Wednesday 1 March 2017

फूहड़ गानों की वजह से हरयाणा के दो अग्रणी समाजों में वर्तमान में चल रहे क्लेश का अंदेशा सर्वखाप के महामंत्री ने पण्डित नेहरू के आगे 1954 में ही जता दिया था!

बात तब की है जब 1954 में हरयाणा सर्वखाप के 28वें महामंत्री दादा चौधरी कबूल सिंह बाल्याण जी ने तब के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को बॉलीवुड फिल्मों में बढ़ती नग्नता व् फूहड़ता पर रोक लगाने हेतु कहा था कि, "इस नग्नता को रोकने के लिए समय रहते कदम उठाईये, नहीं तो समाज के नैतिक मूल्यों में पतन होगा, और आपसी इज्जत व् प्रेम घट के क्लेश की वजह बनेगा!"

उस वक्त पण्डित नेहरू ने उनकी बात को हल्के में लेते हुए कहा था कि, "आप जरूर जाट होंगे, जो ऐसा सोचते हैं?"

खैर, नेहरू ने उस महान दार्शनिक व् दूरदृष्टाता की बात को थोड़ा बहुत भी सीरियस ले लिया होता तो आज हरयाणा में यह हालात नहीं होते कि फूहड़ गानों की वजह से जाट और ब्राह्मण समाज आमने सामने खड़े हैं|
जाट में तो सहनशक्ति फिर भी होती है इसीलिए तो जब मासूम शर्मा ने "क्यूट जाटणी" गाना निकाला था तो किसी को पता तक भी नहीं लगा और गाने को नार्मल लिया गया| गाना आया और गया हुआ हुआ| परन्तु ब्राह्मण में सहनशक्ति नहीं होती, और जैसे ही "लाल बाह्मणी" गाना आया तो सब बिदक पड़े| इसी को कहते हैं खुद को लागे तो जाने, इन्होनें मासूम शर्मा ने जब "क्यूट जाटणी" निकाला था तभी उसको डाँट देते तो किसी को "लाल बाह्मणी" बनाने तक की नौबत नहीं आती| अब फिर रहे हैं भभकते|

ऐसे वक्त पर उन 'गोल बिंदी गैंग', 'लेफ्टिस्ट गैंग', "खापों पे केस करने वाले साहनी" जैसों को पकड़ कर पूछना चाहिए कि क्या यही वो आज़ादी थी जिसके लिए दिन रात खाप जैसी संस्थाओं को डंडा दिए रहते थे? उनसे भी पूछना चाहिए जो "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" उठाये फिर रहे हैं, कहीं औरतों के आदर की तख्तियां उठाये फिर रहे हैं कि क्यों नहीं खापोलोजी के उस वक्त के "गाम-गौत-गुहांड" के नियम सुहाए थे तुम्हें? तुम ही चले थे ना छत्तीस बिरादरी की बेटी को अपनी बेटी मानने के सिद्धांतों को कुचलते हुए, इन आज के हालातों तक समाज को पहुंचाने हेतु? क्यों नहीं तुमने सामाजिक संस्थाओं की एक भी बात टिकने दी? आते क्यों नहीं अब आगे, क्रेडिट लेने को कि हाँ, सामाजिक संस्थाओं को दरकिनार करवा के जिस खुलेपन के सपने हमने समाज को दिखाए थे, उसका एक घिनौना पहलु यह भी है कि आज दो समाज एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हैं|

समाज के युवा को सन्देश: अपनी खाप व्यवस्था के "गाम-गौत-गुहांड" के नियम को पकड़ के रखो अगर चाहते हो कि समाज में तुम्हारी खुद की व् सर्वजात की बहु-बेटी की इज्जत बनी रहे| मत बहको इन भांडों के चक्करों में, सीखो अपने समाज के उस महान दार्शनिक दादा कबूल सिंह चौधरी से, जिसको नेहरू जैसे भी नहीं समझ पाए थे| अपनों की दार्शनिकता, दूरदृष्टता को कानों के ऊपर से मार के अनजानों के बहकावों में चलोगे तो यूँ ही खता खाओगे| बात इस बात की नहीं है कि कौन ताकतवर है और कौन शातिर; बात है जग-हंसाई की, इससे बच के चलने में ही इज्जत होती है|

गलत को गलत कहना शुरू करो, फ़िल्में-टीवी सीरियल्स खुदा नहीं; इनमें सही को सहेजो और गलत को ठोकर मारनी शुरू करो| आखिरकार हैं तो यह भी धंधेबाज ही, 10% सही दिखाते हैं तो 90% फूहड़ता भी यही परोसते हैं|

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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