Tuesday, 9 May 2017

बल्लभगढ़ का बलरामपुर होता है तो फिर झाँसी का भी काशी या कुछ ऐसा ही कर दो?

बल्ल्भगढ़ 1857 के राजा नाहर सिंह से जुड़ा है और झाँसी का 1857 की ही रानी लक्ष्मीबाई से|

अब जब 1857 की यादगार मिटाने ही लगे हो तो ढंग से मिटाते हैं| वर्ना तो बलराम को सम्मान देने हेतु, आसपास गाँव-शहर और भी बहुत थे, किसी और का रख लिया होता बलरामपुर नाम? और क्या तथ्य हैं इनके पास कि यह बलरामपुर ही होता था? जिस नगर को बसाया ही 3-4 सदी पहले गया हो, उसका हजारों साल के माइथोलॉजी के चरित्र से यूँ ही बैठे बिठाये मेल बिठा दोगे क्या?

कोई धर्म और नहीं विश्व में ऐसा जिसने अपने भगवानों के नाम से नगरों के नाम रखे हों| ना हमने कोई अल्लाहपुर या अल्लाहगढ सुना| ना कोई यशुपुर या यशुगढ़ सुना| बस इनके ही पता नहीं कैसे अजीब चोंचले हैं| फिर भी बनाने हैं नगर भगवानों के नाम से तो बनाओ, परन्तु कम से कम इतिहास के महापुरुषों के पर्याय बन चुके नगर-खेड़े-गाँवों के नामों से तो छेड़छाड़ मत करो|

मेरे जैसा तो कोई मुख्यमंत्री बन गया तो इन सब नामों को वापिस ज्यों-के-त्यों पलटेगा और ऐसा कानून भी बनाएगा कि ऐतिहासिक महापुरुषों के धोतक बन चुके नगरों-गाँवों के नाम नहीं बदले जायेंगे| माइथोलॉजी के चरित्रों के लिए मंदिर बना के दिए हैं समाज ने इनको, क्या वो कम हैं?

जमींदारों सम्भल जाओ अब भी, इनकी ऐसी-ऐस हरकतें काफी होनी चाहिए आपको यह समझने के लिए कि यह तुम्हें हिन्दू मानते ही नहीं; तो क्यों लिपटे पड़े हो इनसे? इस हिन्दू नाम की अफीम से बाहर आओ| बिना शर्त बिना मिनिमम कॉमन एजेंडा के इनके साथ नहीं निभने वाली| क्या राजा नाहर सिंह हिन्दू नहीं थे, जो एक काल्पनिक हिन्दू को सम्मान देने हेतु, वास्तविक हिन्दू का अपमान किया जा रहा है? कोई नी, काठ की हांडी कितनी और बार चढ़ाओगे?

यह किसी भी सूरत में धर्म नहीं है, सिर्फ-और-सिर्फ 5-10% माइनॉरिटी की 80-90% मेजोरिटी पर राज करने की राजनीति है|

यह तो वही बात हो गई, हम सिर्फ तुम्हारी पैदा करी फसल ही अपनी मर्जी के नखरों और दामों पर नहीं उठाएंगे अपितु तुम्हारे महापुरुषों के बनाये इतिहास पे भी अपनी मर्जी का ठप्पा लगाएंगे| मेरे ख्याल से यह मनमर्जी और हठधर्मिता की अतिश्योक्ति हो रही है|

इनको कहो कोई कि यह बेढंगी रीत ना डालें यह; वरना कल को सरकारें दूसरों की भी आनी हैं और जिद्द पे आये तो हर गली-चौराहे पे जेळी गाड़ देंगे और ऊपर से लिख देंगे "जमींदार-महकमा"|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

खापोलोजी व् भक्तवाद में तुलनात्मक अंतर!


अंतर 1:
खापोलोजी घर-कुनबे-बिरादरी को हर दुःख-झगड़े सुलझा के मनमुटाव भुला के समरसता से रहने का नाम है| इसीलिए मुझे यह छोटी सी घरेलू बातों पर युद्ध के मैदान सजा लेने की सामाजिक वास्तविकता से दूर की काल्पनिक कहानियां कभी आकर्षित नहीं करती|
जबकि फेंकुलोजी यानि भक्तवाद घर-कुनबे-बिरादरी में छोटी सी भी मानवीय सोच की भिन्नता को भुना के "राइ का पहाड़ बना के" यही जीवन है टाइप जीवन-दर्शन करवा के, भाई को भाई से भिड़ा के रखने और अपनी रोजी चलाने का नाम है|
अंतर 2:
खाप एक बार फैसला करने बैठ जाए तो 99% केसों में दोनों पक्षों को मिला के ही उठती है|
भक्तवादी जहां घुस जाए, 99% केसों में दोनों के मसले को और पेचीदा बना के उठते हैं|
अंतर 3:
खाप द्वारा 99% सलूशन देने की सबसे बड़ी वजह यह है कि इन लोगों ने आजीवन समाज के बीच बिताया होता है, समाज कैसे चलते हैं व् चलाने होते हैं; इसके भलीभांति अनुभवी होते हैं|
भक्तवाद द्वारा 99% मसले पेचीदा करने के पीछे बड़ी वजह यह है कि इन्होनें जिंदगी का अधिकतर वक्त अवसाद, एकांत, जंगल या अलख जगाने में गुजारा होता है|
अंतर 4:
खाप वाले अधिकतर वो होते हैं जो आजीविका के लिए स्वावलम्बी होते हैं|
भक्तवाद वाले आजीविका के मामले में परजीवी होते हैं|
अंतर 5:
क्योंकि खाप वाले आजीविका के मामले में स्वावलम्बी होते हैं, इसलिए यह तुरंत और निशुल्क न्याय करते हैं, केवल सामाजिकता को बचाये रखने के लिए|
क्योंकि 99% भक्तवादी आजीविका के मामले में परजीवी होते हैं, इसलिए यह प्रवचन सुनाने की फीस लेते हैं, और झगड़ों को तारीख-पे-तारीख की भांति लटकाते हैं या अपने सगे भाई के घर से दूरी बनाने की बात कहते हैं; ताकि उससे इनकी आजीविका निरंतर चलती रहे| फिर बेशक झगड़े आधारहीन ही क्यों ना हों, परन्तु यह उनको सुलझवाते नहीं; दोनों तरफ के परिवारों को अलगाव पर डाल देते हैं|

अनुरोध: और क्योंकि खाप वालों में यह स्वछंदता उनकी आर्थिक स्वावलम्बिता के चलते बनी होती है, इसलिए खापोलॉजी व् समकक्ष थ्योरियों में यकीन रखने वालों को चाहिए कि भक्तवाद से दूर रहें और अपनी आर्थिक आज़ादी को कैसे कायम व् निरंतर स्वतंत्र रखें इसपे कार्य करें| आप भक्तवाद के आगे झुक गए या आत्मसमर्पण कर दिया तो याद रखिये, यह आपसे ही आपकी कमाई छीन के आपको उसी के मोहताज बना देंगे; यह इस हद तक के बहमी लोग होते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

जब ब्राह्मणों ने यह सलंगित कटिंग वाली खबर पढ़ी होगी, तो उन्होंने क्या किया होगा?

हरयाणा में जाट बनाम नॉन-जाट, वेस्ट यूपी में चौधरी चरण सिंह जी के सम्मान पर हाथ डालने की जुर्रत, पंजाब-हरयाणा व् तमाम भारत में सरदार भगत सिंह के नाम से एयरपोर्ट बदलने की गुफ्तगू छेड़ने की हिमाकत व् 1857 की क्रांति के धोतक राजा नाहर सिंह की रियासत का नाम बदलने से कोफ़्त और क्रोधित महसूस कर रहा जाट, जमींदार व् इन ऊपर नामित हुए नेताओं-नायकों से दिल से जुड़ा हर अन्य जातियों-ब्रादरियों का इंसान; 2012 की इस खबर की कटिंग को पढ़े और सोचे, क्या ब्राह्मणों ने जब यह कटिंग पढ़ी होगी तो कम खून खोला होगा उनका? लेकिन सब अंदर दबा के रखा और सही वक्त का ना सिर्फ इंतज़ार किया वरन उसको जल्द-से-जल्द लाने की तैयारी भी करते रहे|

इसलिए सोशल मीडिया पर विरोध दर्ज करें, परन्तु उसके अतिरेक में पड़ के आगे की तैयारी करने से विमुख न होवें| और आगे की तैयारी ऐसी हो कि यह पीछे वाली कमियां जिसमें ना हों| अच्छे-बुरे-अवांछित वक्त उन्हीं पे आते हैं, जिनको समाज-दुनिया कुछ मानती हो; आज यह जाट बनाम नॉन-जाट है तो यह स्थाई नहीं है| जिसने भी यह बनाया है, वह हीनभावना से ग्रसित है, उसको जाट सबसे उच्च लगते हैं; और खुद से भी, तो इसलिए बेवजह खौफजदा है वो| लेकिन यह उच्चता और पक्की हो, उसके लिए इन वर्तमान हालातों को उसका आधार बना के आगे बढ़ना होगा|

तो इस जाट बनाम नॉन-जाट को एक उत्सव की तरह जियो और एक छालें मार के बहती मदमस्त नदी की भांति अपने किनारों में बहते हुए अलख जगाते हुए आगे बढ़ो|

उद्घोषणा: मैं इस सलंगित कटिंग वाली खबर की पुष्टि नहीं करता, हो सकता है मीडिया की शरारत रही हो, परन्तु वर्तमान हालातों के चलते जाट-जमींदार जैसे समाज का युवा (नहीं जायेगा, यह जाट का जींस है, परन्तु फिर भी संभावना को ही मिटा दिया जाए तो अति-उत्तम) गलत राह ना पकड़ ले, अलगाव या अवसाद में न चला जाए; इसलिए सिर्फ-और-सिर्फ एक मोटिवेशनल रिफरेन्स की भांति प्रयोग कर रहा हूँ|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक


बाहुबली-2 रिव्यु!

जैसे जब बाहुबली-1 आई थी तो मैंने साफ़ कहा था कि क्या जरूरत थी फिल्म को एक काल्पनिक कथानक देने की जबकि हमारे पास सन 1748 की जयपुर राजगद्दी को ले हुई बागरु की लड़ाई की, इस फिल्म की स्क्रिप्ट में हूबहू फिट बैठती वास्तविक पठकथा उपलब्ध है तो?

सनद रहे बागरु की लड़ाई जयपुर राजा ईश्वरी सिंह व् उनके छोटे भाई माधो सिंह के मध्य जयपुर की गद्दी हथियाने बारे हुई थी| जिसमें ईश्वरी सिंह पक्ष में मात्र 20 हजार सेना (10 हजार कुशवाहा राजपूत व् 10 हजार भरतपुर-ब्रज की जाट सेना) थी व् माधो सिंह के पक्ष में 3 लाख 30 हजार सेना (7 राजपूत रजवाड़ों की सेनाएं, मुग़ल सेना व् पूना के ब्राह्मण पेशवाओं की मराठा सेना) लड़ी थी| तीन दिन के आंधी-अंधड़-तूफानों-बरसातों से भरे इस युद्ध में भरतपुर राजकुमार सूरजमल के नेतृत्व में जुटी व् लड़ी मात्र 20 हजार की सेना ने 3 लाख 30 हजार की जुगलबंदी सेना को परास्त कर दिया था| इस प्रकार एक जाट राजा ने अपनी साथी राजपूत राजा की गद्दी बचाई थी|

