Monday 15 March 2021

चतुर्वर्णीय व्यवस्था कर्म के आधार पर नहीं है, यह जन्म के आधार पर है और वह भी सिर्फ पावर पॉलीटिक्स है; धर्म-शर्म से इसका कोई लेना देना नहीं!

यह बताओ, कोई रिक्शा चलाने वाला स्वर्ण, मजदूरी-खेती करने वाला स्वर्ण, रेहड़ी-ठेला लगाने वाला स्वर्ण; कब इस चतुर्वर्णीय व्यवस्था वालों ने शूद्र घोषित किया? व् कब कोई शूद्र प्रोफेसर-शास्त्री इस चतुर्वर्णीय व्यवस्था वालों ने स्वर्ण घोषित किया? कर्म के आधार पर लोगों को वर्ण में डालने वाला सिस्टम किधर है इनका, किधर इसका ऑफिस है; किधर इसका रिकॉर्ड मेन्टेन होता है?

सिद्ध है कि जब यह व्यवस्था कर्म के आधार पर किसी का वर्ण घोषित ही नहीं करती तो कोरा पावर पॉलिटिक्स का प्रोपगैंडा है यह|
वास्तव में वर्ण तो जन्म के आधार पर घोषित किये बैठे हैं ये| कर्म के आधार पर होते तो उसके हिसाब से वर्ण शिफ्टिंग के ऑफिस व् सिस्टम नहीं होते क्या?
तो क्या है फिर यह चतुर्वर्णीय व्यवस्था?: यह है दुनिया की सबसे बड़ी अलगाववाद, नश्लवाद व् मानसिक आतंकवाद की थ्योरी| इसके रचयिताओं को पावर पॉलिटिक्स देने की थ्योरी व् बाकियों को डिवाइड किये रखने की थ्योरी| यानि असली "डिवाइड एंड रूल" ही यह थ्योरी है|
और इस थ्योरी का प्रभाव इतना दूरगामी होता है कि इस व्यवस्था का बंदा धर्म भी बदल ले तो भी उसकी मानसिकता में इस व्यवस्था का प्रभाव कई पीढ़ियों तक बना रहता है; जैसा कि इस व्यवस्था से सिख या मुस्लिम धर्म में गए लोगों में देखने को मिलता है| वह वहां भी इसको फॉलो करते हुए पाए जाते हैं; अन्यथा उन धर्मों में कहाँ है यह कांसेप्ट? यहाँ तक कि उदारवादी जमींदारों के "दादा नगर खेडाई" कल्चर तक में वर्ण व् जाति व्यवस्था नहीं, सब जाति-वर्ण यहाँ तक कि अन्य धर्म के लोग भी नगर खेड़ों पर बराबरी से धोक-ज्योत करते हैं| परन्तु वर्णवादी फंडियों का प्रचार-प्रसार इस हद स्तर का है कि इन खेड़ों की देहली से उतरते ही दिमाग वहीँ के वहीँ| इसलिए लाजिमी है कि समाज में वर्णवाद फैलाने वाले को सबसे पहले अछूत व् वास्तविक शूद्र घोषित किया जाए; फिर इसको फैलाने वाला जिस किसी वर्ण या जाति का हो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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