Monday 15 February 2016

एक भोज अथवा ब्याह में दो पंडाल लगाने वालों का मैंने और मेरे पिता जी ने बांधा था इलाज!

आज एक खबर पढ़ी कि जिला फतेहाबाद हरयाणा के भूना में गोरखपुर गाँव की सरपंच श्रीमती सोनिया शर्मा ने सरपंच चुने जाने के उपलक्ष्य में सार्वजनिक भोज आयोजित किया परन्तु दलितों का अलग पंडाल और सवर्णों का अलग पंडाल लगाया| सुनके बड़ा दुःख और अचरज दोनों हुए| इस खबर को पढ़ के मुझे मेरे घर का एक ऐसा ही वाकया याद आया तो सोचा इसको शब्दों में उकेरा जाए|

हुआ यूँ कि मेरी दोनों बहनों की शादी (22/11/2011) में मेरे नगरी (हिंदी में गाँव) निडाना और ललित खेड़ा के 36 बिरादरी और गाँव में रहने वाली तीनों मुस्लिम जातियों के हर घर से एक आदमी के जीमने न्यौता था| दलित-स्वर्ण-मुस्लिम-मर्द-औरत सबके जीमने के लिए एक ही बड़ा पंडाल लगवाया गया था|

इसके विरोध में पहली चिंगारी फूटी शादी के एक दिन पहले, जब किसी जातिवादी महानुभाव ने मेरे पिता जी या हम भाईयों को कहने की बजाये, ब्याह में आये मेरी बुआ की लड़की के पति यानी जीजा जी को यह शिकायत की, कि तुम्हारा मोळसरा (ममेरा ससुर) यह क्या बेखळखाना (ऐसा अनुचित करना जिसका सर-पैर कुछ नहीं होता) मचाने वाला है कल; दलित-स्वर्ण सब एक पंडाल में खाएंगे? उसी वक्त बाई-चांस मैं उधर से गुजर रहा था तो जीजा जी ने बुलाया कि फूल इनकी सुन ये क्या कह रहे हैं? तो उन्होंने मुझसे कहा देख छोरे 'राजनीति खात्तर जातपात से रहित बात करना चलता है, पर इब तू हमनें इन 'ढेढयां' गेल बिठा कैं जिमावैगा, या बात चलन नहीं दयांगे|

मैं उनकी यह बात सुनके खूब हंसा और फिर आत्मीयता से यही जवाब दिया कि ताऊ कोई बात नहीं, आपकी पत्तल आपके घर पहुंचा देवेंगे| इतने में दो और बोल पड़े कि भाई कितनों की भिजवाएगा? मखा जितने कहोगे उतनों की| तो बोले कि फेर तो आधे से ज्यादा गाम की घर-घर जा के दे के आनी पड़ेंगी| मखा कोई बात नहीं, जिसको घर पत्तल चाहिए आप लोग उनकी लिस्ट बनवाओ, उनकी पैक करवा के घर भिजवा देंगे| हमारा तो काम ही घटेगा इससे, बस यह है कि पांच-दस लड़के और दो-चार बाइक्स लगानी पड़ेंगी, उनको दे-दे के आपकी पत्तलों के पैकेट, डिलीवरी करवा देंगे आपके घर|

बोले कि मतलब थम बाबू-बेटा म्हारी राखो कोनी? अब इतना सुन के मेरे से रहा नहीं गया और फिर मुझे चढ़ा तांव और लिया आगे धर के| मखा कौनसी राखन की बात कर रहे हो, तुम? क्या वो रखते हैं तुम्हारी, जिनकी मान के तुम यह जातिवाद बरतते हो? मखा मीडिया में इन्हीं जातिवाद-वर्णवाद लिखने-रचने वालों के जो 90% लाल बैठे दिन-रात तुम्हारी जो खाल उतारते हैं इन बातों पे, उनके रचे जातिवाद के इस जहर का ठीकरा जो तुमपे फोड़ते हैं, वो देख के भी मन ना करता तुम्हारा इस जातिवाद और वर्णवाद से दूर हटने का?

एक तांव में आ के बोला कि विदेश जाने के बाद से "यू छोरा आपणा ना रहा"| यू आपणा फूल ना सै, इब यू फूल तैं फ्लावर हो रह्या सै, इसकै कोनी समझ आवै, इसके बाबू धोरै फोन मिलाओ| मैंने कहा कि क्यों जब आपके पास रहता था तब कौनसा जातिवाद बरतता था मैं? मैंने कहा खैर कोई नहीं मिलाओ पिता जी को फोन और फोन को स्पीकर पे रख के मिलाओ|

फोन मिलाया गया और मेरे पिता जी को समस्या बताई गई, तो पिता जी का उत्तर सुन के सारे अवाक रह गए| पिता जी ने एक ही बात कही कि जब थाहमें खेतों में बैठ के दलित सीरी-साझियों के साथ खाना खा सकते हो तो पंडाल में बैठ के खाने से क्या बिजली टूट पड़ैगी आप पे? फेर भी जुणसे नैं ऐतराज हो नाम बता दियो, उसके घरां उसकी पत्तल पहुंचा दयांगे, पर पंडाल एक ही लगेगा, दो नहीं होंगे|

पिता जी के उत्तर के बाद सब निरुत्तर|

परन्तु बैरी होते जिद्द के पक्के हैं, कहीं ना कहीं से कुछ ना कुछ अपने मन की करके ही मानते हैं| अगले दिन मैं जींद गया हुआ था कई काम निबटाने और कुछ सामान लेने| आते-आते दोपहर हो गई, तब तक पंडाल में खाना चालू हो चुका था| आया तो पता लगा कि औरतों के खाने के लिए पंडाल के एक हिस्से में पर्दा खिंचा के उसके दो हिस्से कर रखे हैं| पूछा तो पाया कि वही बुड्ढे दादा-ताऊओं की मंडली ने टेंट वालों को धमका के यह काम करवा दिया| मैंने गुस्से में उनकी तरफ देखा तो मंद-मंद मुस्कराते हुए बोले कि भाई वो तेरी फलानी दादी और ताई आई थी जीमने, आते ही बोली कि हमनें गाम के बड्डे-बडेरों के बीच खड़ा हो के खाने में शर्म आवेगी, और इसलिए पर्दा लगवा दिया| मैंने पिता और भाईयों से पूछा तो बोले कि जब यह हुआ हम नहीं थे उस वक्त यहां, और अब चलते प्रोग्राम में यह सब होता रहता है, ज्यादा टोकाटाकी भी अच्छी नहीं, चलने दो जीमणवार को ऐसे ही|

परन्तु फिर मैं गया वापिस उस डिफाल्टर बुड्ढा मण्डली के पास, और पूछा कि मखा थाहमें तो घर पत्तल मंगवाने वाले थे ना? यहां कैसे? तो बोले कि पोता हम तो तैने परख रहे थे, वर्ना दलितों के साथ रोज ही ना खेत में बैठ के साथ खाते हैं| मैं हंस के रह गया और मन में तसल्ली सी ले के बारात के स्वागत और फेरों के कार्यों में जुट गया, कि चलो लगता है इन पर पिता जी की डांट ने सही असर दिखाया है|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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