आज जब बाहुबली 2 देखी तो फिल्म बहुत पसंद आई, परन्तु अबकी बार का प्लाट भी वही काल्पनिक| एक राजमाता को केंद्रीय भूमिका में रखने वाली इस फिल्म को देखते ही अहसास हुआ कि यह कहानी भरतपुर की राजमाता महारानी किशोरीबाई के इर्द-गिर्द बनाकर, इसको वास्तविकता का आधार दिया जा सकता था|
सनद रहे यह वही राजमाता हैं, जिन्होनें अपने सुपुत्र भारतेन्दु महाराजा जवाहर सिंह को हड़का कर दिल्ली जीतने के लिए प्रेरित किया था| और अपनी माता व् राजमाता के मार्गदर्शन में महाराजा जवाहर सिंह ने जो दिल्ली पर चढ़ाई कर वहाँ बैठे अहमदशाह अब्दाली के मनोनीत शासकों की ना सिर्फ ईंट-से-ईंट बजाई, बल्कि चित्तोड़ की रानी पद्मावती के वक्त से अल्लाउद्दीन खिलजी द्वारा वहाँ का उखाड़ कर लाया जो अष्टधातु दरवाजा दिल्ली लालकिले में लगा था, उसको भी जाट उखाड़कर भरतपुर ले गए थे| दिल्ली में जाट एक महीना जम के बैठे रहे, तब उनके वहाँ से हटने का और कोई रास्ता नहीं दिख मुग़ल अपनी राजकुमारी भारतेन्दु से ब्याहने का न्योता देते हैं, तो भारतेन्दु महाराजा जवाहर सिंह ने वह ऑफर अपने फ्रेंच सेनापति साथी, कैप्टेन समरू की ओर मोड़ दिया था| दिल्ली की यह जीत इतिहास में "जाटगर्दी" के नाम से दर्ज है| और ऐसे ऐतिहासिक किस्सों की वजह से ही दिल्ली को जाटों की बहु भी कहा जाता रहा है|

वैसे तो बाहुबली-1 भी ऑस्कर में जाने लायक थी, परन्तु क्यों नहीं गई पता नहीं| बाहुबली-2 जाएगी या नहीं यह भी पता नहीं| परन्तु अगर वास्तविकता की जगह काल्पनिक पटकथा होना, इनका ऑस्कर में नहीं जाने की वजह बनता है तो यही कहूंगा कि इन लोगों को यह ऊपर बताई दो वास्तविक कहानियों पर अगली ऐसी ट्राई करनी चाहिए| क्योंकि यह दोनों घटनायें ना सिर्फ भारत अपितु अंग्रेज-अरब-अफ़ग़ान-फ्रेंच सबकी आँखों देखी हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

एक बार एक "पहुँचा हुआ जाट" सतसंग में चला गया!

वहाँ गीता-पाठ हो रहा था| परन्तु प्रवचन वाले बाबा को पता नहीं था कि आज जाट से वाद-विवाद प्रतियोगिया होवेगी उसकी, बेचारा!

प्रवचन वाला बाबा छूटते ही बोला: भक्तजनों, अब कुछ समय के लिए सांसारिक दुःख-दर्द-मोहमाया-तर्क-वितर्क सब भूलकर अपने आपको मुझे समर्पित कर दो|

जाट बोला: बाबा अगर तर्क-वितर्क आपको समर्पित कर दिए तो बुद्धि क्या ग्रहण करेगी, यह कैसे आंकूंगा?

बाबा: वत्स, धर्म में तर्क-वितर्क नहीं किये जाते, खुद को भगवान को समर्पित किया जाता है|

जाट: पर बाबा, आप तो आपको समर्पित करने की कह रहे, यहाँ भगवान किधर है?

बाबा: वत्स, हम ही तो आपको भगवान से मिलाएंगे| परन्तु उसके लिए तुम्हें कंप्यूटर की भांति अपने दिमाग को फॉर्मेट मारना होगा|

जाट: फॉर्मेट मारना होगा का क्या मतलब बाबा?

बाबा: बेटा जैसे हम किसी भी कंप्यूटर को फॉर्मेट मारते हैं तो उसका पुराना डाटा डिलीट करके, उसमें नया डालते हैं, ऐसे ही आप अपनी बुद्धि से पुराना सब-कुछ डिलीट कर दीजिये|

जाट: परन्तु बाबा, इससे तो मेरे माँ-बाप व् स्कूल-कालेज में मिले गुरुवों की शिक्षा डिलीट हो जाएगी? आप जैसे लोग ही कहते हैं ना कि माँ-बाप और गुरु जो सिखावें उसको ताउम्र शिरोधार्य रखें?

बाबा: तुम जाट हो क्या, जो इतने तर्क-वितर्क करते हो?

जाट: हाँ, बाबा जाट ही हूँ|

बाबा: तो भाई पहले क्यों नहीं बोला; जो "पहुँचा हुआ जाट" हो गया वो तो हमारा भी बाप हो गया| हम तो खुद जाट को देख के तर्क करना सीखते हैं, प्रभु आप कहाँ आ गए हमारी परीक्षा लेने?

जाट: बाबा, यह सब छोड़ो; यह बताओ इंसान कोई मशीन है क्या, जो आप उसके दिमाग को अपने अनुसार फॉर्मेट मारोगे? और आपको कम्प्यूटर्स को इतना ही फॉर्मेट मारने का शौक है तो कोई सॉफ्टवेयर इंजीनियर की जॉब क्यों नहीं कर लेते?

बाबा: बच्चा, क्यों रोजी- रोटी पे लात मारते हो; कहो तो मैं आज ही नौकरी डॉट कॉम पे जॉब अप्लाई कर दूंगा| अब आज-आज की आज्ञा हो तो प्रवचन पूरे कर लूँ?

जाट: ना बाबा, आज तो आप अपना सीवी अपडेट करो; प्रवचन तो आज जाट देवेगा|

और जाट प्रवचन यही है कि अपनी तार्किक बुद्धि को कभी मत छोडो, किसी बाबा को गिरवी मर धरो| बिना छल-कपट के जियो और जीने दो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

ईवीएम (EVM) मशीन से छेड़छाड़ का लाइव डेमो!


