Monday, 14 August 2023

डागर पाल, रावत पाल, सहरावत पाल, चौहान पाल, तेवतिया पाल के चौधरियों को बारम्बार सलूट!

कल की धर्मान्धता में अंधे लोगों की पंचायत से अपने आपको अलग रख के; आपने पाल-खाप की निष्पक्ष छवि व् परिभाषा को बरकरार रखने का जो संदेश दिया है; यह पीढ़ियों-सदियों युगयुगान्तर इतिहास में दर्ज हो गया है| पूर्वाग्रह से ग्रसित भीड़ का जमावड़ा, कभी कोई पंचायत हो ही नहीं सकती व् खाप/पाल पंचायत का तो दूर-दूर तक मतलब ही नहीं| पूर्वाग्रह में सिर्फ कटटरता के म्वादी खड़दू-खाड़े होते हैं; जो जाहिल-गंवार जानवर टाइप मूढ़मति लोग करते हैं|


इनसे दूर रह कर, आपने अपने आपके सभ्य व् सामाजिक होने का जो परिचय दिया है; इसके लिए आपको बारम्बार सलूट है! आपके इन फैसलों की गूँज देशों-विदेशों धरती के हर कोने तक जा रही है| हम आपके बाहर बैठे वंश इसको फैला रहे हैं| आपकी कीर्ति-आभा यूँ ही नभायमान रखी जाएगी; आप ऐसे ही हमारा मार्ग प्रसस्त रखें!

विशेष: पाल व् खाप पर्यायवाची शब्द हैं जो एक ही तरह ही सामाजिक संस्था के है; इनकी umbrella body सर्वधर्म सर्वजातीय सर्वखाप है!

जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 12 August 2023

एक बार में तथाकथित निर्मात्री सभा के दो दिन के सत्र में गया हुआ था!

तो वहाँ पर मौजूद आचार्य ने बताया कि शिवाजी के राज्याभिषेक के लिए पंडों को लाखों अशर्फियां रिश्वत के तौर पर दी थी। (शिवाजी को यह अशर्फियां क्यों देनी पड़ी इसका कारण था। शिवाजी की माँ का मानना था कि यदि शिवाजी बिना राज्याभिषेक के गद्दी पर बैठेगा तो उसके द्वारा युद्ध में की गई हत्याओं का पाप उसे लगेगा। अगर वह राज्याभिषेक के बाद गद्दी पर बैठेगा तो राजा के रुप में उसके द्वारा युद्ध में मारे गए लोगों की हत्या का पाप उसे नहीं लगेगा इसलिए शिवाजी की माँ ने शिवाजी पर राज्याभिषेक के लिए दबाव बनाया लेकिन शिवाजी के शूद्र होने के कारण कोई पंडा राज्याभिषेक को तैयार नहीं हुआ और अंत में शिवाजी को लाखों अशर्फियां देकर राज्याभिषेक करवाना पड़ा।) शिवाजी के बाद आचार्य सीधा औरंगजेब पर आया और कहा कि औरंगजेब हर रोज हिंदुओं के सवा मन जनेऊ तोड़कर खाना खाता था। आचार्य के इतना कहते है कि मैने प्रश्न पूछने के लिए हाथ उठाया। इससे पहले भी मैने कई सवाल पूछ लिए थे जिससे आचार्य घबराया हुआ था। मेरे हाथ उठाते ही आचार्य ने कहा कि सवा मन तो कहने की बात है औरंगजेब सवा किलो जनेऊ तोड़कर भोजन करता था। मैने फिर भी अपना हाथ खड़ा रखा। अब आचार्य के पास मेरे सवाल को सुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं था और वह सवा किलो से नीचे भी नहीं आ सकता था क्योंकि इससे नीचे तो फिर औरंगजेब को क्रूर साबित करना बड़ा मुश्किल काम हो जाता। आचार्य ने कहा कि हाँ भाई, बताओ। मैने कहा कि अभी आपने कहा कि शिवाजी को राज्याभिषेक करवाने के लिए लाखों अशर्फियां रिश्वत के तौर पर देनी पड़ी थी। जब शिवाजी जैसे महान व ताकतवर व्यक्ति को भी राज्याभिषेक के लिए सिर्फ इस कारण लाखों अशर्फियां देनी पड़ी क्योंकि वो शूद्र था तो आम आदमी का क्या हाल होगा? उनके पास तो इतनी रकम नहीं होती थी। शूद्रों को जनेऊँ धारण करने का अधिकार नहीं था और दो जनेऊधारी थे उनका औरंगजेब के साथ तालमेल था जिस कारण धर्म के नाम पर लगने वाला उनका जजिया कर भी औरंगजेब ने माफ किया हुआ था तो फिर जनेऊ टूटे किसके? आचार्य के पास कोई जवाब नहीं था तो आचार्य ने कहा कि तुम्हे कौन लेकर आया है? मैने जैसे ही  उस भाई का नाम लिया तो वो दौड़कर आया और मेरे घुटने को हाथ लगाकर बोला कि तू चुप हो जा, सैशन खत्म होने के बाद आपका आचार्य के साथ आधा घंटा का सवाल जवाब का सैशन रख देंगे। मैने कहा कि यह सैशन खत्म होते ही भागेगा देख लेना। जैसे तैसे मैं मान गया। मैं बैठ गया। आचार्य को तो घुम फिरकर फिर मुस्लमानों पर आना था। आचार्य ने जैसे ही बोला कि हमें मुस्लमानों से खतरा है तो मैने फिर हाथ उठाया । अब तो आचार्य के गात में बाकि नहीं रही लेकिन विकल्प भी कोई नहीं था । सत्र में आए बाकि लोगों में बेइज्जती होती यदि सवाल नहीं पूछने देता । आचार्य ने कहा कि हाँ भाई, बोलो । मैने कहा कि कौन से मुस्लमान से खतरा है ? आचार्य बोला कि क्या मतबल है? मैने कहा कि कौन से मुस्लमानों से खतरा है? जाट मुस्लिम ले,राजपूत मुस्लिम से,गुर्जर मुस्लिम से,सैनी मुस्लिम से, लुहार,तेली,नाई,कुम्हार,ब्राह्मण, बनिया कौन से मुस्लमान से खतरा है ? आचार्य मेरी बात को समझ चुका था कि मैं बात कहाँ घुमाना चाहता हूँ इसलिए उसने बिना उत्तर दिए मुझे बैठने के लिए कहा । मैं बैठ गया । दो दिन में सत्र खत्म हुआ तो उन्होने सभी को फीडबैक का फार्म दिया जो मुझे भी मिला । मैने उस फीडबैक में जो लिखा उसको पढ़कर मुझे फिर बुलाया गया और पूछा कि आपने ये क्या लिख दिया ? मैने कहा कि जो मुझे लगा वो मैने लिख दिया । उसके बाद मैं अपने घर आ गया और आज तक मुझे तथाकथित निर्मात्री सभा के किसी सत्र का न्यौता नहीं मिला । - राजेश कुमार 

Thursday, 10 August 2023

मेवात दंगों में फंडियों का साथ नहीं देने पर, अब जाट समाज को इस बात पर घेरा जा रहा है कि "क्या तुम हिन्दू या सनातनी नहीं हो?"

 जवाब: 1875 में आर्य-समाज इसलिए लाया गया था क्योंकि जाट, फंडियों के आज ही तरह के तंज-लांछन-टार्गेटिंग से परेशान हो कर सिखी व् इस्लाम में जा रहा था (1881 से 1931 के जाट की धार्मिक जनसंख्या के आंकड़े उठा के देख सकते हैं) तो फंडियों को अहसास हुआ कि तुम वाकई में ज्यादा ज्यादतियां कर रहे हो, सुधरो व् जाट को मनाओ| तब जाट को मनाने के लिए 1870 से 1875 तक यह अध्ययन किया गया कि जाट को कैसे मनाया जाए| इसके लिए जाट के आध्यात्म व् धार्मिक मतों पर खापलैंड पर करवाई गई रिसर्च में पाया गया कि जाट एकमुश्त "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों" को धोकता है, जो कि मूर्तिपूजा नहीं करने के सिद्धांत पर आधारित हैं; औरत को धोक-ज्योत में लीड देने के आधार पर आधारित है| 


तब इसी मूर्ती-पूजा नहीं करने के सिद्धांत को आधार बना कर 1875 में "आर्य-समाज" उतारा जाता है, जिसके साथ सत्यार्थ प्रकाश का ग्रंथ आता है इसके ग्यारहवें समुल्लास में जाट की "जाट जी" व् "जाट देवता" कहते-लिखते हुए स्तुति करते हुए| तब जाट को लगा कि "जी" कह के तमीज से बोलने लगे हैं तो मतलब इनको अक्ल आ गई है, सो इनके साथ रह सकते हैं| 


बस, हमारे धर्म बारे यही अक्ल अब ले लो तुम्हारे पुरखों वाली; अन्यथा टकराव रहेंगे व् अपनी मूढ़मति में इन टकरावों को इतना मत बढ़ाते चले जाना कि उस वक्त तो "जाट जी" व् "जाट देवता" कहते-गाते आये थे तो जाट रुक गया था; परन्तु अबकी बार वाला जाट, इससे भी नहीं रुकेगा; चाहे बेशक फिर कितने ही, "सारा संसार जाट जी जैसा हो जाए तो धरती पर पंडे-पाखंडी भूखे मरने लगें" के हवाले देते रहना| याद रखो, तुम्हारे पुरखों की इस लाइन को "भूखे मरने लगें" तक के हवाले दे के रोके थे जाट तुमने? वैसे तो जाट होता कौन है किसी को भूखा मारने वाला; परन्तु यह हालत थी, तुम्हारे जैसों की तब, जो आज मेवात पे जाट की स्वछंदता को नहीं समझते हुए; उससे फिर पूछने लगे हो कि "जाट हिन्दू नहीं है क्या"? 


अरे, तुम जाट की छोडो, तुम्ह खुद हिन्दू कब से हुए, यही बता दो? जरा जाओ और देखो कि 1893 की शिकागो,अमेरिका (विवेकानंद भाषण से प्रसिद्ध) की अंतर्राष्ट्रीय धर्म संसद के वक्त तक तुम खुद को कौनसा धर्म कहते थे? उस वक्त तक भी हिन्दू या सनातनी नहीं हो तुम? तो कब व् कैसे बन गए तुम हिन्दू या सनातनी; जो हमसे पूछ रहे हो कि "तुम हिन्दू या सनातनी नहीं हो क्या"?


घणे सर पर मत मूतो, भारी खता खाओगे; ज्यूँ कुत्ते को मार बंजारा रोया था, वह वाली खता| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Monday, 24 July 2023

अगर कोर्ट व् WFI कानूनों पे ट्रायल दे के जाने वाले व् बिना ट्रायल दे के जाने वाले दोनों सही ठहरते हैं तो दोनों को डंके की चोट पर सही ठहराओ, बजाए डिफेंसिव हो सफाई देने लगने के!

