काकी सम्भल (व्यक्तिगत प्राइवेसी के चलते बदला हुआ नाम) काका की बहु| काका गुजरे तो काकी की उम्र 35-40 वर्ष के बीच रही होगी| सिर्फ दो बेटियां थी| छोटा काका कुंवारा था, उसका लत्ता ओढ़ने का ऑफर हुआ| तो काकी ने छोटे काका के सामने कुछ टर्म्स एंड कंडीशन्स रखी| बात नहीं बन पाई तो काकी दिवंगत काका यानि अपने दिवंगत पति से (पति के बाद पत्नी उसकी चल-अचल सम्पत्ति की बाई-डिफ़ॉल्ट मालकिन होती है, वैसे होती तो जीते-जी भी है परन्तु वकीलों-रजिस्ट्रारों की मोटी फीसों व् खर्चों के चलते कागजी कार्यवाही कोई-कोई ही करवाता है) नियम के तहत अपनी दोनों बेटियों के साथ ख़ुशी से रहने लगी| थोड़े दिन बाद पीहर में जा बसी और आज दोनों बेटियां पढ़ा-लिखा के ब्याह दी|

उदाहरण दो: काकी सिद्धा (व्यक्तिगत प्राइवेसी के चलते बदला हुआ नाम) काका की बहु| काका गुजरे तो सिर्फ तीन बेटियां थी| विधवा होने के वक्त उम्र 30-35 वर्ष के बीच रही होगी| जेठ का लत्ता ओढाने का ऑफर हुआ, क्योंकि पति के सभी भाई ब्याहे जा चुके थे| काकी ने मना कर दिया और अपने दिवंगत पति की चल-अचल सम्पत्ति पे स्वाभिमान से मेहनत कर तीनों बेटियों को पढ़ाया लिखाया व् ब्याह दिया|

उदाहरण तीन: काकी सुजीत (व्यक्तिगत प्राइवेसी के चलते बदला हुआ नाम) काका की बहु| काका गुजरे तो सिर्फ दो बेटे थे, काकी की उम्र भी 30 साल से कम, M.A. पास| छोटा देवर कुंवारा था, परन्तु करेवा करवाने से मना कर दिया| अपने दोनों बच्चों को पढ़ा-लिखा रही है, working from home woman (वर्किंग फ्रॉम होम वीमेन) है| खेत भी सम्भालती है और प्राइवेट नौकरी भी करती है|

उदाहरण चार: सुदेश बुआ (व्यक्तिगत प्राइवेसी के चलते बदला हुआ नाम), 30 साल की उम्र में विधवा हो गई, सिर्फ दो बेटे थे| पीहर में रहती हैं, परन्तु एक बेटा दादा-दादी के पास छोड़ रखा है और एक खुद के पास| कोई चक-चक नहीं अपनी मर्जी से जीवन जीती है| दोनों लड़के कॉलेज गोइंग हो चुके हैं|

तो यह है जाट समाज में पाई जाने वाली "विधवा-पुनर्विवाह" की प्रथा|

इस प्रथा की कमियां: कई बार जमीन-जायदाद के लालच में, औरत को अपने काबू में रखने के चक्कर में, विधवा के पुनर्विवाह के वक्त उसकी मर्जी नहीं पूछी जाती| ऐसे 5-7% मामले हैं; परन्तु उन समाजों के सिस्टम से तो लाख गुना बेहतर सिस्टम है यह, जहां औरत को विधवा होते ही उसकी उम्र देखे बिना, उसको उसके दिवंगत पति की चल-अचल सम्पत्ति से बेदखल कर, आजीवन विधवा आश्रमों में सड़ने व् गैर-मर्दों की वासनापूर्ति का साधन बनने हेतु फेंक दी जाती हैं| यह विधवा-आश्रम सिस्टम गंगा के घाटों पर खासकर पाया जाता है| इस अमानवता व् पाप का एक बड़ा अड्डा वृन्दावन के विधवा-आश्रम भी हैं|

जाटों में इस प्रथा के होने को राजस्थान के कुछ स्वघोषित उच्च समाज इसको जाटों का पिछड़ापन व् नीचता मानते हैं और इसको जाटों से नफरत करने के मुख्य कारणों में एक गिनते हैं (अब इसके कारण किसी की नफरत के पात्र जाट बनें तो फिर इस प्रथा की अच्छाइयों का श्रेय जाट अपने सर क्यों न धरें?)| पता नहीं यह कैसे उच्च हैं जो नारी को सम्मान का जीवन देने को भी नीचता कहते हैं|

चलते-चलते बता दूँ कि हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी-दिल्ली में सिर्फ जाट ही नहीं वरन यहां की सम्पूर्ण जातियां इस प्रथा को गर्व से फॉलो करती हैं|

 जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Monday, 27 March 2017

परजीवियों से सत्ता चलवाओगे तो मनवांछित फल कहाँ से पाओगे?

जिसने सदा संसार से मांग के खाया, उसको सीएम तो क्या पीएम भी बना दो, उसमें उम्रभर खिलाने वाले किसान का कर्ज माफ़ करने की बुद्धिमत्ता कदापि नहीं आ सकती| वो एक परजीवी की तरह पला होता है तो दाता कहाँ से बन जायेगा?

यह उनके लिए है जो यूपी की योगी सरकार से किसानों के कर्जमाफी हेतु मुंह धोये बैठे थे; आखिर इतना ज्ञान तो अपने पुरखों के इतिहास से सीख लो तुम परन्तु तुम्हें यह भी तो बहुत बड़ी बीमारी है ना कि अपने बताये पुरखे की बात से इन नौसिखियों के जुमले ज्यादा पसंद आते हैं|

उधर देखो पंजाब में एक राजाई गद्दी के किसान-पुत्र की सरकार ने कर्जा उगाही के लिए किसानों की जमीन की कुर्की नहीं होने का आते ही कानून बना दिया और कर्जमाफी पर भी जल्द ही फैसला आने वाला है, क्योंकि कर्जमाफी कमेटी स्टडी पे बैठा दी थी आते ही|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक