At least, the last Maharaja of Bikaner accepted in his book 'The Relations of the House of Bikaner With the Central Powers (1465-1949)' that prior to his Rathore ancestors (in the 1480s), two-thirds of northern Rajasthan were ruled by Jat rajas or nobles. The book in the picture is still considered the best book on the history of Rajasthan, written by Colonel James Tod between 1820 and 1832, and it mentions seven major Jat noble families. - By Shivatva Beniwal
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Wednesday, 20 December 2023
Monday, 18 December 2023
जाटों को सिख गुरुओं ने एक लड़ाकू जाति बनाया?
जाटों को सिख गुरुओं ने एक लड़ाकू जाति बनाया?
जाटों को सबसे पहले शस्त्र रखने की अनुमति सिख गुरुओं ने दी?
जाटों को सबसे पहले शस्त्र रखने की अनुमति सिख गुरुओं ने दी। उससे पहले जाटों को शस्त्र रखने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि जाट शूद्र थे।
उत्तर: ब्रिटिश काल तक खत्री को भी एक नीच और वर्णसंकर जाति माना गया। तो खत्री गुरुओं को यह किसने अधिकार दिया कि वो जाटों को शस्त्र रखने की अनुमति दे? वैसे बिना शस्त्र जाट महमूद ग़ज़नवी, तुर्क तैमूर, आदि से लड़े कैसे? सच्चाई तो यह हैं कि स्वयं सिख गुरु मुग़लों से बचने के लिए जाट शस्त्रधारियों की शरण में रहते थे। जाट लोगों के कारण ही सिखी में शस्त्र रखने की परंपरा आई और यह बात W.H. McLeod ने लिखी।
क्या जाट भूमिहीन शूद्र थे?
यह कहना या उछालना-उछलवाना एक फंडी-प्रोपेगंडा है कि "जाट भूमिहीन शूद्र थे, जो खत्रियों और राजपूत ज़मींदारों के खेतों पर दिहाड़ी मज़दूरी करते थे। जाटों को बंदा बहादुर ने ज़मीनें दी"।
उत्तर: आ’यन-ए अकबरी के अनुसार गंगा से झेलम नदी के मध्य जाट सबसे प्रमुख ज़मींदार जाति थी। खत्रियों के पास ज़मीन, नहीं तो पहले थी और ना ही आज हैं। खत्री जाट ज़मींदारों के पटवारी और मुंशी होते थे। सतलुज के आगे राजपूत नाम की कोई जाति ही नहीं थी।
संदर्भ: Khan, Zahoor Ali. “ZAMINDARI CASTE CONFIGURATION IN THE PUNJAB, c.1595 — MAPPING THE DATA IN THE ‘A’IN-I AKBARI.’” Proceedings of the Indian History Congress 58 (1997): 334–41. http://www.jstor.org/stable/44143925.
Saturday, 16 December 2023
एनिमल मूवी का 500 करोड़ की कमाई का कॉकटेल!
कई बार पूछा जाता है कि यह जाट-जट्ट शब्दों का फिल्म व् गानों में इतना ज्यादा इस्तेमाल क्यों होता है; व् अधिकतर इस्तेमाल हिट भी होते हैं? वह भी हर जाति-धर्म में? हिंदी बेल्ट की कोई ही ब्याह शादी होगी जो इन शब्दों वाले गानों के बिना पूरी होती हो? इसकी वजह से कई जातिवाद के कीड़े, उनकी जाति कहीं पीछे तो नहीं छूट गई की फील से कुंठित, इसको ही जातिवाद का नाम दे-दे चिंघाड़ने-बरड़ाने लग जाते हैं|
Monday, 11 December 2023
धारा 370 पर फ़ैसला उम्मीदों के मुताबिक़ ही आया है..लोकतंत्र और क़ानून साथ साथ है..कितना सुकून है.
◆ फ़ैसले में बताया गया है कि जब 370 लागू थी तब भी जम्मू-कश्मीर भारत का अटूट हिस्सा था..या'नि धारा 370 से हिंदुस्तान की एकता और अखंडता को कोई फ़र्क नहीं पड़ता था..ये एक "स्पेशल क़ानून" था जिसके तहत जम्मू-कश्मीर की 'अवाम को कुछ "स्पेशल हक़" दिए गए थे जो अब नहीं है..


Saturday, 9 December 2023
जमुना के जाटों और पंचनद के जाटों की एकता के प्रयास।
कानूनगो के अनुसार सूरजमल के दो मुख्य लक्ष्य थे। पहला, मुसलमान रुहेलों और अब्दाली के बीच मेल-मिलाप को पूरे तौर से रोक देना, जोकि यमुना से रावी नदी तक था। जमुना के जाट पाँच नदियों के जाटों की ओर मानो जातीय प्रवृत्ति के कारण आकर्षित हो रहे थे। एक शक्तिशाली धारा की दो शाखाएँ जो पुरातन काल के धुँधले दिनों में सिंध में विभाजित हो गई थीं। क्योंकि ये दो शाखायें एक ही रक्त की हैं और दोनों का राजनीतिक व धार्मिक स्वार्थ एक ही था इसलिए सूरजमल अपने राज्य के जाटों एवं पंजाब के सिक्ख जाटों का मेल-जोल करना चाहता था।
जाट राजा ठाकुर सुखपाल सिंह तोमर , कुँवर हठी सिंह तोमर
यह घटना 1688 ईस्वी से शुरू होती है जब सौंख गोवर्धन क्षेत्र पर जाट राजा ठाकुर सुखपाल सिंह तोमर का अधिपत्य था। उनके कुँवर हठी सिंह तोमर थे। जब भारत के अन्य सभी राजा मुगलो को अपनी बहिन बेटी दे कर समझौता कर चुके थे। लेकिन जाटों को यह गुलामी मंजूर नही थी आज़ादी की यह ज़िंदगी उन ही अमर शहीद जाट वीरो की सौगात है।
Wednesday, 6 December 2023
कई लोग कहते हैं, 35 बनाम 1 अब खत्म हो चुका; लेकिन यह तो 2023 में भी उछाला जा रहा है!
उछाला जा रहा है, बाकी ऐसा कोई हव्वा नहीं है धरातल पर| उछाला जा रहा है ताकि 1 वाले को अकेला रह जाने का मानसिक डरावा दे कर सकपकाए रखा जा सके व् इसी मानसिक भय में उसको ज्यादा-से-ज्यादा अपना पिछलग्गू बना लिया जाए| दिवंगत गोगामेड़ी की विधवा के मुख से 35 को फिर से उछलवाना; फंडियों की इसी गहरी manipulation का हिस्सा है| यह सब एक reverse psychology के तहत 1 को submissive mode में लाने हेतु किया जा रहा है|
सिख धर्म में 60-65% जाट, धन्नावंशी -वैरागी -स्वामी में 95% जाट, विश्नोई सम्प्रदाय में 90-95% जाट, आर्यसमाज में 75-80% जाट, कबीरपंथी 90-95% जाट , जसनाथ सम्प्रदाय में 100% जाट है (आंकड़े अर्जुन अहलावत भाई की पोस्ट के हैं), और भी कई सम्प्रदाय और ग्रुप है जिनमें जाट बहुलता में है, इनमें से कई संप्रदायों ने अपनी अलग आईडेंटिटी बना ली, कुछ आज भी अपने रूट्स से जुड़े है|
परन्तु इनमें से कोई अपराध करता है तो उसको माना जाट ही जाता है; जैसे रोहित गोदारा आज के दिन स्वामी है, परन्तु क्योंकि वह जाट से स्वामी बना है, फिर भी उसकी आइडेंटिटी जाट ही आई निकल के| यह वीडियो इस बात का सबूत है|
तो फिर क्यों नहीं यह सारे अपने-अपने आध्यात्मिक धड़े में रहते हुए, "जाट" शब्द की अम्ब्रेला बॉडी बना लेते मिल के? इससे होगा यह कि इनमें बाकी जो जातियां जुडी हुई हैं जो कि अधिकतर किसान-कामगार वर्गों से ही आती हैं, वह भी आप से जुड़ जाएंगी अथवा जुड़ा हुआ महसूस करेंगी| मैं तो अक्सर हर बाबा-संत जो भी मेरे से सम्पर्क में है, उसको यही कहता हूँ कि जब तक आप लोग इन डेरों-मतों की एक साझी बॉडी नहीं बनाओगे; आपकी मार्किट फंडी ऐसे ही खाता रहेगा|