पहलवान मुद्दे पर हम उन चीजों के लिए बहस ना ही करें तो बेहतर, जो कोर्ट व् कुश्ती फेडरेशन के नियम निर्धारित कर रहे हैं| अगर कोर्ट व् WFI उनको बिना ट्रायल खेलने के नियम रखती है तो उन नियमों को आगे करो; उन दो के लिए जो बिना ट्रायल खेलने जा रहे हैं व् जो एक ट्रायल दे के जाना चाहती है, उसको उसके लिए प्रोत्साहित करो| 


यह सोशल ब्रांडिंग व् मार्केटिंग के ये फंडे हैं, इनको समझिये व् अगर कानूनी व् एडमिनिस्ट्रेटिव नियमों में आपके दोनों तरह के पहलवान फिट बैठ रहे हैं तो दोनों सराहिए| कम से कम यह उन फंडियों की तरह तो नहीं कर रहे जो अपने लोगों के उन गलतों तक को सही ठहराने लग जाते हैं वरन जुलूस तक उनके समर्थन में निकालते हैं, जो कानून की भाषा में बलात्कार है, आगजनी है, जान से मारने की धमकी है| फिर उदाहरण में क्या सेंगर, क्या गोधरा काण्ड के 12 अपराधी छोड़ने व् क्या बृजभूषण का मसला| आप लोग तो उन बातों पे अपने खिलाडियों को गलत-सही ठहराने पे लगे हो, जिनको कोर्ट व् खुद WFI के कानून वैध देते हैं; तो जब कानूनी वैध हैं दोनों मामले, तो उनका हवाला दे के दोनों को सराहे व् प्रोत्साहित किये रखें| 


अन्यथा इतने पानी-पाड़ न्याय करने चले हो तो योगेश्वर दत्त के करवा लो ओलिंपिक व् CWG के मेडल्स वापस, ऐसी बिना ट्रायल दिए खेलने जाने पे आपत्ति जता के न्यायकारी बन रहे हो तो; क्योंकि सबके सामने खुल के आ चुकी अब तो कि वह कितनी बार बिना ट्रायल्स दिए गया है| या फिर सुशिल कुमार को निर्दोष घोषित करवाओ, जिसने यही बात कही थी कि 2016 में ट्रायल दे के जाए जो जाए, परन्तु बीजेपी ने अपनी जाट बनाम यादव पॉलिटिक्स खेलने व् सुशिल कुमार कहीं लगातार तीन जीत में व् तीसरी में गोल्ड ना ले आये व् तीन ओलिंपिक मेडल्स आने पे उसको "भारत रत्न" ना देना पड़ जाए सचिन तेंदुलकर की तरह; इसलिए नर सिंह यादव की बलि चढ़वाई वो अलग व् सुशिल को "भारत-रत्न" तक पहुँचने से रोका वह अलग व् इन दोनों समुदायों में राड़ लगवाई वह अलग|  


यह अधिक से ज्यादा उदारवादी व् भावुकता ही आपको ऐसे सिस्टम में सर्वाइव नहीं करने दे रही| हाँ, वह दो खिलाडी बिना ट्रायल अगर कोई कोर्ट या WFI का कानून तोड़ के या उसका नाजायज एक तरफा फायदा ले के बिना ट्रायल जा रहे हैं तो बेशक उनको गलत बोलो| अन्यथा दोनों मामलों को सपोर्ट करो| और जिनको खाज हो, उनके आगे डेनफेन्सिव होने की बजाए कोर्ट-WFI नियम अड़ाओ| अन्यथा WFI के नियम बदले जाने की आवाज उठाओ| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Tuesday, 20 June 2023

किसान कौम फंडियों की चालों को तोड़ने में संघर्ष ज्यादा व् रिजल्ट कम क्यों ले पाती है?

कारण: फंडी के यहाँ किसान को उलझाए रखने, बर्बाद करने की जॉब पे 24*7 हॉर्स वाले डेडिकेटेड वर्कर्स बैठते हैं; बैकअप देने को ट्रेंड कैडर बैठा है| जबकि किसानों के यहाँ, 10-20% 24*7 हॉर्स वाले डेडिकेटेड को छोड़ के बाकी सब टाइम-पास चेहरा चमकाऊ या बीच के रास्ते बताऊ इन मंचों-धरनों पर ऐन उस वक्त कुकरमुत्तों की तरह उतपन्न हो जाते हैं; जब उस धरने-मसले का हल होना होता है| यही ही नहीं; किसानों में जाति के नाम से भी मेले-सेले करने वालों के मंचों पर यही फिट किये जाते हैं| आपको वही आदमी किसान आंदोलन की टॉप निर्णायक कमिटी में देखने को मिलेगा, वह किसी जाट-गुजर-यादव-राजपूत टाइप सभा में उस जाति के स्टेज के अनुसार उस जाति के हक दिलवाने, उस जाति का सीएम बनवाने आदि की बातें करता मिलेगा और फिर वही आपको ढोंग-पाखंड-आडंबर से जागरूक होने के लेक्चर भी देगा| मतलब क्या गजब के allrounder हैं; होंगे हर जगह पर हासिल किसी भी मसले का एक जगह का भी नहीं करवाएंगे|  


यानि यह लड़ाई डेडिकेटेड बनाम allrounder फिट करने वाले सौदे की है| यही हमारे समाजों की सबसे बड़ी समस्या हो चली है| इसको ही उस कहावत में कहा गया है कि "बाह्मण घणा खा के मरे व् जाट घणा ठा के मरे"| अरे, भाई समाज सेवा चाहते हो परन्तु अपनी क्षमता के अनुसार समाज से न्याय नहीं कर सकते; बस हर जगह तुम्हें ही दिखना है? कौनसी थ्योरी व् प्रैक्टिकल के अनुसार सही है यह चीज? जितना कर-करवा सकते हो उतने तक क्यों नहीं रहते? व् जहाँ तुम नहीं कर सकते, वहां समाज के नए टैलेंट खड़े करने में मदद करो| तुम्हारे सिस्टम से तुम्हारे पुरखों से सीख के आरएसएस; गोलवलकर, हेगडेवार तक सीख गए; बस एक तुम ही नहीं सीखे या सीखना नहीं चाहते| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 

Sunday, 18 June 2023

पिछले 150 सालों में खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के समाजों का आध्यात्मिक सफर व् इसमें पड़े पड़ाव!

