Tuesday 18 May 2021

बावन बुद्धि आणिया, छप्पन बुद्धि जाट!

सुनी थी छप्पन बुद्धि जब महाराजा सूरजमल ने चलाई तो नागपुर-पुणे के चितपावनी पेशवे भी दिल्ली पर राज करने के सपनों का मन-मसोसवा के व् हाथ-मलवा के वापिस पुणे छुड़वा दिए गए थे| क्यों पड़े हो फिर से इनके चक्कर में, यह इतने भले होते तो तुम्हारा यह पुरखा इनको वापिस जाने की हालत में लाता क्या?

सुनी थी छप्पन बुद्धि जब सर छोटूराम ने चलाई थी तो आज़ादी से पहले के "यूनाइटेड पंजाब" से गाम-के-गाम, ताखड़ी पे डंडी मारने व् चक्रवर्धी सूदखोरी करने वालों से खाली हो गए थे? उस एथिकल-कैपिटलिज्म (ethical capitalism) के धोतक ने, सारी बावन की बावन झाड़ ली थी|
अगला कौन आएगा इस क्रम में व् कब आएगा; यह इंतज़ार इतना लम्बा ना हो जाए कि किसान आंदोलन से, फंडियों के जुल्मों से मुक्ति पाने की आस जो किसान ही नहीं अपितु मजदूर, छोटे-मंझले व्यापारी व् वास्तविक धार्मिक प्रतिनिधियों की इससे जुडी हैं, वह टूट जाएं| क्या प्रकृति-परमात्मा-पुरखे इतने ज्यादा रूष्ट हुए खड़े हैं कि राह अभी हासिल नहीं? इनसे तो लड़ाई भी बुद्धि की है, तो धरनों पे यह रोज-रोज की दौड़-धूप किस ख़ुशी में करवाई जा रही है, जहाँ बैठे हैं वहां बैठ के सर-जोड़ के छप्पन बुद्धि से चलाने की जरूरत है इस आंदोलन को; बोहें-दाडें-भृकुटि दिखाने-दरडाने की नहीं|
जय यौद्धेय! - फूल मलिक

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