Thursday 15 September 2016

धर्मकारी इंसान सिर्फ धर्म पाल सकता है, मानवता नहीं; खाप-चौधरी ना हटें अपने किरदार से दूर!

धर्मकारी, अपने धर्म को श्रेष्ठ बताने और बनाने के चक्कर में मानवता की सीमा लांघते हुए दूसरे धर्म की आलोचनाओं का सहारा लेने तक से नहीं चूकता| ऐसे में समाज का फर्ज बनता है कि वह इन धार्मिक से कभी-कभी धर्मांध बन जाने वाले धर्माधीशों को न्यायधीश बन इनकी सीमा में रहने हेतु याद दिलाता रहे और इनको ‘जियो और जीने दो’ सिखाता रहे|

अभी हाल तक खापें यह कार्य प्रभावशाली तरीके से करती रही हैं| परन्तु ज्यों-ज्यों खापें "सामाजिक न्याय मंच" कम और "पोलिटिकल लॉन्चिंग पैड" ज्यादा बनती जा रही हैं, त्यों-त्यों अपनी गरिमा धूमिल करती जा रही हैं| खाप चौधरियों को अपने टैलेंट के साथ न्याय करना होगा और समझना होगा कि मोहन भागवत, मोदी तो बना सकता है, परन्तु खुद मोदी नहीं बन सकता| कहने का तात्पर्य है कि आप खापों के जरिये समाज के न्यायधीश रहते हुए अगर नेता भी बनना चाहो तो ऐसा करके आप खुद के टैलेंट और ओहदे दोनों से अन्याय करते हैं| फिर भी नेता बनना है तो खाप के पद से इस्तीफा देवें और शुद्ध राजनीति करें, परन्तु कृपया खापों को समाज की ऐतिहासिक एनजीओ के रोल में ही रहने दें|

आदर-मान-सम्मान-चौधर खाप-चौधरी व् नेता दोनों किरदारों में हैं, परन्तु तब-तक जब तक इनको मिक्स नहीं करके, अलग-अलग रखा जाए| दो-दो नाव में खुद ही सवार होने से, अपनी तो टाँगे बीच से चिर जाती ही हैं, साथ ही समाज रुपी नाव भी डूबने लगती है, दिशाहीन हो जाती है| यानि खुद के व् समाज के साथ "ना घर के ना घाट के" वाली होने देने से बचें व् बचाएं|

और इन धर्मान्धता के पिशाचों को काबू में रखने के लिए, अपने पुरखों वाले ऐतिहासिक किरदार में चलें, व् इनकी अति से समाज को ठीक वैसे ही बचाएं जैसे आपके-हमारे पुरखे बचाते थे|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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