Thursday, 19 May 2022

पंडित हिमांशुकुमार की पोस्ट!

हमारे परदादा पंडित बिहारीलाल शर्मा आर्यसमाजी थे। 


वे महर्षि दयानंद के उत्तर प्रदेश में पहले शिष्य थे। आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद मुज़फ़्फ़रनगर में हमारे घर में ठहरते थे। 


उस समय आर्यसमाज वाले डंके की चोट पर प्रचार करते थे कि राम कृष्ण शिव भगवान नहीं है इनकी पूजा मत करो मंदिर मत जाओ मूर्तिपूजा मत करो। आर्यसमाजी अवतारवाद को नहीं मानते। वे राम कृष्ण या शंकर को भगवान का अवतार नहीं मानते। 


उस समय आर्यसमाजी सनातनियों से शास्त्रार्थ करते थे। बड़ी-बड़ी सभाएं होती थी और उसमें सनातनी और आर्यसमाजियों के बीच शास्त्रार्थ होते थे। जिसमें आर्यसमाजी सनातनियों के अवतारों की ख़ूब खिल्ली उड़ाते थे और उनके सिद्धांतों की धज्जियां उड़ा देते थे। 


एक दौर था कि लाखों लोग सनातनधर्म छोड़कर आर्यसमाजी बन गये। भगतसिंह का परिवार भी आर्यसमाजी था। 


आज आरएसएस ने देश का माहौल इतना ज़हरीला बना दिया है। आरएसएस ने हिंदूधर्म को इतना कट्टर और ख़तरनाक बना दिया है कि आज अगर कोई राम-कृष्ण को अवतार मानने से मना करे तो संघी और बजरंग दल की भीड़ उसके घर जाकर उसका घर जला देगी। आज से 70 साल पहले हिंदुओं में जितनी सहिष्णुता थी आज वह भी आरएसएस ने ख़त्म कर दी है। 


हिंदुओं में शास्त्रार्थ की परंपरा थी आप खुलकर चर्चा कर सकते थे एक दूसरे के मतों का खंडन कर सकते थे अपना मत रख सकते थे वही हिंदू धर्म की विशेषता थी। आज आरएसएस ने ऐसा माहौल बना दिया है कि आप धर्म के ऊपर शास्त्रार्थ की बात सोच भी नहीं सकते आप की हत्या कर दी जाएगी या पुलिस में आप के ख़िलाफ़ एफ़आईआर कर दी जायेगी कि इन्होंने मेरी धार्मिक भावनाओं का अपमान किया है। 


हिंदुओं को गंभीरता से सोचना चाहिये कि आरएसएस द्वारा उनके धर्म को क्या से क्या बना दिया गया है ! अगर हम चर्चा नहीं कर सकते शास्त्रार्थ नहीं कर सकते अपने स्वतंत्र विचार नहीं रख सकते तो इससे भयानक कट्टरता क्या होगी हमसे ज्यादा कट्टर धर्म कौन-सा धर्म हुआ हम अपनी कौन-सी सहिष्णुता की डींग हांकते हैं ?


मैं मानता हूं ईसाईयों मुसलमानों यहूदियों के धर्म में परंपरा ही धर्म है। वहां अगर आप परंपरा छोड़ेंगे तो आप धर्म से बाहर हो जायेंगे। लेकिन भारत में धर्म हमेशा से शोध यानी खोज का विषय रहा है भारत में सत्य की खोज की जाती है और नये सत्य को स्वीकार किया जाता है। 


भारत का धर्म कभी परंपरा के पालन को मान्यता देनेवाला नहीं रहा हमारे यहां सत्य खोज लेने के बाद 'नेति नेति' कहा जाता था अर्थात यह भी नहीं यह भी नहीं अर्थात जाओ और नये सत्य खोजो ! लेकिन आरएसएस ने हर नये सत्य के लिए दरवाज़ा बंद कर दिया और अवतारवाद को सनातन धर्म और हिंदू धर्म का रूढ़ सिद्धांत बना दिया। 


भारत में षड्दर्शन थे जिसमें वैदिक दर्शन मात्र एक दर्शन था।  इसके अलावा यहां सांख्य योग न्याय मीमांसा वैशेषिका वेदान्त दर्शन भी थे


सांख्य दर्शन ईश्वर को नहीं मानता इसी तरह यहां अन्य अनीश्वरवादी दर्शन भी थे जो ईश्वर को मानते ही नहीं जिसमें जैन दर्शन है बौद्ध दर्शन है लोकायत यानी चार्वाक दर्शन है।  आज अगर आप कहे कि मैं ईश्वर को नहीं मानता मैं राम को भगवान नहीं मानता या मैं शंकर को भगवान नहीं मानता तो आप की हत्या की जा सकती है। 


भारत का जो धर्मविचार इतना विशाल समुंदर जैसा था उसे आरएसएस ने एक छोटी-सी गंदी नाली में बदल दिया है। इस गंदी नाली में तैरने वाली कुछ मछलियों और कीड़ों को धर्म रक्षक बना दिया गया है। और भारतीय धर्म विचार का जो विशाल महासागर था उसकी चर्चा को भी अपराध घोषित कर दिया गया है। 


आज मैं खुद को अनीश्वरवादी विचारों के ज्यादा नजदीक पाता हूं मुझे लोकायत और बुद्ध के विचार ज्यादा सत्य और व्यवहारिक लगते हैं। लेकिन अपने इन विचारों के कारण मुझे रोज गाली खानी पड़ती है 


मुझे रोज लगता है कि पता नहीं किस दिन मेरे खिलाफ कोई भाजपाई या संघी बजरंगी एफआईआर कर देगा और पुलिस द्वारा मुझे उठा कर जेल में बंद कर दिया जाएगा


हमारा धार्मिक सामाजिक राजनीतिक चिंतन रोज अपने स्तर से नीचे गिरता जा रहा है


भारत विचारहीनता के भयानक दौर में पहुंच चुका है जहां कोई भी नया दर्शन नया विचार नया रास्ता नहीं खोजा जा सकता क्योंकि ऐसा करना आपकी जान ले सकता है या आप को जेल पहुंचा सकता है ...! 

