गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- पवन कुमार बंसल l गोहाना की मशहूर लाला मतुराम की जलेबी - मोदी -रोहतक के हलवाई और गोहाना के जाट l इन सबका आपस में गहरा संबंध है l मोदी ने लाला जी की जलेबियों की तारीफ की l अब चर्चा गोहाना के जाट समुदाय की l लाला मातुराम ने गोहाना से पहले अपनी रेहड़ी रोहतक रेलवे स्टेशन के पास लगाई थी l लोगो को चस्का लगा लेकिन रोहतक के पुराने हलवाई खफा हो गए l लाला जी को धमकी दे दी l लाला जी परेशान लेकिन इस बात का पता गोहाना के जाट समुदाय के लोगों को पता चला l उन्होंने लाला जी को गोहाना में आने को कहा और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ली l अब भी यदि जाट लाला जी के बचाव में आ जाए तो किसी बदमाश की हिम्मत नहीं कि लाला जी को बुरी नजर से देख ले l वैसे पुलिस तो अपना काम कर ही रही है l लाला जी की जलेबी बारे तो सब जानते है लेकिन रिटायर्ड सेशंस जज जागलान साहिब के मुताबिक लाला जी के मोटी बूंदी के लडू भी काफी स्वादिष्ट है l लाला जी के बच्चे ज्यादा पढ़े लिखे नहीं वरना बीकानेर स्वीट्स की तरह पेटेंट करवा लेते तो आज राजा होते l वैसे अब तो मातूराम के नाम से रोहतक गुरुग्राम और कई जगह दुकान खुल गई है l रोहतक में दिल्ली बाई पास पर अपन ने भी जलेबी का स्वाद चखा तो मजा आ गया l दुकान मालिक ने बताया कि वो कई साल लाला जी की दुकान पर कारीगर रहा और काम सीख गया l
अपने कल्चर के मूल्यांकन का अधिकार दूसरों को मत लेने दो अर्थात अपने आईडिया, अपनी सभ्यता और अपने कल्चर के खसम बनो, जमाई नहीं!
Sunday, 14 July 2024
Thursday, 11 July 2024
बैल बुद्धि - आजकल मोदी के ऊपर यह तंज खूब चला हुआ है!
ताज्जुब की बात है गाय का दूध पी के बड़ा होने वाले बैल पे यह कहावत; कि उसकी बुद्धि मंदबुद्धि का परिचायक मानी गई? जबकि तमाम धर्म के ठेकेदार गाय के दूध से तो तीव्र-विलक्षण बुद्धि का बनना बताते हैं? क्या यह सिर्फ मिथ्या व् कृत्रिम प्रचार मात्र है इनका?
वैसे हमारे पुरखों ने जब-जब भी गाय व् भैंस के दूध व् गुण-अवगुण में तुलना करी तो यह चीजें व्यवहारिक तथ्यों के आधार पर कही:
1 - गोरखनाथ का पिछोका, गौका देखे ना मसोहका: यहाँ इस कहावत में गोरखनाथ के पिछोके से मतलब सांड से है व् गौका यानि गाय व् मसोहका यानि भैंस| और इस कहावत का अर्थ है कि सांड को जब कामेच्छा चढ़ती है तो वह उसके नियंत्रण से इतनी बाहर होती है कि वह गाय व् भैंस में फर्क नहीं कर पाता| व् यह बात हमारे पुरखों की सदियों की इन दोनों पशुओं बारे ऑब्जरवेशन के आधार पर है| पुराने जमाने में व् अब भी जहाँ-कहीं भी पाळी जोहड़ के गोरे पे अपनी गाय-भैसों के इकट्ठे झुण्ड बैठाते हैं तो यह तथ्य प्रैक्टिकल में देखा जाता है| जबकि भैंसा या झोटा, इतना सभ्य व् स्वनियंत्रित तब भी रहता है जब उसको कामेच्छा चढ़ती है; उसको गाय-भैंस का फर्क तब भी रहता है व् वह, वहां भैंस ना भी होगी तो भी गाय पर कभी नहीं जाता| तो इस हिसाब से देखो तो ज्यादा सूझबूझ व् स्वनियंत्रण देने वाला दूध भैंस का कि नहीं? वैसे बता दूँ, आजकल अब वाली हरयाणा सरकार ने गोरख-धंधा शब्द पर कानूनी बैन लगाया हुआ है; जैसे इसके कारिंदों का गोरखधंधा शब्द से सीधा संबंध हो व् यह सुनना इनको अपना अपमान अथवा मजाक लगता हो|
2 - लड़ाई के मामले में भी गाय का दूध, भैंस के दूध की अपेक्षा गर्म बताया गया है: दो सांडों को लड़ते हुए छुड़वाना, दो झोटों को छुड़वाने से ज्यादा दुष्कर है; परन्तु यह भी सच है कि सांड, झोटों की अपेक्षा ज्यादा देर नहीं लड़ सकते; जबकि झोटे पूरी-पूरी रात सर मेळते नहीं थकते| वैसे तो एक झुण्ड में कई सांड शांति से खटा जाते हैं परन्तु एक झुण्ड में दो झोटे निचले नहीं बैठेंगे; वह एक दूसरे से हल्की फुल्की हठखेली से ले तेज-तरार फाइट भी करने लगते हैं| परन्तु सांड जब लड़ाई पर उतरता है तो वह अपना आपा खो के लड़ता है व् जल्दी थकता है| यह तथ्य भी पुरखों की ऑब्जरवेशन से आता है| झोटे कई-कई घंटे भी भिड़ते रहेंगे पर थकेंगे नहीं; जबकि सांड धुआंधार लड़ेंगे और जल्दी थक जाएंगे; जैसे इनको किसी बात की जल्दी हो| झोटों की भिड़ंत की टक्कर की दहल इतनी दूर तक जाती है कि रात को कहीं खेतों में दो गामी झोटे भिड़ रहे होंगे तो कई बार तो सारी-सारी रात उनकी खैड़ों की दहल आसपास के गुहांडों तक में सुनाई दिया करती होती है| मुझे इस परिवेश का होने के चलते, बचपन में यह दहल सुनने का अनुभव् है|
3 - बैल बुद्धि - बैल यानि वह बछड़ा जिसको प्रजनन से ऊना बना दिया जाता था व् सारी उम्र हल-जुताई में निकालता था| इसलिए बैल जितना तपस्वी किसी को नहीं माना गया| इसका सफेद रंग इसको सूर्य की किरणों से प्रत्यर्पण के जरिए बचाता है व् यह जल्दी हांफता नहीं है; जबकि झोटे का काला रंग सूर्य की किरणों को समाहित करता है तो वह जल्दी गर्म हो के हांफने लगता है| लेकिन रात में झोटा भी बैल से भी ज्यादा हल खींचने में सक्षम माना जाता है| हल-बुग्गी में दोनों जोड़े जाते हैं; परन्तु बैल को ऊना करना जरूरी होता है; कारण कि जब उसको कामेच्छा चढ़ती है तो वह कूद-फांद करता है व् बहुतों पार हल की फाल पे पैर दे मारता है, इसलिए हल-बुग्गी जुताई वाले बैल पहले उन्ने किये जाने जरूरी होते हैं; क्योंकि यह अपनी कामेच्छा काबू में रखना नहीं जानते होते| जबकि झोटा इस मामले में ज्यादा समझदार व् परिपक्क्व होता है|
इतने तपस्वी होने के बाद, "बैल की बुद्धि" मंदबुद्धि का परिचायक क्यों बनी; इसपे शायद मोदी के भक्तलोग ही प्रकाश डालें तो बेहतर होगा| और इसको मोदी के साथ जोड़ के तो मोदी के चक्कर में बेचारे बैल की और सामत ला दी|
दो शब्दों में सही निचोड़ दूँ तो बैल/सांड तुनकमिजाज होते हैं जबकि झोटा मूडी होता है| तुनकमिजाजी कुछ पल की होती है जबकि मूड लम्बा व् स्थाई होता है| यह इस बात से भी समझा जाता है कि बुग्गी में जुड़ा बैल, जल्दी बिदकता है; जबकि झोटे में बिदकन आसानी से नहीं आती; परन्तु आती है तो दीवार-बाड़ सबको तोड़ता हुआ जाता है|
सिद्धू मूसेआळा जो झोटे को इतना महान बता गया कि उसके गानों व् ट्रेक्टर तक पे झोटा लिखता-छपता था; तो उसकी यही ऊपर जैसी कुछ वजहें थी; इसलिए इन जानवरों बारे अपनी परसेप्शन, आपके पुरखों से मिले तथ्यात्मक ज्ञान के आधार पर बनाओ ना कि किसी फंडी-पाखंडी के उछाले कृत्रिम प्रचार के आधार पर| गुण-अवगुण दोनों में हो सकते हैं परन्तु उनका सही-सही ज्ञान होना अति लाजिमी है|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Sunday, 30 June 2024
हड़नियों से बना हरयाणा नाम!
हड़निये यानि हड़प लेने वाले, लूट लेने वाले!
इस वीडियो वाले कांसेप्ट से सहमत होने के यह कारण भी हो सकते हैं:
1 - 'जाटों को कई इतिहासकारों ने लुटेरा लिखा है; वजह रही यह कि जो विदेशी आक्रांता जैसे कि ग़ज़नी-तैमूरलंग आदि इनके इलाकों से गुजरे, उनको इन्होनें जी भर के लूटा व् मारा भी| तो हड़निये तो यह रहे हैं, परन्तु दुश्मन का माल; जो इनका अपना बन के रहा, उसको अपने यहाँ बसने में सबसे ज्यादा भाईचारा इन्होनें ही दिखाया|
2 - खापलैंड पर दो तरीके के गाम बसते आए, एक धाड़ी व् एक गैब| धाड़ी वो गाम जो धाड़ मार के खाया करते थे व् गैब वो गाम जो खेती-बाड़ी करके कमा के खाते थे; परन्तु धाड़ मारणियों गेल जब टकराना पड़ता तो अधिकतर जीतते गैब ही थे| जैसे कि मेरा गाम निडाणा, जिला जींद (जिंद) में| इसी धाड़-गैब कल्चर पे निडाना गाम बारे, जब बारात में आए जागसी वाले मशहूर धाड़ी दादा निहाले की हल की फाली पेट में मारने से सोते हुए की हत्या कर दी गई थी (हत्यारे इन्हीं के गाम से आये थे इनपे घात लगा के) तो इनकी माँ ने रोंदी हुई ने एक तान्ना मारया था अक, "ना मरया रे बेटा, सींक-पाथरी, ना मारया रे उल्हाणे-मदीणे; अर जा मरया रे बेटा गैबां के न्यडाणे"! यह पाँचों गाम मलिकों के हैं, सींक-पाथरी-उल्हाणे-मदीणे जब्र भारी गाम रहे हैं व् न्यडाणा गैब गाम|
जय यौधेय! - फूल मलिक
Friday, 28 June 2024
लायक नहीं ये एक झोंपड़ी बनाने के, ठेके थमा दिए इनको एयरपोर्टों के!
Wednesday, 26 June 2024
Maharaj फिल्म समीक्षा !
Maharaj फिल्म समीक्षा : वाडो के काले कारनामो को उजागर करती वास्तविक घटना पर आधारित ये फिल्म - न केवल पाखंड को उजागर करती हैं बल्कि थाईलैंड से आयातित धार्मिक पाखंडो के पाप से भरे घड़े को भी फोड़ती हैं.
