Monday 18 January 2016

'व्यापारी' टैग को किसी एक जाति-सम्प्रदाय विशेष को उनके लिए 'आइसोलेट' करने देना नासमझी कायम रखने का बहुत बड़ा षड्यंत्र है!

क्या 'व्यापारी', 'ट्रेडिंग' (trading), 'बिडिंग' (bidding) और 'मंडी' शब्द को जाने या अनजाने में किसी एक जाति-समुदाय के लिए आइसोलेट (isolate) कर देना या उनके द्वारा करवाया जाना होने देना सही है? कहीं इस परिभाषा में रख दिया जाने वाला वर्ग, इसमें ही तो अपनी भलाई नहीं समझता और इस वर्ग को इसमें रखने वाला कुंठित होता रहे?

किसी भी शब्द का 'आइसोलेसन' होने का, या कर देने का न्यूट्रल पहलु कभी नहीं होता, वो या तो लाभ हेतु किया और करवाया जाता है या फिर किसी का नुकसान करने हेतु| उदाहरण भी जग-जाहिर वाला है| 'जाट' शब्द का जाट बनाम नॉन-जाट के जरिये इसलिए आइसोलेसन करवाया जा रहा है ताकि जाट समाज को सामाजिक तौर पर अलग-थलग छोड़ दिया जाए| और 'व्यापारी' शब्द का आइसोलेसन इसलिए करवाया जा रहा है ताकि दूसरों को यह बड़ा चैलेंजिंग कार्य लगे|

जबकि गहनता से विचारो तो 'व्यापारी' शब्द किसी कम्युनिटी या समुदाय का सूचक हो ही नहीं सकता; हाँ कार्य के हिसाब से इसका प्रॉस्पेक्ट (prospect) / प्रारूप बदल जाता है| जैसे कि:

1) एक परचून की दुकान पर बैठने वाला, भैंस की ट्रेडिंग अथवा बिडिंग उतनी सहजता से नहीं कर सकता, जितना कि परचून के सामान की| जबकि दोनों हैं व्यापार, एक परचून का और एक भैंस का|
2) एक रियल एस्टेट बिल्डर, एक गाड़ी की ट्रेडिंग इतनी सहजता से नहीं कर सकता जितना की रियल एस्टेट की|
3) एक दूध बेचने वाला, ब्यूटी लोशन अथवा तेल बेचने की ट्रेडिंग/बिडिंग उतनी सहजता से नहीं कर सकता जितना की दूध की|
4) एक सब्जी बेचने वाला, ईंट-भट्ठे की ट्रेडिंग उतनी आसानी से नहीं कर सकता जितनी की सब्जी की|

और ऐसे ही अन्य तमाम तरह के कारोबार जिनमें खरीद-फरोख्त होती है|

तो व्यवहारिक तौर पर देखा जाए तो भैंस बेचने से ले के बुफे (buffalo selling to buffet selling) बेचने तक कोई ऐसा कारोबार नहीं जो व्यापार नहीं या जिसमें ट्रेडिंग ना होती हो|

तो फिर ऐसा क्या है कि भैंसों/पशुओं की मंडी को मंडी ना बोल के मेला बोला जाता है? यह सिर्फ इसलिए होता है ताकि एक पशु बेचने वाले किसान के मन और दिमाग में यह ना आये कि वह भी व्यापारी है और व्यापार करने के लिए जो बिडिंग/बार्गेनिंग/मोल-भाव की समान विधाएँ चाहिए होती हैं, वो उसको स्वत: ही आती हैं|

इसलिए मंडी/व्यापारी/बिडिंग/ट्रेडिंग शब्दों को एक कम्युनिटी विशेष के लिए बनाये रखने पीछे हटना चाहिए और जिन समुदायों को आज तक पारम्परिक व्यापारिक समुदाय बोला जाता रहा है, उनकी सामाजिक पहचान व्यापारी शब्द से ना करके किसी अन्य सामाजिक शब्द से करनी चाहिए। क्योंकि इस लेख में सिद्ध होता है कि दुनिया में कोई ऐसा कारोबार नहीं, जिसमें व्यापार ना हो, अनाज से ले के ब्याज तक और गाँव से ले के शहर तक।

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: