Tuesday 13 December 2016

ऐ किसान, तू तेरे हिसाब की बही के चेक्स और बैलेंस दुरुस्त कर ले, बाकी सब स्वत: खुड्डे-लाइन में लग जायेंगे!

लहलहाती फसल में एक जानवर घुसने पर भी लठ लेकर उसपे टूट पड़ने वाले ओ किसान, यह तेरी फसलों के दामों का भाव तुझे निर्धारित ना करने दे के, खुद निर्धारित करने जो इंसानी जानवर टूट पड़ते हैं उनपर लठ ले के कब चढ़ेगा और कब उन पर चढ़ेगा जो तेरे कृषि-ज्ञान (स्वघोषित ब्रह्मज्ञानी तक अपने पेट भरने हेतु, तेरे इस ज्ञान पर निर्भर हैं), आध्यात्म को धत्ता और गंवार बता कर; तुझपे अपना काल्पनिक ज्ञान थोंप, दान-चन्दे-चढ़ावे के नाम पर तेरी जेबों में घुस जाते हैं?

तेरी फसल का एक-एक रुपया भाव बढा के देने पर भी महाकंजूसी बरतने वाले, तेरे दिए दान-चन्दे-चढ़ावे का मुड़ के हिसाब भी ना देने वालों के प्रति तेरा इतना नरम रूख क्यों, यह लाचारी क्यों? इनको पेट का अन्न तू देवे, दान-चन्दा-चढ़ावा तू देवे और इनसे इसका हिसाब भी ना लेवे; आखिर यह कैसा हिसाब है तेरा? तू तेरे हिसाब की बही के यह चेक्स और बैलेंस दुरुस्त कर ले, बाकी सब स्वत: लाइन में लग जायेंगे|

मैं कहता हूँ तू यह हिसाब लेना शुरू कर दे, यह अपने-आप ही तुझे अनपढ़-गंवार कहना बंद कर देगें| तू डरता किस बात से है यह तुझे नहीं मार सकते, क्या कभी किसी परजीवी को देखा है उसके पालक को मारते हुए? जैसे कि भैंस के थनों में चिपकी जोंक, इंसान के सर में घुसे ढेरे कभी भैंस या इंसान के सर को खत्म नहीं कर सकते ठीक वैसे ही तेरे ज्ञान से उगाये अन्न पर पलने वाला बाकी परजीवी समाज तुझे खत्म नहीं कर सकता; बशर्ते कि हताशावश तूने स्वत: खत्म होने की उल्टी नियत ना धार ली हो| तू शोर मचा, अपना हिसाब-किताब दुरुस्त कर; परविजियों की हिम्मत नहीं तेरे आगे बोल जावें|

तू क्यों व्यर्थ उनकी चिंता करता है जो तेरे कृषि ज्ञान को निरक्षरता, अनपढ़ता, अज्ञानता और गंवारपना के तिरस्कार दे-दे सिर्फ अपने इम्प्रैक्टिक्ल ज्ञान की गपेड़ों से समाज को भरमाते हैं? ऐसे अहसानफरामोश लोग जो तेरे ज्ञान को ज्ञान का दर्जा देने की बजाये तिरस्कारी शब्द देवें, और तुझसे ही उनके इम्प्रैक्टिक्ल ज्ञान पे ऑथेंटिसिटी चाहवें तो सोच कि वो सिर्फ अपना पेट भरने को ही नहीं, अपितु उनके ज्ञान की ऑथेंटिसिटी हासिल करने तक को तुझपर निर्भर हैं| अपनी इन ताकतों, अपने इन सामर्थ्यों को पहचान और खोल के जटा उलझनों-अंतर्द्वंदों व् जद्दोजहदों की, उतर आ हिसाब-किताब पर|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

No comments: