Saturday 16 May 2020

फोकस की बात: सत्ता-सोहरत के चार फ्रंट, चारों दुरुस्त तो सब चुस्त, सब मस्त; वो कैसे?

पहला फ्रंट: इकॉनमी (रिसोर्सेज, रोजगार, आमदनी) यानि मनी पॉलिटिक्स
दूसरा फ्रंट: धर्म यानि साइकोलॉजिकल पॉलिटिक्स
तीसरा फ्रंट: सोशल इंजीनियरिंग यानि सोशल प्रेशर ग्रुप यानि प्रेशर पॉलिटिक्स
चौथा फ्रंट: राजनीति यानि पावर पॉलिटिक्स
नार्थ इंडियन परिवेश में जिस-जिस समाज के पास जब-जब यह चारों चीजें सधी रही, वह समाज सर्वसमाज की धुर्री रहा व् जब-जब इनमें से एक-दो में भी कमी-पेशी आई तो वह समाज डावांडोल भी हुआ और प्रतिदवंद्वी समाजों के सॉफ्ट से ले हार्ड टारगेट पर रहा|
ब्राह्मण समाज:
इकॉनमी: पुजार, मीडिया, ब्यूरोक्रेसी, खापलैंड पर खेती व् पशुपालन भी|
धर्म: खापलैंड के बाहर 99% मंदिरों-मठों-डेरों पर डायरेक्ट कमांड, खापलैंड पर 50 से 70% तकरीबन एक-डेड दशक पहले तक, अगर आर्यसमाज या दादा नगर खेड़ों वाले फरवरी 2016 देख के भी नहीं सम्भले तो यह प्रतिशत बढ़ भी सकता है और शायद बढ़ता जा रहा है|
सोशल इंजीनियरिंग: आरएसएस
राजनीति: बीजेपी, पहले कांग्रेस थी कभी|
बनिया समाज:
इकॉनमी: व्यापार (दुकान, उद्योग), मुख्यत: डॉक्टरी, ब्यूरोक्रेसी| कुछ-कुछ मीडिया|
धर्म: ब्राह्मण के साथ मिनिमम कॉमन एजेंडा के साथ मंदिर बना के देना, मंदिर के जरिये पुजारी बनिए का उद्योग चलवायेगा| एक-डेड दशक पहले तक ब्राह्मण के पुजार नामक कारोबार के सबसे बड़े इन्वेस्टर बनिया ही रहे हैं| आज कुछ नए-नए कॉम्पिटिटर्स उभर आये हैं|
सोशल इंजीनियरिंग: "एक रुपया, एक ईंट; परन्तु सिर्फ बनियों में| आरएसएस| जब खाप मजबूत होती थी तो बनिए खापों की पंचायतों-चबूतरों पर भी दान देते आये हैं|
राजनीति: मुख्यत: जहाँ ब्राह्मण, वहां बनिया|
अरोड़ा/खत्री:
इकॉनमी: व्यापार (दुकान, उद्योग), ब्यूरोक्रेसी, मीडिया व् कुछ मात्रा में खेती|
धर्म: ब्राह्मण के हिंदी आंदोलन के अगुवा, परन्तु पंचनद के जरिये पंजाबी को भी बचाने की लालसा; इसीलिए आजकल ब्राह्मण को बाईपास करने की स्थिति व् शायद मूड में भी| हुड्डा सरकार द्वारा धौली में मिली दान की जमीनें (90% जाटों से) कानूनी तौर पर ब्राह्मणों के नाम किये जाने के बावजूद, खट्टर बाबू ने पहली योजना में ही सारी नाम से वापिस हटा दी| फरसे से गला काटने की गुर्खी के जरिये अपनी अग्रिम मंशा जता दी| हिंदी आंदोलन व् जगरातों-भंडारों के जरिये जितना बिज़नेस कर सकते थे वह करके व् इन पहलुओं का पूरा जूस निचोड़ के, अब पंजाबी भाषा व् कल्चर को अमृतसर से ले दिल्ली तक वापिस खड़ा करने हेतु जाटों के साथ दबे सुर में अलायन्स के इच्छुक|
सोशल इंजीनियरिंग: पंचनद व् आरएसएस दोनों|
राजनीति: मिक्स, आज के दिन बीजेपी, पहले इनेलो व् कांग्रेस भी सूट करती आई हैं|
ओबीसी:
इकॉनमी: कारीगर, खेती, पशुपालन, साजिंदे, कुछ मात्रा में व्यापार व् ब्यूरोक्रेसी
धर्म: सटीक-सटीक जानकारी नहीं मेरे पास| हालाँकि खापलैंड पर आर्यसमाज के प्रभाव में रहे हैं|
सोशल इंजीनियरिंग: खापलैंड पर गए जमानों तक खाप, आज की सटीक जानकारी नहीं|
राजनीति: कांग्रेस, जनता दल, इनेलो, सपा, बसपा, बीजेपी|
क्षत्रिय यानि राजपूत:
इकॉनमी: आज़ादी से पहले राजे-रजवाड़े| कृषि-पशुपालन व् इनसे संबंधित व्यापार, लैंड एंड प्रॉपर्टी, आर्म्ड फोर्सेज (डिफेंस, पुलिस)
धर्म: जहाँ ब्राह्मण, वहां क्षत्रिय|
सोशल इंजीनियरिंग: आज के दिन आरएसएस, खापलैंड पर राजपूत खाप भी पाई जाती हैं|
राजनीति: पहले कांग्रेस, अब बीजेपी व् कुछ क्षेत्रीय दल जैसे हविपा, जनता दल, इनेलो, रालोद आदि|
दलित:
इकॉनमी: मजदूरी, कारीगरी, नौकरी व् उद्योग
धर्म: बुद्ध, सनातन व् कहीं-कहीं आर्य समाजी| इसके अलावा जातीय गुरुवों के नाम के अपने-अपने पंथ| परन्तु मंदिरों में अधिकारों का मोह नहीं छोड़ पाते|
सोशल इंजीनियरिंग: बामसेफ
राजनीति: बसपा मुख्यत:|
जाट:
इकॉनमी: आज़ादी से पहले राजे-रजवाड़े| उदारवादी जमींदारी (कृषि-पशुपालन व् इनसे संबंधित व्यापार), लैंड एंड प्रॉपर्टी, आईटी इंजीनियर्स बहुतायत में, खेल, आर्म्ड फोर्सेज (डिफेंस, पुलिस), कुछ-कुछ मीडिया व् पुजार (आर्यसमाज व् दादा नगर खेड़े मुख्यत:)|
धर्म: मुख्यत: दादा नगर खेड़ों के मूर्ती-पूजा रहित कांसेप्ट पे बना आर्यसमाज, आर्य समाज से पहले दादा नगर खेड़े, एरिया के हिसाब से लोकल जाट डेरे व् मंदिर| खापलैंड पर ब्राह्मण के बाद दूसरा ऐसा समाज जो गए डेड-दशक तक अपने यहाँ के बयाह-शादी-फेरे-काज-कर्म खुद ही करता आया है| यानि नार्थ इंडिया में धर्म में ब्राह्मण ने अपनी मोनोपॉली किसी के साथ बंटवाना स्वीकारा तो सिर्फ जाट के साथ| आर्य-समाज इसका सबसे बड़ा उदाहरण है| जो जाट 35-40 साल की उम्र से ज्यादा के हैं उनमें न्यूतम 50% से 70-80% ऐसे मिलेंगे जिनके ब्याह-फेरे किसी जाट शास्त्री या आर्यसमाजी के ही करवाए हुए हैं| आज भी गाम गेल बहुतेरे परिवार-ठोले, बहुत से जाट कुनबे ऐसे हैं जो आज भी अपने हवन-यज्ञ-कर्मकांड-ब्याह-फेरे कुनबे-ठोले के बूढ़े जाट शास्त्री या आर्य समाजी से ही करवाते हैं|
सोशल इंजीनियरिंग: सर्वधर्म सर्वजातीय सर्वखाप|
राजनीति: आज़ादी से पहले यूनियनिस्ट पार्टी, फिर वामपंथ, हरयाणा बनने के बाद लोकल पार्टीज जैसे जनता दल, हविपा, इनेलो, 2004 के बाद कांग्रेस, अक्टूबर 2014 से फरवरी 2016 छोटे से काल के लिए बीजेपी, जेजेपी, रालोद, सपा, 2015 से सर छोटूराम की लिगेसी पर बना यूनियनिस्ट मिशन आदि|
फोकस की बात: फोकस ना तो इतना तंग हो, छोटा हो कि इन चारों में से सिर्फ एक पहलु पर रगड़ा लगाए रखो और ना इतना सुस्त हो कि चारों पर ध्यान ना रख पाओ| वह लोग खासकर ध्यान देवें, जो सिर्फ राजनीति के दम पर सब कुछ हासिल करना चाहते हैं, नहीं हो पायेगा|
आज के दिन इस क्षेत्र में सबसे बड़ा कॉम्पिटिटर वो है जिसके पास इकॉनमी के नाम पर सिस्टम के लगभग हर क्लच पर उसका पंजा है, धर्म उसका अपना मजबूत है, सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर आरएसएस जैसी मजबूत व् विस्तृत संस्था है व् राजनीति के नाम पर बीजेपी जिसके पास है| और अगर तुम यह सोचते हो कि तुम सिर्फ राजनैतिक फ्रंट पर एक मिशन मात्र पर फोकस करके सब अर्जित कर लोगे तो समझें कि आप इस पूरे खेल के सिर्फ 25% हिस्से पर फोकस दे पा रहे हो| इसलिए फोकस 100% कीजिये|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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