Tuesday 24 November 2020

"किसानों के साथ बदतमीजी" - कौनसा राष्ट्रवाद है यह?

किसानों के ट्रेक्टर कूच होते हमने पेरिस के Champs Elysee पर भी देखे हैं, बर्लिन-ब्रूसेल्स-लंदन में भी देखे हैं; यूरोपियन यूनियन के ब्रुसल्स हेडक्वार्टर के आगे तक देखे हैं; परन्तु उनको यहाँ की सरकारें शहर के बॉर्डर पर नहीं रोकती| शहरी नागरिकों का रवैया इतना सहयोग भरा रहता है कि पेरिस के Champs Elysee पर रहने वालों को किसानों को रषद-पानी देते तक देखा है| पुलिस तक को सिर्फ किसानों के ट्रैफिक को सुचारु रूप से सुनिश्चित करने की ड्यूटी होती है, उनको रोकना या बेरिकेड लगाना तो यहाँ सपनों तक में नहीं होता|

तो फिर कौनसी मानसिकता, कौनसा भय है जो इंडिया में किसानों के साथ ऐसा किया जाता है? यह है कोरा वर्णवाद व् इस देश को अपना नहीं समझने की मानसिकता| अपने ही देश के किसान को जब सड़क आना पड़े तो आम जनता से ले सरकारों तक के हृदय सम्मान में भर के चेत जाते हैं कि ऐसा क्या गलत हुआ जो हमारे किसान को खेतों से निकल सड़कों पर आना पड़ा| और एक ये तथाकथित थोथे राष्ट्रवाद को माथे धरे जो चल रहे हैं इनके तो माथे-त्योड़ी ही दुनियाँ जहान से भी अलग किस्म की पड़ती हैं कि जैसे यह कोई विदेशी आक्रांता हों और यहाँ के किसान इनके गुलाम| इसके ऊपर जुल्म इनकी वर्णवादी मानसिकता| हद दर्जे का कहर है यह| कौनसा राष्ट्रवाद है यह?
अब प्लीज यह कोरोना आगे मत अड़ाना| अभी-अभी बिहार चुनाव हो के हटे हैं, बंगाल चुनाव की तैयारी है| फंडी-पाखंडियों के मेलों-पंडालों से खड़तल-खुड़के बदस्तूर जारी हैं| इनसे ना फैलता कोरोना? और इनमें फ़ैल जायेगा, जो इम्युनिटी सिस्टम के हिसाब से देश के सबसे स्ट्रांग लोग हैं? और यह बात इस बात से भी सत्यापित है कि 10 सितंबर 2020 पीपली आंदोलन के बाद से किसान सड़कों पर ही बैठे हैं; 2.5 महीने कम नहीं होते, इनमें कोरोना फ़ैलना होता तो यह धरना-स्थल श्मशान बन चुके होते अभी तक|
पहचान लो, कि आप अभी भी गुलाम हो और विदेशी ही ताकतों द्वारा शासित हो जिनका ओरिजिन थाईलैंड-कम्बोडिया वाली थ्योरी से साफ़ सत्यापित होती दिख रही है| अगर ऐसा है तो यहाँ से नारा दे लो कि, "थाईलेंडियों, भारत छोड़ो! कम्बोडियाईओ, भारत छोडो!" ग़दर मचा दिया इन्नें तो कति| दुनियां में किते भी कोनी देख्या यह सिस्टम तो| इनका कोई कनेक्शन नहीं है आपके इमोशंस से, मुद्दों से| सर छोटूराम वाले तेवर अपनाने से ही राह निकलनी अब तो|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक



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