Thursday 15 September 2016

जेनयू में बापसा की जीत से हरयाणा के उन कम्युनिस्टों को अपनी आँखें जरूर खोलनी चाहियें!

जो बंगाल-बिहार की मनुवादी सोच वाला कम्युनिज्म हरयाणा में चलाने की नाकाम कोशिश करते रहे हैं और बाल्टियों में चून मांगने तक की पहचान बनाने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाए|

मनुवादी चाशनी में डूबा लेफ्ट आपको जो दिखाता आ रहा है उसको तो सर छोटूराम एक शताब्दी पहले ही उखाड़ के जा चुके| आखिर क्यों नहीं लेफ्ट के आकाओं ने कभी सर छोटूराम की लिगेसी को उठाने दिया, क्योंकि सर छोटूराम जाट थे| और उनकी आइडियोलॉजी का मूल ही मनुवाद की जड़ों पे चोट करना था, जो भारतीय लेफ्ट विंग पर कब्ज़ा जमाये मनुवादी कभी होने नहीं देना चाहते थे|

समय रहते पुनर्विचार कीजिये अपनी स्ट्रेटेजी पर, वर्ना अभी तो लेफ्ट आइडियोलॉजी की स्टूडेंट विंग में "बापसा" बना है, आने वाले वक्त में पोलिटिकल विंग में भी बनेगा|

इसीलिए मैं मनुवादी-लेफ्ट नहीं, छोटूरामवादी हूँ; मैं कम्युनिस्ट नहीं, यूनियनिस्ट हूँ|

हरयाणा से फ्यूडलिज्म का खात्मा बरकरार रखना है तो सर छोटूराम को उठाये रखना ही होगा|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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