झाड़ू के निशान पर पड़े 10 वोटों में से 8 वोट कमल के निशान को कैसे चढ़ गए, समझने के लिए वीडियो को शुरू से अंत तक पूरा देखें| कुछ भी कहो आज आम आदमी पार्टी वालों ने जो किया है, इसने दिल छू लिया|

वीवीपैट (VVPAT) की मशीनों से भी गड़बड़ी सम्भव है, इसलिए इसका सिर्फ एक ही हल है और वो है "बैलेट पेपर" वाली वोटिंग वापिस लाओ|

2019 का चुनाव अगर वीवीपैट के भरोसे छोड़ दिया तो भी गड़बड़ की जाएगी; इसलिए आवाज उठे कि ना ईवीएम ना वीवीपैट, वोटिंग सिर्फ बैलेट पेपर से| बैलेट पेपर से ही वोटिंग फ्रांस में होती, यही इंग्लैंड में|

https://www.youtube.com/watch?v=9RpUJJbr-8I

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Tuesday, 2 May 2017

भाजपा के वसूली भाईयों ने किया भ्रष्टाचार का नया कीर्तिमान स्थापित!

जबरन वसूली, वो भी जनता से नहीं बल्कि सरकारी अफसरों से|

सलंगित आदेश पत्र की कॉपी के मुख्य हिस्से में यह लिखा है:

{{{{ ...... माननीय मुख्यमंत्री - हरयाणा सरकार के निर्देशानुसार आपको सूचित कर रहा हूँ कि जिस दिन से हरयाणा सरकार में चेयरमैन अथवा अन्य किसी लाभ के पद को ग्रहण किया है और आपने विभाग से मासिक मानदेय लेना शुरू किया है, उस दिन से इस वेतन का 10 प्रतिशत प्रतिमाह एमएलए फ्लैट 51, सेक्टर 3, चंडीगढ़ भाजपा कार्यालय में जमा करवाना है| अकाउंट का विवरण निम्न प्रकार से है|
सधन्यवाद,
गुलशन भाटिया,
चेयरमैन
भाजपा कार्यालय
चंडीगढ़ ..... }}}}

पिछली सरकारों को किसी को "भ्रष्टाचार की नानी" तो किसी को "बाहुबली गुंडों की सरकार" कहने वाले इन लोगों को भी देख लो ज़रा| और हिम्मत तो देखो, बाकायदा लिखित आदेश जारी हो रहे हैं, वो भी दिन-दहाड़े सबको दिखा के; कोर्ट-कानून किसी का कोई मतलब ही नहीं छोड़ा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

पत्र सोर्स: दीपकमल सहारण भाई साहब!

फंडी की भरमाई शाक्का/जौहर करती! जाटणी की जाई, बैरी के प्राण हरती!!

फंडी की भरमाई शाक्का/जौहर करती!
जाटणी की जाई, बैरी के प्राण हरती!!

इस कहानी को चरितार्थ करती जाट वीरांगना रानाबाई की शौर्यगाथा!

सम्राट् अकबर के शासनकाल में वीरांगना रानाबाई थी, जिसका जन्म संवत् 1600 (सन् 1543 ई०) में जोधपुर राज्यान्तर्गत परबतसर परगने में हरनामा (हरनावा) गांव के चौ० जालमसिंह धाना गोत्र के जाट के घर हुआ था। वह हरिभक्त थी। ईश्वर-सेवा और गौ-सेवा ही उसके लिए आनन्ददायक थी। उसने अपनी भीष्म प्रतिज्ञा आजीवन ब्रह्मचारिणी रहने की कर ली थी, इसलिए उसका विवाह नहीं हुआ।

हरनामा गांव के उत्तर में 2 कोस की दूरी पर गाछोलाव नामक विशाल तालाब के पास दिल्ली के सम्राट् अकबर का एक मुसलमान हाकिम 500 घुड़सवारों के साथ रहता था। वह हाकिम बड़ा अन्यायी तथा व्यभिचारी, दुष्ट प्रकृति का था। उसने रानाबाई के यौवन, रंग-रूप की प्रशंसा सुनकर रानाबाई से अपना विवाह करने की ठान ली। उसने चौ० जालमसिंह को अपने पास बुलाकर कहा कि “तुम अपनी बेटी रानाबाई को मुझे दे दो। मैं तुम्हें मुंहमांगा इनाम दूंगा।” चौ० जालमसिंह ने उस हाकिम को फ़टकारकर कहा कि - “मेरी लड़की किसी हिन्दू से ही विवाह नहीं करती तो मुसलमान के साथ विवाह करने का तो सवाल ही नहीं उठता।” हाकिम ने जालमसिंह को कैद कर लिया और स्वयं सेना लेकर रानाबाई को जबरदस्ती से लाने के लिए हरनामा गांव में पहुंचा और जालमसिंह का घर घेर लिया।

जब वह रानाबाई को पकड़ने के लिए उसके निकट गया तो वीरांगना रानाबाई अपनी तलवार लेकर उस म्लेच्छ पर सिंहनी की तरह झपटी और एक ही झटके से उसका सिर धड़ से अलग कर दिया। बाल ब्रह्मचारिणी रानाबाई सिंहनी की तरह गर्जना करती हुई मुग़ल सेना में घुस गई और अपनी तलवार से गाजर,मूली की तरह म्लेच्छों के सिर काट दिये। इस अकेली ने 500 मुगलों से युद्ध करके अधिकतर को मौत के घाट उतार दिया। थोड़े से ही भागकर अपने प्राण बचा सके। जाटों ने उनका पीछा किया और चौधरी जालमसिंह को कैद से छुड़ा लिया गया।
वीरांगना रानाबाई की इस अद्वितीय वीरता की कीर्ति सारे देश में फैल गई। वीरांगना रानाबाई के स्वर्गवास होने पर उसकी यादगार के लिए उनके अनुनाईयों ने उनका एक स्मारक बना दिया।

आधार लेख:
(1) जाट बन्धु मासिक समाचार पत्र आगरा, मुद्रक, प्रकाशक किशनसिंह फौजदार, अंक जुलाई, अगस्त, सितम्बर 1986, सती शिरोमणि रानाबाई, लेखक चौ० किशनाराम आर्य।
(2) जाट इतिहास, पृ० 606, लेखक ठा० देशराज
(3) जाट वीरों का इतिहास दलीप सिंह अहलाबत
 
#कुलदीप_पिलानिया_बाँहपुरिया

Saturday, 29 April 2017

मंडी-फंडी का गठजोड़ सिर्फ पैसे की वजह से है!

अंत तक पढ़ के बताना कि पढ़ के भीतर का जमींदार जागा कि नहीं?

फंडी भगवान और भय के दम पर बिज़नेस ओप्पोरचुनिटीज क्रिएट करके देता जाता है और मंडी उनको कैश करता जाता है| और यह मत समझना कि फंडी, मंडी के हाथों सिर्फ जमींदार को लुटवा रहा है, उसको तो लुटवा ही रहा है; उससे भी डबल-ट्रिप्पल कई गुना ज्यादा शहरी (90% से ज्यादा) बने और अपने आपको दुनिया के सबसे अव्वल स्याणे परन्तु तार्किकता में सबसे चम्पू, दब्बू और उल्लू साबित होते जा रहे जमींदारी परिवेश के परिवारों को पीतल लगवा रहा है|

जमींदारों के गाँवों में तो आज भी फंडी-पाखंडियों के टकनों पर लठ मारने वाले और इनके सतसगों में रेत-पत्थर बरसाने वाले बाकी हैं, परन्तु असली पढ़े-लिखे मूर्ख देखने हैं तो जाओ शहरों में देखो कैसे जमींदारी परिवेश के परिवार इनके चरणों में शाष्टांग गिरे पड़े हैं|

तौबा-रे-तौबा पढ़ने और तरक्की करने का यही सबब है तो इनसे तो गाँव का वो अनपढ़ गंवार ही बेहतर जो कम-से-कम ढोंग-पाखंड को तो अच्छे से जानता-पहचानता है| जिसके दम से जमींदारी जातियों की वो कहावतें तो जिन्दा खड़ी है कि "अनपढ़ जाट पढ़े जैसा और पढ़ा जाट खुदा जैसा!" परन्तु इन शहरी चम्पुओं ने तो जैसे यह गौरवपूर्ण और अपने वर्ग-समाज की अभिजातीयता दर्शाने वाली कहावतें "जाटड़ा और काटडा, अपने को ही मारे" तर्ज पर खत्म करने की उलटी मति धार रखी है|

हाँ, यह जमींदारी परिवेश के शहरी लोग, इन फंडी-पाखंडियों के बिज़नेस में कुछ हिस्सा ले रहे होते, एक आध मंदिर की फ्रेंचाइजी ले उससे समाज का पैसा समाज को वापिस कर रहे होते तो भी इनका इनके आगे शाष्टांग करना समझ आता; यह तो फ्री-फंड में उल्लू बने फिरते हैं और घर बुलवा के अपना उल्लू कटवाते हैं|

जो भक्त बने टूल रहे हैं, उनके बारे भी सुना जाता है इनको कभी भी भक्तों की तमाम फ्रेंचाइजियों की घोर-कोर कमेटियों में घुसने तक नहीं दिया जाता; अधिकतर या तो थर्ड लेवल की लाइन या सेकंड लेवल की लाइन तक रखे गए हैं, फर्स्ट लाइन में ना कभी इनका नंबर आना| इससे तो अच्छे यह गाँवों में ही थे, वहाँ कम-से-कम अपनी स्वछंद मति व् गति के मालिक तो थे|

जमींदारी वर्ग के जो लोग इनसे अभी बचे हुए हैं या अपनी सोच को आज भी अपने पुरखों की भांति बुलंद रखे हुए हैं, आप अपना भगवान खुद बन जाओ या अपने महान पुरखों को बना लो (जैसे आपके पुरखे जमींदारों के अपने दादा खेड़ा कांसेप्ट के जरिये मानते आये हैं) या फिर मंदिरों में अपने पुरखों की मूर्तियां लगवाने की जिद्द बाँध लो; फंडी अपने आप तीतर-बितर हो जायेगा और मंडी उतने ही पर फैलाएगा, जितने जमींदारों के भगवान सर छोटूराम ने निर्धारित कर दिए थे|

वैसे हर मंदिर में सर छोटूराम की मूर्ती साथ धरवाने का आईडिया कैसा रहेगा? कहीं यह लोग यह तो नहीं कह देंगे कि अपना अलग मंदिर बना लो अगर छोटूराम की मूर्ती रखनी है तो? क्यों अच्छा है ना अगर ऐसा भी हो जाए तो, फिर भगवान भी अपना और दान-चंदा भी अपना| मंथली ऑडिट करके जनता का दान, जनता को सौंप दिय करेंगे| धर्म के नाम पर समाज का पैसा समाज में और फंडी की लूट से पैंडा भी छूट जायेगा? वैसे भी हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं, एक-आध जमींदार ने अपना भी बैठा दिया मंदिरों में तो कौनसी आफत टूट पड़ेगी? आखिरकार यह सब फंडा जब है ही भगवान के नाम पर इधर के पैसे को उधर करने का, तो अपने भगवान के जरिये, अपना पैसा अपने ही यहां क्यों ना रखा जाए?

तो बताओ, पढ़ के भीतर का जमींदार जागा कि नहीं? शहरों में बैठे हो या गाँवों में परन्तु जमीनों के मालिक होने के नाते, जमींदार तो आज भी कहलाते हो ना? या शहर में गए हुओं को मंडी-फंडी ने अपने बराबर का मान लिया है? मेरे ख्याल से उनके लिए एक मंदबुद्धि ग्राहक (खासकर फंडी के चोंचलों में फंसने वाले ग्राहक) से ज्यादा कुछ नहीं हो, चाहो तो बराबरी के ओहदे का टेस्ट करके देख लो; पता लग जायेगा कि पैसे से बेशक कोरड़पति हो गए हो, परन्तु इनके बराबर (हालाँकि जमींदार को इसकी दरकार कभी रही भी नहीं, परन्तु आप जमींदारी परिवेश के 90% शहरी लोग यह दरकार दिखाते से प्रतीत होने लगे हो; क्योंकि गाँव वाला तो अनपढ़ होते हुए भी आज भी पढ़ालिखा कहलाता है और आप पढ़लिख के भी भगवान नहीं बन पा रहे हो, है ना?) की हैसियत व् हस्ती के इन्होनें आपको आज भी नहीं माना|

फिर वही बात इन वाली हैसियत की बराबरी में क्यों अपनी "अनपढ़ जाट पढ़े जैसा और पढ़ा जाट खुदा जैसा" वाली आइडेंटिटी का मलियामेट करते हो? इनसे समझौते करो, परन्तु बिज़नेस करने के, नौकरी करने के; अपनी आइडेंटिटी व् सभ्यता गिरवी रखने के नहीं|

अंत निचोड़ यही है कि: जाट-जमींदारों, अपनी लुगाईयों को रोको-समझो-समझाओ| इनको स्याणे-सपटों के फेर में पड़ डेड-स्याणी बनने के चक्कर में ढेढणी मत बनने दो| वर्ना इतना समझ लो कि कल को नए जमाने के "अळ काका" वाले ढेढ़ तुम ही बनने जा रहे हो|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Friday, 28 April 2017

औरत के नाम पर धर्म का शोषण, या धर्म के नाम पर औरत का शोषण; मुझे तो दोनों ही बातें पसंद नहीं!

हिन्दू धर्म में औरत का शोषण:

धर्मस्थलों पर शोषण:

1) दक्षिण व् मध्य भारत में मंदिरों में दलित-ओबीसी की बेटियां बावजूद कानून बन जाने के आज भी हजारों में मंदिरों में देवदासी (यानि पुजारी की सेक्स-गुलाम) बना के बैठाई जा रही हैं| - http://www.thenational.ae/news/world/asia-pacific/tragic-plight-of-indias-young-temple-girls
2) झारखण्ड-उड़ीसा-बिहार की तरफ की प्रथमव्या व्रजसला हुई लड़की का "शुद्धि-भोज" की कुप्रथा| और होता क्या है इस "शुद्धि-भोज" में, उस 12-14 साल की बच्ची का शुद्धिकरण के नाम पर मंदिर के गृभगृह में पुजारी लोग सामूहिक भोग (यानी गैंगरेप कर रहे होते हैं) लगा रहे होते हैं, और उसी मंदिर के ऊपर बाहर प्रांगण में लड़की के परिवार वाले समाज को भोज छका रहे होते हैं|


"शुद्धि-भोज" कुप्रथा पर 2001 में बनी बॉलीवुड फिल्म 'माया' के क्लाइमेक्स का वीडियो:

watch end to end, if not then from minute 3 to 7 a must!

https://www.youtube.com/watch?v=ufahjIahbVw&t=12sइस वीडियो को देख के आम-इंसान तो क्या भक्तगण भी स्तब्ध रह जायेंगे|
3) विधवा-आश्रम कुप्रथा: हरयाणा-पंजाब-वेस्ट यूपी को छोड़ दें तो तमाम देश में हिन्दू धर्म की विधवा को दिवंगत पति की चल-अचल सम्पत्ति से बेदखल कर, विधवा-आश्रमों में अनजान व् तथाकथित मठाधीशों के सानिध्य में सेक्सुअली एक्सप्लॉइट होने हेतु छोड़ (मैं तो फेंक दिया जाता है कहूंगा) दिया जाता है|

सामाजिक परिवेश में शोषण:
ऊपर वाले बिंदु हुए वह कुछ कुकर्म जो हिन्दू धर्म में औरत के साथ धर्म के नाम पर होते हैं| इसके अलावा सामाजिक स्तर पर दहेज़, हॉनर किलिंग, भ्रूण हत्या और पर्दा-प्रथा वो घिनोने चेहरे हैं हिन्दू धर्म के कि इंसानियत रखने वाला आदमी तो कम से कम जरूर शर्मसार हो जाए|

मुस्लिम धर्म में औरत का शोषण:

धर्मस्थलों पर शोषण:
इनके यहां धर्म-स्थलों पर औरत का शोषण देखने को नहीं मिलता; फिर भी कुछ मेरी नजरों से बचा हो तो जरूर बताएं|

सामाजिक परिवेश में शोषण:
लेकिन हाँ, सामाजिकता में इनके यहाँ तीन तलाक के नाम पर, पर्दा-प्रथा के नाम पर औरत का शोषण होता है| गैर-धर्मी यह भी कह देते हैं कि इनके यहां औरत को सिर्फ बच्चा जनने की मशीन माना जाता है; हाँ जैसे माइथोलॉजी चरित्र वाली गांधारी ने 100 पुत्र जनने से पहले धर्म-परिवर्तन कर इस्लाम अपना लिया था|

भक्तों को अपने धर्म के अंदर इन बुराइयों का सफाया करने की बजाये, बस दूसरे धर्म पे ऊँगली ताननी सिखाई गई है| कायदे से देखो तो अंधभक्त अगर "देवदासी" व् "शुद्धि-भोज" वाली प्रथा वाले इलाकों से आते होंगे तो इनको खुद नहीं पता होगा कि इनके परिवार की बहु-बेटियों ने धर्म के नाम पे क्या-क्या कुकर्म झेला हुआ होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

यूरेशियन व् थाईलैण्डी थ्योरी पर कुछ क्रॉस-एग्जामिनेशन!

जिस एक्सपर्ट मित्र के पास जवाब हो जरूर दीजियेगा!

तर्क की मेथोडोलॉजी: दो मेथड होते हैं, एक लेख-आलेख, अवशेष, खंडहर, शिलालेख आदि के जरिये कोई तर्क स्थापित करना और दूसरा सोशियोलॉजी, साइकोलॉजी, आइडियोलॉजी व् डीएनए के जरिये तर्क स्थापित करना| मेरे जो तर्क हैं यह दूसरे तर्क के तहत हैं| अब तर्क:

पहले यूरेशियन थ्योरी:
1) अगर यह लोग यूरेशिया से आये हुए हैं तो यह अपने ही उधर के और अपनी ही नश्ल के अंग्रेजों के राज का विरोध क्यों किये? जबकि मुग़ल्स का तो इतना तगड़ा विरोध इन्होनें नहीं किया था, जो कि इनके धर्म के भी नहीं थे?
2) यह यूरेशिया ओरिजिन के हो भी पाश्चात्य सभ्यता से इतनी नफरत क्यों करते हैं कि जब देखो भारत के कल्चर की हर खराबी को वेस्टर्न वर्ल्ड पे मढ़ देते हैं?
3) यूरेशिया ओरिजिन के हैं अगर यह तो बर्मा से होते हुए थाईलैंड तक चार लेन का द्विमार्गी राजमार्ग बनवाने में इनका क्या इंटरेस्ट है? पैतृक जड़ों के मोह के चलते तो यह राजमार्ग यूरेशिया की ओर जाना चाहिए था ना, थाईलैंड की ओर क्यों बन रहा है?
4) यूरेशिया से आये थे तो धर्म से ईसाई होने चाहियें थे, तो फिर इन्होनें हिंदुइज्म कब-कैसे अपनाया या ईजाद किया? क्योंकि 200 साल ऑफिसियल और 300 साल अन-ऑफिसियल रूप में राज करने के बावजूद भी उधर के ही रहे अंग्रेजों ने तो धर्म, भाषा आदि नहीं बदला? तो फिर यह कैसे गौरवान्वित यूरेशियन हुए, जिन्होनें धर्म तक भी बदल डाला?
5) अगर यह यूरेशियन थे तो जैसे अंग्रेजों और फ्रांसीसियों की भारत पर कब्जे बारे बक्सर-प्लासी जैस सीरीज युद्ध हुए थे, ऐसे इनके अंग्रेजों से क्यों नहीं हुए? अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने तो एक झटके में फैसला कर लिया था कि भारत पर कौन राज करेगा? तो इन्होनें ने क्यों नहीं किया और किया तो क्या वो कहीं और के लिए किया था, शायद थाईलैंड के लिए?
6) वैसे लगे हाथों बता दूँ, विकिपीडिया से ले के तमाम प्रमुक सोर्सों के अनुसार यूरेशिया का क्षेत्र पूरे यूरोप व् एशिया को मिला के बताते हैं, ना कि इस ईजाद की हुई थ्योरी की भांति सिर्फ काला सागर के आसपास का क्षेत्र यूरेशिया है| तो कृपया यह कन्फूशन दूर कीजिये मेरा, क्योंकि अगर पूरा यूरोप व् एशिया साझे तौर से यूरेशिया कहलाता है तो फिर हर भारतीय, हर चीनी, हर रूसी, हर अंग्रेज-फ़्रांसिसी आदि सब यूरेशियन हुए; अन्यथा सिर्फ काला सागर का क्षेत्र ही यूरेशिया है तो विकिपीडिया से ले तमाम प्रमुख सोर्स सिर्फ काला सागर क्षेत्र को यूरेशिया बताने की बजाये दोनों महाद्वीपों के साझे क्षेत्र को यूरेशिया क्यों बता रहे हैं?

अब थाईलैण्डी थ्योरी:
1) अगर आप लोग थाईलैन्डियों की भारत में एंट्री बारहवीं सदी के पास की बताते हो तो ईसा पूर्व हुए बंगाल के राजा शशांक, पहली सदी में हुए राजा पुष्यमित्र सुंग व् सातवीं सदी में हुए चच और दाहिर का यहाँ होना, कैसे जस्टिफाई करोगे?
2) भारत में जाति-व्यवस्था इनकी देन बताई जाती है, उससे पहले कबीला सिस्टम बताया जाता है| परन्तु जाति-व्यवस्था भी तो महात्मा बुद्ध से पहले की है, इसी से तंग हो के तो बुद्ध ने ईसा पूर्व पांचवीं सदी में बुद्ध धर्म ईजाद किया था; तो अगर थाईलैण्डी भारत बारहवीं सदी के आसपास आये तो उस वक्त इनका होना कैसे जस्टिफाई करोगे?
3) उत्तरी भारत में जब किसी का नुकसान होता है तो कहते हैं कि ले भाई "मार दिया मठ", "हो गया मठ", "कर दिया मठ" जैसी जो कहावतें उस काल से चलती हैं जब बौद्ध मठ तोड़े गए थे; तो अगर थाईलैण्डी भारत में बारहवीं सदी में आये तो उन मठों को तोड़ने वाले कौन थे? थानेसर के बुद्ध धर्मी राजा हर्षवर्धन के राज व् वंश दोनों के दुश्मन कौन थे?

 विशेष अनुरोध: जातीय घृणा व् अवसाद प्रदर्शित करने वाली भाषा, व् जातीय शब्दों के प्रयोग से बचें| ऐसा कोई कमेंट आया तो सविनय डिलीट कर दिया जायेगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

Thursday, 20 April 2017

What Protestants are in Christianity is the Khap in Hinduism; this analogy is amazing, just go through!


Parameters took to set this analogical research were prosperity, peace and harmony.

But before that let’s have a glimpse of what Protestants in Christianity are and what Khaps in Hinduism are?

Protestants in Christianity: Protestants are one of three major divisions of Christianity together with Roman Catholics (or just Catholics in short) and Orthodox (see reference 1). A Protestant is a Christian who belongs to one of the many branches of Christianity that have developed out of the Protestant Reformation started by Martin Luther in 1517. Luther’s posting of the 95 Theses “protested” against unbiblical teachings and traditions in the Roman Catholic Church, and many Europeans joined his protest. New churches were founded outside of the Catholic Church’s control. The major movements within the Protestant Reformation include the Lutheran Church (see reference 2).

Their core line of belief is that to show loyalty for religion ‘faith’ alone is enough and one doesn’t require performing rituals for same. One can refer to above two references to know more in depth about Protestants.

Khaps in Hinduism: Khaps also very closely based on the faith solely instead of performing rituals. They don’t believe in authoritarianism, they believe in democracy and republic (reference 3). They oppose all such rituals which oppress humanity on name of religion. Basically they advocate humanism and socialism over religion. They count religion second over humanism on top.
Their core belief goes with England's Constitution pattern to consider every village as the smallest and independent unit of customs, culture and claims.

What equivalent of Orthodox of Christianity in Hinduism is the Santani Division, which is nurtured by present day RSS and BJP through their proxies like VHP, Bajrang Dal, Shivsena etc (see reference 4).

So here comes the first finding of this analogical research: It is that Khaps who usually are termed as the most orthodox sect of Hinduism is a false notion; instead they are and have been Protestants of Hinduism. The one who is orthodox of Hinduism is the Santani.