Wednesday, 18 May 2022

हमारे खाप-खेड़ा-खेत का कोई भला सिद्ध नहीं होता इन बातों से जो फंडियों ने आज के दिन हव्वा बना रखी हैं!

हम आज भी मुस्लिमों के साथ इसलिए आराम से रह लेते हैं क्योंकि हम ही वो थे जिनके पुरखों ने इनसे सबसे ज्यादा लड़ाइयां लड़ी व् बहुतों में इनको हराया भी| तो म्हारा तो गुबार साथ की साथ लड़ के शांत होता रहा| चाहे वो मुग़लों के साथ लड़ी या अंग्रेजों के साथ| 


वह इन्हीं के पुरखे थे जो पानीपत की तीसरी लड़ाई जीतने पर, दिल्ली जाटों को देने की बजाए मुग़लों को ही देने की बात किया करते थे; हाल ही की पानीपत मूवी में देखा ना? तो फिर तब इतना प्रेम था मुग़लों से तो आज क्यों हवा हुआ जाता है? मतलब साफ़ है आपको आपके भगवानों का राजनैतिक इस्तेमाल करके इनकी सत्ता कैसे कायम रहे, उसके लिए बेवकूफ काट रहे हैं| खिलजी के हाथों चितौड़ के राणा रत्न को मरवाने वाले ये रहे, राजा नाहर सिंह को समझौते के नाम पर धोखे से कैद करवाने वाले ये रहे|  


ना सिर्फ इनके यह ऊपर बताए उदाहरणों वाले प्यार मुग़लों-अंग्रेजों से रहे, अपितु सबसे ज्यादा दरबारी इन पुरखे रहते थे| गुप्त अनैतिक समझौते करते थे| म्हारे वाले समझौते करते भी थे तो डंके की चोट पर, जैसे सर छोटूराम ने गेहूं का भाव 6 रुपये की बजाए 11 रूपये लिया था| रोटी-बेटी लेने-देने के रिश्ते इनके पुरखों ने सबसे ज्यादा इनसे रखे| तो इनको मलाल है की हम किसानों व् खापों की भांति इनसे कभी अपना लोहा नहीं मनवा पाए तो अब "सांप निकलने के बाद, लकीर पीटने वाली बात" की भांति जगह-जगह खुदाई करवा रहे हैं| 


ना यह अच्छे मैनेजर हैं व् ना अच्छे जिम्मेदार; तभी तो समाज का शिक्षा, नौकरी, व्यापार, स्वास्थ्य सब मोर्चों पर जनाजा निकला जाता है| और इन पर आपको फोकस करना है| वरना यह इतना ही धर्म के प्रति चिंतित होते तो अभी 13 महीने दिल्ली के बॉर्डर्स पर जिनसे धूल फँकवाई थी, वह क्या मुग़ल थे या अंग्रेज? फरवरी 2016 याद कर लो तो इनकी तरफ देखने का जी भी ना करे, चाहे सोने के रथ उतर रहे हों इनके घर| 


एक और कड़वी बात, कल को पहले की भांति कोई आक्रांता आ गया तो उस वास्तविक अवस्था में यही सबसे पहले भाग के उनके दरबारी बनेंगे जैसे इनके पुरखे बने| इसलिए इनके मुद्दों पर वक्त-ऊर्जा-दिमाग ज्याया मत करो, बल्कि नजर रखो व् कहीं स्थिति 2013 जैसी बनती दिखे तो उसको होने से पहले ही रोकने को अलर्ट रहो| अपने-अपने गाम-गली में यह जिम्मेदारी निभाओ; यही हमें हमारे दादा खेड़े सिखाते हैं|  


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Sunday, 15 May 2022

"बाबा गुलाम मोहम्मद जौला जी" को उनके आखिरी सफर के लिए गमगीन विदाई!

 "हर-हर महादेव, अल्लाह-हू-अकबर" के प्रथम पुरोधाओं में से अहम् एक व्

भारतीय किसान यूनियन के प्रथम प्रणेताओं की जब्र-नजीर
राजपूत कुशवाहा चौबीसी खाप, मुज़फ्फरनगर के प्रधान
"बाबा गुलाम मोहम्मद जौला जी"
को उनके आखिरी सफर के लिए गमगीन विदाई!
अल्लाह, परवरदिगार आपको अपनी मुसलसस्ल पनाह बख्शे, आमीन!
आप चिंता ना करना, हम आप पुरखों की "हर-हर महादेव, अल्लाह-हू-अकबर" की विरासत को कयामत तक यूं ही गुंजायमान रखेंगे!
जय यौधेय! - फूल मलिक



चौधरी/अमात्य, धर्म, समाज, कारोबार व् बाबा टिकैत!

अकेले भगवाधारी बाबाओं से धर्म व् समाज चलता तो खाकीधारी आरएसएस की जरूरत नहीं होती| 


यह जरूरत आपके बूढ़े/पुरखे भली-भांति जानते थे इसलिए समाज-धर्म व् कारोबार में बैलेंस रखने को सदियों से खाप व्यवस्था (समाज को चलाने को), खेड़े (धर्म को चलाने को) व् खेत (कारोबार को चलाने को) रखते आए| आरएसएस तो 97 साल पुराना कांसेप्ट है|


एक बात और यहाँ समझनी जरूरी है कि आरएसएस व् खाप में क्या फर्क है? खाप "नैतिक पूंजीवाद" की धोतक है यानि "कमाओ और कमाने दो" व् सर्वसमाज को जाति-वर्ण-धर्म के भेद के बिना मुफ्त व् अविलंब अधिकतम सम्भव न्याय देने का रिकॉर्ड रखती है; जबकि आरएसएस "अनैतिक पूँजीवाद" यानि समाज की अधिकतम सम्भव पूँजी-सम्पत्ति चंद साहूकारों के कब्जे में होनी चाहिए की लाइन पर चलती है; शायद इसीलिए अडानी-अम्बानी के एकमुश्त अनैतिक तरीके से बढ़ने से ले माल्या-चौकसी जैसे किसी भी हजारों करोड़ के घपलों के भगोड़ों पे चुप्पी रख के चलती है| 


जैसे एक व्यक्ति विशेष का जनमानस उसके परवार-ठोळे-पिछोके की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली किनशिप से बनता है व् वह कितना रुतबेदार होगा उसकी व्यक्तिगत क्षमता के साथ-साथ किनशिप की प्राचीनता-सुदृढ़ता व् महत्वता से निर्धारित होता है; ऐसे ही समाज भी एक सामूहिक व्यक्ति होता है जिसका चरित्र सैंकड़ों-हजारों परवार-ठोळे-पिछोके से बनता है| अगला-पिछला जन्म तो खैर नहीं ही होते (इसलिए किसी पाखंडी के चक्क्र में ना पड़ें इन पहलुओं पर) परन्तु पिछली पीढ़ीयों का किया-पाला-माना अगलियों पे जरूर चढ़ता है और वह बाबा टिकैत की इस सलंगित फोटो से भलीभांति झलकता है| 


यह जो तीनों धर्मों के नुमाइंदे बाबा टिकैत के दरबार में उनको घेरे बैठे हैं, यह तप आपके पुरखों के पीढ़ियों के उस बल का था जो कभी अपने कारोबारी हकों हेतु लड़ने से राजसत्ताओं  से ले कभी किसी पंडित-मौलवी या ग्रंथि से भी नहीं घबराए| सर छोटूराम का वक्त तो ऐसा था कि तीनों धर्म खड़े देखते थे व् वह फरिश्ता इनसे कहीं अधिक मजमा तीनों धर्मों के लोगों का अपने कार्यक्रमों में लगा लेता था| यह वही पिछली पीढ़ियों की बनाई छाप-साख थी जो बाबा टिकैत के जमाने तक फल देती रही व् तीनों धर्म चौधरियों के दरबार में यूँ ही हाजिर होते रहे, ज्यों इस फोटो में बैठे हैं| 


परन्तु बाबा टिकैत के बाद, यह उस स्तर का नहीं रहा| अब एक धर्म वालों ने तो सुननी ही बंद कर रखी है| तभी तो किसान नेताओं व् कार्यकर्ताओं के बार-बार आह्वान के बाद भी कोई ही विरला मंदिर वाला 2020-21 के किसान आंदोलन में लंगर की सेवा देने आया हो या सरकारों से गुहार लगाई हो कि हमारे किसानों की सुनो| 


बस तुमने एक समाज-सभ्यता-किनशिप के तौर पर कहाँ तक का सफर तय किया है, उसमें कितना उठान या गिराव है; इससे अंदाजा लगा लो| 


बस इतना याद रखो कि चौधर-धर्म-समाज-कारोबार, चारों को बराबर नहीं रखोगे तो शूद्र कहलाओगे व् उस तरफ जाते जा रहे हो; वक्त रहते अपने पुरखों की अनख पे आ जाओ वरना हालात बहुत भयावह हैं आगे; क्योंकि लड़ाई "नैतिक पूंजीवाद" बनाम "अनैतिक पूंजीवाद" हो चली है व् अनैतिक वाले बहुत आगे निकल चुके हैं| 


"जो टिका रहा, वो टिकैत" की पंचलाइन से मशहूर बाबा टिकैत की पुण्यतिथि पर इससे बढ़िया क्या ही लिख सकता था| 


बाबा टिकैत को उनकी पुण्यतिथि पर शत-शत नमन!


जय यौधेय! - फूल मलिक




Friday, 13 May 2022

इंडिया में श्रीलंका होना इतना आसान नहीं!

श्रीलंका में विद्रोह इसलिए हो गया क्योंकि वहां जिस मेजोरिटी को बहकाया गया था वह बुद्ध धर्म की थी; जो कि इंसानों को आंतरिक तौर से मजबूत, एक व् समान बनाता है; मानसिक तौर पर तोड़ कर मानसिक गुलाम नहीं बनाता| अत: उनका मानसिक बल बचा हुआ था तो जब हद हुई व् स्थिति समझ आई तो कर दी क्रांति|

तुम्हारे यहाँ भूल जाओ यह इतनी जल्दी होना, क्योंकि तुम जिसको संस्कृति-कल्चर-धर्म के नाम पे ढोने लगे हो, ओढ़े टूल रहे हो; वह शुरू ही तुम्हें आंतरिक मानसिक तौर से डरपोक, दब्बू, बिखरे हुए बनाने से होता है| हाँ, थारे में एक ऐसी कौम, कल्चर व् किनशिप जरूर है जो यह विद्रोह कर सकती है और वह है जिसने 13 महीने किसान आंदोलन करवाया| वह खड़े हो गए तो हो गए वरना भ्रम में मत घूमो कि कोई श्रीलंका टाइप क्रांति होगी यहाँ|
और इसी का आरएसएस व् बीजेपी को सबसे ज्यादा डर है; इसलिए इन्हीं के इर्दगिर्द ध्यान रख के कभी 35 बनाम 1 रचती है तो कभी ताजमहल व् आगरा इनको देने को फिरती है| और एक और पोस्ट चला रखी है कि बीजेपी-आरएसएस सनातन नहीं, इनसे बेशक नफरत करो परन्तु सनातन मत छोड़ना| असली भर्मित करने वाली व् भिग्न की जड़ यही नैरेटिव तो है| इनको पता है कि इंडिया में सबसे ज्यादा न्यायायिक चरित्र, सबको इंसान समझना के ट्रेट्स इनमें ही सबसे ज्यादा होते हैं, इनके यह ट्रेट्स जाग गए तो लग गई तुम्हारी लंका|