1) 1875 से पहले दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों का धर्म-वर्ण-जाति रहित धोक-ज्योत सिद्धांत ही इस किनशिप का सबसे बड़ा आध्यात्म था या गैर-वर्णवादी संतों की ही मान्यता थी| इसी वजह से ना यहाँ कभी देवदासियां पनपी, ना विधवा-आश्रम पनपे, ना सतिप्रथा रही व् ना ही प्रथमव्या व्रजसला लड़की को धर्म के नाम पर शुद्धिकरण को धर्माधिकारियों द्वारा उनके गैंगरेप हुए| 

2) यह कोशिशें हुई या इस किनशिप को जलील किया गया तो यह किनशिप बजाए वर्णवादियों के चंगुल में फंसने के इस्लाम या सिख धर्म अपनाना शुरू करने लगी| कैथल-करनाल तक जब सिख धर्म बढ़ता चला आया तो 1875 में इनको खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के केंद्रबिंदु यानि दादा नगर खेड़ों के मूर्तीरहित-पुजारीरहित सिद्धांत पर आधारित मूर्ती-पूजा नहीं करने के सिद्धांत का आर्य-समाज लाया गया| इसके यहाँ इतना सुपरहिट होने की वजह ही यह थी कि इसका मूर्तिपूजा नहीं करने का सिद्धांत दादा नगर खेड़ों के मूर्तिपूजा नहीं करने के सिद्धांत से उठाया गया था; वरना महर्षि दयानन्द के किसी विशेष ज्ञान की वजह से यह फैलाना होता तो आर्यसमाज सबसे ज्यादा उनके गुजरात में फैलता| इसमें राम व् कृष्ण को कोई अवतार ना बता के महापुरुष बताते हुए, इन समाजों में इनकी एंट्री की शुरुवात हुई; व् सॉफ्ट-माइथोलॉजी उतारनी शुरू की गई; अवतार नहीं अपितु महापुरुष बता के| 

3) फिर कालिकारंजन कानूनगो व् ठाकुर देशराज जैसे जाट इतिहासकार; शिवजी की जटाओं से जाटों के पैदा होने का कांसेप्ट ले आते हैं; बीसवीं सदी की शुरुवात में|  

4) 1987 तक खेड़े व् शिवाले यहाँ सबसे बड़े रहे; तब 1987 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व् टीवी माइथोलॉजी के अंधाधुंध प्रसार में वरदान साबित हुआ व् रामानंद सागर की रामायण व् बीआर चोपड़ा की महाभारत आई| व् लोग इनमें काल्पनिक कहानियों में अपने वंश तक ढूंढने व् जोड़ें लगे| यही वह दौर था जब धर्म-कर्म में आर्य समाज व् खेड़ों के जरिए किसी एक जाति की मोनोपॉली नहीं अपितु हर जाति में शास्त्री थे| जाट जैसी जातियों में आज जो 40-50 साल से ऊपर की उम्र के हैं, इनके 70% के ब्याह-फेरे इनके ही घर-कुनबे के बड़े दादा-ताऊ शास्त्री यानि जाट के ही करवाए हुए हैं व् ऐसे ही अन्य जातियों में| 

5) फिर आई 2014 में तथाकथित वर्णवादियों की सरकार व् इन्होनें सबसे पहला जो काण्ड किया वह यह धर्म-कर्म की मोनोपोली बनाने हेतु "फरवरी 2016 करवाया" जिससे 35 बनाम 1 हुआ व् तमाम किसान-ओबीसी जातियों के कर्म-कांडी शास्त्री वर्ग को मानसिक रूप से डराया व् साइड करवाने की मुहीम चली| जो अब तक लगातार जारी है व् इस हद तक जा चुकी है कि अगर यह लोग जल्द सत्ता से बाहर ना किये गए तो "सविंधान" हटा के "मनुवाद" घोषित रूप से लागू किये जाने को तैयार समझो| 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Saturday, 10 June 2023

सरजोड़ के संकट से जूझते खाप चौधरी!

 जितने भी खाप-चौधरी बीजेपी-आरएसएस में हैं; इन्हें देख ऐसा अहसास आता है कि जैसे अंग्रेज, राजाओं-नवाबों को पेंशन दे के साइड में बिठा के उनकी सत्ता-राज्य का सारा कण्ट्रोल अपने हाथ में ले लेते थे; ऐसे ही इन चौधरियों की चौधर अपने हाथ ले, इनकी खापों में कोई वैसा कार्य होने ही नहीं दिया जा रहा; जिनके लिए इन चौधरियों के दादे-पड़दादे समाज में जाने गए| और इस संकट की सबसे बड़ी बानगी है पहलवान बेटियों का मसला| बहु-बेटी व् पगड़ी की इज्जत खाप-सिस्टम के लिए वह बॉर्डर लाइन रही है कि जिसके क्रॉस होने पे यही खापें, रियासतों-की-रियासतें मलियामेट करने के लिए जानी गई| बेटी की इज्जत क्रॉस होने पे मलियामेट का सबसे बड़ा उदाहरण आता है कलानौर रियासत का| व् पगड़ी की इज्जत उछालने पर मलियामेट करने का सबसे बड़ा उदाहरण आता है लजवाणा काण्ड का, जो कि जिंद रियासत खा गया था, पटियाला रियासत की ताकत जिसने पंगु कर दी थी| 


वह पुरखे ऐसा शायद इसलिए कर पाए, क्योंकि वह थे कि ब्रह्म-विष्णु-महेश में महेश हम ही हैं; वही महेश जिसका काम होता है ब्रह्मा व् विष्णु के बिगाड़े हुए हो को आर्डर में लाना| इसीलिए तो खापलैंड पे आध्यात्म के नाम पर सबसे ज्यादा या तो दादा खेड़े पाए गए या पाए गए शिवाले| शायद खाप वाले यह भूल गए हैं कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों का 33.33% बुद्धि का हिस्सा जोड़ के ही 100% त्रिमूर्ति का कांसेप्ट बनाया गया है| अगर इसमें सारी बुद्धि एक में ही होती समाज-धर्म को चलाने की तो यह त्रिमूर्ति ना होती| संदेश साफ़ है कि जब त्रिमूर्ति बनाने वाले ने खुद इसमें तीन रखे; व् ना ब्रह्मा को 100% माना, ना विष्णु को व् ना शिवजी को| और आज जो धर्म के मिथ्या व् गैर-जरूरी प्रचार के चलते जो धर्म के नाम पर भीरु बनने का संकट आन खड़ा हुआ है; जिससे शायद बीजेपी-आरएसएस में गए चौधरियों को कोई फंडी कान में फूक रहा होगा कि तुम मत भड़कना वरना धर्म की हानि हो जाएगी; तो ऐसे चौधरी समझ लें कि यह धर्म की हानि नहीं अपितु इस त्रिमूर्ति में एक तुम यानि महेश को, चुप बैठा के महेश की बुद्धि का हिस्सा भी बाकी दो को चढ़ाया जा रहा है| व् आप यह सब जाने-अनजाने में होते देख रहे हो| क्या किसी जांबवंत को बुला के लाएं थारी शक्तियां तुम्हें याद दिलाने के लिए? जरूरत हो तो बता दो, करें कुछ कोशिश? 


वरना क्यों नहीं टीवी-सोशल मीडिया से ले प्रिंट मीडिया हर जगह जब यह देख रहे हो कि बृजभूषण कैसे पहलवान गवाहों को तोड़-तुड़वा रहा है तो क्या आप स्वत: संज्ञान नहीं ले सकते इन खबरों का? क्या आपको आभाष नहीं हो रहा कि यह होता रहा व् अंत तक हो गया तो इसके बाद यह समाज बेटियों-बहुओं के लिए कितना असुरक्षित हो जायेगा? या फिर हाथ ही खड़े कर दो कि हम से नहीं हो रहा; तो समाज कोई और रास्ता देख ले? अन्यथा तो यूँ चल के तो आप लोग अपने पुरखों की आन में बट्टा ना लगवा बैठो? बट्टा, इस खापलैंड पे आज तक जो नहीं था वह शुरू होने का, क्या शुरू होने का; देवदासी, विधवा विवाह निषेध व् आश्रमों में भेजना शुरू, प्रथमव्या व्रजसला स्त्री का धार्मिक शुद्धिकरण के नाम पर गैंगरेप व् सति प्रथा? यह सब क्रेडिट है आपके पुरखों के नाम; व् आप अब इस मुहाने पे आन खड़े हो| या तो शिवजी के अपने रूप में आ के ब्रह्मा-विष्णु की फैलाई सामाजिक अव्यवस्था को सरजोड़ के ठीक कर लो; वरना बट्टा लगवाने को तैयार रहो| 


कॉपी की हुई पोस्ट|   

Friday, 2 June 2023

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे!

 हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


सारी बात सहन कर ल्यूं, तेरे आसूँ हों बरदास नहीं,

जब तक बदला ना ले ल्यूं, मनैं सुख के आवैं सांस नहीं!

हे धर ली ज्यान हथेळी पै अब, जीणा होता रास नहीं,

मरते तक ज्यान चली ज्या, पर देखूं तुझै उदास नहीं!!

अभी जिन्दा हूँ मैं लाश नहीं, हम बण कैं हाथी आगे!

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


बापू आळे भाहण तेरे मैं, करकै लाड दिखा द्यूंगा,

दुनियां देख दंग हो ज्या ऐसी, करकें राड़ दिखा द्यूंगा!

बृजभूषण की त्यरे चरणों म्ह, झुकती नाड दिखा द्यूंगा,

गर ऐसा ना हुआ तो, उसके बिखरे हाड़ दिखा द्यूंगा!!

इन्नें करकै रॉड दिखा द्यूंगा, होये मन की काढ़ दिखा द्यूंगा; हम सच्चे साथी आगे!  

हे री रोवै मत ना भाहण म्येरी, आज त्यरे हिमाती आगे,

और सुण कैं बात त्यरी खेत म्ह, छोड़ दरांती आगे!


रागनी रचयिता व् गायक: चौधरी महेंद्र सिंह, मोहिददीनपुर उत्तर प्रदेश 




Wednesday, 31 May 2023

त्रिमूर्ति की फिलोसॉफी से "पहलवान मसले" को समझा जाना चाहिए!

ब्रह्मा-विष्णु-महेश: तीनों का बौद्धिकता व् बुद्धि में 33.33% हिस्सा है| जब-जब यह हिस्सा इन तीनों में से एक ने भी अपनी तरफ ज्यादा खींचा या एक ने भी अपने हिस्से का योगदान छोड़ा तो समाज में अव्यवस्था बढ़ी व् आज भारत उसी दौर से गुजर रहा है कि बेटियां यौन उत्पीड़न के केसों में भी न्याय नहीं ले पा रही हैं| 


अब समाज का कौनसा तबका ब्रह्मा को रिप्रेजेंट करता है या उसके खाते का माना जाता है व् कौनसा विष्णु व् महेश का; यह समाज खुद जानता भी है व् तय भी कर सकता है| फ़िलहाल तो ऐसा लगता है कि समाज को चलाने की बुद्धि-विवेक का सारा ठेका एक या दो हिस्सों ने अपनी तरफ सरका लिया है व् तीसरे को नकार दिया है या तीसरा हिस्सा खुद ही इन्हीं को अपने हिस्से के भी बुद्धि के फैसले देने का जिम्मा छोड़ बैठा है| जब तक यह अव्यवस्था कायम रहेगी; यह कशमकस बनी रहेगी| जिस दिन तीसरे ने अपना हिस्सा व् जिम्मा ले के चीजें ठीक करनी शुरू की, चाहे वह तांडव करके करे या ताड़ना से; उसी दिन पहलवान मसला हल हो जाएगा| 


शिवजी वाले खाते में जो जाने गए, उनकी समस्या एक और हो रखी है कि वो शिवजी वाली बुद्धि से दूर हटे दीखते हैं व् चीरहरण पर भी खामोश रहने वाले हिस्से में जा बैठे हैं; 28 मई को बेटियों के साथ जंतर-मंतर पर जो हुआ वह चीरहरण ही तो था| अब अगर यह चीरहरण की कथाएं आपको एक्शन लेने की बजाए; चुपचाप रहने की भीरुता आप में भरती हैं तो बेहतर है कि इन चीरहरण की कथाओं को सुनना व् आदर्श ज्ञान व् शिक्षा मानना भी बंद ही कर दो|  


विशेष: मैं त्रिमूर्ति की थ्योरी को एक फिलॉसोफी की तरह यहाँ पेश कर रहा हूँ, इन चरित्रों से इस बात को रखना इसलिए लाजिमी है कि जो इन्हीं उदाहरणों से समझते व् चलते हैं; उनको बात समझ आये| उनको बता रखा होगा त्रिमूर्ति में से दो ने कि तुम ज्यादा उग्र हुए तो धर्म की हानि हो जाएगी, यह हो जायेगा वह हो जायेगा। तो धर्म की हानि इससे ज्यादा क्या होगी कि बेटियों के चीरहरण हो रहे हैं? धर्मयुद्ध तुम तभी तो कहते हो लड़ने की जब पाप बढ़े? तो यह पाप नहीं बढ़ा हुआ है तो और क्या है? इसके तो शिवजी को त्रिमूर्ति वाला उसका किरदार निभाने को उठ खड़ा होना चाहिए व् पंचायतों के जरिए एकजुट हो, सरकार को सख्त संदेश देना चाहिए| अन्यथा फिर क्यों अपने आपको शिवजी की औलाद तो कभी उसकी जटाओं से निकले कहते-कहलवाते हो? 


जय यौधेय! - फूल मलिक

Tuesday, 30 May 2023

मैं "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों व् सर्वखाप पुरख यौधेयों/यौधेयाओं को साक्षी-हाजिर-नाजिर मान कर आज 30 मई 2023 को निम्नलिखित 7 आजीवन व्रत धारण करता हूँ!

भूमिका: मैंने मेरे अगले इंडिया दौरे पर मेरे गाम के "दादा नगर खेड़े बड़े बीर" पर उसको साक्षी करके जो खुद को "खाप-खेड़ा-खेत किनशिप (असल-नश्ल-फसल)" के नाम दान करने का कार्यक्रम बना रखा था; आज 30 मई 2023 को ही उसकी अनौपचारिक घोषणा करता हूँ; औपचारिक घोषणा जब भी इंडिया का अगला दौरा होगा तब करूंगा|
घोषणा की वजह: "खाप-खेड़ा-खेत" के दर्शनशास्त्र, मनोविज्ञान व् कल्चर में "बेटी का सम्मान" ऐसा सम्मान है जिस पर सिवाए न्याय के दूसरी कोई चीज कभी खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के इतिहास, दर्शनशास्त्र व् मनोविज्ञान में देखने को नहीं मिलती| इस कल्चर-किनशिप में पलते-बड़े होते हुए तो यह चीज देखी ही, साथ ही इस किनशिप का इतिहास भी इन्हीं तथ्यों की गवाही देता है| न्याय की जब बात आती है तो बेटियों का मुद्दा ऐसा रहा है कि अगर खापों को इसके लिए रियासतों की रियासतें, राजाओं के राज भी धूलधरसित करने पड़े तो किए गए| चोरी, डकैती, पैसे के लेनदेन, जमीन-जायदाद जैसे तमाम झगड़े-मसले एक तरफ व् बहु-बेटी के सम्मान की नाजुकता व् गंभीरता एक तरफ| चोरी-डकैती-जमीन-जायदाद में खापों ने बेशक 2-4 ऊपर नीचे करके फैसले करवा दिए हों परन्तु "बेटियों के सम्मान" पर सिवाए न्याय के कभी कोई फैसला करके नहीं उठी| और आज 30 मई 2023 को इसी कल्चर-किनशिप से आने वाली पहलवान बेटियां, किस तरह से अमेरिका के महान बॉक्सर मोहम्मद अली (कैसियस क्ले) की भांति मेडल्स नदी में बहाने तक की नौबत तक आ पहुंची; यही वह नाजुक वक्त है जब हमने अगर हमारी पुरख किनशिप की वर्तमान अवस्था में आई खामियों पर विचार कर इनको दुरुस्त करने हेतु कोई कदम नहीं उठाए तो यह चीजें उस भयावह रूप तक जा सकती हैं कि जिसका रास्ता आगे खापलैंड पर देवदासी प्रथा, सति प्रथा, प्रथमव्या व्रजसला नाबालिगा का शुद्धिकरण के नाम पर गैंगरेप और विधवा आश्रमों की झड़ी लगने के दौर में प्रवेश कर जाएगा| और इन चीजों का खापलैंड पर ऐतिहासिक तौर पर नहीं होना हमारी किनशिप का सबसे बड़ा मानवीय-सभ्य हासिल रहा है| यह हासिल अगली पीढ़ियों तक ज्यों-का-त्यों पहुंचे उसके लिए अब "हद होने तक" वाला वक्त आ पहुंचा है, व् इसमें मैं आज घोषित तौर पर खुद को अर्पित करता हूँ|
घोषणा: मैं "दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों (जो गाम गेल गाम के प्रथम पुरखों द्वारा गाम की स्थापना के वक्त गाम की फिरनी में किसी मूर्ती रहित, प्रतिनिधि रहित, 100% औरत की धोक-ज्योत की अगुवाई में स्थापित किया होता है) व् सर्वखाप पुरख यौधेयों/यौधेयाओं को साक्षी-हाजिर-नाजिर मान कर मेरी पुरख किनशिप "खाप-खेड़ा-खेत" के संवर्धन हेतु निम्नलिखित आजीवन व्रत धारता हूँ:
1) मैं, खाप-खेड़ा-खेत किनशिप के शुद्धतम रूप को अनवरत-आजीवन सिंचित-स्थापित-प्रोत्साहित-प्रचारित रखूंगा|
2) मैं, कभी भी मेरी किनशिप से बाहर-भीतर ऐसे व्यक्ति/समूह को कोई दान-दप्पा नहीं दूंगा जो उस दान से मेरी ही जड़ें खोदने के कार्यों के लिए जाना गया है या ऐसा होने का मुझे लेशमात्र भी अंदेशा है या उस दान से उसको मुझपर ही 35 बनाम 1 तरह के षड्यंत्र रचने का संबल अर्जित होता हो या मुझसे दान लेने हेतु मुझे कोई भय-लालच-द्वेष-क्लेश-कर्तव्य आदि दिखाता-करता है| मैं, मेरे निहित अथवा अर्जित दान-दप्पे लायक पैसे को मेरी किनशिप के कार्यों में मेरी देखरेख में लगाने-लगवाने की व्यक्तिगत जिम्मेदारी वहन करता हूँ|
3) मैं, चार प्रकार की राजनीतियों यानि धर्म-राजनीति, सत्ता राजनीति, सामाजिक राजनीति व् आर्थिक राजनीति में इनके भीतरी-बाहरी सब पहलुओं पर मेरी किनशिप की सम्मानजनक भागीदारी व् उपस्तिथि जहाँ नहीं होगी, वहां सहमति-सहयोग नहीं दूंगा|
4) जिस प्रकार अच्छी फसल हेतु आवारा जानवरों से उसकी बाड़ जरूरी होती है, ठीक उसी प्रकार अपने असल (पुरख दर्शनशास्त्र व् मनोविज्ञान) व् नश्ल की भी दो पैरों रुपी आवारा जानवर यानि किसी भी जनसमूह में पाए जाने वाले फंडी-फलहरी से बाड़ करनी होती है| बिना किसी से राग-द्वेष-क्लेश पाले दूसरों से इसका आदर-सम्मान अथवा स्पष्टता स्थापित करते/करवाते हुए मैं इसकी सुनिश्चितता हेतु अनवरत कार्य करूँगा, व् इसको आगे बढ़ाऊंगा|
5) मैं किसी भी प्रकार के जातिवाद, वर्णवाद, धर्मवाद, नश्लवाद की अंधता से खुद को दूर रखूंगा व् इन सबसे ऊपर जरूरी मानवता को रखूँगा; परन्तु साथ ही मानवता के नाम पर अपनी किनशिप का गला घोंटने-घुंटवाने की अवस्था आने से पहले ही उसको नहीं आने देने के सर्व इंतजाम एक दूरदर्शी की भांति करके रखूँगा| मैं, नश्लीय गौरव व् आध्यात्मिक गौरव को व्यक्तिगत रखते हुए कभी भी इनको नफरत-हेय-तुलना आदि की वजह नहीं बनने दूंगा|
6) मैं मेरी किनशिप से एंटी अथवा अनजान व्यक्ति/समूह से प्रोफेशनल रिश्ते तक सिमित रहूँगा; दूसरों के कल्चर-किनशिप का हर वैधानिक मान-सम्मान करते हुए, मेरी किनशिप-कल्चर को अपने चित में हमेशा सर्वोपरि रखूंगा| अनजान या एंटी लोगों के बीच चित में सर्वोपरि व् अपनी किनशिप के लोगों के बीच अपनी किनशिप का अनवरत प्रचारक रहूँगा|
7) मैं मेरी किनशिप के बुद्धिवान-विवेकवान व् बुद्धिविहीन-विवेकहीन दोनों का बराबरी से सम्मान करूँगा व् दोनों को मानवीय पहलुओं समेत मेरी किनशिप में परिभाषित हर अपनापन बराबरी से दूंगा| व् मैं इस बात की क्रियान्विनयता मेरी किनशिप के ग्रामीण-शहरी-NRI हर स्तर पर बराबरी से करूंगा, उनकी अमीरी-गरीबी-हैसियत आदि पर समरूप रहते हुए करूँगा| व् यह सिद्धांत, इसी बराबरी से हर उस व्यक्ति/समूह के प्रति रखूंगा जो मेरी किनशिप से बाहर का भी होगा परन्तु मेरी किनशिप का आदर करने वाला व् उसको बराबर की अहमियत देने वाला होगा|
मुझे ऊपरलिखित बिंदुओं पर अपनी किनशिप की बाड़ करने/रखने तक सिमित रहना है व् इसके क्रियान्वयन हेतु मैं किसी भी प्रकार के राग-द्वेष-क्लेश-हेय आदि से दूर रहूँगा|
फ़िलहाल यही अनौपचारिक घोषणाएं करके, इन व्रतों को खुद पर धारण कर रहा हूँ| हो सकता है जिस दिन इनकी औपचारिक घोषणा करूँगा उस दिन इनमें और भी बिंदु शामिल हों|
उद्घोषणा: इस ऊपर लिखित व्रत-धारण पर नकारात्मक-सकारात्मक दोनों तरह की बातें सुनने को मिल सकती हैं| पॉजिटिव क्रिटिसिज्म का स्वागत रहेगा; नेगेटिव क्रिटिसिज्म करने वाले डेड-स्याणे यह सोच के तो क्रिटिसिज्म करें नहीं कि वह किसी के भी दिमाग की दही कर सकते हैं| ऐसे "दिमाग की दही करने वालों के दिमाग का यहाँ तसल्लीबख्श गोबर किया जाता है"| दही तो कोई खा ले, उसकी लस्सी बना ले, घी बना ले परन्तु गोबर का क्या करोगे जो ना खाने का ना बगाने का| और जिसको हो शौक अपने दिमाग का गोबर करवाने का, वह कर ले इस पोस्ट का नेगेटिव क्रिटिसिज्म; जो ना ऐसा महसूस हो तो कि कित भींत म्ह टक्कर मारुं सूं|
जय यौधेय! - फूल मलिक

Sunday, 14 May 2023

कर्नाटक में जैसे लंगायत समुदाय है वैसे ही हरयाणा में आर्यसमाज समुदाय है!

 कर्नाटक में लिंगायत ठीक वैसे ही मठ-स्कूल चलाते हैं जैसे हरयाणा में आर्य समाजियों द्वारा मठ, गुरुकुल, डीएवी सीरीज चलित हैं| 


कर्नाटक का लिंगायत समुदाय 1990 के बाद वापिस कांग्रेस को लौटा है; वजह जानते हैं? 


वजह है वहां पिछले 5 साल में, बीजेपी ने सभी लिंगायत मठ-स्कूल-संस्थाओं में एक तो बीजेपी-आरएसएस के कारिंदे घुसा दिए थे व् दूसरा इन संस्थाओं को कोई भी सरकारी फंड देने से पहले उस फंड से 30% राशि की कटौती की जाती थी| इससे लिंगायत ख़ासा नाराज हुए बीजेपी से व् नतीजा आपके सामने है| 


अब हरयाणा में भी यही हुआ है, पिछले ही महीनों में यहाँ भी आर्य-समाज के पुराने कटटर वोटर्स के वोट काट के संघी समर्थित लोग आर्य समाज की तमाम संस्थाओं में घुसा दिए हैं| पिछले कई सालों से इन संस्थाओं के चुनाव नहीं होने दिए हैं व् एडमिनिस्ट्रेशन के जरिये इनके तमाम संसाधनों की लूट मचा रखी है| बाकी तो जो वजहें हैं सो हैं ही जैसे कि किसान-मजदूरों-व्यापारियों की; परन्तु आशा है कि स्थानीय लोगों के दान-जमीन से बने यह मठ-शिक्षण संस्थानों पर कब्जा व् इनसे धन उगाही की संघियों की इस गुंडई पर अब हरयाणा भी लगाम लगाएगा| 


जय यौधेय! - फूल मलिक  

Saturday, 13 May 2023

खाप-खेड़ा-खेत एक जातिविहीन व् वर्णविहीन ही नहीं धर्मविहीन सिस्टम है!

मैं यह बात अक्सर कहता आया हूँ; आज इसका लाइव-प्रमाण भी देख लीजिये| कल बवाना में जंतर-मंतर पर धरना दे रहे पहलवानों के लिए खाप पंचायत हुई थी जिसमें कि चौधरी मोहम्मद आरिफ, गाम हौजराणी दिल्ली प्रधान लाडो-सराय खाप तपा ने भाग लिया; देखें सलंगित वीडियो में उनका इंटरव्यू| ऐसे ही गुड़गाम्मा-मेवात में भी कई मुस्लिम खाप व् तपें हैं| 


और यही कांसेप्ट दादा नगर खेड़ों/भैयों/भूमियों का है; जिनको सिर्फ एक जाति ही नहीं अपितु तमाम वर्णों समेत गाम में बसने वाले तमाम धर्म के लोग एकमुश्त एकराय से धोकते आए हैं| 


विशेष: फंडी, इस जाति-वर्ण-धर्म रहित सिस्टम पर अपना कब्जा जमाने को इसको विभिन्न पोथियों से जोड़ते पाए जाते हैं| इनका काम ही यह है| अब ताजा उदाहरण देख लो, आर्य-समाज संस्थाओं पर कब्जा करने का| कुछ हफ्ते पहले ही आर्य-समाज की पुराने वोटर्स को लिस्ट से हटा के; फंडियों ने अपने भर दिए हैं व् कब्ज़ा करके बैठ गए हैं| उम्मीद है कि जल्द ही यह सरकार बदलेगी व् पुराने व् कटटर आर्यसमाजी इन फंडियों को आर्य समाज के गुरुकुलों-मठों-गौशालाओं से निकाल बाहर करेंगे| 


जय यौधेय! - फूल मलिक 


वीडियो सोर्स: https://www.youtube.com/watch?v=_mqkcg8b5hY

हरफूल जाट जुलानी वाले का एक किस्सा, जो सामाजिक भाई- चारे की अदभुत मिसाल है:

 दो तीन दिन पहले मैं गांव गया तो, ताऊ जी ने, हरफूल जाट जुलानी वाले का एक किस्सा सुनाया, जो सामाजिक भाई- चारे की अदभुत मिसाल है।

हुआ यूं की, हरफूल जाट एक अहीरों के गांव से हो कर गुजर रहे थे की, उन्होंने देखा की गांव के बहुत सारे लड़कों के सिर पर पट्टी बंधी हुई थी।
हरफूल ने घोड़ी रोक कर, गली में जा रही एक बुजुर्ग महिला से पूछा की, क्या मामला है। बुजुर्ग महिला ने बताया की, गांव के खेतों में एक डेरा रुका हुआ है, जिसमें बहुत सारी महिला और पुरुषों के साथ-साथ पशु भी है।
ये लोग कई दिन से खेत उजाड़ रहे हैं। मानते नहीं है, इसलिए लड़ाई हो गई।
गांव के सभी लोग इकट्ठे हो कर गए, तो उन पर कुत्ते छोड़ दिए और लाठियां बरसाई। ऐसा वो कई बार चुके है, और कोई रास्ता दिखाई नहीं देता।
हरफूल बोले: मेरे कहने से एक बार फिर कोशिश करो, अबकी बार मैं तुम्हारा साथ दूंगा।
पंचायत बुला कर, पूरी ताकत के साथ दोबारा जाने का फैंसला किया। हरफूल अपनी बंदूक को लेकर साथ- साथ हो लिए।
जैसे ही डेरा वालों ने उन यादव लोगों पर हमला किया, तो हरफूल ने एक दम से आगे बढ़ कर, उनके कुत्तों को मार दिया, और डेरा प्रमुख की भी हत्या कर दी।
महिला ने हरफूल को धर्म का बेटा बना लिया।
कहते हैं की, हरफूल पर जब पहला केस दर्ज हुआ तो, उसकी सगाई हो चुकी थी। उसके बाद हरफूल अपनी होने वाली पत्नी को उस अहीर महिला के घर लाया। वहां उससे गुपचुप शादी की, और हरफूल, अपनी पत्नी के साथ उस महिला के पास ही रहने लगे। अहीर बाहुल्य गांव वालों ने इस बात को हमेशा के लिए राज ही रखा।
Dr Mahipal Gill
Jat कॉलेज रोहतक