Saturday 28 May 2016

बावली हो गई है जाटोफोबिया की सताई हरयाणा सरकार और पुलिस!

क्या भाजपा और आरएसएस, देशद्रोह कानून का कुछ ज्यादा ही गैर-कानूनी प्रयोग नहीं कर रही है? जिसपे देखो उसपे लगा के खड़ी हो जाती है| अपने अधिकारों के लिए रैली-सभा करना, हड़ताल करना कबसे देशद्रोह में आने लगा? क्या यह लोग देशद्रोह कानून का मजाक नहीं बना रहे हैं| आखिर जो कानून देश के विरुद्ध आतंकी गतिविधियों, सविंधान-द्रोह, या जैसे कार्य राजकुमार सैनी, अश्वनी चोपड़ा और रोशन लाल आर्य ने बोल बोले हैं उन जैसी गतिविधियों के लिए होता है; इसको इन पर लगने की बजाए, सिर्फ अपने हक़ के लिए आंदोलन करने वाले नेताओं पर लगा के गलत राह पर नहीं जा रही है सरकार?

या तो यह अपने आपसे किसी को स्याना ही नहीं समझते, या उल-जुलूल तरीके "मैं ही ठीक हूँ" की जुबान में खुद को सबपे थोंपना चाहते हैं या फिर यह जाटों से हद से ज्यादा डरे हुए हैं कि जाटों ने फिर से अधिकारों के लिए आंदोलन की बात क्या कह दी, उठा के देशद्रोह ही लगा दिया| देशद्रोह का मुकदमा ना हो गया कोई बच्चों का खेल हो गया, जो राह चलतों पर भी लगा दिया जाए|

यह कोई बाल ठाकरे-राज ठाकरे की भांति भाषावाद-क्षेत्रवाद या सैनी-चोपड़ा-खट्टर-आर्य की भांति जातिवाद या आरएसएस की भांति धर्मवाद थोड़े ही फैला रहे हैं; सिर्फ अपने समुदाय के लिए हक़ ही तो मांग रहे हैं; तो इनपर देशद्रोह बन ही नहीं सकता|

मानता हूँ कि जाट आरक्षण मुद्दे पर अब कानूनी लड़ाई चलेगी, इसलिए जाट नेताओं को हाल-फिलहाल आनन-फानन में बड़े आंदोलन से बचना होगा, परन्तु उसको रोकने का यह तरीका कतई गैर-कानूनी है कि सीधा उठाओ और देशद्रोह ठोंक दो| इस मामले पे सलीके से लड़ने वाले वकील हों तो खुद ही कानून का दुरूपयोग करने के मामले में सरकार को कोर्ट में घसीट सकते हैं| और दावे से कहता हूँ सरकार औंधे मुंह की खायेगी कोर्ट में|
सरकार तो सरकार, इनके तो अफसर भी बौखलाए हुए हैं| हरयाणा के डीजीपी कहते हैं कि "गुनहगार को क़त्ल करना जनता का अधिकार है|" तो जनाब फिर आप पुलिस, कानून और कोर्ट क्या "डोके-धार" लेने के लिए बना रखे हो, या बालकों को खिलाने और दूध पिलाने के लिए बना रखे हो जो जनता को छूट दे रहे हो अपराधियों को मारने की?

लगता है सरकार, कानून, कोर्ट सब सठिया गए हैं जो ऐसे उल-जुलूल तरीके से व्यवहार कर रहे हैं या फिर जाटों से बहुत ही डरे हुए हैं जो इनको खुद में, देश के कानून में और कोर्ट में यकीन नहीं रहा या फिर खुद ही देश को गृहयुद्ध में झोंकने की ठान चुके हैं|

सब जानते हैं कि 5 जून को होने वाले आंदोलन का हरयाणा में जाट आंदोलन के स्टेटस से कोई लेना-देना नहीं, वह आंदोलन सेंट्रल रिजर्वेशन के लिए शुरू किया जाना था; वो तो संयोग की बात है कि कोर्ट ने उसी वक्त स्टेट में स्टे दे दिया| कोर्ट ने स्टे क्या दे दिया हरयाणा सरकार और पुलिस सबके हाथ-पाँव फूल गए और सीधा उठा के लगा दिया देशद्रोह| भैया आपसे सरकार नहीं सम्भलती या नहीं चलानी आती तो और कुशल बहुतेरे हैं, रास्ता छोड़ें और घर आराम फरमाएं| सीरियस बात यही है सरकार जी और डीजीपी जी कि इतने उतावले ना होवें कि देश के कानूनों का आपसे ही दुरूपयोग हो जाए और कोर्ट में जवाब देना भारी हो जाए|

वैसे मैं कोई नेता-लीडर नहीं, परन्तु निजी राय में यही मानता हूँ कि जेठ की गर्मी में जाटों को घर में आराम करना चाहिए, और कानूनी लड़ाई से चीजें आगे बढ़ने देनी चाहिए| यह कानूनी अड़चनें तो पहले से अपेक्षित थी, इसके लिए लड़ाई कोर्ट में लड़ी जाएगी, सड़क पे नहीं|

हाँ, कोई जाट, जाट-समूह, जबरजसतम (जाट-बिश्नोई-रोड-जाट सिख-त्यागी-मुला जाट) समाजों का समूह भिवानी वाले मुरारी लाल गुप्ता जिनकी PIL की वजह से स्टे लगा है, उनकी बिरादरी के आर्थिक आधारित आरक्षण पर भी रोक बारे PIL डाल दे तो बात बने| परन्तु हाँ किसी भी सूरत में एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण को रोकने बारे PIL डालने की गलती नहीं होनी चाहिए|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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