Wednesday 20 May 2020

आज मेरे पास एक अजीब प्रश्न आया: क्या यौद्धेय-लोग नास्तिक होते हैं? क्या यूनियनिस्ट मिशन नास्तिक है?

मैं: आपको क्यों लगा?
प्रश्नकर्ता: जब देखो, फंडियों के खिलाफ पोस्टें, फंडियों की आलोचना|
मैं: धर्म की आलोचना या धर्म के खिलाफ तो पोस्टें नहीं देखी होंगी?
प्रश्नकर्ता: एक-आध की पोस्टों में फंडी विरोध की इतनी अति हो जाती है कि ऐसा ही प्रतीत होने लगता है कि आप यौद्धेय तो धर्म के ही विरुद्ध हैं|
मैं: नहीं ऐसा नहीं है| अगर ऐसा किसी की पोस्ट से प्रतीत भी होता है तो उसको सटीक बैलेंस्ड शब्दों का चयन करना सीखने के अभ्यास की जरूरत है|
प्रश्नकर्ता: तो फिर धर्म पर आप लोगों का सही-सही स्टैंड क्या है?
मैं: वैसे तो हर यौद्धेय, अपने-अपने हिसाब से अपनी व्याख्या रखने को स्वतंत्र है; परन्तु मोटे-तौर पर जिस प्रकार के धर्म-आध्यात्म पर यौद्धेयों में सहमति देखी गई है, वह है पुरख पूजा व् प्रकृति की पूजा|
प्रश्नकर्ता: और जिस पर सहमति नहीं है, वह?
मैं: माइथोलॉजी को हम नहीं मानते|
प्रश्नकर्ता: क्यों?
मैं: जिसके नाम में ही मिथ है वह नाम से ही बोल रही है कि मैं सच नहीं हूँ, तो कैसे मानें उसको?
प्रश्नकर्ता: पुरख पूजा व् प्रकृति पूजा से आशय?
मैं: दोनों की शक्ति का एक धाम, जो जेंडर सेंसिटिव (मर्द देखरेख व् सुरक्षा देखता है, औरत धोक-ज्योत व् बच्चों को इनके माध्यम से अपने पुरखों, प्रकृति, इतिहास व् ह्यूमैनिटी से जोड़ती है; मर्द पुजारी सिस्टम प्रतिबंधित है) भी है और ह्यूमैनिटी सेंसिटिव (कोई जाति-धर्म-वर्ण प्रतिबंध या भेदभाव नहीं) भी है यानि मूर्ती-पूजा रहित "दादा नगर खेड़े"| इसमें मर्द-पुजारी सिस्टम नहीं होने से समाज के बच्चे नशे-पते से बचे रहते हैं व् औरतें, 99% पुजारियों (1% अच्छे भी होते हैं, परन्तु 1% के लिए 99% को समाज को गंदा करने की इजादत देना, सामाजिक तंत्र को अपने हाथों दिया-सलाई दिखाने जैसा है) की गंदी सामंती व् वासनायुक्त नजरों से| दादा नगर खेड़े को खापलैंड पर क्षेत्र व् हरयाणवी-पंजाबी-मारवाड़ी भाषाओं की बोलियों के अनुसार "दादा भैया", "गाम खेड़ा", "जठेरा", "पट्टी खेड़ा", "बड़ा बीर", "बाबा भूमिया", "भूमिया खेड़ा" आदि बोला जाता है| इस कांसेप्ट के सबसे नजदीक लगता है "आर्य समाज", जिसमें सुधार करके फंडियों को आर्य-समाज की तमाम संस्थाओं-इमारतों से बाहर निकाल इनको शुद्ध करने के पक्षधर हैं यौद्धेय; क्योंकि आखिरकार आर्य-समाज की यह तमाम प्रॉपर्टी खासकर ग्रामीण आँचल की तो विशेष-तौर से हमारे पुरखों की दी हुई जमीन व् धन से बनी हुई हैं| इसलिए इन पर पहला और आखिरी हक वंशानुगत, लीगल व् वैचारिक हर तौर पर हमारा बनता है|
प्रश्नकर्ता: तो आप मूर्तिपूजा नहीं मानते तो घरों में पुरखों की, बच्चों की, ब्याह-शादियों की फोटोज क्यों रखते हो?
मैं: क्या हम उनको यादगार हेतु रखते हैं या पूजने हेतु? मेरे ख्याल से फंक्शन्स वाली यादगार हेतु व् पुरखों की उनकी स्मृति को जिन्दा रख उनकी सीखों से मिलने वाली प्रेरणा को तरोताजा रखने हेतु?
प्रश्नकर्ता: हम्म, यह बात जंची कुछ|
मैं: बस तो फिर|
प्रश्नकर्ता: हम्म्म तर्कसंगत है|
मैं: जी!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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