शूद्र क्या है व् स्वर्ण क्या है? शूद्र वह इंसान होता है जिसको मानसिक तौर पर उनकी किनशिप-कल्चर से तोड़कर अपनी कहबत का बना लिया जाए| व् स्वर्ण इनके अनुसार वह होता है जो खुद को छोड़ बाकी समाज को अधिक से अधिक शूद्र बनाता जाए| और वह तुम बनने पे लगे हुए हो, पिछले 2-4 दशक से तो खासकर; जबसे अपने पुरखों की देवता की छवि वाली कल्चर-किनशिप से उल्टे हटे हो तुम शूद्र ही बनते जा रहे हो|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 12 May 2022

12 वीं सदी की Twin Towers: दिल्ली की क़ुतब मीनार व् बुखारा की मीनार-ए-कलां!

See the attached photo:

Minar-i-Kalan of Bukhara, Uzbekistan - Built in 1127 AD, 150 feet high
Minar-i-Qutb of Delhi, Hindustan - Built in 1220 AD, 238 feet high

मुग़लों के यहाँ इसके 2 सैंपल हैं वह भी एक ही सदी में बने हुए| लाजिमी है कि गौरी व्कुतुबद्दीन दोनों तुर्क थे व् उज़्बेकिस्तान व् तुर्कमेनीस्तान एक कल्चर के देश हैंतो यह क़ुत्ब-मीनार का आईडिया मीनार-ए-कलां से ले के आए हों| इलाहबाद हाईकोर्ट वाली बात, कुछ पढ़लिया करो, तथ्यात्मक शोध-वोध कर लिया करो| अन्यथाइसके जैसा दूसरा सैंपल दिखाओ तुम्हारे पास?

बाकी जिसको इन फंडियों की वाहियतों में माथे खपाने हैं खपाओ, परन्तु खापलैंड के बालकदूर रहो इनकी वाहियतों से| जब वक्त थे मुग़लों से मुकाबले करने के तब तो ये आज केछद्म राष्ट्रभक्त इनके दरबारी बने फिरा करते थे; और आज जब देश एक लोकतान्त्रिकराष्ट्र है तब इनको सोधी आई है बदले लेने की| "शिकार के वक्त कुत्तिया हगाईव् मौका-निकले बाद हम सबके जमाई" वाली कहानी रही है इनकी| तुम उस वक्त जिनवजहों के चलते कमजोर थे उनको ठीक करो, ताकि भविष्य में ऐसी बातों फिर ना हों; अगरइतना ही दर्द है तो| और वह वजहें थी और आज भी हैं - वर्णवाद, शूद्र-स्वर्ण,छूत-अछूत में आकंठ डूबी तुम्हारी तथाकथित धार्मिक थ्योरी|

तुम्हारे धर्म के किसानों को जहाँ हक पाने हेतु 13-13 महीने सड़कों पर बैठना पड़ता हो, वहांतुम्हें उनकी चिंता की बजाए, "सांप निकलने के बाद लकीर पीटने" की भांतिइन चीजों की चिंता है तो निसंदेह तुम फंडी हो| वैसे भी ग्लोबलाइजेशन का दौर है यह,दुनियां बहुत आगे जा चुकी इन चीजों से|

जय यौधेय! - फूल मलिक



Wednesday, 11 May 2022

रिपब्लिक आर टीवी वालो, शिवजी भोळा कभी धर्म से बाहर के मसलों में नहीं पड़ता!

पड़ा हो आज तक के इतिहास में तो बताओ? हाँ, वह ब्रह्मा-विष्णुओं के बिगाड़े हालातों को ठीक करने बारे जरूर तांडव करता आया है जब भी किया है| उदाहरणार्थ 2020-21 में 13 महीने चला किसान-आंदोलन|

