Wednesday 30 September 2015

एक खत्री मनमोहन भी था और एक खत्री मनोहर भी है, तो बोलो दोनों में फर्क क्या?

मनमोहन ने कभी जातीय-वंशीय द्वेष-ईर्ष्या में ना पड़ के सदा तमाम भारतीय वर्गों का प्रतिनिधि बनके दस साल तक बतौर एक प्रधानमंत्री निर्बाध कार्य किया| मनमोहन सिंह के तो खुद जाट इतने कायल थे (और आज भी हैं) कि जब वो पहली बार प्रधानमंत्री बने और उनको राज्यसभा से लोकसभा में लाने हेतु किसी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़वाने की बात हुई तो सबसे पहले उस वक्त के रोहतक के जाट संसद माननीय दीपेंदर सिंह हुड्डा जी ने अपनी सीट खाली करने की घोषणा की| हालाँकि बाद में सरकार ने यह फैसला रद्द कर दिया|
और यह वही जाट थे जिन्होनें ठानी हुई थी कि अब हिन्दू अरोड़ा/खत्री समाज को हमने स्थानीय हरयाणवी निवासी मान लिया है|

परन्तु अब एक मनोहरलाल ने आ के नागपुरी पेशवाओं के इशारे व् प्रेरणा से "जाट लठ के जोर पर हक़ लेते हैं" और "हरयाणवी कंधे से नीचे मजबूत और ऊपर कमजोर होते हैं!" का बयान दे के वही भरे हुए गड्ढे फिर से खोद दिए जो इन जनाब के आने से पहले लग रहा था कि भर गए हैं|

कोई साधारण आम आदमी यह कहता तो शायद लोग कानों के ऊपर से मार जाते, परन्तु सीएम की पोस्ट पे बैठा आदमी उसी राज्य की एथनिक (ethnic) पहचान ‘हरयाणवी’ पे अटैक करे तो फिर और कोई हरयाणवी चुप रहे तो रहे पर एक हरयाणवी जाट कैसे चुप रह जाता, और कमांडेंट हवा सिंह सांगवान जी को फिर इन्हें इनका मूल ओरिजिन याद दिलवाना पड़ा|

माननीय मनोहर लाल खट्टर जी अगर नागपुरी पेशवाओं ( जो इनके मूल उद्गम महाराष्ट्र में उत्तरी-पूर्वी भारतीय बिहारी-बंगाली-असामी वैगेरह को मुंबई वैगेरह में मराठी बनाम गैर-मराठी के जहरी विष से डँसते हैं, साथ ही ध्यान दीजियेगा यह करते वक्त यह इनके फेवरेट नारे 'हिन्दू एकता और बराबरी" का भी ध्यान नहीं रखते वहाँ ) को अपना गुरु बना के उनकी काजल की कोठरी रुपी शिक्षा पे चलोगे तो दाग तो लागे ही लागे जनाब|

इसलिए कुछ नहीं रखा है इन नागपुरिया पेशवाओं की सीख पे चल के राज्य को चलाने में| आपको सनद रहना चाहिए कि उत्तरी भारत में

महाराजा रणजीत सिंह (एक जाट) और उनके सेनापति हरी सिंह नलवा (एक खत्री, कई इतिहासकार इनको जाट भी बताते हैं)
व् सरदार मनमोहन सिंह (एक खत्री) और चौधरी भूपेंद्र सिंह हुड्डा (एक जाट)
की तरह की जोड़ियां ही कामयाब हो सकती है| वरना अगर जैसे चल रहे हो ऐसे चलोगे तो फिर कोई नी

एक सर चौधरी छोटूराम (एक जाट) बनाम लाला नारंग (एक खत्री),
एक संत जरनेल सिंह भिंडरवाला (एक जाट) बनाम लाला जगत नरायण चौपडा (एक खत्री),
एक शहीद-ए-आजम भगतसिंह (एक जाट) बनाम शोभासिंह चौपडा (एक खत्री)
के बाद अब एक पूर्व कमांडेंट हवासिंह संगवान (एक जाट) बनाम सीएम मनोहरलाल खट्टर (एक खत्री) और सही|

और याद रखियेगा जब-जब जाट और खत्री आपस में जुड़े हैं तो सकारात्मक इतिहास बने हैं परन्तु अगर आमने-सामने हुए तो फिर भी इतिहास तो सकारात्मक ही बने हैं परन्तु अकेले जाट के पाले से| उदाहरण ऊपर हैं|

और अगर आप इस बहम में आ गए हो कि मेरे सर पे नागपुरिया पेशवाओं का हाथ है और जो मार्ग वह दिखा रहे हैं वही सही है, तो याद रखना यही नागपुरी पेशवा एक बार जाटों को नजरअंदाज करके और जाट महाराजा सूरजमल द्वारा दी गई "मिलके लड़ने की सलाह" पे पेशवा सदाशिवराव भाऊ जैसे लोग "दोशालो पाट्यो भलो, साबुत भलो ना टाट, राजा भयो तो का भयो, रह्यो जाट गो जाट!" का तान्ना मारते हुए 1761 में पानीपत के मैदान में चढ़े आये थे, परन्तु बाद में कैसे जाटों ने ही वापिस महाराष्ट्र छुड़वाए थे वो भी बाकायदा "फर्स्ट-ऐड" करके, इसका सिर्फ भारत ही नहीं अपितु जिनके राजों में कभी राज के सूर्य अस्त नहीं हुआ करते थे (अंग्रेज) भी साक्षी बने थे|

तो अगर जाटलैंड पे शासन करने की इनकी सदियों पुरानी कशक को पूरी करने के चक्कर में आप स्थानीय जाट-खत्री/अरोड़ा भाईचारे की बलि चढ़ा रहे हैं तो भान रहे आप पहुँच से बाहर की बलि चढ़ा रहे हैं, जो सपना सच नहीं हो सकता उसकी जद्दोजहद में हरयाणा को झोंक रहे हैं| एक पल को हरयाणवी या जाट इनके राज को स्वीकार भी कर लेवें परन्तु उसके लिए इन नागपुरी पेशवाओं को पहले इनके मूलस्थान महाराष्ट्र में अपने बिहारी-बंगाली-असामी और तमाम भारतियों व् हिन्दुओं के साथ मिलके कैसे रहना होता है वो सीखना होगा|
या फिर अगर अमित शाह के "देशभक्ति सिर्फ देश के लिए जान देना ही नहीं होती, अपितु जो हम कर रहे हैं उसको भी देशभक्ति कहते हैं!" वाले बयान के भळोखे (बहकावे) में चढ़ यह सब कर रहे हो तो याद रखना ऐसे सेल्फ-स्टाइल्ड देशभक्तों की देशभक्ति तब तक ही होती है जब तक कि:

1) कोई महमूद ग़ज़नवी सोमनाथ के मंदिर को लूटने ना चढ़ आवे और जब यह सेल्फ-स्टाइल्ड देशभक्ति वाले सेल्फ-स्टाइल्ड देशभक्ति का टोर दिखावे खातिर दुश्मन की सेना को मंदिर में घुसने पे अंधी होने के डर दिखावे तो वो ना सिर्फ अंदर घुस जावे बल्कि सारे मंदिर को तहस-नहस कर करीब 1700 ऊंटों पे उसका खजाना लाद, अरब की ओर काफिले का मुंह करावे तो सिंध के मैदानों में “बाला जी जाट महाराज” ही महमूद ग़ज़नवी का मुंह तोड़ के सारा खजाना छीन के देश से बाहर ना जाने देवे वाली असली देशभक्ति और गाढ़ी देशभक्ति दिखावे|

यहां ध्यान दीजियेगा हमारे देश में बालाजी के नाम से जितने मंदिर हैं वो उन्हीं बाला जी जाट महाराज के हैं, जिनको बाद में इन सेल्फ-स्टाइल्ड देशभक्तों ने अपनी भक्ति चलाने हेतु हनुमान जी का चोला पहना दिया, वरना उससे पहले बाला जी शब्द ना किसी रामायण में और ना किसी महाभारत में लिखा पाया/बताया/गाया जाता| और यही कारण है कि यदा-कदा समाज यह कहता हुआ पाया जाता है कि हनुमान तो जाट थे| क्योंकि तमाम कोशिशों के बावजूद भी यह लोग बाला जी को हनुमान जी का चोला पहनाने वाली बात को कभी दबा नहीं पाये|

2) कोई मोहम्मद गौरी जब दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज को हरा उनकी हत्या कर देवे तो चौधरी रामलाल जी खोखर उसको मार गिरावे और असली देशभक्ति व् गाढ़ी देशभक्ति दिखावे|

3) जब कोई तैमूरलंग नपुंसक हो चुकी भारतीय सत्ता पे चढ़ आवे तो सर्वखाप सेना अकेली बिना किसी राजकीय सेना के उसका मुंह तोड़-तोड़ सुजावे और उसकी छाती में भाला ठोंक उसको उसके घर की ओर भगावे और असली देशभक्ति व् गाढ़ी देशभक्ति दिखावे|

खैर यह लिस्ट तो इतनी लम्बी है कि कम-से-कम दो दर्जन उदाहरण की फेहरिस्त बन जावे| फ़िलहाल के लिए इसको इतना ही रखते हुए सौहार्द की बात यही है कि सरकार मत चलाओ हमको नागपुरिया पेशवाओं की राह पे| क्या महाराष्ट्र में अपने बिहारी-बंगाली-असामी भाइयों का हाल देख के मन नहीं भरा आपका, जो हरयाणा को भी उसकी गर्त में धकेलने जैसे रास्ते चुने जाये ही जा रहे हो?

रोको खुद को भी और अपने मंत्री, एमएलए और एम्पियों को भी| वरना आपको इतिहास ऐसे ही याद किया करेगा कि "एक खत्री मनमोहन भी था और एक खत्री मनोहर भी, तो बोलो दोनों में फर्क क्या?"

विशेष: हालाँकि मैं खुद भी इस लेख को सीएम साहब तक पहुँचाने की कोशिश में हूँ, फिर भी इसको सीएम साहब तक फॉरवर्ड करने या पहुँचाने वाले का धन्यवाद!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: