Friday 7 April 2017

सिर्फ दादा खेड़ा को हृदय से लगाओ, एक वही व्यवहारिक है; बाकी सब मिथ्या है, संकुचित है!

1) क्योंकि उसकी कोई जात नहीं कोई धर्म नहीं, उसको हिन्दू भी मानता है, मुस्लिम भी और सिख भी, स्वर्ण भी और दलित भी|

2) क्योंकि उसके दर पर दिया जलाने हेतु ना जात चाहिए ना धर्म, सिर्फ इंसान को इंसान होना चाहिए|

3) क्योंकि उसमें कुछ भी माइथोलॉजी नहीं, शुद्ध वास्तविकता में हो के गए पुरखों की निशानी है; उनके जौहर, बलिदान, इतिहास की बाणी है|

4) क्योंकि वह उस अन्नदाता की कहानी है, जिसका उगाया हर धर्म-जात खाती है; परन्तु वह किसी पर रोक नहीं लगाता, ना उस अन्न का धर्म-जाति के हिसाब से प्रारूप बनाता-बताता|

5) क्योंकि ना उस पर कोई धर्माधीस बैठता, ना उस पर वीआईपी की पंक्ति अलग और सामान्य की पंक्ति अलग लगती; सबकी समान अर्ज लगती है|

नोट: गंगा से ले के रावी-व्यास तक फैली इस शक्ति का क्षेत्र व् बोली के फर्क के हिसाब से भिन्न पर्यायवाची जैसे दादा बड़ा बीर, दादा भैया, ग्राम खेड़ा, बाबा भूमिया आदि हैं परन्तु स्वरूप एक है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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