इसलिए हे रिपब्लिक भारत के अर्णव गोस्वामी, तुम यह जो ताजमहल को तेजा जी से व् तेजा जी को शिवजी से जोड़ के जो काम तथाकथित छतरी व् छतरियों को 21 बार मारने वालों से नहीं करवा के जाटों से करवाना चाहते हो, ऐसा है तुम्हारा यह षड्यंत्र जाटों के बालकों ने सोशल मीडिया पर ही धराशायी कर दिया है| आजकल जो ज्ञान व् अक्ल तुम लगाते हो उसको तो जाटों के बालक ही गेल-की-गेल निबटा दे रहे हैं|
कौन कहता है कि वैचारिक लड़ाईयां असर नहीं छोड़ती? हालाँकि अर्णव गोस्वामी जैसे इसको एक जाति पर ला कर छोड़ने की सोचते हैं; परन्तु हमारे जैसे साथियों ने जो पिछले 7 साल से ऑफिसियल तौर पर यूनियनिस्ट मिशन के जरिए व् उससे पहले 2006 से 2015 तक अनऑफिशियल तरीकों से सोशल मीडिया से ले ग्राउंड पर फंडियों की बुद्धि की औकात व् बिसात जो सर छोटूराम स्टाइल में पकड़ाई है अपने लोगों को; यह उसी का असर है कि अब जाट समाज के बालक ब्रह्मे-विष्णुओं की चालों में नहीं पड़ते| बल्कि असली शिवजी उर्फ़ स्केण्डेनेविया वाले दादा ओडिन जी महाराज की भांति बन के, तीसरी आँख खोल के चीजों का अवलोकन कर चलने लगे हैं|
और इस पर इनको अपनी किनशिप पकड़ाने वाली अगले स्तर की "खाप-खेड़ा-खेत" मुहीम जो चली है वह तो धीरे-धीरे तुम्हें ऐसा घर बैठायेगी कि बस तुम देखने के अलावा शायद ही कुछ कर पाओगे| जो कि एक बहुत ही सुखद बदलाव है जाट समाज में, वह भी सही वक्त व् सही हिसाब से|
अब इस समाज को फॉर-गारंटीड लेना छोड़ के; देश के हित के कामों में ध्यान लगाओ, रिपब्लिक आर टीवी वालो|
उद्घोषणा: लेखक माइथोलॉजी को नहीं मानता; परन्तु इसका मतलब यह भी नहीं कि माइथोलॉजी नहीं जानता| जब-जब फंडी माइथोलॉजी के हथियार से समाज में उतरेगा, उसको उसी के माकूल तर्क व् जवाब मिलेंगे|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Thursday, 5 May 2022

शुगरमिल-मैन चौधरी अजित सिंह जी को उनकी प्रथम पुण्यतिथि पर शत-शत नमन!

आप अपनी राजनैतिक आइडियोलॉजी की विरासतीय रीढ़ "हिन्दू-मुस्लिम" एकता (आपके पिता जी से विरासत में मिली) को तब भी नहीं छोड़े जब मुज़फ्फरनगर 2013 हुआ था व् आपके ही पिता जी को गुरु कहने वाले इस एकता को तोड़ने में दो में से एक पार्टी बन गए थे|

ख़ुशी की बात है कि आपके बेटे चौधरी जयंत सिंह इसी परम्परा को आगे बढ़ा रहे हैं व् इस आइडियोलॉजी में कितना दम था व् आज भी है यह विगत यूपी चुनाव में आपकी पार्टी को मिले समर्थन ने जाहिर कर दिया, जब आप 0 से ऊठ 8 सीटों पर विजयी रहे व् 22 पर द्वितीय, वह भी 200-500 के मार्जिन से| और "यूपी में चौधरियों की चौधराहट खत्म हो गई" के तंज कसने वालों के मुंह बंद किये|
हम कटिबद्ध हैं आप जैसे अपने पुरखों की इस आइडोलोजिक्ल धरोहर की राजनीति को पोषित करने व् करवाने पर|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Wednesday, 4 May 2022

"कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" बनाम "उधारा कल्चर-किनशिप"

यह इधर-उधर से आयातित कल्चर-किनशिप के चक्कर में अपनी "कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" से मुंह मोड़ना आपको उसी तरह बर्बाद कर देगा, जैसे नेचुरल रिसोर्सेज के मामले में रूस वालों पर यूरोप की निर्भरता| जब तक सब सही चलता है तो सही और जब बिगड़ती है तो ऐसे ही "मुंह-बाएं खड़े लखाओ" ज्युकर नेचुरल गैस के लिए पूर्वी-उत्तरी यूरोप बंध सा गया है| इनका प्लान रूस को बड़ा सबक सिखाने का था, परन्तु नेचुरल रिसोर्सेज की इनकी रूस पर निर्भरता ने सब सिमित कर दिया| यही मामला "नेचुरल कॉपीराइट कल्चर-किनशिप" से निकलता होता है और आपके लिए वह है "खाप-खेड़ा-खेत"| यह जो खुद के साथ-साथ इतने प्रवासियों (विश्व में सबसे ज्यादा प्रवासी रहता है खापलैंड में) को भी पाल पा रहे हो यह किसी अन्तर्यामी, माया या चमत्कार की वजह से नहीं है अपितु आपकी कॉपीराइट कल्चर यानि "खाप-खेड़ा-खेत" से है| उधार के कल्चर्स के रंग-रस भी लो परन्तु अपने कॉपीराइट कल्चर को पहले कस लो|   


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Tuesday, 3 May 2022

आखा तीज!

