Tuesday 15 June 2021

भगवान के भक्त बनने से अच्छा उसके लुटेरे बनो, अन्यथा?

भगवान के भक्त बनने से अच्छा उसके लुटेरे बनो, अन्यथा?:


पिछली सरकारों में सिर्फ चोर थे, सरकारी सिस्टम में घपले करते थे; कम-से-कम पब्लिक का पर्दा रखते थे इतनी शर्म फिर भी पालते थे| 


यह सरकार आई, चोरों की जगह डकैत आए; तुम्हारी यानि पब्लिक प्रॉपर्टी को तुम्हारी नाक के नीचे ओने-पौने दामों पे प्राइवेट को बेच रहे, माल्या-चौकसी-मोदी जैसे लॉन-डिफॉलटर्स को दिन-दहाड़े बॉर्डर्स पार करवा रहे| आगे की तरक्की गज़ब भाई, भक्तों ने गली-गली धक्के खा-खा जो 5-5 रूपये चंदा जुटाया था, उससे बनने वाले मंदिर के लिए जमीन खरीदने के नाम पर 2 करोड़ की जमीन 10 मिनट में 16.5 करोड़ की बना के मुल्ला अंसारी (जिनसे नफरत की डोज पे भक्त बनाए जाते हैं) के साथ मिलके 14.5 करोड़ का गबन कर गए| ज्यादा नहीं तो 50% तो मुल्ला जी को भी मिला ही होगा? और देख लेना, जिस पाप-पुण्य के चक्कर में फंसा के तुमसे दान करवाते हैं, वह पाप-पुण्य बाल भी बांका नहीं कर पाएगा इनका; बल्कि चम्पत मिश्रा को बचाया और जाएगा|  


क्यों पड़े हो इनके चक्करों में, तुम्हारे पुरखे पागल नहीं थे जो यह कहते थे कि, "इतने 80 फुट ऊँचा खम्बा खड़ा करो, इतने 80 फुट नीचे धरती में उतार लो; माणस-जी-जंतु को पीने को पानी तो हो जाएगा"| धर्म के नाम का ढाहरा तो इतना भतेरा जितना पुरखे "दादा नगर खेड़ों" के रूप बता गए| इससे ज्यादा के फंडों से तो ढोंगी-पाखंडी, सबसे गैर-जिम्मेदार लोगों को कोढ़ की तरह पालना कहलाता है| बताओ भगवान के 14.5 करोड़ का गबन करने वाला भगवान से न डरा, वह डरेगा तुमसे; मानेगा तुम्हारी कोई काण? 


और सबसे बुरा तरीका तो आर्य-समाजियों को बहकाने का चलाया हुआ है फंडियों ने| आर्य-समाज ने जिनको अवतार माना ही नहीं,  उनकी कोई निश्चित तारिख-काल नहीं मिलता; इनको किस्सों में दर्जनों तुम्हारे समाज-मान-मर्यादा-रिवाजों के विपरीत बातें हैं; मात्र राजा माना वह भी अगर हुए थे तो उनके भी मंदिर बनाने लगे हुए हैं? तो फिर राजाओं के ही मंदिर बनवाने हैं तो महाराजा हर्षवर्धन, महाराजा सूरजमल, महाराजा रणजीत सिंह, राजा नाहर सिंह के ही बनवा लो ना? या फिर दादा हरवीर सिंह गुलिया बादली वाले, दादा चौधरी गॉड गोकुला जी  सिनसिनवार, दादा चौधरी जाटवान जी गठवाला, दादीराणी समाकौर गठवाली, दादीराणी भागीरथी कौर, दादीराणी माई भागो आदि-आदि सर्वखाप यौद्धेयों के "खापद्वारे" बनवा लो? ये कम-से-कम साबित तौर पर थारे अपने खून-खूम के तो हैं; उनकी अपेक्षा जिनपे तुम समेत कई जातियां उनके अपने होने का क्लेम धरती हैं|  


फंडियों को अगर अपना धन व् दिमाग दोगे तो सिवाए इसके दोहन के जो एक ओंस भी बढ़ोतरी हेतु कुछ पा लो तो| यह राम के नाम पे घपले-घोटाले करने से नहीं डरते, तुमसे डरेंगे, रखेंगे तुम्हारी काण? 


जिस देश-समाज में धर्म में ही करप्शन हो, उसके सरकारी व् कर्मचारी तंत्र से ले आम इंसान से क्या उम्मीद करोगे? कहाँ से लाओगे वह लोग, जिनसे उम्मीद करते हो कि वह एक करप्शन रहित, छूत-अछूत रहित समाज बना के दें? लाजिमी है कि इनसे पिंड छुटाये रखे बिना, यह सब सम्भव ही नहीं|  


जय यौद्धेय! - फूल मलिक 

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