Sunday 7 February 2016

चॉइस इज योअर्स!

कट्टर हिंदुत्व (सनातन) कट्टर इस्लाम से भी जहरीला है| कटटर इस्लाम तो आपको एक गोली या बम मार के पल में आर-पार करके परे होता है, परन्तु कट्टर हिंदुत्व तो मानसिक दासता का वो पिंजरा है कि जन्म लेते ही इसको बनाने वालों के दास बन जाते हो| ज्यादा लाचार और साधनहीन के यहां पैदा हुए तो दलित-शूद्र-पिछड़े में बाँट दिए जाते हो| और स्वछंद और लॉजिकल बातें करने वाले जाटों जैसों के यहां पैदा हुए तो ऐसे आइडेंटिटी क्राइसिस में डाल दिए जाते हो कि पूरा जन्म आपसे जाट बनाम नॉन-जाट का अखाड़ा भुगताया जाता है|

और दोनों में ही औरतों की दशा भी बहुत बुरी है| इस्लाम में कम से कम यह तो है कि औरत के साथ ब्राह्मण या दलित देख के व्यवहार नहीं होता; कि औरत दलित हुई तो भोग्य वस्तु बना के देवदासी बना लो, या ब्राह्मण हुई तो विधवा बना के विधवा आश्रमों में पहुंचा दो (वृन्दावन जैसे विधवा आश्रमों में 80% विधवाएं बंगाली-उड़िया-बिहारी मूल की ब्राह्मणियां हैं) या सति करवा दो| इस्लाम में औरत पे बुर्के का जोर है, सरिया जैसे कानून हैं परन्तु हैं सब औरतों के लिए समान; दलित-ब्राह्मण कुछ नहीं|

लेकिन अगर तीन दशक पहले के इराक-ईरान-टर्की की औरतों की तस्वीरें देखें तो कह ही नहीं पाएंगे कि यह पेरिस की औरतें हैं या इराक-ईरान-टर्की की; क्योंकि उस वक्त इस्लाम ने इतना कट्टरपना नहीं अपनाया था जितना अब अपनाये हुए है| इसलिए इस्लाम जितना सेक्युलर होता जाता है उसके यहां औरत भी आज़ादी पाती है, परन्तु हिन्दू या सनातनी के यहां इसके कोई चांस नहीं| हजारों सालों पहले भी विधवा होते ही इनकी औरतों को असल तो पति के साथ चिता में ही फेंक देते थे अन्यथा विधवा आश्रमों में तो आज भी भेजी जाती हैं| उदाहरण ऊपर दिया है| बाकी के हरिद्वार से ले हुगली तक गंगा के घाटों पे बने विधवा आश्रमों का तो पता नहीं, परन्तु यह जाटलैंड की छाती मथुरा में बना वृन्दावन का विधवा आश्रम मुझे बहुत अखरता है| कभी भगवान ने सामर्थ्य और संसाधन दिए तो इस आश्रम को उखाड़ इन औरतों को जरूर मुक्त करवाऊंगा|

धर्म नाम होता है मानसिक कमजोरियों से उभर के नए जीवन का सृजन करना, जन्मभर किसी का मानसिक गुलाम बना रहना नहीं| और हिंदुत्व यानी सनातन कैसे मानसिक गुलाम बनाते हैं, इसका सबसे बड़ा उदाहरण हिन्दू धर्म का वो समाज है जिसके वंशों को इस धर्म को बनाने वालों के एक अवतार ने 21-21 बार काट फेंका था, परन्तु वो बेचारे नादान फिर भी इनकी ही स्तुति करते हैं; जाट से बेशक लड़ लें, परन्तु क्या मजाल जो अपने 21-21 वंशो के पुरखों के अपमान का बदला लेने हेतु कभी अपने गुस्से और तलवार का मुंह इनकी तरफ मोड़ देवें| इसलिए इस धर्म में अगर आप स्वर्ण भी कहलाये तो रहोगे इनके नीचे ही| और मुझे धर्म के नाम पे किसी के नीचे रहना हरगिज मंजूर नहीं| धर्म बराबरी और सत्कार सिखाता है, दर्जा और दया का पात्र बनना नहीं|

तो सीधी सी बात है और हर नवयुवा को समझनी चाहिए कि जहां समानता और सत्कार ना हो, वो धर्म नहीं हुआ करता, कोरी राजनीति होती है राजनीति| इसलिए हिन्दू यानी सनातन धर्म सिर्फ और सिर्फ इसको घड़ने वालों द्वारा आप पर राज करने की राजनीति के सिवाय भी कुछ नहीं|

या तो दलितों की तरह फिर से बौद्ध धम्म में चले चलो अन्यथा जाट हो तो अपना जाट धर्म खड़ा करना होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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