उत्तर भारत में यह धार्मिक उन्माद नया नया हैं इसलिए यहाँ ऐसा नहीं हुए लेकिन इस धार्मिक ढांचे के इतिहास इतना कला हैं की मंदिर की मुर्तिया भी काली बनायीं जाती थी.
धर्मांध और अंधविस्वास में लिप्त लोगो को इस फिल्म को जरूर देखना चाहिए. की कैसे भगवान और धर्म के नाम पर मंदिर बनाए गए और फिर उनके नाम पर लूट और शोषण की शुरुआत हुई. कैसे धर्म को धंधा बनाया गया और कैसे इनका भगवान अपने मुँह पर कालिख पोते मंदिर की मूर्ति में मृत पड़ा रहा.
इतिहास : समय क्या नहीं करवाता 1400 ईस्वी में थाईलैंड कल्चर भारत में दस्तक देता हैं. पहली शताब्दी से ही सिल्क रुट पर इजिप्ट और थाई मनोविज्ञान विशाल चर्चा का विषय था. छठी शताब्दी तक इस मनोविज्ञान की अनेको तकनीके अपभ्रंश होकर विकृत परम्परावादी धार्मिकता का रूप ले रही थीं. जैसे आजके समय में नेता अभिनेता यूटूबर आदि प्रसिद्ध हैं. ऐसे ही 7 सदी से लेकर 14 वि सदी तक के इस दौर में लेखन प्रसिद्धि का मुखर विषय बना. इंडियन रीजन ( अफगान बॉर्डर से लेकर इंडोनेशिया तक ) थाई कम्बोडियन और इंडोनेशिया ये तीन ऐसे क्षेत्र थे जहा मनोवैज्ञानिक विषयो से अनेको कहानिया सांस्कृतिक परम्पराओ में विकसित हो चुकी थीं.
चोल सशको के दरबारों में नाटक करने वाले निषाद नट उन कहानियो को कॉपी कर प्रदर्शित नाटकीय रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं. थाईलैंड कम्बोडिआ ऐसे क्षेत्र रहे हैं जहा सबसे पहले मंदिरो (วัด वाड - थाई भाषा में मंदिर को वाड कहा जाता हैं. वाड एक ऐसा अधिकृत क्षेत्र जो चारो और से सुरक्षित स्थान हो ) इसलिए थाई राजा इस वाड में विशेष रूप से रहता हैं. आज भी थाई राजा राम (दसम ) अपने वाड (मंदिर ) में रहता हैं.
वजिरालंकरण 16 अक्टूबर 2016 को 64 वर्ष की आयु में थाईलैंड के राजा बने. लेकिन राजगद्दी पर अपने पिता के निधन के 50 दिवसीय शोक के पश्चात् दिसम्बर 01, 2016 को आसीन हुए. इन्हें "फरा राम दशम" की उपाधि से अलंकृत किया गया. रामकियेन ( रामायण ) थाईलैंड का राष्ट्रिय ग्रन्थ हैं.
ऐसे ही वाड चोल शाशको ने बनवाए जिन्हे वो चोलेश्वर ( चोलो के ऐश्वर्य का स्थान ) कहते हैं. आज ये वाड़े दक्षिण के अनेको मंदिरो में बदले गए है. ऐसे ही एक वाड़े और उसके धार्मिक महाराज और शोषिक धार्मिक अंधभगति की वास्तविक घटना पर आधारित फिल्म है Maharaj - जिसमे Jaideep Ahlawat ने महाराज का रोल निभाया है और करसनदास मुलजी का रोल निभाया है Amir Khan के बेटे Junaid Khan ने. फिल्म के लेखक है Saurabh Shah.
फिम्ल में फिल्म निर्माण नियमो के तहत और धार्मिक माहौल को देखते हुए थोड़ा बैलेंस करके दिखाया गया हैं. ताकि लोग बेवजह विरोध न करें. हालाँकि धार्मिक पाखंडियो ने भोली भली जनता का शोषण किया हैं वो दिखने लायक और बताने लायक भी नहीं हैं.
लेकिन फिल्म का मुख्य प्लाट थाईलैंड ये आयातित धार्मिक पाखंड के इतिहास को प्रत्यक्ष रूप से उजागर करता हैं. पुरे देश के धर्मांध लोगो को इसे देखना चाहिए और इन धार्मिक पाखंडो से खुद को बचाकर आने समाज को भी करसनदास मुलजी की तरह जागरूक करना चाहिए. इन मंदिरो की कोई महानता नहीं हैं ये शोषण के काले इतिहास और अश्लीलता को समेटे हुए हैं. इसलिए दक्षिण के सभी मंदिरो की मुर्तिया भी काली मिलेंगी क्योकि ये कालिख इनके निर्माताओं के चेहरे की हैं.
कर्म ही धर्म हैं और वास्तविकता से स्पष्ट वाकसिद्धि से परिपूर्ण अंधविस्वासो से मुक्त सार्थक और सत्य को धारण करना वास्तविक धर्म हैं. किसी भी कल्पना अंधविस्वास और पाखंड में धर्म नहीं हैं. धन्वयाद
~Rajesh Dhull
Jat riwaj in Turkey!
रिवाजों की समानता!
Sunday, 23 June 2024
इन आम चुनावों में एक बात साफ हो गई कि मोदी-शाह की राजनैतिक शैली से आरएसएस खुश नहीं था और न हिन्दू धर्म के बड़े धर्माचार्य!
मोदी-शाह की जोड़ी जब पूंजी पर बैठकर नैतिकता के प्रतिमान तय कर रही थी तब एक शर्त यह भी थी 75 पार के नेता मार्गदर्शक मंडल में रहेंगे।
यह हिंदूजा बन्धु इंडिया में होते तो क्या कोई इंडियन कोर्ट, स्विट्ज़रलैंड कोर्ट की भाँति सजा दे पाती की तो छोड़िए; क्या देने की सोचती भी?
अनैतिक-पूंजीवाद के धोतक हिंदुजा बंधुओं प्रकाश हिंदुजा (78 साल) और कमल हिंदुजा (75 साल) को साढ़े चार साल और उनके बेटे अजय और बहू नम्रता को स्विट्ज़रलैंड की अदालत ने चार चार साल की सजा सुना दी है। सजा की वजह इनके द्वारा अपने घरेलू नौकरों का शोषण और उत्पीड़न करना है। स्विस अदालत ने पाया कि ये रईस घर मे काम करने वाले अपने कर्मचारियों को मात्र 700 रुपया (8$) रोज की पगार देते थे। यह भुगतान भी भारतीय रुपयों में किया जाता था, और रुक रुक कर, तरसा तरसा कर किया जाता था। यह राशि स्विट्ज़रलैंड के न्यूनतम वेतन से 10 गुना और इन हिन्दूजायों के द्वारा अपने कुत्तों पर किये जाने वाले खर्च से चार गुना कम हैं। इसके अलावा ये रईसजादे इन नौकरों को पेट भर खाना नहीं देते थे, मारपीट करते थे, क्रूरतापूर्ण बर्ताव करते थे। इन सबके पासपोर्ट भी हिन्दुजाओं ने जब्त करके अपने पास रख लिए थे ताकि वे देश वापस न जा सकें। शोषण के शिकार ये सभी कर्मचारी "इंडिया दैट इज भारत दैट इज हिंदुजा के अपने देश हिंदुस्तान के थे"।
#ध्यान_दें
यह कर्म उस हिंदुजा खानदान ने किया है जो "इंग्लैंड दैट इज यूनाइटेड किंगडम" का सबसे रईस खानदान है और स्विट्जरलैंड की हसीन वादियों के जिस विला - भव्य आलीशान भवन - का यह कांड है, उसकी कीमत ही अरबों रुपये में हैं।
यह हिंदूजा बन्धु इंडिया में होते तो क्या कोई इंडियन कोर्ट, स्विट्ज़रलैंड कोर्ट की भाँति सजा दे पाती की तो छोड़िए; क्या देने की सोचती भी? इस हद तक हमारा देश ऐसे संवेदनहीन अनैतिक पूंजीवादियों के कब्जे में आता जा रहा है दिन-भर-दिन।
न्यूज़ सोर्स: https://www.forbes.com.au/news/billionaires/billionaire-hinduja-family-members-get-4-5-years-in-swiss-prison/
Monday, 17 June 2024
यार 5911 वरगा!
