सावधान किसानों: बीजेपी की गुड़गाम्मा वर्कर्स मीटिंग का आउटपुट आ गया है, जिसके तहत बीजेपी/आरएसएस ने किसान को कृषि बिल समझा के कन्विंस करने की बजाए बहकाने हेतु अपना पैंतरा फेंक दिया है| इस पैंतरे के तहत बाबे/मोड्डों की ड्यूटी लगाई गई है कि गाम-गाम शांति के लिए हवन-यज्ञ-महायज्ञ करवाओ| यानि किसानों को तथाकथित शांत करने के लिए अब गाम-गाम शांति के महायज्ञों का प्रपंच होगा और लोगों को ओपरी-पराई शक्तियां उन पर चढ़ी होने, गाम पर चढ़ी होने के फंड रचे जायेंगे ताकि जिससे मर्द किसान ना भी डरें तो उनकी औरतें डरें (क्योंकि औरत का हृदय ज्यादा कोमल होता है, ज्यादा संवेदना वाला होता है) व् अपने मर्दों को घरों पर बैठा लें| कल ही मेरे गाम-गुहांडों में मोड्डों की भरी गाड़ियां देखी गई हैं जो 2 मोड्डे प्रति गाम उतारती है और अगले में चली जाती है| उनसे पूछा जाता है तो कहते हैं कि गाम की शांति हेतु गाम में महायज्ञ करेंगे| क्या मजाक व् संवेदनहीनता है यह, किसान के मुद्दों का अब यूँ मजाक बनाया जाएगा कि इन प्रपंचों से इनके हल निकलेंगे/निकालेंगे?
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Tuesday, 23 February 2021
दो दिन पहले हुई बीजेपी की गुड़गाम्मा वर्कर्स मीटिंग में हुई किसान को समझाने की बजाए बहकाने के 2-4 मंत्र देने वाली बात का आउटपुट: मोड्डे गाम-गाम शांति महायज्ञ करेंगे!
Monday, 22 February 2021
सिख मिसलों की लंगर परम्परा व् खापों की "गाम-खेड़े में कोई भूखा-नंगा ना सोए" में क्या समानता है?
हर इंसान जिन्दा रहे की इंसानियत वाला धर्म पालने व् अपने कमाए में से भी बाँट के खाने की सबसे बड़ी समानता है| इसी वजह से बीते वक्त तक कहावत चलती आई है कि इन क्षेत्र के गामों में कोई भूखा-नंगा नहीं सोता, शायद आज भी बदस्तूर चलन में है यह कहावत| यही इनके दादे खेड़े कहते हैं कि सर्वधर्म व् 36 बिरादरी बराबर हैं| संवेदना के पैमाने पर औरत, मर्द से पहले है; इसीलिए तो खेड़ों पर 100% धोक-ज्योत औरत ही करती है| भीख-भिखारी का कांसेप्ट ही नहीं इनकी आइडियोलॉजी में|
Monday, 8 February 2021
मोदी का छोटा किसान बनाम बड़ा किसान व् MSP!
लेख का निचोड़: सही मायनों में यह आंदोलन है ही छोटे किसान का, सफल हुआ तो इसके सबसे ज्यादा फायदे होने ही छोटे किसान को हैं|
Friday, 5 February 2021
किसान आंदोलन में खापों के रोल को देख इनके आलोचक भी इनके मुरीद हुए जाते हैं!
सर्वखाप व् मेरी लाइफ-जर्नी ऐसी रही कि दोस्तों से ले रिश्तेदारों ने इनके प्रति मेरे लगाव व् विश्वास बारे मुझे हड़काया-झिड़का, कईयों ने तो इस लगाव को मुझसे अलगाव की वजह बनाया| मेरे सामने से जानबूझ के सोशल मीडिया से ऐसी पोस्टें गुजारी/गुजरवाई जिनमें खापों बारे व्यंग्य या तिरस्कारिता होती थी| परन्तु आज किसान आंदोलन के वक्त इनके रोल बारे जब इन्हीं दोस्तों को इनका मुरीद हुआ देखता हूँ तो आत्मविश्वास आता है कि सर्वखाप के प्रति मेरी सोच, मेरा स्टैंड सही था| लोगों को अक्सर कहता था कि जैसे साँपों के लिपटने से चंदन अपनी शीतलता नहीं छोड़ा करता ऐसे ही खापों में कुछ खराब लोग हो जाने से खाप का कांसेप्ट बेमानी नहीं हो जाता| आज उसी कांसेप्ट ने अपना ऐसा तेज दिखाया कि लगभग मरणास्सन पहुँच चुका किसान आंदोलन रातों-रात जिन्दा हो आया, वह भी दोगुनी ताकत-तेज व् प्रभाव के साथ| ऐसी आभा से उभरा की आलोचकों की आखें चकाचौंध हैं| परिणाम चाहे जो होवे परन्तु आलोचकों की जुबान शब्दहीन हो गई हों जैसे; ऐसी आभा उभरी इस आंदोलन की सर्वखाप के साथ में उठ खड़ा होने से|
एक दूसरा पहलु जिसको ले कर मेरे दोस्तों में मेरे बारे इसी तरह का रवैया रहता आया है, वह है आर्य-समाज| मेरे को अक्सर सुनने को मिलता रहा कि यह आर्य-समाज व् खापों को छोड़ दे तो हम बहुत आगे बढ़ जाएँ| वह कितना आगे बढ़े इसकी हालत वह भी जानते हैं और उनके अगल-बगल वाले भी| मैं आज भी कहता हूँ कि सिस्टम्स रोज-रोज खड़े नहीं होते| तुम-हम या हमारे पुरखे यहाँ सिस्टम्स बना के फंडियों को देने/परोसने हेतु मात्र को नहीं हैं या थे| कोई नया सिस्टम खड़ा करना या ट्राई करना जितना जरूरी है उससे भी ज्यादा जरूरी है अपने पुरखों के खड़े किये सिस्टम्स से कमियां दूर करके उनकी निरंतरता व् उन पर अपना कब्जा बनाए रखना| और आज वह कब्जा हमारा आर्य-समाज से उठता जा रहा है| दर्जनों-सैंकड़ों लेख हैं मेरे इस बात पर कि किसका क्या कब्जा होता जा रहा है आर्य समाज के कांसेप्ट से ले इसकी प्रॉपर्टीज पर, जमीनों पर| इस पर भी लेख हैं कि आर्य-समाज में क्या कमियां जानबूझकर छोड़ी गई व् क्या अनजाने में छोड़ी गई|
और ऐसा नहीं है कि खापों के प्रति मेरे लगाव ने मुझे कुछ दिया नहीं| फ्रांस में बैठे हुए को भी जितना ओब्लाइज खाप चौधरी करते हैं मुझे, मैं उसको देखते हुए, उनका कृतज्ञ भी हूँ और उनसे मिलने वाले आदर-मान, आशीष-आशीर्वाद से अभिभूत भी| बस जरूरत है तो अपने इन बुजृगों से निस्वार्थ व् विश्वास के निहित व्यवहार व् आचार की| इनको बावला मान के इनसे डील करने जाते हो तो यह चुटकियों में पकड़ लेते हैं कि छोरा कौनसी खूंट में बोल रहा; परन्तु व्यापक सामाजिक सरोकार से जाते हो तो यह आपको, आपके आईडिया को अंगीकार करने में पलक झपकने जितनी भी देरी नहीं लगाते| और यह मैं इनके साथ अपने व्यक्तिगत अनुभव से बता रहा हूँ|
अब आईये, इस किसान आंदोलन के बाद; आर्य-समाज को संसोधित करवाने का अभियान चलाएं| इनमें जो मूर्ती-पूजक घुस आये हैं उनको निकाल बाहर करें व् जिन दादा नगर खेड़ों के मूर्ती-पूजा रहित कांसेप्ट के आधार पर आर्यसमाज टिका है उसको वापिस लावें| और अबकी बार संस्कृत के साथ-साथ एरिया मुताबिक अपनी मातृभाषा हरयाणवी व् पंजाबी में इसको लावें| हम जल्द ही आर्यसमाज संवाद समिति बनाएंगे, जो हर एक गुरुकुल में सम्पर्क साधेगी व् इनमें घुस चुके फंडियों को इनसे कैसे बाहर किया जाए इस पर मंत्रणाएं शुरू करेगी| मंत्रणा करेगी कि आर्य-समाज वर्जन 2 का नाम यही हो या कुछ और| मंत्रणा करेगी कि दादा नगर खेड़ों को आर्य-समाज से दूर किस षड्यंत्र के तहत रखा गया, जबकि दोनों मूर्ती-पूजा रहित आध्यात्म के कांसेप्ट हैं| मंत्रणा होगी कि सत्यार्थ प्रकाश के 11वें व् 12वें सम्मुलासों में जिस माइथोलॉजी को प्रतिबंधित किया गया वह दिनप्रतिदिन कैसे इन्हीं गुरुकुलों के जरिए समाज में उतारी जा रही है|
आदि-आदि!
