Wednesday 26 May 2021

'मार दिया मठ', 'हो गया मठ', 'कर दिया मठ'!

यह कहावतें हमारे समाज में होने का मतलब समझने की जरूरत है| कल थोड़ा सा व्यस्त था इसलिए बुद्ध पूर्णिमा पर पोस्ट नहीं निकाल पाया| 'मठ' बुद्ध धर्म का ही कांसेप्ट है, वहीँ से कॉपी हुआ है बाकी सब जगह| जाट महाराजा हर्षवर्धन बैंस बुद्ध धर्मी हो गए थे, यह वही जाट राजा हैं जिन्होनें "सर्वखाप" सिस्टम को 643 AD में विश्व में सबसे पहले 'लीगल सोशल जस्टिस' में समाहित किया था व् खापों को ठीक वैसी ही सोशल जूरी होने की वैधानिक मान्यता दी थी जैसी कि आज के दिन अमेरिका-यूरोप-ऑस्ट्रेलिया आदि में पाई जाती है|


अकेले वर्तमान हरयाणा की बात करें तो इसमें 22 पुरातत्व साइटें हैं बुद्ध की| भंते (8 पीढ़ी पहले मेरे एक दादा का नाम भंता रखा गया था, आज मेरे गाम में उनके नाम से पूरा ठोला बसता है) मठों में समाधि लगा कर बैठते थे| जब राजा पुष्यमित्र सुंग ने धोखे से गद्दी हथियाई व् उसका राज आया तो मठों में तपस्या में लीन भंतों की गर्दनें कटवाई गई व् उनके मठ-के-मठ जला दिए गए| यह इतने व्यापक स्तर पर हुआ था कि किसी के यहाँ नुकसान होना, बुरा होना; मठ मारने का पर्याय बन गया|

पुष्यमित्र को कैसे इन कुकृत्यों से रोका गया था, इस बारे "हरयाणा का इतिहास" पुस्तक में प्रोफेसर के. सी. यादव लिखते हैं कि उसकी 100000 की सेना को बुद्ध मीमांसा में तल्लीन 9000 जाटों ने समाधि छोड़, अपने 1500 लोग खपा के इस सेना को काटा था, तब जा के यह टिके थे|

आज वालों के भी वही लच्छन हैं, यह देश में गृहयुद्ध करवाए बिना टिकेंगे नहीं; क्योंकि यह येन-प्रकेण सत्ता हथियाना तो जानते हैं, परन्तु उसको सुचारु रूप से चलाना इनके DNA में ही नहीं है| तब से अब तक इनके तौर-तरीकों-सोच में कुछ नहीं बदला|

Belated Happy Buddha Poornima!

जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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