सिधू मुसेवाले के साथ एक ट्रॅक्टर का भी चर्चा है जो हमारी पीढ़ी ट्रक्टर था और जिसका अपने जमाने में पूरा टोरा था । ये था सरकारी कंपनी hmt ( हिंदुस्तान मशीन टूल्स ) का hmt 5911 मॉडल । 5911 को सिधू मुसेवाले में गीतों में इतना ज्यादा इस्तेमाल किया किया की किसानों के इस साथी टैक्टर का नाम दिल्ली मुंबई के पबो तक गुज गया । शहर मे जिस किसी ने आज तक इस ट्रक्टर को देखा तक नहीं वो भी 5911 का नाम जानता है , हालाकि बहुत को ये भी नही पता की 5911 किस चीज का नाम है ।
Saturday, 15 June 2024
शमशाद बेगम जी मान गोत की जाट थी!
हमारे समाज में सिर्फ़ जाति आधार पर ही भेदभाव नहीं है, यह भेदभाव क्षेत्र आधार पर भी है, यह भेदभाव धर्म के आधार पर भी है। यह भेदभाव वाली व्यवस्था सिर्फ़ दूसरी जातियों से ही नहीं ख़ुद की जाति से भी है। एक ही जाति, एक ही गोत, पर अगर धर्म अलग-अलग हैं तो दोनों एक दूसरे से पूरी धार्मिक छुआछूत बरतते हैं। इस धार्मिक छुआछूत का उदाहरण महान गायक मोहमद रफ़ी, शमशाद बेगम आदि हैं। बॉलीवुड का ज़िक़्र आता है तो हमारी सोच सिर्फ़ पहलवान दारा सिंह जी और धर्मेंद्र जी तक सीमित रह जाती है। जबकि इन्हीं लोगों के समकालीन बॉलीवुड में गायकी में कई दशकों तक जिनकी बादशाहत रही उनके बारे में हमारे लोगों को या तो पता नहीं, पता है तो ज़ुबान सिल जाती है क्योंकि वो मुस्लिम जाट हैं? मोहमद रफ़ी साहब का बेटा इंटर्व्यू में ख़ुद कहता है कि वो लोग पंजाब के जाट हैं। पर नहीं, हम तो इन्हें मिरासी या हज्जाम मानेंगे? जबकि उनकी ऑटोबायोग्राफ़ी में उनका गाँव गोत सब लिखा है, उनका बेटा ख़ुद को गर्व से जाट बता रहा है।
Friday, 14 June 2024
इस महाशय को अब अकेले जाट ही क्यों याद आएं हैं?:
जब जंतर-मंत्र पर पहलवान बेटियां घसीटी जा रही थी; तब नहीं बोला यह महाशय कि यह बेटियां जाट हैं व् जाट देश की शान होते हैं; उनकी आवाज को इस तरीके से क्यों दबाया जा रहा है? 13 महीने चले किसान आंदोलन में नहीं चुस्का यह महाशय कि यह जो किसान आंदोलन लिए चले आएं हैं दिल्ली तक, इनमें 80% तक किसान जाट-जट्ट बिरादरी से हैं, तो इनको आवाज सुनो व् बिना तकलीफ दिए इनको न्याय दो| जब अग्निवीर ला के सेना का अभिमान कुचल रहा था मोदी, तब नहीं चुस्का यह महाशय कि उस सेना को ऐसे मत खत्म करो, क्योंकि उसमें हर तीसरा सैनिक इसी जाट समाज से आता है, जिसको यह आज देश की शान बता रहा है?
अब चुस्का है क्योंकि पूरी खापलैंड व् मिसललैंड पे फंडियों को, फ़िलहाल हुए लोकसभा चुनावों में जब जाट-दलित-सिख-मुस्लिम व् 50% ओबीसी समाज ने मिल के रसातल में चिपका दिया तो इन महाशय को सिर्फ जाट याद आ रहे हैं (बाकी दलित व् ओबीसी कोई याद नहीं आया)| इसका तथाकथित हिन्दू राष्ट्र की आड़ में "मनुवाद राष्ट्र" बनाने का भूत उतरा नहीं है सर से अभी भी| यह कवायद अब आगामी हरयाणा विधानसभा चुनावों बारे लगती है; व् इनको इसकी ड्यूटी दी गई हो जैसे| और देखें जरा कितनी arrogance व् बदतमीजी से कह रहा है; जैसे जाट कौम इसकी बंधुआ हो|
यह वही भाषा व् एप्रोच है, जैसी 'जाट जी जैसी सारी दुनिया हो जाए तो पंडे-पुजारी भूखे मर जाएं' वाली स्तुति सत्यार्थ प्रकाश के ग्यारहवें सम्मुल्लास में लिखी है; वह व्यक्ति कम-से-कम ईमानदारी से सादर तो लिख रहा था; इसका तो लहजा ही "जाट समाज को बंधुआ" समझने वाला है| भला, कौन तो जाट किसी को भूखा मारने वाला; व् जाट ने किसी के हाथ जूड़ रखे हैं या उनको कमाने-खाने से रोकता है; जो वह भूखे मर जाएंगे; और कौन जाट, जो इसको "मनुवाद राष्ट्र" बना के देगा| बना ले अपने तथाकथित ज्ञान व् शक्तियों से खुद ही; जिसके जाल में फंसा के इतनी जनता अपने पीछे लगाए फिरता है; इसके बाद भी जाट की जरूरत की कसर ही रह गई; हद है|
दूर रखें खुद को व् अपने बच्चों को ऐसे फलहरियों से; होते म्हारे दादों-पड़दादों वाले जमाने तो लठ लगते इसकी पिण्डियों पे|
Bageshwar Dhaam baba about Jats in below video!
राजा vs खाप
राजा का बेटा राजा बनेगा! राजा उसे पहले ही राजकुमार घोषित कर देगा और समय पर उसका राजतिलक कर देगा! प्रजा जय जयकार करेगी और शासन बडे राजा से पुत्र राजा के पास चला जाएगा! उसका शब्द ही कानून होता है और उसका आचरण ही नैतिकता की सीमाएं तय करता है! दशरथ ने समय रहते राम के राज्याभिषेक की तैयारी कर दी थी परंतु जंगल जाना पडा लेकिन जंगल से भी राज चलाते रहे जैसे अब कुछ राजा जेल चले जाते हैं और उनकी जगह भरत गद्दी पर उनकी खडाऊँ रख कर उनके नाम से राज करते हैं!
बागडी जाट और देशवाली जाट!
बागडी जाट और देशवाली जाट के पहले रिश्ते नही होते थे! भूपेंद्र सिंह हुड्डा के दादा चौधरी मातूराम ने पहली बार देशवाली और बागडी जाट के बीच रिश्ते करवाने की मुहिम शुरु की और अपने परिवार से ही बहुत रिश्ते बागडी जाटों में किए! ये मुहिम जोर पकडती गई और धीरे धीरे सब सामान्य होता चला गया! जाटों में ब्याह रिश्ते का बडा ख्याल रखा जाता था और लगातार विकास की कोशिश जारी रहती थी! गोत्र छोड कर शादी करना भी इसी का हिस्सा था जो बाद में सांइटिफिक निकला!