Wednesday 6 January 2021

किसानों-मजदूरों पर जुल्म ढाने वालों को "काले अंग्रेज" ना कहिये, ऐसे narratives ठीक रखिये और यह जो हैं वो कहिये यानि "वर्णवादी फंडी"!

क्योंकि यह जो मानसिकता 3 कृषि बिलों के तहत अपने ही धर्म-देश के किसानों-मजदूरों पर जुल्म ढाह रही है यह वर्णवाद की फिलोसॉफी की वह घोर नश्लवादी थ्योरी है जो पहले दोनों (आप व् फंडी) का एक धर्म उछालती है और फिर आपको आर्थिक-मानसिक-शारीरिक हर प्रकार से  गुलाम बनाती है| वर्ना ऐसा क्या सितम कि जहाँ हर अमेरिका-जापान-इंग्लैंड-फ्रांस आदि जैसे विकसित देश उनके यहाँ कॉर्पोरेट खेती होते हुए भी अगर किसान को MSP टाइप का कुछ नहीं दे पाते हैं तो इंडिया की तुलना में 500 से ले 734 गुणा ज्यादा तक सब्सिडियां दे, किसानों के नुकसान की भरपाई करती हैं| इंडिया में 1 रुपया सब्सिडी के ऐवज में अमेरिका में 734 रूपये मिलते हैं किसान को एक वित्-वर्ष में| 


और यह अपने तथाकथित ग्रंथ-पुराण-पोथों में यह लिखने वाले कि, "स्वर्ण को चाहिए कि शूद्र का कमाया बलात हर ले" बलात हर ले और तब भी वह किसी दंड-पाप या अमानवता का भागी नहीं| सोचिये आप कैसे घोर अमानवतावादी लोगों को धर्म के नाम पर सर पर बैठाये हुए हैं| इन वर्णवादी फंडियों को सर से नीचे पटकना शुरू कीजिये, बराबर खड़ा करना तक बंद कीजिये; तब यह सरकार ज्यादा जल्दी झुकेगी|  


विशेष: वर्णवादी फंडी किसी भी जाति-समुदाय में हो सकता है, इसलिए इसको किसी जाति-वर्ग-वर्ण विशेष से जोड़ के ना देखा जाए| 


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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