अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Sunday, 23 October 2022
Happy Kolhu-Dhok, Happy Girdi-Dhok, Happy Diwali!
Saturday, 22 October 2022
कंधे से ऊपर की मजबूती के ताने ना सुन्ना चाहो तो लक्ष्मी के साथ-साथ अपनी "गिरड़ी-धोक" (आज का दिन) व् "कोल्हू-धोक" (तड़के का दिन) इनके भी दिए जलाओ!
धर्म और त्योहारों की अपनी पुरख-परिभाषाएं व् आइकॉन जिन्दा रखिए; अगर चाहते हैं कि इसकी आड़ में आपका सामाजिक स्थान व् एथनिसिटी जिन्दा रहे! अगर चाहते हो कि कोई उघाड़ा-उठाईगिरा आप पर "कंधे से नीचे मजबूत व् ऊपर कमजोर" के ताने ना मार जाए!
Monday, 17 October 2022
Uncertainties living in your unconscious and/or semi-conscious mind is the field of religion!
Religion has no outside/aerial existence/source rather "a psychological ambit made by specifc people of the society over your unconscious mind is fascinated as religion". If it is made up for human welfare with equal eyes on its followers then nothing is better than it. But if it is made-up to brainwash its followers, then nothing is worse and disastrous than it. And Fandi (propagandists) go with its both aspects humanity for self-group while brainwashing on its followers. Thus one’s society must have a dedicated psychological and philosophical wing to outlaw the possibilities of fandi propaganda on it. - Phool Kumar
Sunday, 9 October 2022
हरयाणवी गाम 'बर्राह' व् 'खरक' के हरयाणवी भाषा में अर्थ!
बर्राह गाम, जिला जिंद (जींद): मेरा गुहांड है जिसका नाम है "बर्राह", छोटी-बड्डी दो बर्राह हैं, जो कि हरयाणवी शब्द "बर्रा" से बना है, जिसका हरयाणवी में अर्थ होता है "गाम की बसासत के चारों ओर मिटटी से बनी वह किलानुमी ऊंची पाळ, जिस पर से वाहन तक चलने का रास्ता होता है"| इस पर से वाहन चल सकें जितना चौड़ा रास्ता इसलिए बनाया जाता है ताकि बर्रे की थोथ साथ-साथ दबती रहें व् जहाँ से कोई थोथ उभरे तो उनको साथ-की-साथ मरम्मत कर दी जाए व् अकस्मात आई बाढ़ के वक्त भी बर्रा मजबूत का मबजूत रहे| इसे भारी-से-भारी बाढ़ में भी बसासत को बाढ़ से मुक्त बनाये रखने का हमारे पुरखों का बंदोबस्त कहते हैं, इंजिनीरिंग कहते हैं| यह बर्रा खापलैंड के लगभग हर गाम के चारों ओर मिलता है|
Thursday, 6 October 2022
उज़मा बैठक "सांझी की सांझ अंतर्राष्ट्रीय मेळा अर मुक़ाबला 2022 - नतीजे अर न्याम!
थम सबनैं जय दादा नगर खेड़े/भैये/भूमिए की!
Monday, 26 September 2022
जब आडवाणी को धकेल मोदी पीएम फेस बन गए थे तब से ही जैनी/बनिया बनाम ब्राह्मण लड़ाई शुरू हो गई थी!
जिसका अंत मोदी से कदम-दर-कदम मात खाता संघ, मोहन भागवत के रूप में मस्जिद में सजदा करने तक पर आन डटा है, जो कि संघ के 97 साल के हो चले इतिहास में कभी नहीं हुआ!
Saturday, 24 September 2022
सांझी से संबंधित जानने योग्य कुछ पहलू!
सांझी एक रंगोली है: सांझी एक रंगोली है कोई अवतार या माया नहीं! प्राचीन काल से उदारवादी जमींदारी सभ्यता में 'सांझी की रंगोली बनाना' नई पीढ़ी को ब्याह के शुरुवाती 10 दिनों की जानकारी व् तमाम गहनों-परिधानों की जानकारी स्थानान्तरित करने की एक कल्चरल विरासत यानि पुरख-किनशिप की प्रैक्टिकल वर्कशॉप होती है| इसके जरिए किनशिप का यह अध्याय अगली पीढ़ियों को पास किया जाता है| खापलैंड के परिपेक्ष्य में यह तथ्य "सांझी" बारे तमाम अन्य अवधारणों के बीच सबसे उपयुक्त उभरता है जो कि सांझी के साथ गाहे-बगाहे जुड़ी हुई हैं| और यह अवधारणा कहें या मान्यता सबसे सशक्त व् उपयुक्त क्यों है, उसके वाजिब कारण आगे पढ़ें|
Thursday, 15 September 2022
हिंदी पढ़ो-पढ़ाओ या और कोई भाषा पढ़ो-पढ़ाओ, परन्तु अंग्रेजी सबसे पहले पढ़ाओ अपने बच्चों को!
यह जो हिंदी मध्यम से बच्चों को पढ़वाने का सगूफा फंडी अभी छोड़ रहे हैं, यह ऐसा ही है जैसे एक सदी पहले तमाम गुरुकुलों में संस्कृत लादी परन्तु उसी विचारधारा पर बने DAVs में इंग्लिश मीडियम पढ़ाया!
यह ढकोसला मंजूर करने से पहले, ना सिर्फ नेताओं अपितु धार्मिक प्रतिनिधियों तक के बच्चे, वो धार्मिक प्रतिनिधि जो तुम्हें दिनरात हिंदी व् संस्कृत से पकाते हैं; इन सबके बच्चे इंग्लिश मीडियम के वो भी बोर्डिंग व् पब्लिक स्कूलों में पढ़ते हैं!
इसलिए, हिंदी हो ना हो, परन्तु इंग्लिश जरूर रखवाओ अपने नजदीक के तमाम सरकारी व् प्राइवेट हर तरह के स्कूलों में! चुप ना रहें, वरना यह फंडी तो तुम उत्तर भारत वालों को भी महाराष्ट्र में पेशवाओं द्वारा दलित-ओबीसी वालों की कमर में झाड़ू व् गले में थूकने की हांडी लटकाने तक ला के छोड़ेंगे! इनमें तुम्हारे बारे जो सोच है, वह कल भी ऐसी ही थी, आज भी व् आने वाले कल में भी ऐसी ही रहनी है! इसलिए सब कुछ बर्बाद करने की सोच तुम्हारे बीच फैलाने वालों के भरोसे मत छोडो!
और ग्रेटर हरयाणा वाले तो अब हरयाणवी भाषा लागू करने की मांग पे आओ, अगर अपने पुरखों व् किनशिप की बुलंदी चाहो तो!
जय यौधेय! - फूल मलिक
Saturday, 20 August 2022
विषय: जाटों व् उसकी मित्र जातियों में विधवा विवाह, वर्णवादियों द्वारा उसके बारे फैलाये नकारात्मक पहलु व् इस विवाह के विधान अनुसार इसके सकारात्मक पहलू!
विधवा विवाह का मूल अर्थ
Friday, 19 August 2022
ठीक-ठीक लगा यार; क्यों पुरखों के कल्चर का बेखळखाना बनाने पे तुले हो?
अभी दो दिन पहले राखी मना के हटे हो, और आज उन्हीं बच्चों को रासलीला वाली ड्रेसेज पहना के BF-GF बना के मटकियां फुड़वा भी रहे हो? चाहते क्या हो अपने कौम-कल्चर से आप ऐसे लोग?
भाभियों को बहन कहना व् देवर-जेठों को भाई साहब कहना; अति-मर्दवादी समाजों का कल्चर है हमारा नहीं!
ऐसे मर्दवादी समाज, जो माँ की हॉनर किलिंग करने वाले को भी भगवान मानते हैं; यह उन समाजों का कल्चर है| हॉनर किलिंग करने वाला जहाँ भगवान हो, वहां औरत कितनी दबा के रखी जाती है, इसी से अंदाजा लगा लो|
यह लोग बेहद वासनाकृत लोग हैं, इनके यहाँ सगी बेटियों को देख संखलित हो जाने वाले उदाहरण होते हैं; इनके चलते इनकी औरतें बहुत शर्म व् डर महसूस करती यहीं| और उनमें इनके प्रति कुंठा भर जाती है|
यह कुंठा फूट के कहीं बाहर ना निकल पड़े; इसलिए देवर-जेठ को "भाई साहब" बोल के उस कुंठा को कुछ हद तक शांत रखवाने के चोंचले हैं यह इन अति-मर्दवादी समाजों के|
जाटों में, देवर-जेठ मतलब देवर-जेठ व् भाई-बहन मतलब भाई-बहन|
हमारे यहाँ ना तो हॉनर किलिंग करने वाले को भगवान बनाते, ना बेटियों को देख संखलित होने वालों को व् ना ही अपनी बहन को अपनी बुआ के लड़के के साथ भगाने वाले को| कोई ऐसा हो भी जाता है हमारे समाजों में तो उसको या तो समाज से निष्काषित करते हैं या उसके हाल पे छोड़ देते हैं|
कोई मेल ही नहीं है जी सोच से ले अचार-व्यवहार किसी का भी|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Tuesday, 16 August 2022
जालौर घटना के लिए जितना जिम्मेदार रूढ़िवादी वर्णवाद है, उतने ही SC/ST व् OBC समाज से आने वाले IPS/IAS ऑफिसर्स व् फ़ौज के कमीशंड अफसर भी जिम्मेदार हैं!
जालौर जैसी घटना के पीछे दोष तो SC/ST व् OBC समाज से आने वाले उन IPS/IAS ऑफिसर्स व् फ़ौज में इन तबकों के उन कमीशंड अफसरों का भी है; जहाँ आम कांस्टेबल/थानेदार/फौजी उस लिफ्ट से नहीं जा सकते जिससे यह अफसर जाते होते हैं, उन मैस या बर्तनों में नहीं खा सकते जिनमें यह अफसर खाते हैं|
जब इस स्तर पर जा के यह लोग, इन प्रोक्टोकॉलस को डिपार्टमेंट के अंदर सब के लिए बराबर नहीं कर/करवा सकते, तो किस SC/ST या OBC से उम्मीद करते हो इन चीजों को सुधारने की? उससे जो दो जून की रोटी अगले दिन कैसे कमानी है; आज की दिहाड़ी खत्म होते ही इस चिंता में जीवन जीता है?
दरअसल, SC/ST व् OBC के अफसरों ने ना कभी इन विभागों के इस भेदभाव को खत्म करने को चिंता दिखाई और ना ही मिथक चरित्रों पर फंडियों द्वारा इनकी बना दी जाने वाली पहचान पर?
ऐसे तो भाई, कितनी सदियां और निकाल लेना; नहीं निकल पाओगे फंडियों के वर्णवाद के चंगुल से|
जय यौधेय! - फूल मलिक
जालौर काण्ड हुआ वर्णवाद के चलते, दोष जातिवाद पे; करेक्शन करो यार!
जालौर में दलित बच्चे द्वारा मटके से पानी पीने पर मारने से उसकी मौत का कारण बनने वाला है, एक वर्णवादी; परन्तु दोष जातिवाद पर?
तुम्हारे दिमाग में कोई लोचा है क्या? वर्णवाद को वर्णवाद कहो ना? खामखा, रॉंग चैनल (wrong channel) पकड़े चल रहे दशकों से! वर्णवाद का शोर करो, फिर देखो नतीजा! वह वर्णवाद जो ना कर्म आधारित व्यवहारिक है और ना जन्म आधारित! थोथा सगूफा छोड़ रखा है, ना जाने कब से!
यह जन्म आधार पर सही होता तो ब्राह्मण वर्ण में सब अध्यापक, वाचक ही पैदा होते; दिल्ली -एनसीआर में रिक्शा चलाने वाला हर दूसरा पांडे-मिश्रा ना होता या खेती करने वाले पैदा ना होते इस वर्ण में| ऐसे ही जन्म आधार पर क्षत्रिय वर्ण में क्षत्रिय ही पैदा होते व् वैश्य व् शूद्र वर्णों में वैश्य व् शूद्र ही पैदा होते; यह वर्ण-क्रॉस कर क्षत्रियों में शूद्रमति वाला, शूद्रों में वैश्यमति वाला पैदा ना होता|
और ना ही यह कर्म आधारित व्यवहारिक है; ऐसा होता तो एक प्रोफेसर बने शूद्र को ब्राह्मण का सर्टिफिकेट मिलता व् एक रिक्शा चलाने वाले ब्राह्मण को शूद्र का|
मिलता है क्या ऐसा कुछ, कोई संस्था, कोई सिस्टम जो कर्म-के-आधार पर वर्ण बदलता हो? नहीं है, बल्कि जो जहाँ पैदा हो रखा वह ताउम्र वही लाभ-हानि-दंश झेलते-भोगते हुए जीता है; जीता है या नहीं?
तो है कोई व्यहारिकता इस कांसेप्ट में; खामखा गोबर-ज्ञान में टूटे रहते हो व् इसी को ढोते रहते हो|
जय यौधेय! - फूल मलिक