आंखा तीज एक ऐसा त्योहार था जिसमें मंदिर और बाजार का कोई रोल नहीं था... ना किसी मूर्ती की पूजा ना किसी देवी-देवता की... किसी पंडे का भी कोई रोल नहीं था ... यह सिर्फ किसान का त्योहार था .. किसान का खेत ही अक्षय भण्डार होता है उसी अन्न भण्डार के हमेशा भरे रहने की कामना के लिये यह प्रतीकात्मक त्योहार मनाया जाता था... हार्वेस्टिंग के बाद किसान फुरसत में होते थे.. अपने बच्चों की शादियां भी इसी दिन करते रहे l
मगर किस तरह 'आखा तीज' को अक्षय तृतीया में बदल दिया गया.. आपको पता ही नहीं चला.. इसे कहते हैं कल्चरल अटेक.. सांस्कृतिक आक्रमण... मोठ बाजरे की खिचड़ी और हल कहीं पीछे छूट गये... बाजार ने इसे लक्ष्मी से जोड़ दिया.. चांदी के सिक्के पर लक्ष्मी की फोटो ऊकेर कर... क्योंकि बाजार को हल से कोई फायदा नहीं... पंडों ने इसे महाभारत के अक्षय पात्र से जोड़ दिया... ताकि अप्रत्यक्ष कंट्रोल उनका रहे आपके त्योहार पर l
वो अक्षय पात्र जिसकी कल्पना आप करते हैं..जो हमेशा भरा रहे वो किसान का खेत है... दुनियाँ में कोई भी अक्षय पात्र आज तक बिना पसीना बहाये नहीं भरा रहा.. और ना ही कभी भरा रहेगा... ओलम्पिक से अगर कोई मेडल लाता है तो आप क्रेडिट खिलाड़ी को देंगे या महाभारत को ? फिर किसान अन्न का भण्डार धरती से पैदा कर घर ला रहा है ... मंडियों में लायेगा..देश का पेट भरेगा... इसका क्रेडिट उसे क्यों नहीं दे रहे... उसको अन्न की पैदावार के लिये सम्मान क्यों नहीं... उसके खेत को अक्षय पात्र कहने में क्या दिक्कत है आपको ?
लूट के तरीके बेहद सुक्ष्म हैं...पर बेहद सुनियोजित हैं ...बेहद लुभावनी पेकिंग में पैक हैं l एक काल्पनिक अक्षय पात्र पर नारियल रख कर बाजार और पंडे ने आपको एक फोटू दे दी.. अब अाप सारे दिन उस फोटू को पोस्ट करते रहो/एक दूसरे को फॉरवर्ड करते हो l बाजार आपको आपके खेत की /आपके हल की / आपके घर बणने वाली खिचड़े की फोटू डिजाइन कर के कभी नहीं देगा क्योंकि पंडे का अप्रत्यक्ष कंट्रोल रहे आपके दिमाग पर l आपकी माँ ने आखातीज को आपको जो मोठ बाजरे का खिचड़ा खिलाया है देशी घी में उसकी बराबारी दुनियाँ की कोई अक्षय तृतीया नहीं कर सकती .. उसे उचित सम्मान देणा आपका कर्तव्य है ll
अाप सभी को आखातीज की बहुत बहुत
बधाई
l आपके खेत हमेशा भरे रहे ll
May be an image of sky, grass, tree and nature
Ravinder Singh Dhankhar, Satya Pahal Duhan and 59 others
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Saturday, 30 April 2022

हरयाणे में पूर्ण बहुमत से भाजपा आते ही दंगे-फसाद शुरू, पंजाब में पूर्ण बहुमत से आप आते ही दंगे-फसाद शुरू!

लगता है केजरीवाल के पुरखों की बुद्धि सर छोटूराम के बनाए सूदखोरी के कानूनों ने चटका दी थी व् वह केजरीवाल के बुड्ढे, केजरीवाल को यह दुःख पास करके गए हैं कि पोता बदला जरूर लेना है| और मौका मिलते ही नतीजा सबके सामने है|


थारे पुरखों की सोच व् इनके पुरखों की सोच का फर्क समझोगे तो ही इनको समझ पाओगे|

1 - एक तो इनकी सोच अपनी बिरादरी से बाहर कभी भी सामाजिक हुई ही नहीं ना यह बात इनके कांसेप्ट में| इसको ऐसे भी समझ सकते हो कि जहाँ-कहाँ आप-भाजपा टाइप वालों के पुरखे रहे हैं या हैं, वहां-वहां सीरी-साझी वर्किंग कल्चर नहीं मिलेगा, अपितु सामंती कल्चर मिलेगा| सीरी-साझी वर्किंग कल्चर सिर्फ सर छोटूराम व् उनके पुरखों वाली धरती पर मिलेगा यानि आज़ादी से पहले के यूनाइटेड पंजाब, वेस्ट यूपी व् उत्तरी राजस्थान तक; इस पूरे क्षेत्र को आप मिला के खापलैंड+मिसललैंड बोल सकते हो|

2 - क्योंकि यह बिरादरी के अंदर तो सामाजिक हैं परन्तु इससे बाहर नहीं, इसलिए यह हमेशा बदले की राजनीति के लागू हैं; सार्वभौमिक राजनीति जिस वर्किंग कल्चर यानि सीरी-साझी से निकलती है यह उसके तो सबसे बड़े दुश्मन हैं| जो-जो आगे के हिंदुस्तान में राजनीति में ऊपर उठना चाहता हो वह यह कांसेप्ट अच्छे से समझ ले; खासकर उत्तरी भारत में| आप सबके हित के काम करते हो, उसी का उदाहरण सर छोटूराम की राजनीति में देखने को मिलता है या फिर चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के 10 साल के सीएम कार्यकाल में, जब हरयाणा में एक आंदोलन तक नहीं होने का रिकॉर्ड है|

3 - केजरीवाल जैसों को वह कल्चर पसंद नहीं जो 1907 के "पगड़ी संभाल जट्टा" किसान आंदोलन के तहत अंग्रेजों से कृषि बिल वापिस करवा लेते हों या 2020-21 में नरेंद्र मोदी से वापिस करवा लेते हों| यह लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी (वह भी इनकी गलती होते हुए) इन बातों को दिल से लगा के चलने वाले लोग हैं, जो बदला लेने की अंधपीड़ा में पीढ़ियों तक जल सकते हैं|

4 - उधर इसी बदला लेने की राजनीति भाजपा वालों को उनके पुरखे पानीपत की तीसरी लड़ाई के वक्त से दे के गए हुए हैं; जब महाराजा सूरजमल की नीति के आगे सारे पुणे के पेशवा धरसायी हुए थे|

हालाँकि, लिखना तो यह बात उसी दिन चाहता था जिस दिन आप, पंजाब में सत्ता में आई थी| फिर लगा अभी लिखूंगा तो बरगलाना व् बड़बड़ाना ज्यादा लगेगा; नतीजा हाथ ले लेने दो तो लिखेंगे|

अब रही बात पटियाला में कल जो हुआ: सिख भाइयों को घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि एक तो पूरी खापलैंड अबकी बार आपके साथ खड़ी है| लेकिन इनको कूटिनीति से मारो पहले; लठनीति तो कभी भी ट्राई कर देना इन पर| एक सर छोटूराम जब इन सब फंडियों की गाँठ बाँध सकता है तो आप भी खून तो वही हो; धर्म अलग है तो क्या हुआ, किनशिप-कल्चर तो आज भी एक है|

बस जरूरत है तो अपनी किनशिप-कल्चर पे सरजोड़ के, फंडियों के बारणे चाहे सोने-चाँदी के बिंदरवाल-झालर लटकते हों तो भी इनसे अपनी बाड़ करके; इनको घेरने के| यह तो यूँ जाएंगे जैसे भेड़ों के सर से सींग|

यह सरजोड़ इसलिए भी जरूर है क्योंकि फंडी को जब-जब इनके विपरीत विचारधारा की सत्ता आती दिखती है तो फंडी ऐसे भय बड़े बना के दिखाता है समाज को, जो वास्तव में होते नहीं परन्तु यह उनका हव्वा बना के लोगों को डरा लेते हैं| 1984 में खालिस्तान संत भिंडरावाला ने कभी नहीं माँगा, अपितु फंडियों के ही खड़े किये हुए एक चौहान ने माँगा व् भुगतना पंजाब को पड़ा| तब यह एक पावर थे, आज दो के रूप में आ चुके हैं, एक भाजपा व् एक आप पार्टी| तो आपको भी दोहरी सतर्कता से चलना होगा|

मुझे आशंका है कि भगवंत मान को साल-दो-साल से ज्यादा सीएम नहीं रखेंगे यह|

मूल राजनीति आइडियोलॉजी पर होती है, बिना आइडियोलॉजी के तो सिर्फ मौकपरस्ती होती है और मौकापरस्ती किसी को ठिकाने नहीं लगने दिया करती|

जय यौधेय! - फूल मलिक

Monday, 25 April 2022

चौधरी राकेश टिकैत वाली बात हो जाए अब तो, "अडानी के साईलों में गौशालाएं खोलने की"!

जब गौशालाओं के लिए धक्के से ही तूड़ी की ट्राली खाली करवाने की बात है तो सारा टंटा ही खत्म; सीधा इन साईलों को ही गौशाला बना दो; एक पंथ दो काज|

लेख का निचोड़: धर्म-दान इच्छा के होते हैं, धक्के के नहीं| क्यों नहीं बोलते यह धर्म पर प्रवचन देने वाले, कथा करने वाले व् धर्मस्थलों पर आगे खड़े-हो-हो चंदे के थाल लेने वाले? यह इनकी ड्यूटी बनती है, अगर यह इस पर चुप हैं तो समझ लो कि फिर त्रिमूर्ति "ब्रह्मा-विष्णु-महेश" के पहले दो सही काम नहीं कर रहे हैं व् आपको तीसरा बन कर तीसरी आँख खोल के इन सबको ठीक करने की जरूरत आन पड़ी हुई है| सारा सामाजिक-धार्मिक सिस्टम बिगाड़ के रख दे रहे हैं, यह फंडी लोग| क्यों चुप हो, रामायण, महाभारत से धर्म-अधर्म की शिक्षा लेने वालो? याद रखो रामायण-महाभारत में धर्म से बाहर के धर्म वालों की वजह से युद्ध नहीं हुए थे; धर्म के भीतर वालों के ही त्राहिमाम मचा देने से युद्ध हुए थे (अगर हुए भी थे तो व् तुम इनको सच मानते हो तो) व् अब वही दौर ला दिया है इन फंडियों ने| यह तुम्हें बाहर से धर्म की रक्षा की पीपनी पकड़ाए हुए हैं जबकि खतरा अंदर से यही खड़ा कर दे रहे हैं, तुम्हारे जीने-मरने का; नहीं?
विवेचना: जब किसान द्वारा बिना कहे ही अपनी श्रद्धा से सबसे ज्यादा व् इतना बड़ा दान दे-दे कर भी अगर गाय को बचाने के लिए इतनी नौबत आ रही है कि धक्के से ट्रॉलियां खाली करवाई जा रही हैं तो इनमें बैठे लोग इस चंदे से क्या 35 बनाम 1 खेल रहे हैं? आखिर लगा कहाँ रहे हैं ये इतने दान को? हिसाब लेना शुरू करो समाज इनसे, वर्ना आज गाय की आड़ ले के तूड़े की ट्राली छीनी हैं, कल को किसी और बहाने से तुम्हारे घरों की बहु-बेटियां नोचेंगे ये लीचड़ लोग; सम्भल लो वक्त रहते|
जब से होश संभाला, हर लामणी सीजन पे मेरे घर से गौशाला में तूड़े की ट्रॉलियां व् अनाज की बोरियां तो फिक्स तौर पर जाती देखता आया हूँ| कई बार तो खुद ट्रेक्टर से ट्राली गौशालाओं में खाली करवा के आया हूँ| बाकी छुटमुट की तो कभी गिनती भी नहीं की| परन्तु यह हिसार-झज्जर में धक्काशाही की खबर सुन के खून उबल रहा है| सुनी है जिले से बाहर तूड़ा नहीं ले जाने पे धारा 144 भी लगाई है? आखिर, इन लोगों ने किसान के कारोबार को समझ क्या लिया है? गाय भी है तो क्या किसान की आमदनी को इतना फॉर-गारंटीड लोगे कि उनकी ट्रॉलियों पर धक्का करोगे? किसान तो पहले से ही अपनी औकात से बाहर जा कर गायों समेत तमाम जानवरों को पाल रहा है, यह बाकी क्या कर रहे हैं? इतनी ही जानवरों को अनाज-चारे की कमी पड़ी है व् धक्के से धर्म सिर्फ किसान से ही पलवाने हैं तो बाकियों के साथ धक्काशाही क्यों नहीं? क्या ऐसे तथाकथित धर्म का ठेका बाकियों का नहीं?
सबसे पहली यह धक्काशाही/सख्ती इस बात पे लागू हो कि हर धार्मिक स्थल की आमदनी सार्वजनिक की जाए व् इसका कहाँ-कितना इस्तेमाल होता है उसका हिसाब दिया जाए व् इसमें से एक फिक्स राशि गौशालाओं के चारा खरीदने के लिए सुनिश्चित की जाए| दिलाओ किसानों को खलिहान-की-खलिहान में तूड़े का मार्किट रेट व् भर लो जितने चाहो उतने गोदाम? यह क्या तरीका हुआ कि उसको एक तो 6 महीने पे आमदनी घर आती है और तुम उसके अपने खर्चे-घर के हालात देखे बिना यूँ धक्के से लूटोगे? क्या उसके बच्चों के ब्याह-भात-पीलिए-पढ़ाई के खर्च तुम भर दे रहे हो? क्या वह अपनी हस्ती-ब्योंत के हिसाब से भी ज्यादा पहले से ही नहीं दान दे रहा है? अब दान के लिए धक्का भी करोगे तो किसान के साथ?
दूसरे नंबर पे पकड़ो, व्यापारियों को; उनके जिम्मे क्यों नहीं लगाते एक-एक गौशाला; अगर तुम्हारे धर्म के ठेकेदारों को मिलने वाले दान को डकारने के बाद भी उनका नहीं भर रहा तो? कॉर्पोरेट वालों का "CSR" का फण्ड मोड़ दो गौशालाओं के लिए? क्या दिक्कत है?
इसके बाद सरकारी कर्मचारियों, प्राइवेट कर्मचारियों पर करो यह धक्काशाही| उनके तो बेसिक सैलरी के अतिरिक्त के सारे एडिशनल बेनिफिट्स का भी आधा ही इन कामों में लगवा लो तो बहुत|
परन्तु यह कैसा धर्म है, कैसा समाज है जिसको खसने के लिए, गालियां देने के लिए तो किसान चाहिए व् दूसरी तरफ उसको मान-सम्मान से अपनी उपज भी नहीं बेचने दी जा रही?
किसान यूनियनों को चाहिए कि इन मसलों बारे कॉर्पोरेट स्ट्रक्चर की भांति, अपनी हर जिला स्तर पर एक-एक सेल बनाएं व् किसानों की ऐसी समस्याओं हेतु फसल-आवक के हर सीजन पर सतर्क रहें| कब तक इस तथाकथित धर्म नाम की चादर व् फंडियों की सरकार को यूँ झेलोगे? इससे भी काम न चले तो सारी गौशालाओं की मैनेजमेंट किसान सीधा अपने हाथ में ले| हर गौशाला के दान-चंदे का हिसाब पब्लिक हो|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 24 April 2022

यहूदी, मुस्लिम, ईसाई व् जाट - इनकी समानताएं!

भक्तों को मुस्लिमों के ही खतना करवाने, एक ईश्वरवाद को मानने, सूदखोरी नहीं करने व् मूर्तिपूजा नहीं करने से दिक्कत है; जबकि चारों ही चीजें मुस्लिम धर्म में आई उसी यहूदी धर्म से हैं, जिनको भक्त अपना आर्दश व् आराध्य मानते हैं| और आज भी यह चारों बातें यहूदी धर्म की बुनियाद हैं| 


इन चारों बातों में से तीन बातें यानि एक ईश्वरवाद, रिश्तेदारी में सूदखोरी नहीं करना व् मूर्तिपूजा नहीं करने की साझी रीत जाट समाज की भी रही हैं व् आज भी हैं| जाट समाज का एकमुश्त सबसे बड़ा माना गया "दादा नगर खेड़ा/दादा भैया/बाबा भूमिया" का कांसेप्ट यही एक ईश्वरवाद व् मूर्ती-पूजा नहीं करने पर आधारित है| तो क्या इस हिसाब से जाट समाज, यहूदी व् मुस्लिमों के बाकी सब भारतीय कॉन्सेप्ट्स से अधिक नजदीक है?


मूर्तिपूजा नहीं करना व् एक ईश्वरवाद, ईसाईयों में भी है व् इन दोनों पहलुओं पर जाट ईसाईयों के भी नजदीक लगता है| 


वेशभूषा के हिसाब से देखो तो: यह चारों ही मर्द व् औरत दोनों के मामले में ऊपर से नीचे तक, जिनसे तन पूरा डंके, ऐसी वेशभूषाओं को तरजीह देते हैं| व्यापार व् फैशन के कपड़े जो कि कमर्शियल कांसेप्ट है; उसको अलग रख के देखा जाए तो चारों की ही ट्रेडिशनल-कल्चरल पहनावे में सभी शरीर के हर अंग ढंकने को तरजीह देते हैं| कहीं भी किसी ड्रेस में पेट-नाभि-पीठ-छाती आधी नंगी या उघड़ी रखने वाली पौशाकें पहनते नहीं देखे जाते| 


कम्युनिटी गैदरिंग के कांसेप्ट भी चारों के आपस में मिलते-जुलते हैं| 


तो एक इंटरनेशनल कल्चर होते हुए, क्यों इन फंडियों के फैलाए हुए गोबर को ढो रहे हो? गोबर, फ़ैल जाए तो उसको साफ़ किया जाता है, ना कि उसको सना जाता है| साफ़ करो इन संकुचित सोच के कॉन्सेप्ट्स को| 


जय यौधेय! - फूल मलिक