Tuesday 22 September 2015

समस्या किसान के बोलने में नहीं है, अपितु अपने उन अधिकारों को ना लेने में है जो किसान ने उसको 'बोलना ले सीख' कहने वालों के पास छोड़े हुए हैं!


एक किसान को किसानी की भाषा अच्छे से आती है| जाहिर सी बात है जो भाषा देश में 'हरित-क्रांति' और 'श्वेत-क्रांति' खड़ी कर दे वो किसानी भाषा का ही कमाल कहा जायेगा| फिर भी इंग्लिश और हिंदी में कारोबारी भाषा भी हर किसान को सीखनी चाहिए|

परन्तु इसके साथ ही किसान को बोलना सीखने की कहने वालों को भी, अपना पेट भरने के लिए खेती करना और देश की सीमा पे खड़ा हो गोली खाना भी सीख लेना चाहिए| मुझे विश्वास है कि जिस दिन यह लोग खुद खेत में खट के पेट भरना और सीमा पे गोली खाना सीख गए, उस दिन यह बोली के लिए सुझाव देना, मजाकिया समझेंगे|

इसके अलावा किसान को अपनी फसलों का भाव खुद तय करने का अधिकार अपने हाथ में ले लेना चाहिए| शर्तिया कहता हूँ कि जिस दिन किसान ने यह अधिकार अपने हाथ में ले लिया उस दिन यह 'बोलना ले सीख कहने' वालों की तादाद में साठ प्रतिशत की कमी स्वत: ही आ जाएगी|

दूसरा दान के नाम पे धंधा करने वालों को दान देते वक़्त उससे दान का हिसाब-किताब लेने की आदत भी डालनी होगी| चाहे कानून बनवा के ही डालनी पड़े| अगर यह भी डाल ली तो रहे-सहे चालीस प्रतिशत की भी किसान से 'बोलना ले सीख' की शिकायत दूर हो जाएगी|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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