Now let’s have a look at following facts and figures:

When looked upon following two reports:
1) Top 10 Most Peaceful Countries In The World 2017 - https://themysteriousworld.com/10-most-peaceful-countries-in-the-world/
2) Protestantism by country - https://en.wikipedia.org/wiki/Protestantism_by_country

Reading these reports reveals you following findings:
1) Out of top 10 most peaceful countries 7 are such where protestants population is in majority varying from 26% up to 82%
2) They are majorly Nordic countries of Europe (especially the top 2 of this report i.e. Iceland (79% Protestants and Denmark (77 to 82% Protestants). And so is the case with Finland at number 6 in this report with 73 to 80% Protestants.
3) USA has 48% Protestants and UK has 50% Protestants, which can further be seen as a big engine behind their status of being developed and prosperous countries.

Now let’s look at which region of India has been and is (or according to many professors, have been before coming up of current government) the most prosperous with least economic gaps between poor and rich, with least of religious hypocrisy and anarchy, with no one going out of it for merely the labourer earnings (rather sister states people come here from remote corners of country in search of basic livelihood), a region without religious shames like Devdasies, Widow Ashrams (Vrindavan is exception that too consists of 85% Widows of Bangal and 99.99% of out of this reigion widows) and Mahadalits; and you shall put your finger on 300 Kms radius region around Delhi along with Punjab. And this region as a whole has been nurtured by ideology, philosophy and sociology established by Khaps since ages. Khaps have basically been the independent social institutions in form of oldest “Social Jury System” perhaps the world's ever known to in continuation of more than 15 centuries system.

Hence other findings of this research can be enlisted as follows:
1) Second finding (look above for the first finding) of the research states Khaps of Hinduism equivalent version of Protestants of Christianity.
2) These were the customs, culture and values of Khaps from where Maharishi Dayananda took the concept of Arya Samaj and revered the back bone community of this system i.e. the Jats as “Jat Ji” and “Jat Devta”. And it was for none other than the reason of theirs being Protestants of Hinduism.

Learnings and further scopes of this research, especially for Khap System believers:
1) Beside my many initial researches established with analogical global studies in this field, this research can be seen as another enlightenment of self-realization and self-recognition with global purview.
2) It can serve as a testament to historians, who write on Khaps to put their studies in this framework.
3) Any counterfeit to this research would be a subject of further interest to observe and synthesise.

Jai Yauddhey!

Author: Phool Kumar Malik

References:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Protestantism
2. https://www.gotquestions.org/what-is-a-Protestant.html
3. https://www.nidanaheights.com\Panchayat.html
4. https://en.wikipedia.org/wiki/Orthodoxy#Orthodoxy_in_Hinduism
5. https://en.wikipedia.org/wiki/Protestantism_by_country
6. https://themysteriousworld.com/10-most-peaceful-countries-in-the-world/

हिंदुइज्म की खाप व्यवस्था को ईसाई धर्म की प्रोटोस्टेंट लाइन के समक्ष रखा जा सकता है!

क्रिश्चियनिटी में तीन मुख्या धाराएं हैं या कहिये धड़े हैं| एक रोमन कैथोलिक, दूजा ऑर्थोडॉक्स व् तीसरा प्रोटोस्टेंट|

रोमन कैथोलिक क्रिस्चियन चर्च के वेग को फॉलो करते हैं| 
हिंदुइज्म की सनातनी परम्परा को क्रिश्चियनिटी में ऑर्थोडॉक्सी कहा जाता है|
और जो अब तक शायद संज्ञान-रहित पड़ी रही आ रही है वह है हिंदुइज्म की खाप व्यवस्था, जो कि सघन अध्यन से देखने पर क्रिश्चियनिटी की प्रोटोस्टेंट व्यवस्था से मेल खाती है| जो कि ऑर्थोडॉक्सी व् कॅथोलिज्म की भांति हिन्दू की धर्म की शंकराचार्य व्यवस्था, ऑर्थोडॉक्स सनातनी व्यवस्था व् मैथोलॉजिकल मान्यताओं को सहज स्वीकार नहीं करती| सहज स्वीकार इसलिए कहा क्योंकि यह माइथोलॉजी को मानने वाले का विरोध भी नहीं करती|


परन्तु जैसे प्रोटेस्टंट्स ने पंद्रहवीं सदी में पैदा हुए मार्टिन लूथर के 95 सख्त रूल्स वाली नियमावली को मानने से इंकार कर दिया था व् इसको मानवता पर धर्म के नाम पर मानवीय आज़ादी छीनना माना था, ठीक वैसे ही खाप व्यवस्था की आइडियोलॉजी का मूल शंकराचार्य, सनातनी व् माइथोलॉजी को मानवता की आज़ादी पर गैर-जरूरी बोझ की तरह देखती आई है|

जैसे क्रिश्चियनिटी में प्रोटेस्टंट्स कहते हैं कि एक इंसान की उसके धर्म के प्रति सच्चाई मापने के लिए उसका उस धर्म के प्रति विश्वास ही काफी है, व् धर्म से संबंधित कर्मों को भी करना नहीं; ऐसे ही खाप व्यवस्था कहती है कि हिंदुइज्म में विश्वास काफी है; उसको साबित करने के लिए कावड़ ढोना, खड़तल बजाना, भजन-कीर्तन-जगराते-भंडारे आदि करना जरूरी नहीं|

इसलिए हिंदुइज्म में खाप व्यवस्था के फोल्लोवेर्स एक पल को रुक के अपनी डीएनए को पहचानें तो खुद को हिंदुइज्म का प्रोटोस्टेंट पाएंगे व् इन ढोंग-पाखंडों से ऐसे ही बच के चलेंगे, जैसे इनके पुरखे चलते रहे हैं|

मुझे गर्व है कि मैं मेरी जीवन शैली व्यवस्था यानी हिंदुइज्म (धर्म नहीं) की प्रोटोस्टेंट श्रेणी को मानने वाला हूँ, जो किसी भी धर्म के अंदर धर्म को उसकी सीमा सिखाती है व् धर्म को मानवता पर हावी होने से बचाती है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक