Saturday 30 April 2022

हरयाणे में पूर्ण बहुमत से भाजपा आते ही दंगे-फसाद शुरू, पंजाब में पूर्ण बहुमत से आप आते ही दंगे-फसाद शुरू!

लगता है केजरीवाल के पुरखों की बुद्धि सर छोटूराम के बनाए सूदखोरी के कानूनों ने चटका दी थी व् वह केजरीवाल के बुड्ढे, केजरीवाल को यह दुःख पास करके गए हैं कि पोता बदला जरूर लेना है| और मौका मिलते ही नतीजा सबके सामने है|


थारे पुरखों की सोच व् इनके पुरखों की सोच का फर्क समझोगे तो ही इनको समझ पाओगे|

1 - एक तो इनकी सोच अपनी बिरादरी से बाहर कभी भी सामाजिक हुई ही नहीं ना यह बात इनके कांसेप्ट में| इसको ऐसे भी समझ सकते हो कि जहाँ-कहाँ आप-भाजपा टाइप वालों के पुरखे रहे हैं या हैं, वहां-वहां सीरी-साझी वर्किंग कल्चर नहीं मिलेगा, अपितु सामंती कल्चर मिलेगा| सीरी-साझी वर्किंग कल्चर सिर्फ सर छोटूराम व् उनके पुरखों वाली धरती पर मिलेगा यानि आज़ादी से पहले के यूनाइटेड पंजाब, वेस्ट यूपी व् उत्तरी राजस्थान तक; इस पूरे क्षेत्र को आप मिला के खापलैंड+मिसललैंड बोल सकते हो|

2 - क्योंकि यह बिरादरी के अंदर तो सामाजिक हैं परन्तु इससे बाहर नहीं, इसलिए यह हमेशा बदले की राजनीति के लागू हैं; सार्वभौमिक राजनीति जिस वर्किंग कल्चर यानि सीरी-साझी से निकलती है यह उसके तो सबसे बड़े दुश्मन हैं| जो-जो आगे के हिंदुस्तान में राजनीति में ऊपर उठना चाहता हो वह यह कांसेप्ट अच्छे से समझ ले; खासकर उत्तरी भारत में| आप सबके हित के काम करते हो, उसी का उदाहरण सर छोटूराम की राजनीति में देखने को मिलता है या फिर चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा के 10 साल के सीएम कार्यकाल में, जब हरयाणा में एक आंदोलन तक नहीं होने का रिकॉर्ड है|

3 - केजरीवाल जैसों को वह कल्चर पसंद नहीं जो 1907 के "पगड़ी संभाल जट्टा" किसान आंदोलन के तहत अंग्रेजों से कृषि बिल वापिस करवा लेते हों या 2020-21 में नरेंद्र मोदी से वापिस करवा लेते हों| यह लोग पीढ़ी-दर-पीढ़ी (वह भी इनकी गलती होते हुए) इन बातों को दिल से लगा के चलने वाले लोग हैं, जो बदला लेने की अंधपीड़ा में पीढ़ियों तक जल सकते हैं|

4 - उधर इसी बदला लेने की राजनीति भाजपा वालों को उनके पुरखे पानीपत की तीसरी लड़ाई के वक्त से दे के गए हुए हैं; जब महाराजा सूरजमल की नीति के आगे सारे पुणे के पेशवा धरसायी हुए थे|

हालाँकि, लिखना तो यह बात उसी दिन चाहता था जिस दिन आप, पंजाब में सत्ता में आई थी| फिर लगा अभी लिखूंगा तो बरगलाना व् बड़बड़ाना ज्यादा लगेगा; नतीजा हाथ ले लेने दो तो लिखेंगे|

अब रही बात पटियाला में कल जो हुआ: सिख भाइयों को घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि एक तो पूरी खापलैंड अबकी बार आपके साथ खड़ी है| लेकिन इनको कूटिनीति से मारो पहले; लठनीति तो कभी भी ट्राई कर देना इन पर| एक सर छोटूराम जब इन सब फंडियों की गाँठ बाँध सकता है तो आप भी खून तो वही हो; धर्म अलग है तो क्या हुआ, किनशिप-कल्चर तो आज भी एक है|

बस जरूरत है तो अपनी किनशिप-कल्चर पे सरजोड़ के, फंडियों के बारणे चाहे सोने-चाँदी के बिंदरवाल-झालर लटकते हों तो भी इनसे अपनी बाड़ करके; इनको घेरने के| यह तो यूँ जाएंगे जैसे भेड़ों के सर से सींग|

यह सरजोड़ इसलिए भी जरूर है क्योंकि फंडी को जब-जब इनके विपरीत विचारधारा की सत्ता आती दिखती है तो फंडी ऐसे भय बड़े बना के दिखाता है समाज को, जो वास्तव में होते नहीं परन्तु यह उनका हव्वा बना के लोगों को डरा लेते हैं| 1984 में खालिस्तान संत भिंडरावाला ने कभी नहीं माँगा, अपितु फंडियों के ही खड़े किये हुए एक चौहान ने माँगा व् भुगतना पंजाब को पड़ा| तब यह एक पावर थे, आज दो के रूप में आ चुके हैं, एक भाजपा व् एक आप पार्टी| तो आपको भी दोहरी सतर्कता से चलना होगा|

मुझे आशंका है कि भगवंत मान को साल-दो-साल से ज्यादा सीएम नहीं रखेंगे यह|

मूल राजनीति आइडियोलॉजी पर होती है, बिना आइडियोलॉजी के तो सिर्फ मौकपरस्ती होती है और मौकापरस्ती किसी को ठिकाने नहीं लगने दिया करती|

जय यौधेय! - फूल मलिक

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