लेख का निचौड़: क्या 1860 से ले 1880 वाला जाटों द्वारा सिखी अपनाने का दौर फिर से आ रहा है, 21 अप्रैल 2021 से?
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Saturday, 20 March 2021
चार जैनियों की जिद्द की वजह से लम्बा खिंचता किसान आंदोलन, इस खींच को समर्थन करता हिंदुत्व व् इस वजह से जाट की सिखिज्म की तरफ बढ़ने की बनती वजहें!
"होळ" और "होळा" सुने हैं, दोनों होली व् होलिका से भिन्न हैं, परन्तु होली, होळा को लगभग खाती जा रही है; कभी अहसास हुआ?
यह लेख अंत तक पढ़ने के बाद यह, संदेश किसान आंदोलन के आगुओं को पहुँचावें: कि, "28 मार्च को किसान आंदोलन के धरना स्थलों पर 3 कृषि बिलों को आप जिस आग में जलाने वाले हैं, यह आग किसी औरत को जलाने की नहीं अपितु खेतों से चने की टाट लाई जावें, वह धरनों पर बैठ कर आग जला के भून के खाई जावें व् उस आग में बिलों की कॉपी जलाई जावे"| हम नहीं हैं किसी भी दुष्ट या सज्जन व्यक्ति को जलने-जलाने में खुशियां मनाने वाले DNA के लोग| अपनी किनशिप समझिये, कुछ नीचे ब्यां करता हूँ:
एक हरयाणवी भाषा का शब्द है "होळ", पंजाबी भाषा में भी है "होळ" और "होळा" शब्द; परन्तु हिंदी में नहीं मिलते यह दोनों ही शब्द, note it| जो नहीं जानते उनके लिए बता दूँ, "होळ" का अर्थ होता है "कच्चे चने का भुना हुआ दाना"| इसके साथ ही जुड़ा शब्द है "होळा" यानि चने की फसल पर टाट लग आने की ख़ुशी, इन टाटों के होळ पका के खाने से मिलती ऊर्जा व् बसंत-फागण-बैसाख के महीनों के खुशगवार मौसम की उर्जायमान मस्ती के चलते लोग-लुगाईयों का नाचना-गाना-रंग-गुलाल-मिटटी-गारे से खेलने को कहते हैं "होळा"| मिसललैंड (पंजाब) व् खापलैंड (ग्रेटर हरयाणा) पर यह रही है इस त्यौहार की शुद्ध परिभाषा व् परम्परा| यानि शुद्ध खेती आधारित, फसल पे फल आने की ख़ुशी में खुशगवार मौसम में मनने वाला त्यौहार रहा है यह|
अब इन्हीं दिनों, इसी मौके इसपे होली व् होलिका की परत कब व् कैसे चढ़ आई या चढ़ाई गई; जरा खोज कीजिये| एक प्रैक्टिकल, वास्तविक वजहों के कारण मनाए जाने वाले त्यौहार पर माइथोलॉजी का लेप कब से लगने लगा, जरा बुजुर्गों के पास बैठ के मंत्रणा कीजिये|
हमें ऐतराज नहीं कि आपको यह त्यौहार "होळ" खाते हुए "होळा" मनाते हुए मनाना है या पब्लिकली आग में एक माइथोलॉजी की लुगाई को जला के मनाना है| अर्ज सिर्फ इतना है कि बेशक दोनों को मनाओ परन्तु अपने पुरखों की वास्तविक किनशिप, लिगेसी को ज्यों-का-त्यों बरकरार रखो| इसको बरकरार रखोगे तभी कंधों से नीचे के साथ साथ ऊपर भी मजबूत कहलाओगे| जानता हूँ कि मजबूत हो और अपने DNA के उदारवादी खून-खूम के चलते ही अपने पुरखों के त्योहारों पर यह दूसरे कॉन्सेप्ट्स को एडजस्ट करने को मानवता के तहत ग्रहण करते जाते हो| परन्तु जो तुमसे ऐसा करवा जाते हैं वो इसमें तुम्हारी मानवता नहीं अपितु कंधों से ऊपर की कमजोरी देखते हैं|
हॉनर किलिंग से ले डोले-खेत के झगड़ों पे खून-खराबों से ले गुस्से की आगजनी में किसी की जान चली भी जाती हैं तो क्या आपका समाज, आपके रश्मों-रिवाज, आपकी पंचायतें कभी ऐसे काम करने वालों को स्वीकार करती या भगवान बना के पूजती-पुजवाती देखी हैं? नहीं, कभी नहीं देखी होंगी| बल्कि ऐसे लोगों का तो जरूरत पड़ने पर बहिष्कार व् निंदा दोनों तक करते हैं; चाहे उन्होंने लाख घर-समाज की इज्जत के बहाने बना के अपने कुर्कत्य को जायज ठहराया हो| मौत की सजा हमारे कल्चर का कांसेप्ट नहीं है, और जला के मारना तो फिर बिल्कुल ही दोहरा कुर्कत्य हो जाता है| तो कौन हैं यह लोग जो कहीं अपनी ही माँ का गला रेतने वाले हॉनर किल्लर को भगवान बना के पूजते हैं तो कहीं तीन आदमियों के पुतले बनवा उनको जला के जश्न मनाते हैं, तो कहीं होलिका दहन को ही त्यौहार बना के परोस देते हैं? क्या आपका कल्चर है यह? हमारे यहाँ कब देखा कि दो के झगड़े में एक जीत गया व् दूसरा हार गया तो, हारे हुए पक्ष की यूँ युगों-युगों तक झांकी निकालों, भद्द पीटो? हम ऐसे हैको-वाक्यों पर मिटटी डाल आगे बढ़ने वाले लोग हैं| अपना कल्चर, अपना DNA पहचानिये व् उसके अनुरूप व्यवहार कीजिये| तभी दुश्मनों द्वारा कंधों से ऊपर मजबूत कहे जाओगे या कम-से-कम उनके थोड़बे बंद रख पाओगे|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक
Tuesday, 16 March 2021
"सीरी-साझी" वर्किंग कल्चर के पिछोके के लोग "बंधुआ" कल्चर की ओर बढ़े चले जाते हैं क्योंकि यह अपनी "Kinship" carry forward नहीं कर पाते हैं!
Monday, 15 March 2021
चतुर्वर्णीय व्यवस्था कर्म के आधार पर नहीं है, यह जन्म के आधार पर है और वह भी सिर्फ पावर पॉलीटिक्स है; धर्म-शर्म से इसका कोई लेना देना नहीं!
यह बताओ, कोई रिक्शा चलाने वाला स्वर्ण, मजदूरी-खेती करने वाला स्वर्ण, रेहड़ी-ठेला लगाने वाला स्वर्ण; कब इस चतुर्वर्णीय व्यवस्था वालों ने शूद्र घोषित किया? व् कब कोई शूद्र प्रोफेसर-शास्त्री इस चतुर्वर्णीय व्यवस्था वालों ने स्वर्ण घोषित किया? कर्म के आधार पर लोगों को वर्ण में डालने वाला सिस्टम किधर है इनका, किधर इसका ऑफिस है; किधर इसका रिकॉर्ड मेन्टेन होता है?
Sunday, 14 March 2021
आर्य-समाज को संभालिये, फंडियों के भरोसे उनके कब्जे में मत छोड़िए!
जैसे मतदान पर रिकॉल का अधिकार होता है, ऐसे ही धनदान-जमीनदान पर भी रिकॉल का अधिकार होता है| अगर लगता है कि कुपात्र को दान दिया गया और गलती हुई तो गलती ठीक कीजिए और कुपात्र को वहां से उखाड़ फेंकिए; फिर चाहे वह कोई शिक्षा स्थल हो या धर्मस्थल| अन्यथा वह कुपात्र आपके दान को वरदान की बजाए समाज-सभ्यता पर श्राप साबित कर देगा| और श्राप के लिए तो आप दान देते नहीं हो, इसलिए यह मर्यादा कोई लांघे तो आप उसको वहां से हटा दीजिए|
15 मार्च 1206 - वह ऐतिहासिक तारीख जब झेलम, पंजाब में खोखर खाप के जाटों ने पृथ्वीराज चौहान के कातिल मौहम्मद गोरी को मारा था!
