Friday 7 April 2017

फंडी-पाखंडी तो इतना मनहूस होता है कि जिसको माँ कह दे!

फंडी-पाखंडी तो इतना मनहूस होता है कि जिसको माँ कह दे उस तक को दर-दर धक्के खाने पड़ते हैं, गलियों-सड़कों पर पाँव भिड़ाने पड़ते हैं, घर-घर के झलकारे खाने पड़ते हैं (ट-ट-ट चाल आगै नैं), प्लास्टिक-कागज खा के दिन गुजारने पड़ते हैं यानि गौमाता|

जबकि भगवान का दूत व् अन्नदाता अकेले का जिसपे हाथ रखा रहे, वह घरों की रौनक होती है; सुख-चैन से रहती है, सब धर्म-जातियों को भाती है यानी कि भैंस-राणी|

इसलिए हे किसानों की औलादो, अपनी भैंस को इन फंडी-पाखंडियों के काले साये से भी दूर रखना वरना कहीं इसको भी प्लास्टिक-कागज खा के ना दिन गुजारने पड़ें|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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