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
किसान आंदोलन एक साइकोलॉजिकल वॉर भी है, जिसको बचाये रखने को किसानों को ठीक वैसे ही डरावे सरकार के आगे खड़े किये रखने होंगे जैसे खेतों में आवारा जानवरों से अपनी फसलें बचाये रखने हेतु खड़े रखते हैं!
1) डरावा नंबर 1: संयुक्त किसान मोर्चा की स्टेजों व् प्रेस कॉन्फरेंसों से यह बात यदाकदा याद दिलाई जाती रहनी चाहिए कि हम तो रामलीला मैदान जाना चाहते हैं, दिल्ली के बॉर्डर्स तो सरकार ने ब्लॉक किये हुए हैं| बल्कि मुख्य स्टेजों के फ्लेक्सों पर यह बात स्थाई तौर से लिखवा दी जाए तो और भी बेहतर|
Sunday, 31 January 2021
छोटे बाबा चौधरी राकेश टिकैत जी व् "संयुक्त किसान मोर्चा" के 40-42 अग्गुओं से सावधानी भरी मार्मिक अपील!
Wednesday, 27 January 2021
ओबीसी व् एससी/एसटी के मन से फंडी का डाला द्वेष निकालते रहना व् सीधे तौर पर डाइलॉगिंग रखना, जाट यह दो काम निरंतर करता रहे तो इनके बीच से फंडी खत्म:
Friday, 22 January 2021
माणसो को तरस चुकी गामों की परस-चौपाल-चुपाड़ों में किसान आंदोलन की बदौलत लौटा "सीरी-साझी" कल्चर का सैलाब!
रामायण-महाभारत, ये कथा, फलां पुराण की मनघढ़ंत माईथोलोजियों से भरे परिवार तोड़क व् हद से ज्यादा मैं-का-बहम-भरक टीवी सीरियलों व् काल्पनिक साहित्य पढ़-पढ़ बंद हो चले लोगों के दिमाग खोल दिए इस किसान आंदोलन ने|
यह महज किसान आंदोलन नहीं, अपितु मैनेजमेंट, प्लानिंग, स्ट्रेटेजी व् कोऑपरेशन के अध्यायों की पूरी किताब है!
कहते हैं कि दूध का जला छाज को भी फूंक-फूंक कर पीता है, जून 1984 व् फरवरी 2016 में फंडवाद व् वर्णवाद की सड़ांध मारती धधकती ज्वाला झेल चुके क्रमश: पंजाबी व् हरयाणवी किसान की वर्तमान किसान आंदोलन में भागीदारी कुछ इसी लाइन पर नजर आती है| यूथ-मेच्योर-वृद्ध किसान सचेत है, होश में है, फंडी जैसे धूर्त दुश्मन की हर चाल से वाकिफ व् अनुभवी है| जिसके लिए तमाम किसान जत्थेबंदियों को बारम्बार सलाम है|
Sunday, 17 January 2021
किसान आंदोलन के जरिये पंजाब व् यूपी में भी 35 बनाम 1 टाइप की खाई खोदना चाह रहे फंडियों की पार्टी व् संघठन!
2022 में पंजाब व् यूपी विधानसभा चुनावों को देखते हुए फंडियों की पार्टी व् संघठन चाहते हैं कि किसान आंदोलन जल्दी खत्म ना हो ताकि 2014 का जाट बनाम नॉन-जाट यूपी में व् सिख बनाम नॉन-सिख व् सिखों में जट्ट सिख बनाम नॉन-जट्ट सिख को वोट कैश करने के लिए आजमाया जा सके| यह चाहते हैं कि यह आंदोलन तब तक खींचा जाए जब तक इस आंदोलन में सिरकत करने वाली सबसे बड़ी कम्युनिटी यानि जाट-जट्ट को जिद्दी-दबंग दिखा के यह पंजाब व् यूपी के हर ओबीसी-दलित-स्वर्ण के कानों में अपना जहर फूंक, उनको इनको वोट देने को कन्विंस ना कर लेवें|
फंडी लोग, ओबीसी व् एससी/एसटी जातियों में किसान आंदोलन को सिर्फ "जाट-आंदोलन पार्ट 2" बता कर करवा रहे दुष्प्रचार!
किसान आंदोलन में शामिल हर शख्स अपने-अपने गाम स्तर पर इस बात का संज्ञान लेवे कि फंडी आपके ही खेत-काम-कल्चर की साथी जातियों में इस बात को किस स्तर तक ले जा रहे हैं| हालाँकि वैसे तो यह बिरादरियां भी अपना-पराया परखने में हर लिहाज से सक्षम हैं परन्तु फिर भी फंडी के जहर की काट को काटने के लिए, फंडी की बिगोई बात के स्तर के अनुसार आप इन भ्रांतियों को ऐसे दूर करें/करवाएं:
Tuesday, 12 January 2021
फंडी का नश्लवादी सामंतवाद व् आपका मानवतावादी उदारवाद!
फंडी का नश्लवादी सामंतवाद: फंडी की सबसे बड़ी ताकत होती है उसका अति-घनिष्ठ आंतरिक लोकतंत्र व् उतनी ही घनिष्ट नफरत के साथ दूसरों के आंतरिक लोकतंत्र को तहस-नहस करने के प्रोपगैण्डे| किसानी की भाषा में समझो तो कुछ यूँ कि ऐसा किसान जो आवारा जानवरों से अपने खेत की तो जबरदस्त बाड़ करता ही है साथ-की-साथ यह भी सुनिश्चित करता है कि पड़ोसी के खेत में आवारा जानवर पक्के घुसाए जाएँ| अब क्योंकि खेत का ऐसा पड़ोसी हुआ तो नुकसान तुरंत दिख जाता है व् ऐसे पड़ोसी किसान को रोका जाता है| ऐसे ही यह जो धर्म-कर्म-राष्ट्रवाद के नाम पर फंडी होते हैं इनको देखना शुरू कर लीजिये, बस अगले ही दिन सारी ही तो समस्या खत्म|
Wednesday, 6 January 2021
किसानों-मजदूरों पर जुल्म ढाने वालों को "काले अंग्रेज" ना कहिये, ऐसे narratives ठीक रखिये और यह जो हैं वो कहिये यानि "वर्णवादी फंडी"!
क्योंकि यह जो मानसिकता 3 कृषि बिलों के तहत अपने ही धर्म-देश के किसानों-मजदूरों पर जुल्म ढाह रही है यह वर्णवाद की फिलोसॉफी की वह घोर नश्लवादी थ्योरी है जो पहले दोनों (आप व् फंडी) का एक धर्म उछालती है और फिर आपको आर्थिक-मानसिक-शारीरिक हर प्रकार से गुलाम बनाती है| वर्ना ऐसा क्या सितम कि जहाँ हर अमेरिका-जापान-इंग्लैंड-फ्रांस आदि जैसे विकसित देश उनके यहाँ कॉर्पोरेट खेती होते हुए भी अगर किसान को MSP टाइप का कुछ नहीं दे पाते हैं तो इंडिया की तुलना में 500 से ले 734 गुणा ज्यादा तक सब्सिडियां दे, किसानों के नुकसान की भरपाई करती हैं| इंडिया में 1 रुपया सब्सिडी के ऐवज में अमेरिका में 734 रूपये मिलते हैं किसान को एक वित्-वर्ष में|
और यह अपने तथाकथित ग्रंथ-पुराण-पोथों में यह लिखने वाले कि, "स्वर्ण को चाहिए कि शूद्र का कमाया बलात हर ले" बलात हर ले और तब भी वह किसी दंड-पाप या अमानवता का भागी नहीं| सोचिये आप कैसे घोर अमानवतावादी लोगों को धर्म के नाम पर सर पर बैठाये हुए हैं| इन वर्णवादी फंडियों को सर से नीचे पटकना शुरू कीजिये, बराबर खड़ा करना तक बंद कीजिये; तब यह सरकार ज्यादा जल्दी झुकेगी|
विशेष: वर्णवादी फंडी किसी भी जाति-समुदाय में हो सकता है, इसलिए इसको किसी जाति-वर्ग-वर्ण विशेष से जोड़ के ना देखा जाए|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक