Saturday 20 June 2015

योगा विज्ञान को कृषक कार्य से चोरी किया गया है!

पहले के जमाने में जब कृषक व् कृषक सहयोगी, आज की भांति मशीनों की अपेक्षा मानव-तंत्र से जब खेतों में कार्य करते थे तो यह निठ्ठले बैठे बाबा व् फंडी लोग उनको कार्य करते देखते थे। और जैसा कि सभी जानते हैं कि कृषि के विभिन्न कार्यों में मानव शरीर की ऐसी ही मुद्राएँ बनती हैं जैसी कि योगा में होती हैं।

इन निठ्ठले क्रेडिट चोरों ने उन मुद्राओं के बस नाम रख के और जैसे किसान को करते देखा वैसे-वैसे ही करने के नियम लिख के और किसान से थोड़ा सा भिन्न दिखाने के चक्कर में दो-चार शब्द कम-ज्यादा लिख-लिख कापियाँ छाप दी। और इस ज्ञान के मूल-स्त्रोत व् चलती-फिरती डिक्शनरी रहे किसान को इसका क्रेडिट भी नहीं दिया।

उदाहरण के तौर पर:

पद्मासन - जब किसान खेत में पानी लगाते वक़्त पानी की नाली के पास उकडू अथवा पालथी मार के बैठा होता है तो वह पद्मासन की ही विभिन्न मुद्राएं करता है|

जब उसके खेत पे असमय बारिश अथवा ओले पड़ते हैं या खलिहान में पड़ी फसल पर आंधी-तूफ़ान का कहर बरपता है तो वो आकाश की तरफ हाथ जोड़ कर भगवान से रहम की जो कृपा मांगता है तो उसी से ऊपर हाथ उठा के की जाने वाली तमाम योग-मुद्राएं और आसन निकले हैं|

सूर्यासन अथवा सूर्य-नमस्कार आसन: जब आप खेत में किसी मशीन अथवा गिर्डी (रोलर) को धक्का लगाते हैं तो उसमें सूर्यासन निहित होता है| और किसान के रोलर योग और आकाश की तरफ हाथ करके रहम मांगने की मुद्रा दोनों को मिला दें तो इससे पूरा सूर्यासन हो जाता है|

सर्वांगासन - यह आसन तो किसान के बच्चे ट्रेक्टर-बुग्गी के एक्सेल पे पैर लगा पहिये या बुग्गी को उठाने के बहाने यहां-वहाँ आसानी से करते देखे जा सकते हैं|

शीर्षासन - जब भी कोई खेतों में गन्ना-फल-सब्जी चोरी करते हुए पकड़ा जाता है तो उसको अक्सर इसी आसान में बाँध के पीटा जाता है|

और ऐसे ही अन्य भी बहुत से आसन, जो कि किसानी से चोरी किये गए हैं अथवा उनका आधार भिन्न-भिन्न कृषि मुद्राएं रही हैं|

अब क्योंकि निठ्ठला बैठा आदमी कोई काम-हल्ला ना करे तो उसका शरीर स्थूल व् सुस्त पड़ जाता है| और कई कार्य ऐसे भी होते हैं जिनमें आपको शरीर को हिलाने-डुलाने की जरूरत नहीं होती, जैसे कि दुकानगिरी, मांग के खाना, डरा-धमका के अथवा पाखंड रच के खाना व् चमचागिरी| तो जब बाबा लोगों ने कृषि कार्यों से चोरी कर यह नियम बनाये तो यहां बताये कार्य करने वाले शारीरिक सुस्ती और वेदनाओं से ग्रस्त लोगों ने इनको हाथों-हाथ लिया, और इनका  महिमामंडन कर दिया| और ऐसे जो किसान की दिनचर्या होती है वह इन के लिए योगविज्ञान बन गई|

परन्तु इस बीच किसान को किसी ने इसका क्रेडिट भी नहीं दिया| इसलिए अगर कोई योगदिवस बनता है तो वो सिर्फ कृषक को समर्पित बनता है।

मुझे हंसी आती है सोच के ही कि बाबा-लोग योग के असली जनक किसान को योग सिखाएंगे|

मजे की बात तो यह है कि जिनको पादने हेतु टांग उठाने के लिए भी नौकर की जरूरत पड़ती है वो तो योग के प्रचारक देखे हैं मैंने।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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