Friday 3 May 2013

ध्यान से सुनें कुलदीप बिश्नोई:

वोट की राजनीति की जैसी मिसाल आपके द्वारा N.D. T.V. की एक डिबेट (जो मैंने हाल ही में देखी) में दी गई ऐसे गिड़गिडा के परोक्ष रूप से वोट के लिए लार टपकाने की हद मैंने कभी नहीं देखी| मतलब वोट के लिए तुम अपनी जड़ों तक को मिटा सकते हो| वाह रे कुलदीप बिश्नोई, एक तरफ तो वो सिख गुरु हुए जिन्होंने अपने पैत्रिक धर्म हिन्दू धर्म के लिए कभी गुरु तेग बहादुर तो कभी गुरु गोविन्द सिं...ह की आहुतियाँ दी और एक तुम हो जो यह भली-भांति जानते हुए भी कि बिश्नोई पन्थ को शुरू करने वाले और बिश्नोई समाज के बुजुर्ग उन्हीं खापों के समाज के पूर्वज थे जिनके बारे में कितनी निर्लजता से तुमने यह कह दिया कि सुप्रीम कोर्ट ने खापों को असवैंधानिक करार दिया है इसलिए इनको बंद कर देना चाहिए|

मतलब कल को आपको गैर-हिन्दू वोट चाहिए होगा तो आप 1995 की सुप्रीम कोर्ट की ही एक याचिका, जिसमें कि सुप्रीम कोर्ट नें हिन्दू धर्म को असवैंधानिक व् किसी भी कानूनी वैधता से रिक्त करार दिया हुआ है, उसका हवाला देते हुए ये कहने से भी नहीं चुकेंगे कि हिन्दू धर्म को कोई कानूनी वैधता नहीं है इसलिए हिन्दू धर्म बंद कर दिया जाए, क्यों सही कहा ना?

इस लीचड़ राजनीति की दलदल में इतना मत डूब जाना कि जिस समाज को आज तुम
निशाना बना रहे हो कल उसके किसी बन्दे का सब्र टूट जाए और वो तुम्हारे समाज-पन्थ को भी कोर्ट से असवैंधानिक करार दिलवा दे| ऐसा बोलने से पहले ये तो सुनिश्चित कर लो कि तुम्हारे समाज और पन्थ की सारी परम्पराएँ और मान्यताएं कानूनी वैधता प्राप्त हैं? क्योंकि तुममे इतनी तो नैतिकता है नहीं कि ऐसी बात बोलने से पहले तुमने इस बात की सुनिश्चितता की हो कि तुम्हारा समाज-पन्थ कानूनी वैधता प्राप्त है?

अपने पिता की राजनैतिक जिंदगी से ही कुछ सीख ले लेते, उनकी इन्हीं घटिया राजनैतिक
सोचों नें तो उनको C.M. की कुर्सी से दूर किया था| मतलब एक समाज-समूह विशेष को ले के जब सत्ता में नहीं हो तो तुम्हारे ये तेवर हैं तो कल सत्ता मिलने के बाद तो इस समाज को ही धरती से मिटा दोगे, है ना? कृपया अपने पैत्रिक समाज पर इतना कहर तो मत ढाओ|

कम से कम और कुछ नहीं तो उन गुरुवेश्वर जम्बेश्वर जी का ही ध्यान कर लिया होता ऐसा ब्यान देने से पहले? जब उन्होंने बिश्नोई पन्थ (जैसे सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी एक हिन्दू थे ऐसे ही बिश्नोई पन्थ के संस्थापक गुरु जम्बेश्वर जी जाट थे और उस वक्त जाटों की खापों की प्राकाष्ठा अपने चरम पर थी जो कि विखंड रूप में आज भी विद्यमान है) चलाया तो उन्होंने ये तो सोच के नहीं बनाया होगा कि कल को उनका ही कोई पंथी राजनैतिक लालसा में अँधा हो उनके पैत्रिक समाज ( जाट समाज) पर ऐसे प्रहार करेगा?

माना कि आज के दिन आप जाट नहीं कहलाते परन्तु मैं बचपन से ले के आज तक सुनता आया हूँ कि बिश्नोई समाज जाटों से निकला हुआ है और ठीक है कि आज जाटों (खाप मान्यता को सर्वप्रथम प्रारम्भ और धारण करने वाले, जो कि बाद में समाज के हर वर्ग चाहे वो ब्राह्मण, राजपूत, बनिया, दलित व ऐसे ही उस समय के तमाम अन्य स्थानीय सामाजिक समूहों ने अपनाया) से आपके मतभेद इस स्तर तक हैं कि आपको उनकी जरूरत ना हो लेकिन इसका तात्पर्य यह तो कदापि नहीं होना चाहिए कि दूसरे समाज की स्वायतता और गरिमा को ही दरकिनार कर दिया जाए?

उद्घोषणा: मेरे यह विचार किसी राजनैतिक मंशा, आकांक्षा या मीमांसा के नजरिये से ना देखे जाएँ, अपितु यह एक जनसाधारण के नाते अपने विचार व्यक्त कर रहा हूँ|

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