Saturday 30 April 2016

सर छोटूराम की ज़मीन पर जाट - ग़ैर जाट की राजनीति!

आज के वक़्त में हरियाणा में जो यह जाट ग़ैर जाट की गंदी राजनीति चल रही है यह कोई नई नहीं है , यह सर छोटूराम के वक़्त से ही चली आ रही है । सर छोटूराम के वक़्त में पंजाब में ग़ैर जाट की बात करने वाले पंडित श्रीराम शर्मा , गोकुलचंद नारंग , भार्गव , सच्चर आदि मुख्य नेता होते थे । सर छोटूराम पंजाब में किसान जाट की आवाज़ के लिए एक साप्ताहिक अख़बार जाट गजट निकालते थे जोकि उर्दू में होता था , वहीं शहरी लोगों की आवाज़ के लिए पंडित श्रीराम शर्मा पाँच अख़बार निकालते थे जिनमें हरियाणा तिलक मुख्य नाम था । पंडित श्रीराम शर्मा का हरियाणा तिलक पहला वो अख़बार था जिसने पंजाब में सर छोटूराम की जीत पर इस ' जाट-ग़ैर जाट' शब्द को जन्म दिया था ।

आज़ादी के बाद भी सर छोटूराम के पंजाब में यह जाट- ग़ैर जाट का खेल जारी रहा । आज़ादी के बाद सर छोटूराम के पंजाब की मुख्यमंत्री की कुर्सी 1947-55 तक सच्चर और भार्गव जोकि खत्री जाति से थे के बीच झूलती रही , पंजाब में मुख्यमंत्री की कुर्सी इन दोनों के बीच म्यूज़िकल चेयर बन कर रह गई थी । जब तक ये दोनों मुख्यमंत्री रहे तब तक पंजाब का बोली आधार पर बँटवारा ठंडे बस्ते में ही रहा पर जैसे ही पंजाब के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर एक सिक्ख ज़ट्ट सरदार प्रताप सिंह कैरों की पकड़ हुई तो अकाली नेता मास्टर तारा सिंह जोकि खत्री जाति से थे व सावरकर के ख़ासमखास थे ने पंजाब का बोली आधार पर बँटवारे के लिए आंदोलन छेड़ दिया और इनका साथ दिया हिंदी बोली के समर्थक संघी डॉक्टर मंगल सेन ने । जब यह आंदोलन परवान चढ़ने लगा तो हिंदू पंजाबियों को ख़तरा हुआ कि अगर बोली आधार पर पंजाब का बँटवारा हुआ तो नए राज्य का मुख्यमंत्री भी जाट ही बनेगा तो हिंदू पंजाबियों ने महा पंजाब का नारा दिया जिसकी काट में हरियाणा के नेताओं ने विशाल हरियाणा का नारा दिया । 1966 में सर छोटूराम के पंजाब का एक और बँटवारा हुआ , जिसमें से हरियाणा नया राज्य बना और कांग्रेस पार्टी ने पंडित भागवत दयाल शर्मा को इसका पहला मुख्यमंत्री बनाया जबकि पार्टी में चौधरी रणवीर सिंह हुड्डा , चौधरी हरद्वारी लाल , चौधरी सूरजमल आदि पंडित जी से भी वरिष्ठ नेता थे । प्रोफ़ेसर शेर सिंह , चौधरी देवी लाल , चौधरी लहरी सिंह उस वक़्त विपक्ष में थे । काफ़ी उठक पटक के बाद चौधरी बँसी लाल हरियाणा के पहले जाट मुख्यमंत्री बने । चौधरी बँसी लाल ने हरियाणा में विकास की गंगा बहा दी पर केंद्रीय सरकार की नस बंधी योजना और इंदिरा गांधी द्वारा घोषित इमर्जन्सी में चौधरी बँसी लाल के विकास कार्य ढक गए । जेपी आंदोलन में चौधरी देवी लाल देहाती जमात में अपनी पकड़ और भी मज़बूत कर चुके थे साथ ही देहात में ये धारणा बन चुकी थी कि कांग्रेस ग़ैर किसानों ब्राह्मण बनियों की पार्टी है जिसकी बदौलत इमर्जन्सी के बाद चुनाव में चौधरी देवी लाल को भारी जीत मिली और हरियाणा के मुख्यमंत्री बने , पर थोड़े दिन बाद ही संघी डॉक्टर मंगल सेन और सुषमा स्वराज ने किसानों की कहे जाने वाली देहातियों की इस सरकार की राह में रोड़े अटकाने शुरू कर दिए , सरकार की राह में अटकाए गए इन रोडों को फ़ायदा उठाते हुए चौधरी भजन लाल जोकि मांझू गोत्र के जाट थे ने किसानों की लोकप्रिय सरकार गिराने में अहम भूमिका निभाई ।

चौधरी भजन लाल जानते थे कि हरियाणा में जाट बहुसंख्यक है और राज करना है तो जाटों का साथ ज़रूरी है इसलिए उन्होंने जाटों को रिझाने के लिए कई बार कहा कि वे जाट है बिशनोई उनका पंथ है , विधानसभा में भी उन्होंने अपने को जाट बताया परंतु चौधरी देवी लाल की सरकार गिराए जाने की वजह से जाट उनसे नाराज हो गए और उन्हें जाट मानने से इंकार कर दिया । अब चौधरी भजन लाल ने देखा कि जाट उनको मानने को तैयार नहीं तो उन्होंने हरियाणा में जाट - ग़ैर जाट की नए सिरे से राजनीति शुरू की और ख़ुद को ग़ैर जाट नेता के तौर पर प्रस्तुत कर दिया । पर इसमें देखने वाली ख़ास बात ये थी कि ख़ुद को ग़ैर जाट नेता प्रस्तुत करने के बाद भी उनकी सरकार में पाँच छह जाट मंत्री रहते थे ।

चौधरी भजन लाल द्वारा अस्सी के दशक में जो जाट - ग़ैर जाट की राजनीति का बीज बोया गया था वह पेड़ बना अब जाकर , जिसका फल खाया संघी सरकार ने , आज सरकार में सिर्फ़ दो ही जाट मंत्री है वह भी शायद कोई मजबूरी रही होगी । सर छोटूराम की ज़मीन पर जाट - ग़ैर जाट की राजनीति के इस पेड़ की जड़े सदा हरी रखने के लिए संघी कई तरह के प्रयास कर रहे है , पंचनद का ड्रामा भी इन प्रयासों की एक कड़ी है । जाट - ग़ैर जाट की राजनीति का खेल सिर्फ़ हरियाणा में ही नहीं पंजाब में भी चल रहा है पर वहाँ इसे हिंदू-सिक्ख की आड़ में ढक रखा है जिस कारण पंजाब के बाहर के लोगों को यह खेल सिर्फ़ धर्म के आधार पर ही नज़र आता है ।
सर छोटूराम यह अच्छी तरह समझ गए थे कि जाट किसान के हित और ब्राह्मण महाजन समुदायों के हित परस्पर विरोधी है । संयुक्त पंजाब में मंडी फ़ंडी के खेल को समझते हुए सर छोटूराम ने जाट किसानों को सामाजिक व आर्थिक चौधर के लिए अलग से जो मंच तैयार करके दिया था उसे हम भूल गए पर मंडी फ़ंडी सर छोटूराम की दी हुई चोट को नहीं भुला और ये अपने मक़सद में लगे रहे । आज ये मंडी फ़ंडी की सोच का ही कमाल है जो हमारे समान हित वाली किसान व दलित जातियाँ भी हमारे विरोध में खड़ी होती जा रही है ।

Source - यूनियनिस्ट राकेश सांगवान

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