Friday, 12 March 2021
आलोचना करने वालों को तो बस आलोचना से मतलब होता है, हालात से नहीं!
आज जो यह कह रहे हैं कि अजी जब पता था कि, "किसान आंदोलन के समर्थन में अविश्वास प्रस्ताव गिरेगा तो कांग्रेस लाई ही क्यों"? खुद ही जवाब भी दिए दे रहे हैं कि, "भाजपा को अगले 6 महीने के लिए सुरक्षित जो करना था"|
Wednesday, 10 March 2021
हरयाणा समेत तमाम इंडिया के लोगों की साइकोलॉजिकल ट्रेनिंग करता "हरयाणा विधानसभा अविश्वास प्रस्ताव" गिरना!
बीजेपी की स्टेट-सेण्टर में सरकार होते हुए बीजेपी मना कर देती तो इस अविश्वास प्रस्ताव पर विधानसभा में ना डिबेट होनी थी ना वोटिंग लेकिन जैसे इन पर देश की जनता को ट्रेंड करने का भूत सवार हो, जनता में 99% को पता था कि यह प्रस्ताव गिरेगा ही गिरेगा फिर भी होने दिया| इसके 3 मायने मुख्यत: निकाले जा सकते हैं:
Friday, 5 March 2021
कैसा लग रहा है फंडियों को अंगीकार करके, इनके यहाँ अपनी "peace of mind" गिरवी रख के?
लेख का निचोड़: सामाजिक दंड से समाज को अनुशासित रखने वाले, रोजगार की धमकियां दे के समाज को काबू रखने वाले वर्णवादी फंडियों के हत्थे चढ़े हुए हैं|
Wednesday, 3 March 2021
ये जो थारे खंडकों और डोगे वाले चौधरी थे ना, फद्दू नहीं थे वो!
कभी भैंस को कुरड़ियों पे या कचरे के ढेरों पर कचरा खाते देखा है? गाय को देखा है ना? - जिस दिन फंडियों की मान गाय में माता की जगह सिर्फ जानवर देखना शुरू कर दोगे, उस दिन गाय की भी भैंस जैसी स्थिति होगी|
खुद आतंकवाद की जड़ अलगाववाद पालते हो और खुद ही अलगाववादी व् आतंकवादियों से डरते हो; यार गज़ब घंटाल हो तुम!
अलगाववाद व् अलगाववादी से नफरत करते हो ना?
Tuesday, 2 March 2021
क्या मुस्लिमों में भी खाप होती हैं?
Monday, 1 March 2021
किसान आंदोलन को टैकल करने हेतु फंडी ला रहे हैं FPC नाम का पैंतरा, किसान सावधान!
फंडी प्रोपैगैंडा डिफ्यूज एजेंसी के हवाले से पता लगा है कि अबकी बार मंडियों की बजाए, फंडी, FPC (farmer produce company) को फसल खरीद हेतु मैदान में उतार रहे हैं; जो कि अल्टीमेटली आपसे खरीदे हुए अनाज को अडानी-अम्बानी के गोदामों में पहुंचाने का काम करेंगे, बिचौलियों की तरह| यह आपसे MSP से भी 100-200 रूपये ज्यादा के दाम पर अनाज उठाएंगी, फटाफट आपकी पेमेंट भी करवाएंगी| इससे होगा यह कि किसानों में से जो भी इनके झांसे में आएगा, उसको सरकार के नए कानून लाभकारी प्रतीत होंगे| वाह क्या प्रेशर है किसान आंदोलन का!