कई लोग कहते हैं, खासकर पोलिटिकल पार्टीज वाले की 35 बनाम 1 अब खत्म हो चुका; जबकि मेरे जैसे बार-बार कहते हैं कि यह खत्म नहीं हुआ, बल्कि बढ़ाया जा रहा है| और इसका हरयाणा 2016 से निकल 2023 में सीधा जयपुर में जा के किसी की मरगत पे बुलवाया जाना, ना सिर्फ यह कहता है कि यह जिन्दा है अपितु फंडी समझता है कि इसमें अभी भी दम है| तो जब तक इसको प्रत्यक्ष-परोक्ष-गुप्त रूप से अड्रेस करते हुए पॉलिटिकल पार्टीज अपना एजेंडा नहीं बनाएंगी, किसान राजनीति वालों, को तो खासतौर से आगे की ठाह नहीं मिलनी|
इस एक को भी अपनी इस ब्रांड-वैल्यू भी कीमत व् अहमियत समझनी होगी, क्या चीज है यह जो फंडी को दिन-रात सोने नहीं देता| इतनी दुश्मनी-नफरत तो फंडी को मुस्लिम से नहीं, जितनी इस 1 से दिखती है? मतलब किसी के यहाँ मरगत हो रखी है व् वहां बजाए बाकी सुख-दुःख कहने-सुनने के, 35 कहलवाया जा रहा है, दिवंगत की विधवा से? ऐसा तो तभी होता है जब किसी की किनशिप-कल्चर-फिलोसॉफी-दर्शनशास्त्र दूसरे से बिल्कुल भिन्न हो व् इस बात का अहसास फंडी को तो है परन्तु उसको ही नहीं है जिसकी यह है|
यह 35 बनाम 1 में ही इस 1 की ताकत छुपी है; बशर्ते यह 1 इस शगूफे के मानसिक व् भावुक दबाव में ना आते हुए; इसको अपने पक्ष में प्रयोग करना शुरू कर दे| और वह हमारे ग्रुप ने करके देखा है, छोटे-छोटे एक्सपेरिमेंट्स में; जहाँ किया वहीँ 100% सफलता मिली हमें|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Thursday, 30 November 2023
राष्ट्रपति राजा महेंद्र प्रताप सिंह ठेनुआ
(Dec 1, 1886 - April 29, 1979)
सन् 1915 में गांधी जी भारत आए थे। जिस दौरान में गांधी जी भारत आए थे, उस दौरान सन् 1915 में राजा महेंद्र प्रताप सिंह भारत से बाहर ब्रिटिश हुकूमत को उखाड़ने के लिए लॉबीइंग कर रहे थे और इसी दौरान 1 दिसम्बर 1915 , अपने जन्मदिन वाले दिन उन्होंने अफगानिस्तान में पहली निर्वासित सरकार का गठन किया, और राजा साहब को उस सरकार का राष्ट्रपति बनाया गया, मौलवी बरकतुल्लाह को राजा का प्रधानमंत्री घोषित किया गया और अबैदुल्लाह सिंधी को गृहमंत्री। राजा साहब की इस काबुल सरकार ने बाकायदा ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जेहाद का नारा दिया। लगभग हर देश में राजा की सरकार ने अपने राजदूत नियुक्त कर दिए, पर यह सरकार सिर्फ़ प्रतीकात्मक बन कर रह गई।
हालाँकि, गांधी जी कोंग्रेसी थे पर राजा साहब और उनके बीच बहुत नज़दीकियाँ थी। राजा साहब 32 साल के लम्बे अंतराल के बाद जब भारत की धरती पर उतरे तो उनको लेने सरदार पटेल की बेटी मनिबेन गई थी, जिसके साथ राजा साहब सीधे गांधी जी से मिलने वर्धा पहुँचे।
राजा महेंद्र प्रताप सिंह ने क्रांति की अलख के लिए 'निर्बल सेवक' नाम से देहरादून से समाचार पत्र शुरू किया। इस पत्र में जर्मनी के पक्ष में लिखने के कारण ब्रिटिश हुकूमत ने राजा साहब पर 500 रुपए जुर्माना लगा दिया, जो राजा साहब ने अदा तो कर दिया पर उसके बाद राजा साहब के मन में देश आज़ादी की इच्छा प्रबलतम होती गई। राजा साहब ने देश छोड़ने की सोच ली। अब पास्पोर्ट की दिक़्क़त, हुकूमत ने इन्हें पास्पोर्ट जारी नहीं किया। थोमस कुक एंड संस के मालिक बिना पास्पोर्ट के उनको अपनी दूसरी कम्पनी के पी. एण्ड ओ स्टीमर द्वारा इंगलैण्ड ले गए। राजा साहब ने हंगरी, तिब्बत, चीन, रूस, टर्की कई मुल्कों का भ्रमण किया। सन् 1929 में जापान में 'वर्ल्ड फ़ेडरेशन' नाम से पत्रिका निकाली। जब राजा साहब जर्मनी पहुँचे तो वहाँ के शासक ने उन्हें 'Order of the Red Eagle' से नवाज़ा। राजा साहब ने कुछ दिन पोलैंड की सीमा पर सेना व युद्धाभ्यास की जानकारी के लिए एक मिलिटेरी कैम्प गए। बताते है कि उसके बाद राजा साहब ने आईएनए की स्थापना की थी। हालांकि, इस फौज को जमीनी तौर पर दूसरे विश्व युद्ध के समय सिंगापुर में जनरल मोहन सिंह घुम्मन ने खड़ा किया था, जिसकी कमान बाद में नेता जी सुभाष चंद्र बोस को सौप दी थी। सिंगापुर की इस लड़ाई में मेरे दादा शहीद चौधरी बलदेव सिंह सांगवान और उनके साथ मेरे गांव से सात अन्य लोग भी थे, जोकि जाट रेजिमेंट में थे, वो भी जनरल मोहन सिंह जी घुम्मन के आह्वान पर आईएनए से जुड़े थे। इन कुल आठ में से चार वही जंग में शहीद हो गए थे, जिनकी लाशें भी नहीं आई, और चार कुशल घर वापिस लौटे थे।
राजा साहब का विवाह सन् 1902 में जींद रियासत की राजकुमारी बलवीर कौर से हुआ था। जींद रियासत सिक्ख जाट रियासत थी। उनके सन् 1909 में पुत्री हुई, जिसका नाम भक्ति रखा गया और सन् 1913 में पुत्र हुआ, जिसका नाम प्रेम रखा गया।
शिक्षा के क्षेत्र में राजा साहब का बहुत बड़ा योगदान रहा। सन् 1909 में वृन्दावन में राजा साहब ने प्रेम महाविद्यालय की स्थापना की, जो तकनीकी शिक्षा के लिए भारत में प्रथम केन्द्र था। वृन्दावन में ही एक विशाल फलवाले बाग़ को जो 80 एकड़ में था, सन् 1911 में आर्य प्रतिनिधि सभा उत्तर प्रदेश को दान में दे दिया। जिसमें आर्य समाज गुरुकुल है और राष्ट्रीय विश्वविद्यालय भी है। इसके ईलावा राजा साहब ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू)को भी भूमि दान में दी थी।
राजा साहब ने 'प्रेम धर्म' नाम से एक अलग धर्म की शुरुआत भी की थी। वे जाति, वर्ग, रंग, देश आदि के द्वारा मानवता को विभक्त करना घोर अन्याय, पाप और अत्याचार मानते थे। ब्राह्मण-भंगी को भेद बुद्धि से देखने के पक्ष में नहीं थे। इस धर्म के अनुयायियों का एक ही उद्देश्य था कि प्रेम से रहना, प्रेम बांटना और प्रेम भाईचारे का संदेश देना। अकबर बादशाह के दीन-ए-इलाही की तरह प्रेम धर्म भी उसको चलाने वाले के साथ ही गुमनामी में खो गया।
राजा साहब का नाम नॉबेल पुरस्कार के लिए नॉमिनेट किया गया था। पर ऐसा इत्तफ़ाक़ हुआ कि उस साल किन्हीं कारणों से यह पुरस्कार किसी को नहीं दिया गया और पुरस्कार की राशि किसी स्पेशल फ़ंड में दे दी गई।
राजा साहब संसद सदस्य भी रहे। सन् 1957 के लोकसभा चुनावों में राजा साहब ने भारतीय जन संघ पार्टी के उम्मीदवार अटल बिहारी वाजपेयी जी की जमानत तक जब्त करा दी थी। बाद में यही अटल बिहारी वाजपई जी भारत देश के प्रधानमंत्री बने। राजा साहब अखिल भारतीय जाट महासभा के अध्यक्ष भी रहे।
राजा साहब का जीवन बड़ा ही संघर्ष वाला रहा पर तारीख़ व सरकार ने इनको वो सम्मान नहीं दिया जिसके वे असल हक़दार थे।
- राकेश सिंह सांगवान
Wednesday, 29 November 2023
भरतपुर आले ज़ाट, कैप्टन पीटमेन क़ो लड़ाई में मारते हुये, सन 1825-26 ऐंग्लो-जाट वॉर पेंटिंग।
भरतपुर आले ज़ाट, कैप्टन पीटमेन क़ो लड़ाई में मारते हुये, सन 1825-26 ऐंग्लो-जाट वॉर पेंटिंग।
Tuesday, 28 November 2023
दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम!
दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम का जन्म 28 नवम्बर 1861 को जाट परिवार के लाम्बा गोत्र में अलखपुरा गाम बवानीखेड़ा तहसील जिला भिवानी में हुआ। इनके पिता का नाम चौधरी सालिगराम था जोकि एक जमींदार थे।
सेठ छाजूराम का विवाह सांगवान खाप के हरिया डोहका गाम जिला भिवानी में कड़वासरा खंडन की दाखांदेवी के साथ हुआ था| लेकिन विवाह के कुछ समय बाद ही इनकी पत्नी का देहांत हैजे की बीमारी के कारण हो गया। दूसरा विवाह सन् 1890 में भिवानी जिले के ही बिलावल गांव में रांगी गोत्र की दाखांदेवी नाम की ही लड़की से हुआ| लेकिन बाद में उनका नाम बदलकर लक्ष्मीदेवी रख दिया गया| इन्होंने आठ संतानो को जन्म दिया, जिनमें पांच पुत्र व तीन पुत्रियां हुईं, लेकिन चार संतानें बाल्यावस्था में ही ईश्वर को प्यारी हो गई| सबसे बड़े सज्जन कुमार थे, जिनका युवावस्था में ही स्वर्गवास हो गया। उसके बाद दो लडक़े महेंद्र कुमार व प्रद्युमन कुमार थे। उनकी बड़ी बेटी सावित्री देवी मेरठ निवासी डॉ. नौनिहाल से ब्याही गई थी।
चौधरी छाजूराम ने अपने प्रारंभिक शिक्षा बवानीखेड़ा के स्कूल से 1877 में प्राप्त की। मिडल शिक्षा भिवानी से 1880 में पास करने के बाद उन्होंने रेवाड़ी से मैट्रिक(दसवीं) की परीक्षा 1882 पास की। मेधावी छात्र होने के कारण इनको स्कूल में छात्रवृतियां मिलती रहीं लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण आगे की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाए। इनकी संस्कृत,अंग्रेजी,हिंदी और उर्दू भाषाओं पर बहुत अच्छी पकड़ थी।उस समय भिवानी में एक बंगाली इंजीनियर एसएन रॉय साहब रहते थे, जिन्होंने अपने बच्चों की ट्यूशन पढ़ाने के लिए चौधरी छाजूराम को एक रूपया प्रति माह वेतन के हिसाब से रख लिया। जब सन् 1883 में ये बंगाली इंजीनियर अपने घर कलकत्ता चले गए तो बाद में चौधरी छाजूराम को भी कलकत्ता बुला लिया। जिस पर इन्होंने इधर-उधर से कलकत्ता के लिए किराए का जुगाड़ किया तथा इंजीनियर साहब के घर पहुंच गए। वहां भी उसी प्रकार से उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने लगे। साथ-साथ कलकत्ता में मारवाड़ी सेठों के पास आना-जाना शुरू हो गया, जिन्हें अंग्रेजी भाषा का बहुत कम ज्ञान था। लेकिन चौधरी छाजूराम ने उनकी व्यापार संबंधी अंग्रेजी चिट्ठियों के आदान-प्रदान में सहायता शुरू की, जिस पर मारवाड़ी सेठों ने इसके लिए मेहनताना देना शुरू कर दिया। थोड़े से दिनों में चौधरी छाजूराम मारवाड़ी समाज में एक गुणी मुंशी तथा कुशल मास्टर के नाम से प्रसिद्ध हो गए।इन्हें जूट-किंग भी कहा जाता था।चौधरी छाजूराम लाम्बा कलकत्ता के 24 बड़ी विदेशी कम्पनियों के शेयर होल्डर थे। इनसे चौधरी साहब को 16 लाख रुपए प्रति वर्ष लाभ मिलता था।
एक समय में इनकी सम्पति 40 मिलियन को पार कर गयी थी|
इन्होंने 21 कोठी कलकत्ता में (14 अलीपुर, 7 बारा बाजार) में बनवायी| इन्होंने एक महलनुमा कोठी अलखपुरा में व एक शेखपुरा (हांसी) में बनवायी| चौधरी साहब ने हरियाणा के पांच गाँव भी खरीदे तथा भिवानी, हिसार और बवानीखेड़ा के शेखपुरा, अलीपुरा, अलखपुरा, कुम्हारों की ढाणी, कागसर, जामणी, खांडाखेड़ी व मोठ आदि गाँवों 1600 बीघा ज़मीन भी खरीदी| इनके पंजाब के खन्ना में रुई तथा मुगफली के तेल निकलवाने के कारखाने भी थे| उस जमाने में रोल्स-रॉयस कार केवल कुछ राजाओं के पास होती थी, लेकिन यह कार इनके बड़े बेटे सज्जन कुमार के पास भी थी|
कलकत्ता में रविन्द्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन विश्वविद्यालय से लाहौर के डीएवी कॉलेज तक उस समय ऐसी कोई संस्था नहीं थी, जिसमें सेठ छाजूराम ने दान न दिया हो।
हरिद्वार में गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना में दिल खोल कर दान दिया ।1909 में भिवानी में अनाथालय खोलने में दिल खोलकर दान दिया। 1925 में कालिका रंजन कानूनगो द्वारा जाटों का इतिहास प्रकाशित करने के खर्च का एक बड़ा हिस्सा चौधरी छाजूराम जियों ने वहन किया।
सेठ चौधरी छोजूराम ने 1928 में पांच लाख रूपए की लागत से अपनी स्वर्गीय बेटी कमला की यादगार में लेडी हैली हॉस्पीटल बनवाया, जिस जगह पर आज भिवानी में चौधरी बंसीलाल सामान्य अस्पताल खड़ा है।
चौधरी साहब ने रोहतक में जाट एंग्लो वैदिक हाई स्कूल की स्थापना में 61000 का योगदान दिया और मंच से घोषणा की जो बच्चा मैट्रिक में प्रथम रहेगा उसे एक सोने का मेडल ओर 12 रुपए मासिक वजीफा दिया जाएगा
यह सम्मान चौधरी सूरजमल हिसार ने प्राप्त किया था
सन् 1918 में हिसार में सी ए वी स्कूल की स्थापना में 61000 हजार दान दिया, हिसार में जाट एंग्लो वैदिक हाई स्कूल की स्थापना में 500000 rs दान दिया,
ऐसे न जाने कितने समाजिक कार्यो में चौधरी साहब ने लाखों
दान दिए।
गांधी जी के हर आंदोलन में सबसे बड़ा दान चौधरी छाजूराम लाम्बा जी देते थे।
सुभाष चन्द्र बोस को भी उनके द्वारा चलाए गए आजादी के हर आंदोलनों में सबसे अधिक दान देते थे।।
भरतपुर के महाराजा सर कृष्ण सिंह को 1926 में 2,50 लाख की भेंट दी ।
17 दिसंबर 1928 को सांडर्स की हत्या के बाद सरदार भगतसिंह और भाभी दुर्गा सेठ छाजूराम की कोठी कलकत्ता में लगभग ढ़ाई महीने तक रूके थे।
क्रांतिकारी भगतसिंह को चौधरी साहब की धर्मपत्नी लक्ष्मी स्वयं बना कर भोजन देती थी।
चौधरी साहब की मुलाकात गाजियाबाद स्टेशन पर दीनबंधु चौधरी छोटूराम से हुई।इस मुलाकात में ही चौधरी साहब ने दीनबंधु छोटु राम का पढ़ाई का सारा खर्च उठाने की हा की
छोटूराम ने चौधरी छाजूराम को धर्म का पिता मान लिया। इन्होंने रोहतक में चौ. छोटूराम के लिए नीली कोठी का निर्माण भी करवाया। छोटूराम दीनबंधु नहीं होते और यदि दीनबंधु नहीं होते तो आज किसानों के पास जमीन भी नहीं होती। चौधरी छाजूराम नही होते तो भगतसिंह लोगो मे देशभक्ति की आग न लगा पाते
चौधरी छाजूराम लाम्बा न होते तो सुभाष चन्द्र बोस आजाद हिंद फौज को सुचारू रूप से नहीं चला पाते
चौधरी छाजूराम लाम्बा न होते तो महात्मा गांधी अंग्रेजो के खिलाफ जनमानस की आवाज न उठा पाते।
चौधरी छाजूराम के बड़े पुत्र सज्जन कुमार बहुत ही होनहार थे| वह चौधरी साहब का व्यापार संभालने में भी माहिर थे, लेकिन 27 सितंबर 1937 को जब उनकी अकस्मात मौत हुई तो इस हादसे ने चौधरी साहब को अंदर से तोड़ दिया| और फिर 7 अप्रैल 1943 को चौधरी साहब लंबी बीमारी के कारण दुनिया को छोड़ के चले गए।आज चौधरी साहब की जयंती है।
पोस्ट को लिखने वाला - सागर खोखर
अपनी युवा पीढ़ी को पुरखो से अवगत कराएं। आज समाज को सेठ छाजूराम लाम्बा जी जैसे दानवीरों की जरूरत है
भामाशाहों के भामाशाह दानवीर सेठ चौधरी छाजूराम लांबा!
टाटा-बिड़ला-छाजूराम - एक वक्त वह था, जब यही तीन देश के सबसे धनाढ्य व्यापारी हुए! आज उनके जन्मदिवस (28 नवंबर 1861) पर इनके जीवन को दर्शाती इस कविता के माध्यम से दादा को नमन:
चौधरी छोटूराम के धर्म पिता तुम, उनके फ़रिश्ता-ए-रोशनाई थे,
भारत के धनाढ्यों की त्रिमूर्ति में, सबसे रौबदार ब्यौपारी थे|
भामाशाहों के भामाशाह दानवीर सेठ आप, रसूखदार शाही थे,
जब उदय हो चले अलखपुरा से, जा छाए आसमान-ए-कलकत्ताई थे||
जी. डी. बिड़ला, लाला लाजपतराय रहे किरायेदार आपके, ऐसे रहनुमाई थे,
कलकत्ते के सबसे बड़े शेयरहोल्डर आप, सब साहूकारों की अगुवाई थे|
सरदार भगत सिंह को मिली पनाह आपके यहाँ, वो खुदा-ए-रहबराई थे,
नेताजी सुभाष को दे आर्थिक सहायता, जर्मनी की राह पहुंचाई थे||
दानवीरता की टंकार हुई ऐसी, कई भामाशाह अकेले में समाईं थे,
बाढ़-अकाल-बीमारी-लाचारी-गरीबी में, दिए जनता बीच दिखाई थे|
लाहौर से कलकत्ता तक, स्कूल-कॉलेजों की दिए लाईन लगाई थे,
कौमी-इतिहास लिखवाया कानूनगो से, गजब आशिक-ए-कौमाई थे||
तेरे जूनून-ए-इंसानी-भलाई का, यह फुल्ले भगत बारम्बार कायल हुआ,
वो जज्बा हमें भी देता जाइए, जो धार संकट धरती-माँ का दूर किया!
अपना चून, अपना पुन के धोतक, आपने पूरा आलम सहार दिया!
धन कमाओ और अपनी निगरानी में सेवा उठाओ, संदेश खूब बाँट दिया!
जय यौधेय! - फूल मलिक!